Monday, September 29, 2025

HARYANA LEGISLATIVE ASSEMBLY SECRETARY RAJIV PRASAD WELCOMED IN KARNAL

 शहीद भगत सिंह की तरह जिज्ञासा का भाव अपनाएं युवा: राजीव प्रसाद 

कहा: सफलता के लिए निरंतर मेहनत करें विद्यार्थी

विभिन्न संस्थाओं ने विधानसभा सचिव का किया अभिनंदन

करनाल, 29 सितंबर

करनाल के पंचायत भवन में विधानसभा सचिव राजीव प्रसाद का अभिनंदन समारोह सर्व समाज की विभिन्न संस्थाओं द्वारा आयोजित किया गया। कार्यक्रम में पहुंचने पर हरियाणा विधानसभा सचिव का पुष्पगुच्छ व फूलों की माला के साथ जोरदार स्वागत किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता सतीश कुमार स्टौंडी ने की और संचालन हिन्दी अध्यापक नरेश मीत ने किया। कार्यक्रम का संयोजन राज किशन, बलविन्द्र सिंह, मनोज कुमार शामगढ़ व सुरेन्द्र कुमार ने किया।


विधानसभा सचिव राजीव प्रसाद ने जिला भर से आए विद्यार्थियों व युवाओं को सफलता प्राप्त करने के लिए निरंतर मेहनत करने का संदेश देते हुए कहा कि शहीदे आजम भगत सिंह की तरह सभी में जिज्ञासा का भाव होना चाहिए। उन्होंने कहा कि जेल में रहते हुए भगत सिंह ने किताबों की मांग की। फांसी दिए जाने से पहले तक वे किताब पढ़ रहे थे। यह उनकी सीखने की लगन का प्रमाण है। उन्होंने कहा कि विद्या ही ऐसी चीज है, जिसे हमसे कोई छीन नहीं सकता। उन्होंने कहा कि विद्यार्थी यदि प्रतिदिन 40 पृष्ठ पढऩे की आदत डाल लें तो उन्हें आगे बढऩे से कोई रोक नहीं सकता। उन्होंने कहा कि व्यवस्था को एक मनुष्य नहीं बदल सकता। लेकिन हम खुद को बदल कर सामाजिक बदलाव की नींव डाल सकते हैं। उन्होंने अभिभावकों से बच्चों के प्रति संतुलित दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान करते हुए कहा कि अभिभावक जितना प्रत्यंचा खींचेंगे, बच्चे बाण की तरह से उतनी ही दूरी तक जाएंगे। राजीव प्रसाद ने अपनी शिक्षा व सफलता का श्रेय अपने पिता व न्यायाधीश राजेन्द्र प्रसाद जी को दिया, जिन्होंने हमेशा ही बच्चों की प्रगति पर नजर रखी और मार्गदर्शन किया। उनके संबोधन के बाद युवाओं ने उनसे सवाल किए, जिनका उन्होंने समय लगाकर जवाब दिया।  


कार्यक्रम में राजकिशन, प्राध्यापक अरुण कैहरबा, राजेश कुमार, राम मेहर, सोनिका गिल, अमित कुमार, महेन्द्र कुमार विभिन्न वक्ताओं ने शिक्षा की अहमियत पर बोलते हुए मुख्य अतिथि राजीव प्रसाद का स्वागत किया। इस मौके पूर्व एमसी बलबीर सिंह, प्रधानाचार्य सुरेश सैनी, अश्वनी कांबोज, सुरेश नगली, सूरज बिड़लान, श्याम सुंदर, राजेश वैद्य, रणधीर गिल, अजय कुमार, शम्मी कुमार उपस्थित रहे।


