Monday, February 1, 2021

MAHATMA GANDHI- GREAT THIKER & FREEDOM FIGHTER

 आजादी के आंदोलन के अगुवा, विचारक व चिंतक महात्मा गांधी

जन संवाद, सत्याग्रह, अहिंसा व असहयोग को बनाया औजार

गांधी को प्रतीकों में ढूंढऩे वालों को निराशा ही होगी

मजबूरी का नहीं, मजबूती का नाम है गांधी

अरुण कुमार कैहरबा


PRAKHAR VIKAS 1-02-2021



30जनवरी, 1948 का दिन भारत ही नहीं दुनिया के इतिहास में एक ऐसा दिन है, जो कभी भुलाए से नहीं भूलेगा। एक तरफ सत्य, प्रेम व अहिंसा के प्रतीक महात्मा गांधी। दूसरी तरफ डर और नफरत से अंधा एक शख्स नाथूराम गोडसे। हिंसा, नफरत व बंटवारे की ताकतें सत्य और प्रेम को खत्म कर देना चाहती हैं। गोडसे ने गोलियां चलाकर गांधी को मारने की कोशिश की। कहने को तो उसने उनका कत्ल कर दिया। लेकिन क्या गांधी को मारा जा सकता है? बिल्कुल नहीं। महात्मा गांधी अपने नश्वर शरीर से तो जुदा हो गए, लेकिन अपने विचारों के रूप में वे इस देश की रगों में दौड़ते हैं। उनके विचार ही उन्हें दुनिया भर में महात्मा और देश की जनता के प्रिय बापू और राष्ट्रपिता बनाते हैं। उनके विचारों से मतभेद रखने वाले भी स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका को बेहद अहम मानते रहे हैं। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने उन्हें दुनिया के दूसरे देशों में रेडियो के माध्यम से बोलते हुए राष्ट्रपिता (फादर ऑफ द नेशन) कह कर संबोधित किया। हालांकि नेता जी उनके तरीकों से इत्तेफाक नहीं रखते थे।  
गांधी के विचारों की बात करें तो उनका खुद का लिखा हुआ ही बहुत व्यापक साहित्य है। उनके जीवन काल में और उनके जाने के बाद में उनके कार्यों व विचारों पर बहुत विचार-मंथन हुआ है। उनके जीवन पर नाटक खेले गए। फिल्में बनाई गईं। पेंटिंग सहित विभिन्न कलाओं के जरिये भी गांधी को देखा-परखा गया और यह क्रम लगातार जारी है। यह महात्मा गांधी के विचारों के और अधिक प्रासंगिक होते जाने को भी दर्शा रहा है। एक तरफ पूरी दुनिया में गांधी के विचारों का आभामंडल बढ़ रहा है, दूसरी तरफ ऐसे लोग भी हैं, जो गांधी के विचारों से आज भी दहशतजदा हैं। नफरत से भरे वे गांधी जयंती व पुण्यतिथि पर उनकी मूर्ति पर पिस्तौल तान कर गोलियां चलाकर उन्हें दौबारा मारने के नाटक कर रहे हैं। ऐसा करके उन्हें मिलता क्या है? यह सोचने वाली बात है। हां, इससे उनकी घृणा व नफरत का प्रदर्शन जरूर होता है। जिस जातिवाद, साम्प्रदायिकता व नफरत के जहर को गांधी समाप्त करने के लिए आजीवन संघर्ष करते रहे। वह जहर बार-बार फन फैलाता है। जहरीली हवाओं व बंटवारे की आग को फैलाने वाले वायरस के लिए एंटी वायरस ढूंढऩे के लिए गांधी के लिखे-कहे का बार-बार मंथन करना चाहिए।
आम लोगों को हम मजबूरी का नाम गांधी कहते हुए सुनते हैं। लेकिन वास्तव में मजबूरी का नहीं मजबूती का नाम गांधी है। हां, उनकी मजबूती, निर्भयता, आत्मबल के स्रोत की बात करें, तो वह आता है-जनसंवाद से। ब्रिटेन में बैरिस्टरी करके लौटे गांधी को दक्षिण अफ्रीका के प्रथम श्रेणी के डिब्बे से सिर्फ इसलिए निकाल कर फेंक दिया जाता है, क्योंकि वे काले भारतीय हैं। फिरंगियों को अपने श्रेष्ठता का झूठा गुमान था। वे लोगों के बीच में जाते हैं और अन्याय, अत्याचार के विरूद्ध आंदोलन शुरू कर देते हैं। अफ्रीका में ही प्रसिद्ध हो गए गांधी जब भारत में पहुंचते हैं तो भारत को समझने के लिए गुरु नानक जी की तरह भारत-भ्रमण करते हैं। वे जहां कांग्रेस के सफेदपोश नेताओं से संवाद करते हैं, वहीं देश के किसानों, मजदूरों, महिलाओं और गरीब-मजलूम जनता के बातचीत करते हैं। यह संवाद हमारे आज के नेताओं की तरह दलित-किसान के घर जाकर खाना खाने का दिखावा करने जैसा नहीं था। यह संवाद उनके बीच में रहकर समझने-देखने व अध्ययन करने जैसा था। इसके बाद गांधी चुप नहीं बैठते थे। बल्कि आजादी की लड़ाई में नए प्रयोग करते थे।
