Wednesday, October 31, 2018

आखिर कक्षाओं में साहित्य का जादू बेअसर क्यों हो रहा?

नाट्य विधि से साहित्यिक रचनाओं को जीवंत बनाएं

अरुण कुमार कैहरबा

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में भाषा की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है। आखिर भाषा ही तो ज्ञान की सब शाखाओं का आधार है। भाषा नहीं होगी तो किसी भी विषय को लेकर संवाद कैसे होगा? भाषा मानव विकास और सब प्रकार की तरक्कियों का आधार है। बच्चे के विकास में मातृभाषा और परिवेश की भाषा का कोई मुकाबला नहीं है। आज भले ही हरियाणा सहित भारत के विभिन्न राज्यों में शिशुओं को अंग्रेजी पढ़ाने-सिखाने का रिवाज चल निकला है, इसके बावजूद हिन्दी व मातृभाषाएं जीवन की ही तरह महत्वपूर्ण हैं। आज हमारी शिक्षा के सामने अनेक प्रकार की चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं। उनमें से एक भाषा को व्यक्तित्व विकास और अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बनाने की है। यह काम भाषा के आनंददायी शिक्षण से ही संभव है। भाषा में साहित्य का अध्ययन व अध्यापन यह काम कर सकता है।
 साहित्य ही ज्ञान का ऐसा अनुशासन है जिसमें शब्द और अर्थ के बीच होड़ मची होती है। शब्द अर्थ से आगे निकलने की कोशिश करता है और अर्थ शब्द की सीमाओं को लांघने के लिए प्रयासरत रहता है।
साहित्य में अर्थ छवियों के अनेक प्रकार के मंजर देखने को मिलते हैं। कविता में कवि को आकाश में फूल खिलाने और सागर में तारे छिटकाने की छूट होती है। साहित्य की भाषा विशेष प्रकार से सजी-संवरी होती है। कल्पना का खुला आकाश यहीं होता है। विचारों को दौड़ लगाने की यहां पूरी छूट होती है। साहित्यिक रचनाओं को लोग बड़े चाव से पढ़ते हैं। यह बात आम तौर पर कही जाती है कि फलां रचना ने किसी के जीवन को बदल दिया। यही साहित्य जो किसी भी पाठक को अपनी ओर आकर्षित करता है। आखिर पाठशालाओं की कक्षाओं में साहित्य का जादू बेअसर क्यों हो जाता है या अपेक्षित असर क्यों नहीं कर रहा? शब्दों से लगाव क्यों नहीं हो रहा?
यह साहित्य स्कूलों में क्यों पढऩे-समझने का चस्का उतनी सघनता से पैदा नहीं कर पा रहा है। आखिर साहित्य का शिक्षण क्यों कक्षा के विद्यार्थियों को पुस्तकालयों तक नहीं खींच पा रहा। विद्यालयों के पुस्तकालय क्यों बेजान कमरे बने हुए हैं? स्कूलों का वातावरण जिज्ञासाओं के उत्साह से आखिर क्यों लबरेज नहीं हो पा रहा। एक अध्यापक के रूप में ये सवाल बार-बार सामने खड़े हो जाते हैं।
इन सवालों को समझने के लिए भाषा की कक्षा में इस्तेमाल होने वाले विभिन्न प्रारूपों को जानने की कोशिश करते हैं। साहित्य शिक्षण का एक भाषा  प्रारूप है। यह प्रारूप भाषा सिखाने के लिए साहित्य का इस्तेमाल करता है। नाम के अनुरूप ही इस प्रारूप में भाषा सीखना-सिखाना प्राथमिक उद्देश्य है। उपयोग साहित्य का किया जाता है। इस प्रारूप की सबसे बड़ी खामी यह है कि इसमें भाषा सीखने पर ध्यान दिया जाता है। साहित्य को एक साधन के रूप में इस्तेमाल तो कर लिया जाता है, लेकिन साहित्य के आनंद तक विद्यार्थी नहीं पहुंच पाता है। भाषा सिखाए जाने के चक्कर में विद्यार्थी बोझिल भी हो सकता है।