Saturday, September 27, 2025

VISIT OF HISTORICAL NABIYABD GURUDWARA & YAMUNA RIVER / GMSSSS BIANA

स्वयंसेवियों ने यमुना किनारे चलाया सफाई अभियान

ब्याना स्कूल के विद्यार्थियों ने की नबियाबाद के एतिहासिक गुरुद्वारे की यात्रा

इन्द्री, 27 सितंबर
गांव ब्याना स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के विद्यार्थियों ने सेवा पखवाड़ा के अन्तर्गत जिला करनाल के गांव नबियाबाद में दशमेश प्रकाश गुरुद्वारा एवं यमुना नदी का भ्रमण किया। एनएसएस प्रभारी व हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा, अंग्रेजी प्राध्यापक राजेश सैनी, गणित प्राध्यापक सतीश राणा, ब्यूटी एंड वेलनेस अनुदेशिका निशा कांबोज, पंजाबी प्राध्यापिका स्वर्णजीत शर्मा, कृषि अनुदेशक निर्मलजीत सिंह, शारीरिक शिक्षा अनुदेशक रमन  बग्गा की अगुवाई में विद्यार्थियों ने गुरुद्वारा साहिब के इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त की। एनएसएस स्वयंसेवियों व विद्यार्थियों ने यमुना किनारे सफाई अभियान चलाया और यमुना के किनारे लोगों द्वारा डाले गए प्लास्टिक के गिलास, कप, पॉलिथीन व बोतलें एकत्रित की।
प्रधानाचार्य राम कुमार सैनी ने अध्यापकों व स्वयंसेवियों के दल को रवाना करते हुए उन्हें अपने आस-पास के स्थानों के इतिहास के प्रति सजग बनने की अपील की। गुरुद्वारा साहिब में पहुंचने पर अरुण कुमार कैहरबा ने बताया कि 1984 में संत बाबा जगदीश सिंह ने गुरुद्वारे की स्थापना की थी। जब भी यमुना में बाढ़ आती है, गुरुद्वारे में प्रशासन के द्वारा राहत शिविर बनाया जाता है। उन्होंने बताया कि यमुना नदी का आस-पास के क्षेत्र को सिंचित करने और भूमि की उर्वरता को बनाए रखने में बड़ा योगदान रहता है। हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सीमा रेखा के रूप में नदी काम करती है। लोगों द्वारा यमुना व नदियों को दूषित करना पर्यावरण व जन जीवन की दृष्टि से कतई उचित नहीं है। निर्मलजीत सिंह ने बताया कि गुरुद्वारे ने यमुना क्षेत्र में शिक्षा की ज्योत जलाने में भी मुख्य भूमिका निभाई है। उन्होंने गुरुद्वारे के स्कूल से दसवीं कक्षा तक की शिक्षा ग्रहण करने के अपने अनुभवों पर प्रकाश डालते हुए गुरुद्वारे के संस्थापक संत बाबा जगदीश सिंह के जीवन संघर्षों पर प्रकाश डाला। स्वर्णजीत व निशा कांबोज ने गुरु ग्रंथ साहब पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इस ग्रंथ में गुरु नानक, संत कबीर, संत रैदास, बाबा फरीद सहित अनेक कवियों की वाणी को संकलित किया गया है। सतीश राणा, राजेश सैनी व रमन बग्गा कहा कि यह यात्रा विद्यार्थियों को अपने आसपास के स्थानों की ऐतिहासिकता को समझने में निरंतर पथ प्रदर्शन करेगी।
गुरुद्वारा साहिब में विद्यार्थियों ने चाय व बिस्कुट का प्रसाद ग्रहण किया। महक, जैसमीन, रीतिका, रूबी, सृष्टि, ज्योति, भूमिका, हिमांशी, कृतिका, तनिशा, हर्षिका, राशी, रीति, तनिका, रीतू, शिवानी, पूर्वी, माही आदि विद्यार्थियों ने कहा कि हमारा गांव नबियाबाद से ज्यादा दूर नहीं है। लेकिन अध्यापकों के मार्गदर्शन में स्कूल की तरफ से यात्रा में आना और सीखना जीवन भर याद रहेगा।   































 




Tuesday, September 16, 2025

हिंदी भाषा की चुनौतियां: विचार गोष्ठी

 प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में ही होनी चाहिए: अरुण कैहरबा

हिंदी भाषा की चुनौतियां विषय पर विचार गोष्ठी का हुआ आयोजन

कुरुक्षेत्र, 14 सितम्बर 

हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में कुरुक्षेत्र स्थित रविदास मंदिर सभागार में जनवादी लेखक संघ की कुरुक्षेत्र इकाई द्वारा विचार-संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की अध्यक्षता जनवादी लेखक संघ के राज्य अध्यक्ष जयपाल, ओम सिंह अशफ़ाक और प्रिसिंपल नरेश नागपाल ने की और संचालन मनजीत सिंह ने किया। संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता हिंदी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने हिन्दी भाषा की चुनौतियां विषय पर बोलते हुए कहा कि मातृभाषाएं समाज के चिंतन, मनन और विचारों का आधार हैं। शिक्षा में मातृभाषाओं की उपेक्षा करना किसी भी तरह से ठीक नहीं है। प्राथमिक शिक्षा केवल मातृभाषा में होनी चाहिए। जिन समाजों में प्राथमिक शिक्षा बच्चों की मातृभाषा में दी जाती है, वहां पर बच्चों की प्रतिभा का सहज रूप से विकास होता है। उन्होंने कहा कि बैंक, रेलवे, अदालत व कार्यालयों आदि में ऐसी भाषा का इस्तेमाल होना चाहिए जो आम जनता  को समझ आये। हिन्दी को जटिलता व क्लिष्टता से बाहर निकालने की कोशिश होनी चाहिए और ऐसा रूप विकसित होना चाहिए, जो आम आदमी समझ पाए।


