Saturday, February 6, 2021

KAVI PRADEEP कवि प्रदीप ने फैलाई राष्ट्रीय चेतना

 जयंती विशेष

ऐ मेरे वतन के लोगों, जऱा आँख में भर लो पानी....

सिनेमा को जरिया बनाकर कवि प्रदीप ने फैलाई राष्ट्रीय चेतना

अरुण कुमार कैहरबा
HARI BHOOMI 6-2-2021

ऐ मेरे वतन के लोगों, जऱा आँख में भर लो पानी....
जो शहीद हुए हैं उनकी, जऱा याद करो कुर्बानी।
ये वो बोल हैं जिन्हें सुनकर शहीदों की कुर्बानी का अहसास हृदय की गहराई में उतर जाता है और बरबस आँखों से आंसू बहने लगते हैं। हिन्दी फिल्मों के निराले एवं देशभक्ति के अमर गीतकार कवि प्रदीप की कलम की कशिश और आकर्षण कुछ ऐसा ही है। आम जन ही नहीं बल्कि भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भी इस गीत को सुनकर भाव-विभोर हो गए थे और अपने आँसू नहीं रोक पाए थे। कवि प्रदीप ने प्रेम के हर रूप और हर रस को अपने गीतों में पिरोया है, लेकिन देशप्रेम की भावना के गीतों के लिए उन्हें विशेष रूप से याद किया जाता है।
मध्यप्रदेश के बडऩगर में 6फरवरी, 1915 को जन्मे प्रदीप का नाम रामचंद्र द्विवेदी रखा गया। प्राथमिक शिक्षा मध्य प्रदेश में हुई। स्नातक की डिग्री लखनऊ विश्वविद्यालय से प्राप्त करने के बाद अध्यापक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में प्रवेश किया। विद्यार्थी जीवन में ही काव्य ने उन्हें आकर्षित किया और वे काव्य-रचना व वाचन में विशेष दिलचस्पी लेने लगे। कवि सम्मेलनों में कविताएं सुनाते हुए उन्हें श्रोताओं की खूब दाद मिलती थी। रामचंद्र द्विवेदी की कविता केवल समय बिताने का साधन नहीं थी, वह उनकी सांस-सांस में बसी थी और जीवन का अभिन्न हिस्सा थी। इसीलिए अध्यापन छोडक़र वे कविता रचना में जुट गए। कवि सम्मेलनों में उन्होंने सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जैसी विभूतियों को भी प्रभावित किया। उन्हीं के आशीर्वाद से रामचंद्र ‘प्रदीप’ कहलाने लगे। बाद में वे मायानगरी मुंबई चले गए। उस जमाने में अभिनेता प्रदीप कुमार बहुत लोकप्रिय थे और अक्सर आम लोग प्रदीप कहे जाने वाले रामचंद्र द्विवेदी की जगह प्रदीप कुमार के बारे में सोचने-समझने लगते थे। ऐसी स्थिति से बचने के लिए रामचंद्र ने अपना उपनाम ‘कवि प्रदीप’ रख लिया, ताकि अभिनेता प्रदीप कुमार और गीतकार प्रदीप में अंतर हो सके। कवि प्रदीप अपनी रचनाएं गाकर ही सुनाते थे। उनकी शैली से प्रभावित हुए बाम्बे टॉकीज के मालिक हिमांशु राय ने उनको कंगन फिल्म के लिए अनुबंधित किया। कवि प्रदीप ने इस फिल्म के लिए चार गाने लिखे।  उनमें से तीन गाने स्वयं गाये और सभी गाने अत्यंत लोकप्रिय हुए। परंतु गायक के रूप में उनकी लोकप्रियता का माध्यम बना ‘जागृति’ फिल्म का गीत, जिसके बोल हैं-
आओ बच्चो तुम्हें दिखाएँ झांकी हिंदुस्तान की,
इस मिट्टी को तिलक करो, ये धरती है बलिदान की। वंदे मातरम, वंदे मातरम।
संगीत निर्देशक हेमंत कुमार, सी. रामचंद्र, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल आदि ने समय-समय पर कवि प्रदीप के लिखे कुछ गीतों को उन्हीं की आवाज में रिकॉर्ड किया। ‘पिंजरे के पंछी रे तेरा दर्द न जाने कोय’, ‘टूट गई है माला मोती बिखर गए’, ‘कोई लाख करे चतुराई करम का लेख मिटे न रे भाई’ जैसे भाव प्रधान गीतों को बहुत आकर्षक अंदाज में गाकर कवि प्रदीप ने फिल्म जगत के गायकों में अपना सिक्का जमा दिया। किस्मत फिल्म का एक गीत यद्यपि कवि प्रदीप ने स्वयं गाया नहीं था, लेकिन उनकी लिखी इस रचना ने ब्रिटिश शासकों को हिला कर रख दिया था, जिसके बोल हैं- ‘आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है, दूर हटो ऐ दुनिया वालो हिंदुस्तान हमारा है।’ बताते हैं कि ब्रिटिश अधिकारियों ने वारंट जारी करके कवि प्रदीप की तलाश शुरू कर दी। जब उनके कुछ मित्रों को पता चला कि ब्रिटिश शासक कवि प्रदीप को पकडक़र कड़ी सजा देना चाहते हैं। मित्रों और शुभचिंतकों के अनुरोध पर कवि प्रदीप भूमिगत हो गए।  लेकिन यह गाना वतन के मतवालों में नई ऊर्जा का संचार कर गया। लोगों ने भी इस गीत की खूब सराहना की। गीत को सुनकर दर्शकों में उत्साह जागृत होता। वे इस गीत को दौबारा चलाने की फरमाइश करते। सिनेमाघरों में फिल्म की रील को रिवाइंड किया जाता और गाना फिर से दिखाया व सुनाया जाता।