एक अन्य प्रारूप है-साहित्य प्रारूप। प्राय: यह प्रारूप द्वितीय व विदेशी भाषा को सिखाने में खास तौर से प्रयोग किया जाता है। इसमें साहित्य के माध्यम से ज्ञान और विचार प्रदान करने का उद्देश्य मुख्य होता है। तीसरा है- व्यक्तिगत विकास प्रारूप। इसमें विद्यार्थियों की साहित्य में रूचि पैदा की जाती है। लेकिन सीधे-सीधे इस प्रारूप का परीक्षा से कोई लेना देना नहीं होता है। 
कक्षा में हिन्दी साहित्य शिक्षण के मामले में बात की जाए तो प्राय: अध्यापकों में एकांगी दृष्टिकोण देखने को मिलता है। विभिन्न प्रारूपों में से अध्यापकों के द्वारा सबसे अधिक भाषा प्रारूप का प्रयोग किया जाता है और परीक्षा पास करने का अंतिम लक्ष्य एकमात्र लक्ष्य बन जाता है। इस लक्ष्य की प्राप्ति में छोटे-छोटे उद्देश्य उपेक्षित या नजरंदाज कर दिए जाते हैं। साहित्य की कक्षा नीरसता की ओर बढ़ती हुई विद्यार्थियों को आनंद और धीरे-धीरे शिक्षा से दूर ले जाती है। हमारा मानना है कि साहित्य पढऩे का प्रारंभिक उद्देश्य आनंद की प्राप्ति है। यह आनंद छिटकना नहीं चाहिए। इस रास्ते से भटकना नहीं चाहिए। प्रारंभिक उद्देश्य को बाईपास करते हुए गुजरना नहीं चाहिए। विभिन्न प्रारूपों के बीच समन्वय करने और एक बेहतर प्रारूप का विकास हम अध्यापकों के विवेक पर निर्भर करता है। व्यक्तित्व विकास प्रारूप का संबंध भले ही परीक्षा से दिखाई नहीं देता, लेकिन आनंद के सबसे अधिक नजदीक यही प्रारूप है। यह प्रारूप ही हिन्दी शिक्षण की नाट्य या रंगमंच विधि का जनक है। इस विधि पर हम विस्तार से बातचीत करना चाहते हैं। 
क्या है साहित्य शिक्षण की रंगमंच या नाट्य विधि-
रंगमंच एक मंचीय प्रदर्शन कला है। जिसमें कलाकार मंच पर अभिनय के माध्यम से दर्शकों का मनोरंजन करने के साथ-साथ सीखने, सोचने और विचारने का मौका प्रदान करते हैं। रंगमंच की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसमें अन्य कलाओं का भी समावेश होता है। रंगमंच के माध्यम से विभिन्न साहित्यिक कृतियों के प्रस्तुतीकरण की सुदीर्घ परंपरा है। नाटक स्वयं दृश्य काव्य होते हुए एक साहित्यिक रचना भी होती है। नाटक और एकांकी के अलावा कहानी, यात्रा वृत्तांत, जीवनी, आत्मकथा, संस्मरण, संस्मरणात्मक रेखाचित्र का भी नाट्य रूपांतरण व नाट्य प्रस्तुतिकरण होने लगा है। यही नहीं कविताओं की रंगमंचीय प्रस्तुति किया जाना जहां विधाओं के आपसी संबंधों को मजबूत बनाता है, वहीं कलाओं के भीतर होने वाले आदान-प्रदान को नई धार और नए तेवर प्रदान करता है। साहित्य शिक्षण की नाट्य विधि कुछ और नहीं किसी साहित्यिक रचना को नाटक के माध्यम से पढ़ाने-सिखाने की ही विधि है। यह विद्यार्थी केन्द्रित विधि है, जिसमें विद्यार्थी सक्रिय रूप से हिस्सा लेते हैं। 
नाट्य विधि के लाभ-