उन्होंने कहा कि कोई भाषा किसी भाषा की जननी नहीं होती। भाषा के विकास की एक प्रक्रिया होती है। उन्होंने कहा कि हिन्दी भाषा के विकास की भी एक प्रक्रिया है। हिंदी का विकास पाली, प्राकृत व अपभ्रंश से हुआ है। अपनी उपभाषाओं और बोलियों के साथ ही हिन्दी ने अन्य अनेक भाषाओं के शब्दों को सहज रूप में ग्रहण किया। हिंदी में तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशी भाषाओं का समाहार है। उन्होंने कहा कि भाषा बहते नीर के समान होती है। हिन्दी को संस्कृतनिष्ठ बनाने के लिए इसमें जबरदस्ती संस्कृत के शब्दों को ठूंसना हिन्दी के स्वास्थ्य के लिए किसी भी तरह से उचित नहीं है। भाषा की कसौटी यही है कि वह आम की समझ में आए। दिखावटी और बनावटी भाषा किसी का भला नहीं कर सकती। अरुण कैहरबा ने कहा कि किसी भी भाषा में शुद्धता नाम की कोई चीज़ नहीं होती। जिसे कईं बार विकार कहा जाता है, उससे भाषा विकास करती है। उन्होंने कहा कि भाषा विभाग, विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों के भाषा विभागों के विद्वानों द्वारा भाषा का निर्माण नहीं होता। भाषा गांवों, खेत-क्यार, मेलों-ठेलों, चौक-चौराहों में रूप ग्रहण करती है। भाषाविद् भाषा के मानकीकरण का काम जरूर करते हैं। उन्होंने कहा कि साहित्यकारों को कोशिश करनी चाहिए कि उनकी भाषा सभी को समझ में आए और साहित्य आम जन से जुड़े। मुख्य वक्तव्य के बाद विभिन्न रचनाकारों ने अपनी टिप्पणियां और सवाल किए।


सुबह का इंतजार और बौने प्रहसन व अन्य कविताएं का हुआ विमोचन



कार्यक्रम के दूसरे सत्र में कविता गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस मौके पर अरुण कुमार कैहरबा के काव्य संग्रह- सुबह का इंतज़ार व कपिल भारद्वाज के काव्य संग्रह-बौने प्रहसन व अन्य कविताएं का विमोचन किया गया। काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता हरियाणवी शायर करमचंद केसर, वरिष्ठ साहित्यकार ओमप्रकाश करुणेश व हरपाल गाफिल ने की। मंच संचालन कवि डॉ. कपिल भारद्वाज ने किया। कविता पाठ में भाग लेते हुए समीक्षा सिंह ने कहा-

बड़े मायूस से हो हमदर्द का दर देख आए क्या

किसी की आस्तीन में तुम भी खंजर देख आये क्या 

शायर दीपक मासूम ने अपनी गजल सुनाते हुए फरमाया-

कौन रक्खे ख्याल दुनिया का

ये भी है इक सवाल दुनिया का 

तुम बदल दो निज़ाम को अपने

हो ना जीना मुहाल दुनिया का

कवि जयपाल ने कहा--

क्योंकि कुछ लोग पवित्र होते हैं

इसलिए बाकी लोग अपवित्र होते हैं

मनजीत सिंह ने कहा-

घणा माड़ा टेम आग्या, परिवार कुणबे की इज्जत होगी ढेर ।

एक बुझी रोटी की दूसरा खाएगा के 

हरयाणवी कवि करमचंद केसर ने कहा-

एक झटके मैं सारे रिश्ते तोड़ गए

बेटे माँ नैं बिरध आसरम छोड़ गए

डॉक्टर सीमा बिरला ने हिंदी भाषा का गुणगान करने की बात इन शब्दों में की-

 आओ हिंदी दिवस मनाएं 

निज भाषा अभिमान करें

सुंदर अभिव्यक्ति से मिलकर

हिंदी का गुणगान करें

कवि अरुण कैहरबा ने अपनी रचना में कहा-

भाषा बहता नीर कबीरा

देता सबको धीर कबीरा।

शब्द साधना करने वाले

खींचे बड़ी लकीर कबीरा।

पंजाबी अध्यापक व कवि नरेश सैनी ने अपनी कविता पढ़ते हुए कहा-

रोटी तो रोटी है, छोटी है या मोटी है

बेशक अमीर की शान और गरीब की जान है।

कवि ओम सिंह अशफाक ने अपनी ताजा और 20साल पुरानी कविताएं सुनाकर मौजूदा परिवेश के बारे में सोचने को मजबूर कर दिया। इस मौके पर हरपाल, नरेश दहिया, विकास साल्यान, सिमरन, इमरान, इकबाल, हबीब खान आदि ने भी अपनी रचनाओं से इस आयोजन को सफल बनाया। कार्यक्रम के दौरान यूनिक पब्लिशर्स के संयोजक विकास साल्यान ने किताबों की प्रदर्शनी लगाई और किताबें पढऩे के लिए प्रेरित किया।

