Monday, February 8, 2021

KALPANA DUTT A GREAT REVOLUTIONARY OF CHATTGRAM VIDROH

 पुण्यतिथि विशेष

स्वतंत्रता आंदोलन की बहादुर क्रांतिकारी: कल्पना दत्त फिल्म ‘खेलें हम जी जान से’ ने इतिहास के अनछुए पहलुओं पर की कलात्मक अभिव्यक्ति
DAILY NEWS ACTIVIST 8-02-2021

अरुण कुमार कैहरबा
आजादी की लड़ाई के दौरान अंग्रेजों को भगाने व देश को आजाद करवाने के लिए लोगों की एकता देखते ही बनती थी। देश के कोने-कोने में आजादी के लिए विभिन्न प्रकार की कार्रवाईयां की गई। आजादी की लड़ाई में क्रांतिकारियों की देशभक्ति, साहस व बलिदान के अनेक किस्से हैं, जो आज भी देशवासियों के मन में जोश पैदा कर देते हैं। अंग्रेजों के अन्याय व अत्याचार के खिलाफ बंगाल में भी क्रांतिकारी आंदोलन अपने उफान पर था। बंगाल से संबंध रखने वाले रास बिहारी बोस व सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज का गठन करके अंग्रेजों के खिलाफ आजादी के लिए निर्णायक लड़ाई लड़ी। इस फौज में महिलाएं भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रही थी। लेकिन इससे भी पहले मास्टर सूर्यसेन की अगुवाई में भारतीय गणतंत्र सेना का गठन किया था। गणतंत्र सेना में कल्पना दत्त व प्रीतिलता जैसी वीरांगनाओं ने नेतृत्वकारी भूमिका निभाई। युवाओं के प्रशिक्षण, बम बनाने और सेना के लिए हथियारों की चोरी-छिपे सप्लाई करने जैसे कार्य किए। उनकी सक्रिय भागीदारी ने बताया कि बहादुरी केवल केवल क्रांतिकारी युवकों तक ही सीमित नहीं थी, उसमें महिलाओं का हैरान कर देने वाला योगदान था। आशुतोष गोवरिकर के निर्देशन में 2010 में आई फिल्म- ‘खेलें हम जी जान से’ ने मास्टर दा सूर्यसेन के नेतृत्व में चट्टोग्राम की अंग्रेजों से आजादी की क्रांतिकारी मुहिम को सामने लाने का काम किया। मानिनी चटर्जी के उपन्यास ‘डू एंड डाई: चटग्राम विद्रोह’ पर आधारित यह उपन्यास बहुत रोचक व यथार्थपरक ढ़ंग से चटग्राम विद्रोह के क्रांतिकारी शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करता है। इस विद्रोह की नायिका कल्पना दत्त ने आजादी के बाद गुमनामी में जिंदगी गुजारी। 8 फरवरी, 1995 को उन्होंने दुनिया से अलविदा कहा। उनकी पुण्यतिथि पर आज का यह लेख उन्हीं को समर्पित कर रहा हूँ।
VIR ARJUN 8-2-2021