नाट्य विधि साहित्य शिक्षण की सबसे प्रभावी और कारगर विधि हो सकती है। विद्यार्थियों की सक्रिय सहभागिता इस विधि की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है। विद्यार्थी सोचने और विचारने की प्रक्रिया में ही सक्रिय नहीं होता, बल्कि शारीरिक रूप से भी सक्रिय होता है। इस तरह से नाटक शरीर, मन और मस्तिष्क को साथ लेकर चलता है। नाटक करते हुए विद्यार्थियों को अभिव्यक्ति मिलती है। उनकी कल्पनाशीलता और विचारशीलता को पंख लग जाते हैं। इससे उनमें आत्मविश्वास जागता है। साहित्यिक रचनाओं को नाटक के रूप में ढ़ालते हुए विद्यार्थियों में विभिन्न प्रकार के कौशल विकसित होते हैं। उनमें समूह भावना का विकास होता है। मिलकर काम करने के लिए सहयोग और तालमेल करना सीख जाते हैं। वे समूह के साथ समायोजन करना सीखते हैं। व्यक्तिगत भिन्नताओं की उनमें समझ विकसित होती है। उनमें नेतृत्व क्षमता का विकास होता है। तरह-तरह से नाटक विधि विद्यार्थियों को लाभान्वित करती है, तो अध्यापकों को भी फायदा पहुंचाती है। अध्यापक ही नहीं अभिभावक भी प्राय: विद्यार्थियों की अनुशासनहीनता का रोना रोते पाए जाते हैं। नाटक में अभिनय का अभ्यास करते हुए विद्यार्थियों में धैर्य, सहनशीलता और अनुशासन जैसे गुण स्वयं ही पैदा हो जाते हैं। विद्यार्थियों में एकाग्रता बढ़ती है। सबसे बड़ा लाभ छात्र और अध्यापक के संबंध बेहतर बनते हैं। छात्र अपनी बात कहते हुए संकोच नहीं करता। नाटक विधि में अध्यापकों को एक-एक विद्यार्थी को समझने का मौका मिलता है और इस तरह से वह विद्यार्थियों की भिन्नता के उसे अपनी योजना बनाने में दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ता।
नाट्य विधि की प्रक्रिया-
साहित्य शिक्षण में नाटक विधि की प्रक्रिया शुरू करते हुए अध्यापक को पहले-पहल योजना बनानी होगी। उसे नाट्य विधि के लिए पाठ्य पुस्तक से रचना का चयन करना होगा। उसे पढ़ते-पढ़ाते हुए विद्यार्थियों से चर्चा करनी होगी। नाटक के लिए विद्यार्थियों का चयन करने में विद्यार्थियों की इच्छा और अध्यापक की चुनाव दोनों कारगर हो सकते हैं। किसी स्कूल में यदि इस विधि का प्रयोग पहली बार हो रहा है तो संभव है कि विद्यार्थी संकोच करें। हमारी कक्षा नाटक की कक्षा नहीं, इसलिए नाट्य और अभिनय की गुणवत्ता से महत्वपूर्ण साहित्यिक रचना को विद्यार्थियों की बीच ले जाना हमारा उद्देश्य है। टीम बन जाने के बाद फिर से निर्धारित रचना को पठन, उसके कथानक, संवाद, पात्र, परिवेश और भाषा सहित विभिन्न तत्वों पर विस्तृत चर्चा की जानी जरूरी है। यह भी आवश्यक है कि चर्चा में विद्यार्थियों की सक्रिय भागीदारी हो। चर्चा में उसी तरह की अन्य रचनाओं और लेखक की अन्य रचनाओं को भी शामिल किया जाए। रचना की नाट्य प्रस्तुति से पहले उसका नाट्य रूपांतरण किया जाना जरूरी होगा। किसी कहानी या यात्रा-वृत्तांत को नाटक के रूप में ढ़ालने के लिए मूल रचना में कुछ परिवर्तन किए जा सकते हैं। इसमें विद्यार्थी सक्रिय रूप से सहभागी बनें, इसकी कोशिश तो की ही जानी चाहिए। साथ ही साथ नाटक में अभिनय, आंगिक-वाचिक सक्रियता व एकाग्रता के लिए आवश्यक गतिविधियां व खेल आदि भी शुरू कर दिए जाने चाहिएं। चरित्रों का विभाजन और उनके अभिनय के लिए विद्यार्थियों का