JAGMARG 16-9-2025


Sunday, September 14, 2025

हिन्दी दिवस

हिन्दी भाषा की चुनौतियाँ

अरुण कुमार कैहरबा

हर रोज दिन-रात हम भाषा के जरिये अपना काम करते हैं। अपने भावों, विचारों व उधेड़बुन को अन्य लोगों के सामने रखते हैं। दूसरों के विचार ग्रहण करते हैं। पढ़ते और लिखते हुए भी हम भाषा का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन बहुत कम ही होता है कि जिस भाषा का हम सदा प्रयोग करते हैं, उसके बारे में बात करते हों। हिन्दी दिवस व मातृभाषा दिवस आदि कुछ दिन आते हैं, जब हम भाषा के बारे में बात करते हैं।
भाषा के बारे में कम सोचने और बात करने का एक कारण यह है कि अपनी भाषा हमें बिना कोई विशेष प्रयास मिल जाती है। जैसे पानी, हवा और धूप आदि हमें प्रकृति से मिलता है, वैसे ही भाषा हमें समाज से स्वत: मिल जाती है। उसके लिए अधिक कोशिशें नहीं करनी पड़ती। लेकिन हवा, पानी, धरती व धूप की तरह ही भाषा भी बहुत ही महत्वपूर्ण है। मनुष्य के लिए भाषा जीवन रेखा है। मानव जीवन को जो इतनी गरिमा, सम्मान व ऊंचाईयां मिली हैं। वे भाषा की बदौलत ही हैं। हम जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण सहित अनेक प्रकार के पर्यावरणीय संकटों के प्रति थोड़ा बहुत सजग हैं, लेकिन भाषा के प्रदूषण के बारे में बहुत कम ही सजगता देखने को मिलती है। यही कारण है कि स्थान-स्थान पर गाली-गलौज धड़ल्ले से होता है। जोकि हमारी सोच, समझ, संस्कारों को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है। भाषा का चीर-हरण मनुष्य को भला कैसे गौरवान्वित कर सकता है।
भाषा ही के माध्यम से हम मनुष्य और अन्य प्राणियों में अंतर करते हैं। मनुष्य ने जो विकास किया है वह भाषा की बदौलत किया है। जितना किसी समाज की भाषा विकास करेगी, उतना ही वह समाज विकास करेगा। मनुष्य के साथ-साथ भाषा का और भाषा के साथ-साथ मनुष्य का विकास हुआ। भाषा की सीमाएं ही मनुष्य व उसके विकास की सीमाओं को निर्धारित करती हैं। अपनी भाषा के विकास के लिए विभिन्न भाषाओं के साहित्य को हम अपनी भाषा में अनुवादित करते हैं। भाषा केवल विचार-अभिव्यक्ति का ही साधन नहीं है, बल्कि सोचने और महसूस करने का भी माध्यम है। भाषा के बिना हम समाज-संस्कृति व साहित्य की कल्पना नहीं कर सकते।
अन्य प्रकार की विविधता के अलावा भारत की भाषायी विविधता दुनिया भर के लिए आश्चर्य का विषय है। भारत में बहुत सी मातृभाषाएं हैं। 121 भाषाओं को 10 हजार से अधिक लोग बोलते हैं। संविधान की 8वीं अनुसूची में ही 22 भाषाएं हैं। शायद ही दुनिया के किसी देश में इतनी अधिक भाषाएं और बोलियां हों और उनमें ज्ञान का इतना विपुल भंडार हो। लेकिन साथ ही ऐसा भी शायद ही कोई देश होगा, जहां पर इतनी समृद्ध भाषाएं होने के बावजूद शासन व लोगों में अन्य किसी भाषा के प्रति इतनी दीवानगी हो। अंग्रेजों की दासता के परिणामस्वरूप भारत में आई और फैली अंग्रेजी भाषा सीखने-सिखाने का धंधा यहां चरम पर है। यहां पर गांव-गांव में अंग्रेजी माध्यम के स्कूल खुलते ही जा रहे हैं। बहुत से संस्थानों में हिन्दी या मातृभाषाओं के गलती से भी शब्द बोले जाने की स्थिति में आर्थिक-शारीरिक दंड दिया जाता है। सरकारी स्तर पर अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा देने को ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के रूप में प्रचारित करने का काम हमारे राजनैतिक दलों व नेताओं द्वारा किया जा रहा है। यही कारण है कि हरियाणा सहित कईं राज्यों के सरकारी स्कूलों में भी नर्सरी व पहली कक्षा से ही अंग्रेजी को अनिवार्य विषय बना दिया गया है। आईलेटस की तैयारी करने और करवाने का बहुत बड़ा कारोबार भारत में पनप गया है। हिन्दी को प्रचारित करने के लिए हिन्दी दिवस, हिन्दी साप्ताह और हिन्दी पखवाड़ा मनाए जाते हैं, जिनमें हिन्दी बुलवाने के लिए ईनाम दिए जाते हैं। यह बेहद विडंबनादायी स्थिति है। सवाल यह है कि क्या दिवस, सप्ताह व पखवाड़े मनाकर ही किसी भाषा को बचाया जा सकता है?