कवि प्रदीप ने 71 फिल्मों के लिए सैंकड़ों गीत लिखे। उनके लिखे कुल गीतों की संख्या 17सौ के करीब है। चल चल रे नौजवान, कितना बदल गया इन्सान (नास्तिक), पिंजरे के पंछी रे (नागमणि), इन्सान का इन्सान से हो भाईचारा (पैगाम), चल अकेला, चल अकेला (संबंध) व चना जोर गरम बाबू (बंधन) सहित उनके अनेक गीत आज भी लोगों की जुबान पर थिरकते हैं। देशक्तिपूर्ण गीतों के कारण उन्हें हमेशा याद रखा जाएगा। आजादी से पहले पराधीनता के जूए को सिर से उतार फेंकने में लगे वतन के परवानों को कवि प्रदीप ने अपने गीत रूपी हथियार दिए और आजादी के बाद भी लोगों में देशभक्ति का जज़्बा पैदा किया। उनकी बेटी मितुल प्रदीप के अनुसार-देश प्रेम के गीत लिखने का जज़्बा प्रदीप जी में उन्हीं दिनों से था जब वे बतौर छात्र इलाहाबाद में पढ़ते थे।
आज़ादी के बाद 1954 में उन्होंने फि़ल्म जागृति में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन दर्शन को बहुत ही शानदार ढंग़ से अपने गीतों में उतारा। इसे लेखनी का ही कमाल कहेंगे कि जब पाकिस्तान में फि़ल्म जागृति की रीमेक बेदारी बनाई गई तो बस देश की जगह मुल्क कर दिया गया और पाकिस्तानी गीत बन गया....हम लाए हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के, इस मुल्क़ को रखना मेरे बच्चों संभाल के..। कुछ इसी तरह ‘दे दी हमें आज़ादी बिना खडग़ बिना ढ़ाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल’ की जगह पाकिस्तानी गाना बन गया..... यूँ दी हमें आज़ादी कि दुनिया हुई हैरान, ऐ क़ायदे आज़म तेरा एहसान है एहसान। ऐसे ही था बेदारी का ये पाकिस्तानी गाना....आओ बच्चो सैर कराएँ तुमको पाकिस्तान की, जिसकी खातिर हमने दी क़ुर्बानी लाखों जान की। ये गाना असल में था-आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ झांकी हिंदुस्तान की...
निदा फ़ाज़ली  के अनुसार ‘प्रदीप जी ने बहुत ही अच्छे राष्ट्रीय गीत लिखे हैं। यूँ समझिए कि उन्होंने सिनेमा को ज़रिया बनाकर आम लोगों के लिए लिखा।’ वरिष्ठ पत्रकार जयप्रकाश चौकसे भी कवि प्रदीप के सादे व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हैं। उनके अनुसार, ‘उन्होंने बहुत ज़्यादा साहित्य का अध्ययन नहीं किया था, वो जन्मजात कवि थे। उन्हें मैं देशी ठाठ का स्थानीय कवि कहूंगा। यही उनका असली परिचय है। सादगी भरा जीवन जीते थे। कवि प्रदीप ने किसी राजनीतिक विचारधारा को स्वीकार नहीं किया। बौद्धिकता का जामा उनकी लेखनी पर नहीं था। जो सोचते थे वही लिखते थे, सरल थे, यही उनकी ख़ासियत थी।’ फि़ल्मों में उनके अमूल्य योगदान के लिए उन्हें 1998 में दादा साहब फ़ाल्के सम्मान भी दिया गया। उनका हर फि़ल्मी-ग़ैर फि़ल्मी गीत अर्थपूर्ण होता था और जीवन का कोई न कोई दर्शन समझा जाता था। 11 दिसंबर, 1998 को कवि प्रदीप का देहांत हो गया, लेेकिन अपने गीतों के ज़रिये वे हमें जीवन का संदेश देते रहेंगे।
अरुण कुमार कैहरबा,
हिन्दी प्राध्यापक, लेखक व स्तंभकार
घर का पता-वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान,
इन्द्री, जि़ला-करनाल (हरियाणा)
मो.नं.-09466220145


PRKHAR VIKAS

AAJ SAMAJ 6-2-2021


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