चयन किया जाए। कहानी का नाट्य रूपांतरण करते हुए आवश्यक होने पर एक विद्यार्थी को सूत्रधार बनाया जा सकता है, जोकि बीच-बीच में कहानी को आगे बढ़ाने के लिए संकेत कर दे या कहानी सुना दे। अभिनेता विद्यार्थियों के साथ चरित्रों पर तरह-तरह से चर्चा किया जाना जरूरी है, ताकि किसी चरित्र के विविध आयाम खुल कर सामने आएं। लक्षित रचना में किसी चरित्र के विविध पहलु अनछुए हो सकते हैं, लेकिन नाटक में यदि उनकी कल्पना कर ली जाएगी तो उस चरित्र को जीवंत करने में विद्यार्थियों को आसानी होगी। रचना में गीतात्मक पंक्तियों का समावेश करने से नाटक और अधिक रोचक हो जाएगा। यदि मंच से परे से गीत गाया जाना है तो विद्यार्थियों का एक कोरस बनाया जा सकता है। गीत या गीतात्मक पंक्तियों के गायन का अलग से अभ्यास करना पड़ेगा। अभिनय का अभ्यास अध्यापक अपनी सुविधा के अनुसार करवा सकते हैं। रूपांतरित नाटक को हिस्सों में बांट कर धीरे-धीरे मंचन की तैयारियों को आगे बढ़ाया जा सकता है। बार-बार अभ्यास अभिनय को और अधिक प्रभावी बनाएगा। संवाद याद करने और अभिनय की तैयारियों के साथ-साथ वेशभूषा, साज-सज्जा आदि का निर्धारण कर लेना चाहिए। संसाधनों व सुविधाओं की उपलब्धता नाटक को प्रभावी बनाने में सहायक होंगे। जिस मंच पर नाटक खेला जाना है, समय और परिस्थिति के अनुसार उसे भी सजाया व तैयार किया जा सकता है। जिस मंच पर नाटक होगा, उस पर नाटक का बार-बार अभ्यास कलाकार विद्यार्थियों में आत्मविश्वास का संचार करेगा। सारे स्कूल के विद्यार्थियों के बीच मंचन से पहले उस कक्षा के लिए अलग से मंचन पहले किया जा सकता है, जिस कक्षा की पाठ्यपुस्तक में निर्धारित रचना संकलित है। एक बार नाटक को देखने के बाद कोई विद्यार्थी उसे भूलेगा ही नहीं। नाटक खेलने वाले विद्यार्थियों के लिए तो यह रचना अविस्मरणीय हो जाएगी। 
नाट्य विधि की सीमाएं-
नाट्य विधि की कुछ सीमाएं भी गिनाई जा सकती हैं, जैसे यह विधि श्रमसाध्य और अधिक समय की मांग करती है। इस विधि का क्रियान्वयन कालांश की सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता। ऊपर से यह भी नजर आ सकता है कि इस विधि को अपनाने के लिए अध्यापक में अतिरिक्त कुशलताएं होनी चाहिएं। लेकिन यह पूरी तरह सही नहीं है। अध्यापक अपनी सुविधा से इस विधि को शिक्षण के लिए अपना सकते हैं। प्रक्रिया को अपनी तरह से आसान बनाया जा सकता है। विद्यार्थियों को नाटक करवाना अपने आप में महत्वपूर्ण है। सुविधानुसार विधि को ढ़ाला और रूपांतरित किया जा सकता है। अध्यापक यदि बार-बार इस विधि को अपनाएगा तो उसका भी आत्मविश्वास बढ़ता जाएगा। विद्यार्थियों की सक्रियता से अध्यापक को भी बहुत कुछ सीखने का मौका मिलेगा। कक्षा-कक्ष में आम तौर पर चुपचाप रहने वाले विद्यार्थियों की सकारात्मक मुखरता उसमें भी उत्साह जगाएगी। अध्यापक व विद्यार्थियों के जीवंत रिश्तों से स्कूल का वातावरण भी खुशनुमा बन जाएगा। 
-अरुण कुमार कैहरबा,
हिन्दी प्राध्यापक एवं लेखक
राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, कैंप (यमुनानगर)
मो.नं.-9466220145