आम जन की भाषा के प्रयोग के द्वारा ही लोकतांत्रिक व्यवस्था वास्तव में सफल हो सकती है। लेकिन हमारे यहां भाषा के नाम पर लोगों को लड़ाने का काम हो रहा है। सत्ताधीशों ने जन भाषाओं को कभी स्वीकार्यता नहीं दी। संविधान की धारा 343 में देवनागरी में लिखी जाने वाली हिन्दी को राजभाषा बनाया गया। हिन्दी का सहयोग करने के लिए 15 सालों के लिए अंग्रेजी को दायित्व सौंपा गया था। अब अंग्रेजी सहयोगी नहीं सर्वेसर्वा हो गई है। आम जन की भाषा को राजकाज के काम में लेने में हमेशा गुरेज किया जाता रहा। शासन व नौकरशाही में बैठा देश का आभिजात्य वर्ग संविधान की मूलभावना को पूरा करने में असफल रहा। संभवत: यह आम लोगों को सत्ता से दूर रखने का ही एक प्रयास था। क्योंकि हिन्दी व भारतीय भाषाओं को राजभाषा के रूप में इस्तेमाल किया जाता तो इससे अंतत: देश की आम जनता ही सशक्त होती और लोकतंत्र मजबूत होता। आज प्रशासन हो या न्यायपालिका हर क्षेत्र में अंग्रेजी का ही वर्चस्व है। न्यायालयों की कार्रवाई और निर्णयों का उन लोगों को पता तक नहीं होता, जिनके वर्षों न्यायालयों के चक्कर काटते गुजर जाते हैं। हरियाणा के एक जिला न्यायालय में किसान अपने मामले की खुद पैरवी कर रहा था। वह अपनी बात कहने लगा तो जज ने कहा- मुझे आपकी बात समझ में नहीं आ रही। आप वकील कर लीजिए। किसान ने तुरंत जवाब दिया- आपको मेरी भाषा समझ नहीं आती तो आप करो वकील।
किसी भाषा को आगे बढ़ाने में उसके पढ़े-लिखे वर्ग की जिम्मेदारी होती है। लेकिन भारत विशेष तौर पर हिन्दी भाषी क्षेत्र के पढ़े-लिखे वर्ग ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई। वह औपनिवेशिक भाषा अंग्रेजी का पिछलग्गू बना रहा या अपने ही हित साधता रहा। जिन हिन्दी विद्वानों को हिन्दी की क्षमता को बढ़ाते हुए लोगों की अभिव्यक्ति सामथ्र्य को समृद्ध करना था, उन्होंने हिन्दी को संस्कृतनिष्ठता के चंगुल में उलझाने की ही कोशिश की। हिन्दी एक जनभाषा है। हिन्दी को आम जन व जन कवियों ने समृद्ध किया है। कबीर, मीरा, सूरदास, तुलसी, मलिक मोहम्मद जायसी व आधुनिक काल के निराला सहित अनेक कवियों की विरासत हिंदी के पास है। आम जन से निकले इन कवियों को ही पाठकों ने सम्मान दिया है। दरबारों में रह कर काव्य-रचना करने वाले कवियों व लेखकों को वह सम्मान नहीं मिला। ना ही हिंदी जगत ने उन्हें अपना माना। हिन्दी स्वाभाविक रूप से उर्दू सहित विभिन्न भाषाओं से आदान-प्रदान करती रही है। हिन्दी ने किसी भी भाषा के साथ प्रतियोगिता व प्रतिद्वंद्विता नहीं की। ना ही किसी भाषा को समाप्त करके आगे बढऩे की कामना की है। लेकिन शुद्धतावादियों ने हिन्दी को उसकी मूल जड़ों से काट कर संस्कृत के शब्दों को ठूंस-ठूंस कर डाला और हिन्दी को कठिनता, जटिलता व क्लिष्टता की ओर धकेल दिया। यही कारण है कि बनावटी भाषा में अनुदित की गई रचनाएं सामान्य भाषा से भी अधिक कठिन हो गई हैं। जबकि जनता की जुबान पर चढ़े जनभाषा के आसान शब्दों को भाषा में स्थापित करने की जरूरत है। हिन्दी भाषा को हमें संस्कृत के शब्दों का संग्रहालय बनाने से बचना चाहिए। भाषा में विकार आने पर विकास होता है। यह भाषा की प्रकृति है। इसलिए भाषाई प्रयोगों का दिल खोल कर स्वागत किया जाना चाहिए।