कल्पना दत्त का जन्म 27जुलाई, 1913 को अंग्रेजी साम्राज्य के अधीन संयुक्त भारत के बंगाल प्रदेश के चट्टोग्राम या चटग्राम जिला में पडऩे वाले श्रीपुर गांव में हुआ था। चटग्राम से उन्होंने 1929 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। उसके बाद उसने विज्ञान स्नातक करने के लिए कलकत्ता के बेथ्यून महिला कॉलेज में प्रवेश किया। यहां पर कल्पना छात्र संघ से जुड़ गई। उस समय प्रीतिलता व बीना दास भी छात्र संघ की सदस्य थी। प्रीतिलता के साथ कल्पना की गहरी मित्रता हो गई। अंग्रेजों द्वारा किए जा रहे शोषण को देखकर और क्रांतिकारियों की जीवनियां पढक़र उनके मन में भी आजादी की ललक बढ़ती जा रही थी। कांग्रेस के शांतिपूर्ण आंदोलन से भी लोग निराश हो रहे थे। गणतंत्र सेना से जुडऩे के लिए कल्पना ने प्रीतिलता से बात की। दोनों मास्टर सूर्यसेन से मिलने के लिए पहुंची और उन्हें क्रांति दल का हिस्सा बनाने का अनुरोध किया।
एक बार तो सूर्यसेन ने क्रांति का रास्ते की मुश्किलात को बताते हुए उनसे ना जुडऩे की बात की। लेकिन कल्पना के इरादे को देखकर दल में शामिल कर लिया गया। बच्चों, किशोरों व युवाओं में भी अंग्रेजी शासन के प्रति आक्रोश बढ़ता जाता है। सूर्यसेन की अगुवाई में उनके सैनिक प्रशिक्षण, बंदूक-पिस्तौल चलाने का अभ्यास, हथियार बनाने के लिए सामग्री को लाने व बम बनाने की कार्रवाई में भी कल्पना दत्त व प्रीतिलता की सक्रिय भूमिका निभाती हैं।
18 अप्रैल, 1930 को चटग्राम विद्रोह की योजना में दोनों सक्रिय हिस्सा लेती हैं। यह ऐतिहासिक विद्रोह था, जिसमें योजनाबद्ध ढ़ंग से अंग्रेजी शासन, संचार, सेना के अड्डों को ध्वस्त किया गया और शस्त्रों को लूट लिया गया। लेकिन पूरी तरह से यह विद्रोह सफल नहीं होता। सितंबर, 1931 में चटग्राम के यूरोपियन क्लब पर हमले की जिम्मेदारी प्रीतिलता व कल्पना दत्त को दी गई। लेकिन हमले के एक सप्ताह पूर्व कल्पना दत्त को गिरफ्तार कर लिया गया। कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलने के कारण जमानत पर रिहा भी कर दिया गया और उस पर नजर रखी जाने लगी।
इसके बावजूद कल्पना दत्त पुलिस को चकमा देकर क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय हिस्सेदारी करती रही। 17 फरवरी, 1933 को पुलिस कल्पना दत्त, सूर्यसेन व अन्य के छिपने के स्थान का घेरा डाल देती है। इसमें कल्पना भागने में कामयाब होती है और सूर्यसेन को गिरफ्तार कर लिया जाता है। अदालत में सूर्यसेन व तारकेश्वर दस्तीकार को फांसी और 21वर्षीय कल्पना दत्त को आजीवन कारावास की सजा मिलती है। इससे पहले प्रीतिलता ने पुलिस से घिरने पर पुलिस के हाथ नहीं आने के लिए खुद ही अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली थी। अनेक क्रांतिकारी पुलिस व सेना की कार्रवाई में शहीद हो चुके थे।
महात्मा गांधी व कांग्रेस के प्रयासों से जेलों में बंद अनेक क्रांतिकारी रिहा हुए। 1939 में कल्पना दत्त भी रिहा हुई। उसके बाद उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से पढ़ाई की। कम्यूनिस्ट पार्टी के नेता पीसी जोशी के साथ उनका विवाह हुआ। 1943 में आए अकाल के वक्त उन्होंने अकाल पीडि़तों की मदद की। उन्होंने बांगला में अपनी आत्मकथा लिखी। जिसका अंग्रेजी में अरुण बोस व निखिल चक्रवती ने अंग्रेजी में ‘चटग्राम आर्मरी रेडर्स: रेमिनिसेस’ शीर्षक से अनुवाद किया है। बाद में वे भारतीय सांख्यिकी संस्थान से जुड़ी रही।
कल्पना जोशी के बेटे चांद जोशी की पत्नी मानिनी चटर्जी की किताब पर आशुतोष गोवरिकर ने फिल्म बनाकर इतिहास के पन्नों को कलात्मक अभिव्यक्ति दी है। यह फिल्म युवाओं को इतिहास में झांकने, स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारियों से परिचय करवाने की सफल कोशिश है। फिल्म में सूर्य सेन की भूमिका अभिषेक बच्चन और कल्पना दत्त की भूमिका दीपिका पादुकोण ने निभाई है। इसके अलावा विशाखा सिंह ने प्रीतिलता वाद्देदार, सिकंदर सिंह - निर्मल सेन, महिंदर सिंह - अनंता सिंह की भूमिका में दिखे हैं। इतिहास के उन पन्नों को जानने के लिए फिल्म को देखा जाना चाहिए।
अरुण कुमार कैहरबा
हिन्दी प्राध्यापक, स्तंभकार व लेखक
वार्ड  नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जिला-करनाल, हरियाणा
मो.नं.-9466220145
JAGAT KRANTI 8-2-2021

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