जिला स्तरीय एंबुलेंस प्रतियोगिताएं हुई सम्पन्न

प्रथम व द्वितीय स्थान पाने वाली टीमें लेंगी राज्य स्तर पर हिस्सा

दिनांक 31अक्तूबर, 2018 को जगाधरी के राजकीय मॉडल वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल में सेंट जॉन एंबुलेंस जिला एसोसिएशन की तरफ से जिला स्तरीय एंबुलेंस प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम का संयोजन जिला प्रशिक्षण अधिकारी सुनीता गर्ग ने किया। आयोजन में रमेश कांबोज, रक्षा गर्ग, वीरेन्द्र, राज कुमार सहित प्राथमिक सहायता के अनेक प्राध्यापकों ने किया।
विभिन्न वर्गों की प्रतियोगिताओं के बाद समापन समारोह में रैड क्रॉस एवं सेंट जॉन एंबुलेंस के सचिव रणदीप सिंह ने विजेता टीमों को स्मृति चिह्न एवं पदक देकर सम्मानित किया।
उन्होंने कहा कि प्राथमिक सहायता सेवा का कार्य है। इस कार्य को आगे बढ़ाने और बच्चों व युवाओं को प्रेरित करने के लिए इस प्रकार की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं।
सुनीता गर्ग ने बताया कि 17 से 19 नवंबर को नारनौल में राज्य स्तरीय प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएंगी। इन प्रतियोगिताओं में जिला स्तर पर प्रथम व द्वितीय स्थान प्राप्त करने वाली टीमें हिस्सा लेंगी।

कैंप स्कूल की टीम ने सीनियर वर्ग में पाया दूसरा स्थान-

कैंप स्थित राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय की टीम कईं दिनों से तैयारियों में लगी हुई थी। हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा के नेतृत्व में 11वीं कक्षा के विद्यार्थियों- रोनिश राज, विवेकानंद, राम, श्याम व अमित कुमार तैयारियों में लगे थे।
बीच में डीटीओ सुनीता गुप्ता व प्राध्यापक वीरेन्द्र का सहयोग मिला। विद्यार्थियों ने थोड़े समय में अथक मेहनत की और द्वितीय स्थान प्राप्त करके राज्य स्तरीय प्रतियोगिता के लिए स्थान पक्का कर लिया। 

प्राथमिक सहायता के कौशलों बारे किया मार्गदर्शन

कैंप स्थित राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में 30 अक्तूबर, 2018 को रैडक्रॉस सोसायटी यमुनानगर एवं सेंट जॉन ऐंबूलेंस जिला एसोसिएशन की जिला प्रशिक्षण अधिकारी सुनीता गुप्ता व प्राथमिक सहायता प्रा

ध्यापक वीरेन्द्र ने स्कूल यूनिट को प्राथमिक सहायता के कौशलों बारे मार्गदर्शन किया। हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा के नेतृत्व में स्वयंसेवी रोनिश राज, विवेकानंद, श्याम, राम व अमित ने अतिथियों का स्वागत किया। सुनीता गुप्ता ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि दुर्घटना, आपदा या बीमारी की स्थिति में पीडि़त को तुरंत सहायता देने और अस्पताल तक पहुंचाने में प्राथमिक सहायकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है।
प्राथमिक सहायकों में सेवा भाव, संवेदनशीलता, सही जानकारी और अभ्यास का होना जरूरी है। दुर्घटना या आपदा की स्थिति में पीडि़तों को समय पर सुविधा व सेवा मिल सके, इसके लिए रैडक्रॉस सोसायटी व सेंट जॉन ऐंबूलेंस के तत्वावधान में समय-समय पर अनेक प्रकार की गतिविधियां आयोजित की जाती हैं। स्कूलों व कॉलेजों में विद्यार्थियों को प्राथमिक सहायता का प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है, ताकि समय आने पर जरूरतमंद लोगों की सहायता कर सकें। उन्होंने विद्यार्थियों को चोटिल होने, हड्डी टूटने व जलने की स्थिति में प्राथमिक सहायत देने और ऐंबूलेंस तक ले जाने के सही तरीकों से अवगत करवाया।
प्राथमिक सहायता प्राध्यापक वीरेन्द्र ने विद्यार्थियों को घायल को एक स्थान से दूसरे स्थान विशेष तौर से एंबूलेंस तक लेकर जाने के कौशिल सिखाते हुए कहा कि इन कौशलों का प्रयोग दुर्घटनाओं के समय आम तौर पर होता है। लेकिन कईं बार अनजान व्यक्ति घायल को एंबूलेंस तक लेकर जाते हुए नुकसान कर सकता है। कौशलों का सही इस्तेमाल करने से घायलों व चाटिल व्यक्तियों की जान बचाई जा सकती है।
हिन्दी प्राध्यापक अरुण कैहरबा ने बताया कि विद्यार्थियों ने जिला स्तरीय प्रतियोगिता में हिस्सा लेना है। इस मौके पर सिखाए गए विद्यार्थियों के लिए जीवन और प्रतियोगिता दोनों के लिए उपयोगी हैं। उन्होंने डीटीओ व प्राध्यापक का स्कूल के विद्यार्थियों को  प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए आभार व्यक्त किया।
जिला स्तरीय ऐंबूलेंस प्रतियोगिता आज-
डीटीओ सुनीता गुप्ता ने बताया कि 31 अक्तूबर को सेंट जॉन ऐंबूलेंस के तत्वावधान में जगाधरी स्थित राजकीय आदर्श व.मा. विद्यालय के  प्रांगण में जिला स्तरीय एम्बूलैंस प्रतियोगिता का आयोजन किया जाएगा। जिला स्तरीय प्रतियोगिता में प्रथम व द्वितीय आने वाली टीमें 17 से 19 नवंबर तक नारनौल में होने वाली प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेंगी।  