फिल्मों ने संस्कृतनिष्ठ, बनावटी और दिखावटी हिन्दी पर व्यंग्यात्मक अंदाज में कड़ी प्रतिक्रिया की। लेकिन हिन्दी विद्वान इस सवाल को सुलझाने की बजाय उलझाते ही गए। अमीर खुसरो, प्रेमचंद, भारतेंदु हरिश्चंद्र सहित कितने ही साहित्यकारों की लोकप्रियता को खारिज करते हुए कथित विद्वानों ने हिन्दी के जन्म के मनगढ़ंत किस्से चलाए। आज जब भी हिन्दी की बात होती है तो कुछ लोग संस्कृत को हिन्दी की जननी बताने में गौरव महसूस करते हैं। जबकि एतिहासिक दृष्टि भाषाओं के विकास को भावनात्मक की बजाय यथार्थपरक ढंग से समझने की जरूरत है। संस्कृत के बारे में सर्वमान्य जानकारी है कि यह विद्वानों की भाषा रही है। वैदिक और लौकिक संस्कृत के दौर में भी पालि जनभाषाओं के रूप में मौजूद थी। आम जन पालि सहित अन्य लोकभाषाओं में आचार-व्यवहार करता था। पालि में बौद्ध साहित्य प्रचूर मात्रा में लिखा गया। जैन साहित्य लिखने के लिए प्राकृत भाषा को मुख्य भाषा का दर्जा प्राप्त हुआ। शौरसेनी अपभ्रंश व अवह_ से होते हुए हिन्दी के मौजूदा रूप का जन्म हुआ। अमीर खुसरो को आधुनिक खड़ी बोली हिन्दी का पहला कवि होने का गौरव प्राप्त हुआ। पूरे देश में कोई एक तरह की हिन्दी नहीं है। अवधी, ब्रज व हिन्दी भाषी क्षेत्र में बोली जाने वाली बोलियों में लिखा गया साहित्य हिन्दी का ही साहित्य है। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का कहना है- ‘अब तक बहुत लोगों का खयाल था कि हिन्दी की जननी संस्कृत है। यह ठीक नहीं। हिन्दी की उत्पत्ति अपभ्रंश भाषाओं से है और अपभ्रंश की उत्पत्ति प्राकृत से है।’
स्वतंत्रता आंदोलन में हिन्दी साहित्य व पत्रकारिता ने अग्रणी भूमिका निभाई। देश को एक सूत्र में जोडऩे के लिए जब एक राष्ट्रीय भाषा की जरूरत महसूस की जा रही थी। तब हिन्दी भाषी साहित्यकारों से भी अधिक बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र व दक्षिण भारत के कितने ही समाज सुधारकों व स्वतंत्रता सेनानियों ने हिन्दी को आगे रखने की जरूरत रेखांकित की। महात्मा गांधी ने स्पष्ट कहा था- ‘राष्ट्रभाषा का स्थान हिन्दी ही ले सकती है, कोई दूसरी भाषा नहीं।’ राजाराम मोहन राय बंगाली थी। उन्होंने हिन्दी के बारे में कहा था-‘हिन्दी में अखिल भारतीय भाषा बनने की क्षमता है।’ गुजराती भाषी स्वामी दयानंद सरस्वती ने कहा था- ‘हिन्दी द्वारा सारे भारत को एकसूत्र में पिरोया जा सकता है।’ लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का कहना था- ‘राष्ट्र के एकीकरण के लिए सर्वमान्य भाषा से अधिक बलशाली कोई तत्व नहीं। मेरे विचार से हिन्दी ही ऐसी भाषा है।’ नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने कहा था-‘देश के सबसे बड़े भूभाग में बोली जाने वाली भाषा हिन्दी ही राष्ट्रभाषा पद की अधिकारिणी है।’
भाषा को धर्म की संकीर्णताओं के साथ जोड़ा जाना सबसे बड़ी चुनौती है। हिन्दी को हिन्दुओं और मुसलमानों को उर्दू के साथ जोड़े के प्रयास हुए हैं। किसी शायर ने कहा है- ‘सिर्फ ले देके यही एक कमी है हममें, हम उर्दू को मुसलमान समझ लेते हैं।’ हिन्दी में संस्कृत शब्दों को ठूंसा जाने लगा और उन शब्दों को जबरदस्ती बाहर किया जाने लगा, जिनका मूल फारसी या उर्दू भाषा से था। इससे हिन्दी की स्वाभाविकता व मिठास को ठेस पहुंची। लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन में हिन्दी का हिन्दुस्तानी स्वरूप ही लोकप्रिय हुआ। प्रेमचंद जैसे साहित्यकारों ने इसी हिन्दी में अपनी रचनाएं लिखी थी और उनकी रचनाएं खूब लोकप्रिय हुई व आगे भी रहेंगी। इससे साबित होता है कि भाषाओं का धर्मों से कोई संबंध नहीं होता है। एक ही धर्म को मानने वाले विभिन्न भाषाएं बोलते हैं। अलग-अलग धर्मों को मानने वाले लोगों की एक ही भाषा हो सकती है।