गांधी कांग्रेस के विचारों, रणनीति व कार्रवाईयों पर निर्णायक असर डालते हैं। उनसे पहले कांग्रेस कुछ पढ़े-लिखे मध्यमवर्ग के लोगों की सुविधाओं के लिए वार्षिक अधिवेशन व मांगपत्र रखने का कार्य करती थी। गांधी कांग्रेस नेताओं के बीच आम जन के दुख-दर्द और उनके जीवन के सवालों को उठाते हैं। वे आजादी की लड़ाई को आंदोलन की शक्ल देते हैं। गांधी असहमतियों से घिरे हुए थे। कांग्रेस के अंदर भी वैचारिक मतभेदों की कमी नहीं थी। मोहम्मद अली जिन्ना, बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर, नेता जी सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह सहित कितने ही नेताओं के साथ गांधी का प्रत्यक्ष व परोक्ष संवाद होता है। इसको लेकर कुछ लोग गांधी के खंडन या मंडन की तरफ आगे बढ़ते हैं। लेकिन गांधी वैचारिक विमर्श व संवाद के पक्षधर थे। वे निर्भय होकर अपने विचार व्यक्त करते थे। वे जहां आजीवन अध्ययन से जुड़े रहे। वहीं अपने विचारों को आत्मकथा, संस्मरणों, चि_ियों, पत्र-पत्रिकाओं व किताबों के जरिये अभिव्यक्त करते थे। उन्होंने जीवन भर सत्य के प्रयोग किए। अपने ही प्रयोगों को बार-बार परखा। अहिंसक, शांतिपूर्ण असहयोग आंदोलन में चोरा-चोरी की हिंसक घटना होते ही वे आंदोलन को वापिस लेने में भी देर नहीं लगाते। उन्होंने गांधीवाद नाम के किसी दर्शन को सिरे से खारिज कर दिया था। उनका जीवन व कार्य ही उनका दर्शन है। उनसे पहले कहा जाता था- ईश्वर ही सत्य है। गांधी ने ईश्वर की परिभाषा को बदलते हुए कहा कि सत्य ही ईश्वर है। ईश्वर को पाने के इच्छुक लोगों को सत्य को प्राप्त करना चाहिए। आज सत्य की तलाश करना और भी मुश्किल हो गया है। झूठ को सच के रूप में पेश किया जा रहा है। ऐसे में इन्सान होने के नाते सत्याग्रह हमारा दायित्व है। सत्याग्रह मतलब सत्य के लिए आग्रह करना, सत्य के लिए अड़ जाना, डट जाना। गांधी ने भारतीय परंपरा में महावीर जैन से अहिंसा, महात्मा बुद्ध से करुणा प्राप्त करते हैं। नरसी भगत का गीत- ‘वैष्णव जन तो तेने कहिए, जो पीर पराई जाने रे’ उन्हें प्रेरणा देता है। जो पीर पराई को नहीं जानता, वह इन्सान नहीं हो सकता। गांधी ने विकास की दौड़ में पीछे छूट गए आखिरी व्यक्ति को सोच-विचार व  नीतियों के  केन्द्र में लाने की बात कही। आजादी की लड़ाई को भी उन्होंने अंतिम जन को न्याय व अधिकार के साथ जोड़ा।
आज उनकी जयंती व पुण्यतिथि को स्वच्छता अभियान चलाकर मनाए जाने की रिवायत चल पड़ी है। गांधी जी के विचारक-चिंतक व आजादी के आंदोलन के अगुवा की छवि के विपरीत उन्हें ऐसा दिखाया जाता है, जैसे वे सफाई निरीक्षक हों। सभी अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार उनकी छवि देखते और बनाते हैं। काई उनके चरखे का प्रचार करता है, कोई खादी का और कोई चश्मे व लाठी का। अपने-अपने हिसाब से कोई उनके किसी विशेष संदर्भ को उठाता है और काई फुटनोट को। सब अपना-अपना गांधी लिए घूमते हैं और गांधी उन सबके बीच में होते हुए भी हमेशा उस सबसे आगे बढ़ जाते हैं। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो. सुभाष चन्द्र कहते हैं ‘गांधी की कोई चेलागिरी नहीं है। गांधी किसी चोले में नहीं होते। गांधी हमेशा इन सबके बीच में होते हैं। गांधी प्रतीकों में नहीं होते।’

अरुण कुमार कैहरबा
हिन्दी प्राध्यापक, लेखक व स्तंभकार
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जिला-करनाल, हरियाणा
मो.नं.-9466220145
JAGAT KRANTI 30-01-2021

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