Tuesday, October 30, 2018

देस हरियाणा काव्य गोष्ठी में कवियों ने बांधा समां



‘मैं पढूं कोई कलाम और सुने सारी आवाम’
 

हरियाणा के जिला करनाल में कस्बा इन्द्री स्थित राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में दिनांक 27 अक्तूबर, 2018 को सृजन मंच इन्द्री के तत्वावधान में देस हरियाणा काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया।
गोष्ठी में क्षेत्र के कवियों ने अपनी रचनाओं में पर्यावरण सरंक्षण, मानवता, समाज सुधार एवं हरियाणा की संस्कृति सहित विभिन्न विषयों पर अपनी रचनाएं प्रस्तुत करके समां बांध दिया। गोष्ठी की अध्यक्षता कवि मुकेश खंडवाल ने की और संयोजन कवि नरेश मीत व दयाल चंद जास्ट ने किया। काव्य गोष्ठी का संचालन प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने किया। 
वरिष्ठ कवि दयाल चंद जास्ट ने काव्य गोष्ठी की शुरूआत करते हुए अपनी कविता में कुछ यूं कहा- दिवारों पर लिखे संदेश गलियों से गंद कब उठाते हैं, अखबारों में छपे हुए लेख दिलों से नफरत कब मिटाते हैं। नरेश मीत गहरे अहसास की अपनी गजल पढ़ते हुए कहा- 
महका महका सा अपना घर लगता है
बेवक्त की बहार से डर लगता है।
तुम्हीं कहो कैसे फूलों पर करूं ऐतबार
खुश्बुओं में घुला हुआ जहर लगता है।
इरादा क्या है नाखुदा का या रब
किया रूख कश्ती का उधर भंवर लगता है।