किसी भाषा के निर्माण व विकास में उसकी बोलियों व उपभाषाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। असल में तो ये बोलियां ही किसी भाषा की शक्ति होती हैं, जो उसका रूप निखारती हैं और उसमें प्राण डालती हैं। हिन्दी की मुख्यत: पांच उपभाषाएं और उनसे संबंधित 18 बोलियां हैं। उपभाषाओं और बोलियों की अपनी विशिष्टताएं हैं। पश्चिमी हिंदी की बोलियां हैं- खड़ी बोली, हरियाणवी, ब्रज, बुंदेली व कन्नौजी। पूर्व हिन्दी की अवधी, बघेली व छत्तीसगढ़ी, राजस्थानी की मारवाड़ी, मेवाती, जयपुरी व मालवी, पहाड़ी हिंदी की कुमाऊंनी व गढ़वाली तथा बिहारी की मगही, मैथिली व भोजपुरी आदि बोलियां हैं। इन बोलियों से ही हिंदी भाषा जीवन रस ग्रहण करती है और फलती-फूलती है। बोलियों से ही जीवंत संपर्क ही किसी भाषा को सजीव बनाता है। भाषा का निर्माण गलियों, चौराहों, बाजारों, खेतों-खलिहानों व मेलों-ठेलों में होता है। जीवन संघर्षों में ही नए-नए शब्द व मुहावरे पैदा होते हैं। सरकारी दफ्तरों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों के भाषा-विभागों में भाषा नहीं बनती। ना ही समाज का अभिजात्य वर्ग ही भाषा का निर्माण करता है। किसी भाषा के मानकीकरण में इन वर्गों व संस्थानों की भूमिका जरूर होती है।
लोकभाषाओं के महत्व को दर्शाने के लिए गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर और बलराज साहनी का एक किस्सा है। टैगोर के लिए शांतिनिकेतन में बलराज साहनी आए। वे उस समय अंग्रेजी में लिखते थे। टैगोर ने उनसे सवाल किया-आप पंजाबी में क्यों नहीं लिखते। साहनी ने जवाब दिया- मैं अपनी बात को पूरी दुनिया में ले जाना चाहता हूँ। इसलिए मैं अंग्रेजी में लिखता हूँ। टैगोर ने कहा- मैं तो बांगला में ही लिखता हूँ। और मुझे मेरी कविता के लिए नोबेल पुरस्कार मिला है। कुछ समय के बाद फिर से टैगोर ने फिर से पूछा कि आप पंजाबी में क्यों नहीं लिखते? इस पर बलराज साहनी ने जवाब दिया-पंजाबी भाषा इतना लोड़ नहीं उठा सकती। पंजाबी में इतनी क्षमता नहीं है। इस पर टैगोर ने कहा- पहली बात तो यह है कि पंजाबी में आपकी माँ बात करती है। दूसरी बात यह है कि जिस भाषा में गुरु नानक ने लिखा है। वह भाषा कमजोर कैसे हो सकती है। बलराज साहनी के पास इसका कोई जवाब नहीं था। इसके बाद साहनी पंजाबी में लिखने लगे।  
आजादी के बाद जितने भी शिक्षा आयोग व शिक्षा नीतियां बनीं, सभी ने हिन्दी व मातृभाषाओं को शिक्षा का माध्यम बनाए जाने की बात की। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भी प्राथमिक शिक्षा मातृभाषाओं में देने की बात कर रही है। इसके बावजूद बाजार के हितों की रक्षा करने के लिए हिन्दी व भारतीय भाषाओं की उपेक्षा की जा रही है। यदि लोगों को यह लगता है कि हिन्दी व मातृभाषाओं को शिक्षा का माध्यम बनाया गया तो देश पिछड़ जाएगा, तो हमें रूस, जापान, चीन, जर्मनी, फ्रांस व इटली सहित मातृभाषाओं को शिक्षा व राजकाज का माध्यम बनाने वाले देशों से सीखना चाहिए। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कहा भी है-निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल। बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय का सूल।। प्रचलित करो जहान में निज भाषा करि जत्न। राज काज दरबार में फैलावहु यह रत्न।।
आज हिन्दी को साहित्य की भाषा माना जाता है। लेकिन जब ज्ञान-विज्ञान की बात आती है  और जब शिक्षा के माध्यम की बात आती है तो विज्ञान, वाणिज्य व समाज विज्ञान के विभिन्न विषयों के माध्यम के रूप में अंग्रेजी भाषा का रूख कर लिया जाता है। कोई भी भाषा पठन-पाठन के बिना विस्तार नहीं प्राप्त कर सकती। जबकि शिक्षा विभाग द्वारा अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। नन्हें बच्चों को मातृभाषा के साथ-साथ विदेशी अंग्रेजी भाषा सीखनी पड़ रही है। इससे बच्चों के मन-मस्तिष्क पर अनावश्यक बोझ पड़ रहा है। जबकि दुनिया के कितने ही देशों में प्राथमिक शिक्षा केवल मातृभाषा में ही दी जा रही है, जोकि सीखने-सिखाने