Tuesday, October 30, 2018

देस हरियाणा काव्य गोष्ठी में कवियों ने बांधा समां



‘मैं पढूं कोई कलाम और सुने सारी आवाम’
 

हरियाणा के जिला करनाल में कस्बा इन्द्री स्थित राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में दिनांक 27 अक्तूबर, 2018 को सृजन मंच इन्द्री के तत्वावधान में देस हरियाणा काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया।
गोष्ठी में क्षेत्र के कवियों ने अपनी रचनाओं में पर्यावरण सरंक्षण, मानवता, समाज सुधार एवं हरियाणा की संस्कृति सहित विभिन्न विषयों पर अपनी रचनाएं प्रस्तुत करके समां बांध दिया। गोष्ठी की अध्यक्षता कवि मुकेश खंडवाल ने की और संयोजन कवि नरेश मीत व दयाल चंद जास्ट ने किया। काव्य गोष्ठी का संचालन प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने किया। 
वरिष्ठ कवि दयाल चंद जास्ट ने काव्य गोष्ठी की शुरूआत करते हुए अपनी कविता में कुछ यूं कहा- दिवारों पर लिखे संदेश गलियों से गंद कब उठाते हैं, अखबारों में छपे हुए लेख दिलों से नफरत कब मिटाते हैं। नरेश मीत गहरे अहसास की अपनी गजल पढ़ते हुए कहा- 
महका महका सा अपना घर लगता है
बेवक्त की बहार से डर लगता है।
तुम्हीं कहो कैसे फूलों पर करूं ऐतबार
खुश्बुओं में घुला हुआ जहर लगता है।
इरादा क्या है नाखुदा का या रब
किया रूख कश्ती का उधर भंवर लगता है।

नंगे पैर जलती रेत पर चलता हूँ क्योंकि
बहुत हसीन उनको ये मंजर लगता है।
जीते जी खटकता था नजर में जिनकी
मेरे  मरने पर उदास हर बशर लगता है
कोई देर कैसे रहिये अब यहां मीत
मुझसे खफा तेरा तमाम शहर लगता है।
नरेश मीत की दूसरी गजल-
कितना मधुर उस पल का अहसास होता है
वो शख्स जब मेरे आस-पास होता है। 
मिठास तेरे सपनों की ले जाती मुझे जहां
ना तो वहां जमीन ना आकाश होता है।
मैं सच भी कहूं तो तवज्जो नहीं होती
उसके झूठ पर भी सबको विश्वास होता है।
क्यों ना चाहूं विरानियों को मैं जी जान से
साथ देती मेरा जब दिल उदास होता है
हर किसी से पेश आईयेगा मोहब्बत से मीत
जो आज गैर शायद कल खास होता है
तुम्हीं कहो कैसे फूलों पर करूं ऐतबार, खुश्बुओं में घुला हुआ जहर लगता है।
कवि अरुण ने जातीय संकीर्णताओं पर तंज कसते हुए अपनी हरियाणवी रचना में कहा- जात-पात बिन बात करैं ना ऐसे झंडेबाज होये, ऊंच-नीच नै इब भी मान्नैं, ऐसे हम आजाद होये। कवि रोशनदीन नंदी ने अपनी कविता में मोबाइल के गुण-दोष का चित्र उकेरते हुए कहा-साईंस और तरक्की के युग में अपनी पहचान बनाई मोबाइल ने, चारों तरफ खुशी और गम की लहर दिखाई मोबाइल ने। कवयित्री अंजली तुसंग ने कहा- लडऩा है गर तुम्हें तो न्याय के लिए लड़ो, कायरों की तरह फालतू पंगे में  ना पड़ो। गोष्ठी के अध्यक्ष मुकेश खंडवाल ने अपनी कामनाओं को कविता में कुछ यूं पिरोया- मैं  पढूं कोई कलाम और सुने सारी अवाम तो क्या बात हो, हर तरफ चैने अमन हो, मुकम्मल अब हर
वतन हो तो क्या बात हो। सलिन्द्र अभिलाषी ने कविता की ताकत को ऐसे बयां किया- लडऩे को इस जीवन से हथियार कविता है अपनी, करने को कुछ कार यहां औजार कविता है अपनी। कवि देवीशरण ने कहा- अविवेक की तंद्रा त्याग, सूने जग को हर्षाना है, इस धरा को स्वर्ग बनाना है। बैठक में कवियों ने काव्य सृजन में निरंतरता के लिए सक्रियता बढ़ाए जाने पर बल दिया।


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