नंगे पैर जलती रेत पर चलता हूँ क्योंकि
बहुत हसीन उनको ये मंजर लगता है।
जीते जी खटकता था नजर में जिनकी
मेरे  मरने पर उदास हर बशर लगता है
कोई देर कैसे रहिये अब यहां मीत
मुझसे खफा तेरा तमाम शहर लगता है।
नरेश मीत की दूसरी गजल-
कितना मधुर उस पल का अहसास होता है
वो शख्स जब मेरे आस-पास होता है। 
मिठास तेरे सपनों की ले जाती मुझे जहां
ना तो वहां जमीन ना आकाश होता है।
मैं सच भी कहूं तो तवज्जो नहीं होती
उसके झूठ पर भी सबको विश्वास होता है।
क्यों ना चाहूं विरानियों को मैं जी जान से
साथ देती मेरा जब दिल उदास होता है
हर किसी से पेश आईयेगा मोहब्बत से मीत
जो आज गैर शायद कल खास होता है
तुम्हीं कहो कैसे फूलों पर करूं ऐतबार, खुश्बुओं में घुला हुआ जहर लगता है।
कवि अरुण ने जातीय संकीर्णताओं पर तंज कसते हुए अपनी हरियाणवी रचना में कहा- जात-पात बिन बात करैं ना ऐसे झंडेबाज होये, ऊंच-नीच नै इब भी मान्नैं, ऐसे हम आजाद होये। कवि रोशनदीन नंदी ने अपनी कविता में मोबाइल के गुण-दोष का चित्र उकेरते हुए कहा-साईंस और तरक्की के युग में अपनी पहचान बनाई मोबाइल ने, चारों तरफ खुशी और गम की लहर दिखाई मोबाइल ने। कवयित्री अंजली तुसंग ने कहा- लडऩा है गर तुम्हें तो न्याय के लिए लड़ो, कायरों की तरह फालतू पंगे में  ना पड़ो। गोष्ठी के अध्यक्ष मुकेश खंडवाल ने अपनी कामनाओं को कविता में कुछ यूं पिरोया- मैं  पढूं कोई कलाम और सुने सारी अवाम तो क्या बात हो, हर तरफ चैने अमन हो, मुकम्मल अब हर
वतन हो तो क्या बात हो। सलिन्द्र अभिलाषी ने कविता की ताकत को ऐसे बयां किया- लडऩे को इस जीवन से हथियार कविता है अपनी, करने को कुछ कार यहां औजार कविता है अपनी। कवि देवीशरण ने कहा- अविवेक की तंद्रा त्याग, सूने जग को हर्षाना है, इस धरा को स्वर्ग बनाना है। बैठक में कवियों ने काव्य सृजन में निरंतरता के लिए सक्रियता बढ़ाए जाने पर बल दिया।


Monday, October 1, 2018

बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ पर विद्यार्थियों ने बनाए शानदार पोस्टर व पेंटिंग

निबंध लेखन व भाषण प्रतियोगिता में विद्यार्थियों ने दिखाई प्रतिभा

यमुनानगर, 29 सितंबर 

कैंप स्थित राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान के तहत पेंटिंग व पोस्टर बनाओ, निबंध लेखन और भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। प्रतियोगिताओं में विद्यार्थियों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रधानाचार्य परमजीत गर्ग ने की और बच्चों को आशीर्वाद दिया। प्रतियोगिता का संयोजन हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा, आलोक ढ़ोंढिय़ाल, सुरेश रावल व शारीरिक शिक्षा प्राध्यापिका दुर्गेश अंटवाल ने किया।
प्रतियोगिताओं के संचालन में पंजाबी प्राध्यापिका मनप्रीत कौर, मीडिया अनुदेशक आशीष रोहिला, अंशु अरोड़ा, प्रिया मेहता, मुख्य शिक्षिका रजनी शर्मा, सीमा रानी व रेखा ने सहयोग किया। प्रतियोगिताओं में विद्यार्थियों ने कन्या भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा, बाल विवाह व छेड़छाड़ पर तंज कसे और बेटियों की बराबरी पर आधारित समाज निर्माण में शिक्षा की भूमिका को रेखांकित किया।
विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए हिन्दी प्राध्यापक अरुण कैहरबा ने कहा कि बराबरी और न्याय जैसे मूल्यों पर आधारित बेहतर समाज की कल्पना को साकार करने के लिए पिछड़ेपन के तत्वों से लड़ाई लेनी होगी।
इस लड़ाई में शिक्षा और संवाद की अहम भूमिका होगी। उन्होंने कहा कि आज भी हमारे समाज में बेटियों को पराया धन और अनावश्यक बोझ के तरीके से देखा जाता है। दहेज और खर्चीली शादियां इस स्थिति को भयावह बना रही हैं। उन्होंने कहा कि दहेज को समाप्त किए बिना बेटियों को सुरक्षित माहौल नहीं बनाया जा सकता। विभिन्न प्रतियोगिताओं में अर्चना, सिमरण, नीरू, शबनम, दिव्या, अनु, अंजू, निकिता, प्रीति, इरफान, मानसी, संजू, नेहा सहित अनेक विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया।









