Saturday, February 6, 2021

SARTHAK KI KAHANI.........PATANG

 बाल कहानी-  पतंग

सार्थक
INDORE SAMACHAR

सात साल के सौरभ को पतंगें बहुत अच्छी लगती हैं। वह अपनी छत पर चला जाता और घंटों बच्चों को पतंग उड़ाते देखता। उसके मन में पतंग उड़ाने की इच्छाएं पैदा होती हैं। लेकिन उसके पास अपनी पतंग नहीं थी। पतंग होती भी तो उसे पतंग उड़ानी ही नहीं आती थी। उसने एक बार सोचा कि वह किसी से पतंग उड़ाना सीख ले। फिर उसने देखा कि उसकी बगल वाली छत पर एक लडक़ा पतंग उड़ा रहा है। छत को फांद करके वह उसके पास गया।
सौरभ ने उससे पूछा- तुम्हारा नाम क्या है?
लडक़े ने बताया- रवि।
सौरभ ने पूछा- क्या मुझसे दोस्ती करोगे?
रवि- हां, क्यों नहीं।
सौरभ- क्या तुम मुझे पतंग उड़ाना सिखा सकते हो?
रवि- पहले तुम डोर और पतंग लाओ। फिर मैं सिखा दूंगा।
सौरभ- हां, मैं अपने पापा से बात करता हूँ। उनसे पैसे लेकर हम दोनों एक बढिय़ा पतंग ले आएंगे।
सौरभ अपने पापा के पास गया। उसने पापा से कहा- मैं पतंग व डोर खरीदना चाहता हूँ। मुझे पैसे दे दो।
पापा-क्या तुम्हें पतंग उड़ानी आती है?
सौरभ- नहीं, मेरा एक नया दोस्त बना है। वह बहुत अच्छी पतंग उड़ाता है। वह मुझे पतंग उड़ाना सिखाएगा।
पापा- पहले तुम उसकी पतंग से सीख लो। फिर तुम्हें भी पतंग दिला देंगे।
पापा का जवाब सुनकर सौरभ मायूस हो गया। वह अपनी छत पर गया। उसने देखा कि रवि अपनी छत पर नहीं है। वह उसके घर गया। उसने डोर बैल बजाई। रवि की मम्मी दरवाजे पर आई। उसने सौरभ से पूछा-तुम कौन हो और क्यों आए हो?
सौरभ ने कहा-मैं रवि का दोस्त हूँ। मुझे उससे पतंग उड़ानी सीखनी है।
रवि की मम्मी- उसका ट्यूशन का टाइम हो रहा है। वह ट्यूशन पर जाएगा। पांच बजे वह ट्यूशन पढ़ कर आएगा। फिर तुम आकर उससे मिल लेना।
सौरभ रवि के ट्यूशन से लौट आने का इंतजार करता रहा। पूरे पांच बजे उसने फिर से रवि का दरवाजा खटखटाया। दरवाजे पर आई रवि की मम्मी ने उसे बताया कि रवि अभी घर नहीं पहुंचा है। जल्दी ही शायद वह आ जाएगा।
सौरभ फिर से पांच बजकर दस मिनट पर रवि के घर पहुंचा। रवि की मम्मी ने कहा- रवि अभी खाना खा रहा है। थोड़ी देर बाद आना।
सौरभ दस मिनट बाद आया। तब वह पार्क में खेलने गया था। जब वह रवि क ो बुलाने जाता तो वह कभी कोई काम होता तो कभी कोई काम होता। ऐसे ही कईं दिन बीत गए। एक दिन आखिर उसे रवि से मिलने का मौका मिल ही गया।
सौरभ रवि से-पापा ने कहा है पहले वह अपने दोस्त से पतंग उड़ाना सीख जाए, तब पापा मुझे पतंग दिला देंगे।
रवि मान गया। उसने सबसे पहले सौरभ को पतंग में डोर बांधना सिखाया। डोर टूटने पर उसे बांधना सिखाया। फिर उसे पतंग उड़ाना सिखाया। फिर डोर को झटके लगाकर पतंग को ऊंचा उड़ाना सिखाया। उड़ती पतंग के साथ-साथ जैसे सौरभ खुद आसमान में उड़ता महसूस करता। उसके बाद सौरभ ने डोर को ढ़ील देने के बारे में बताया ताकि पतंग और अधिक ऊपर जा सके। रवि ने सौरभ को अलग-अलग प्रकार की डोर दिखाई और उनका अभ्यास भी करवाया। उसने उसे डोर को लपेटना सिखाया। विभिन्न प्रकार के पतंगों की विशेषताएं समझाई।
रवि ने बताया कि कौन सी पतंग ज्यादा अच्छी होती है और कौन सी पतंग ज्यादा अच्छी उड़ान नहीं भरती। सौरभ को हवा की दिशाओं के बारे में समझते भी देर ना लगी। वह 10 दिनों में पतंग उड़ाना सीख गया। उसने पतंग भी खरीद ली। जल्दी ही बसंत पंचमी आ गई। फिर सौरभ ने बसंत पंचमी पर खूब पतंग उड़ायी। उसकी पतंग की उड़ान देखकर आस-पास के बच्चे भी दंग थे।

-सार्थक
कक्षा-पांचवीं, आयु-दस वर्ष
शहीद उधम सिंह वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, मटक माजरी, इन्द्री,
जिला-करनाल, हरियाणा
मो.नं.-9466220145

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