स्काउट गाइड शिविर में चलाया गया स्वच्छता अभियान


स्वच्छता को गांधी जी देते थे सर्वोच्च प्राथमिकता 


विद्यार्थियों ने पोस्टर   बनाकर दिया

स्वच्छता एवं बेटी बचाओ का संदेश

यमुनानगर, 1अक्तूबर
कैंप स्थित राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में गांधी जयंती के उपलक्ष्य में भारत स्काउट एवं गाइड का एक दिवसीय शिविर आयोजित किया गया। शिविर के दौरान स्काउट एवं गाइड ने स्वच्छता अभियान चलाया और स्कूल प्रांगण की सफाई की।
विद्यार्थियों ने पोस्टर बनाकर व नारे लिखकर स्वच्छता, पर्यावरण संरक्षण, बेटियों की बराबरी का संदेश दिया। शिविर का संयोजन स्काउट मास्टर अरुण कुमार, गाइड कैप्टन दुर्गेश अंटवाल, एन.एस.एस. प्रभारी आलोक ढौंढियाल ने किया। मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए प्रधानाचार्य परमजीत गर्ग ने स्काउट एवं गाइड को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि स्वच्छता स्वास्थ्य का मूलमंत्र है। उन्होंने विद्यार्थियों को स्वच्छता का सिपाही बनने का संदेश दिया।

शिविर में महात्मा गांधी और स्वच्छता विषय पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने कहा कि राष्ट्र पिता महात्मा गांधी स्वच्छता को सर्वोच्च प्राथमिकता देते थे। एक बार उनसे जब किसी ने सवाल किया कि आजादी और स्वच्छता में आप किसे ज्यादा तरजीह देते हैं तो गांधी जी ने कहा था कि आजादी इंतजार कर सकती है, लेकिन स्वच्छता तो हर समय चाहिए।
उन्होंने कहा कि स्वच्छता के मार्ग में चार प्रमुख बाधाएं हैं। खुले में शौच अस्वच्छता का प्रमुख कारण है। पोलिथीन दूसरा तत्व है, जिसने धरती पर कोहराम मचा रखा है। पोलिथीन व अगलनशील कचरे का अलग प्रबंधन नहीं होने के कारण पोलिथीन धरती की विभिन्न परतों तक चला गया है। पोलिथीन के मिट्टी में मिल जाने से धरती में पानी रिसने की क्षमता समाप्त हो गई है। पानी का अत्यधिक दोहन किए जाने और धरती में पानी नहीं जाने से भूजल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है। जरा सी बरसात होने पर बाढ़ जैसा दृश्य पैदा हो जाता है। अरुण कैहरबा ने कहा कि स्वच्छता का तीसरा बड़ा दुश्मन गाजर घास है।
मैक्सिको से आया यह घास एलर्जी और सांस की बिमारियों का मुख्य कारण बन रहा है। गाजर घास का फूल सूखने के बाद कईं किलोमीटर की यात्राएं करता है और जगह-जगह फैलता जा जा रहा है। सडक़ों के किनारे और खाली स्थानों पर गाजर घास के जंगल उग आए हैं। अस्वच्छता का चौथा बड़ा कारण हमारी आदते हैं। कहीं भी कूड़ा डाल देने की आदत के कारण हम अपने आस-पास गंदगी फैलाते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि सफाई करने से नहीं होगी, बल्कि रखने से होगी।

गाइड कैप्टन दुर्गेश अंटवाल ने विद्यार्थियों को स्काउट गाइड प्रतिज्ञा, प्रार्थना और झंडा गीत सिखाते हुए बताया कि स्काउटिंग सामाजिक सरोकारों से जुड़ा शैक्षिक आंदोलन है, जिसमें विद्यार्थियों को रचनात्मक गतिविधियों के साथ जोड़ा जाता है। इस मौके पर शबनम, वैशाली, स्नेहा, सिमरण, नीरू, सपना, अर्चना, प्रियंका, रीतिका, आरती, महक, स्वाति, मनीषा, नृति, नैना, नीलम, हर्ष, दिलीप, अमन, शुभम, रंजन कुमार, दीपक सिंह, संजू, शिव कुमार, ओम, इरफान सहित अनेक स्काउट एवं गाइड ने सक्रिय भूमिकाएं निभाई।