के नियमों के अनुकूल है। प्राथमिक के बाद हरियाणा के कक्षा छह से आठवीं तक के स्कूलों में हिन्दी भाषा को संस्कृत से जोड़ दिया गया है। हरियाणा के सरकारी स्कूलों में हिन्दी भाषा को पढ़ाने के लिए स्कूलों में पहला पद संस्कृत अध्यापक का सृजित किया जाता है। इस तरह से शिक्षा में दोयम दर्जा दिया जाना हिन्दी के सामने बहुत बड़ी चुनौती है। कॉलेजों व विश्वविद्यालय में हिन्दी व कला संकाय के विषयों को छोड़ दें तो अंग्रेजी का ही बोलबाला है। जबकि पूरी दुनिया में बार-बार यह साबित हो चुका है कि शिक्षा में जितनी सफलता मातृभाषा माध्यम से प्राप्त होती है, उतनी सफलता विदेशी भाषा माध्यम से प्राप्त नहीं हो सकती। मातृभाषा आधारित शिक्षा में विद्यार्थी सीखने की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से हिस्सा लेते हैं।
प्रसिद्ध भाषाविज्ञानी प्रो. जोगा सिंह मातृभाषा व विदेशी भाषा के बारे में तीन अंधविश्वासों का पुरजोर ढंग से खंडन करते हैं। पहला अंधविश्वास- विदेशी भाषा सीखने का अच्छा तरीका यह है कि इसका शिक्षा के माध्यम के रूप में प्रयोग हो। जबकि विदेशी भाषा को माध्यम की बजाय एक विषय के रूप में पढऩा अधिक कारगर होता है। दूसरा अंधविश्वास- विदेशी भाषा सीखने के लिए जितना जल्दी शुरू किया जाए, उतना अच्छा है। जबकि सच्चाई यह है कि जल्दी शुरू करने से लहजा तो बेहतर हो सकता है पर लाभ की स्थिति में यह होता है जो प्रथम भाषा पर अच्छी महारत हासिल कर चुका हो। तीसरा अंधविश्वास- मातृभाषा विदेशी भाषा सीखने के मार्ग में रूकावट है। जबकि असल में मातृभाषा में मजबूत नींव से विदेशी भाषा बेहतर सीखी जाती है।
कुछ लोग तो हिन्दी की क्षमता पर भी प्रश्रचिह्न लगाने लगते हैं। जबकि किसी भी भाषा की क्षमता तभी बढ़ती है, जब हम उसका इस्तेमाल करते हैं। हर भाषा पूरी तरह से क्षमतावान है। जरूरत पडऩे पर उसमें नए तकनीकी शब्द व संरचनाएं विकसित की जा सकती हैं। सबको शिक्षा प्रदान करने की दृष्टि से हिन्दी व अन्य भारतीय भाषाओं को शिक्षा का माध्यम बनाया ही जाना चाहिए। विभिन्न शिक्षा आयोगों ने त्रिभाषा फार्मूला दिया है। इस फामूर्ले से कुछ प्रदेशों में हिन्दी के विरोध के स्वर सुनाई दे रहे हैं। ऐसा इसलिए है कि क्योंकि हिन्दी भाषी राज्यों में त्रिभाषा पढ़ाने के लिए देश के दक्षिणी राज्यों की भाषाओं की उपेक्षा की है। जैसे हरियाणा के स्कूलों व कॉलेजों में हिन्दी, अंग्रेजी व संस्कृत के शिक्षण को त्रिभाषा मान लिया गया है। जबकि जरूरत इस बात की है कि हिन्दी भाषी राज्य देश के अन्य राज्यों की मातृभाषाओं के पठन-पाठन की व्यवस्था करें ताकि देश में एकता व सद्भाव का संचार हो सके। इससे अन्य राज्य भी हिन्दी को अपनाने के प्रति उत्साहित होंगे। हिन्दी देश की बड़ी आबादी की मातृभाषा है। अत: त्रिभाषा फार्मूला को अपनाने व परस्पर सहयोग का हाथ बढ़ाने की जिम्मेदारी भी हिन्दी वालों की ज्यादा है।
मोबाइल ऐप, डिजीटल प्लेटफार्म, बॉलीवुड, धारावाहिक सहित मनोरंजन जगत व मीडिया में हिन्दी के लिए अपार संभावनाएं हैं। लेकिन विचारणीय यह है कि क्या इन सभी क्षेत्रों में हिन्दी मौलिक रचनात्मक कार्यों में कितनी इस्तेमाल होती है। कहीं ऐसा तो नहीं कि हिन्दी का बाजार होने की वजह से अधिकाधिक लाभ प्राप्त करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता हो। हालांकि हिन्दी के नए मंच तैयार हो रहे हैं। लेकिन हिन्दी पत्र व पत्रिकाओं का बंद होना दिखाता है कि हिन्दी के सामने चुनौतियां कम नहीं हैं। मनोरंजन जगत में थोड़ा सा झांकते हैं तो पता चलता है कि कलाकारों को मिलने वाले संवाद देवनागरी की बजाय रोमन में लिखे हुए मिलते हैं। डिजीटल माध्यमों को विकसित करने का काम करने में हिन्दी जगत की नाममात्र या फिर नगण्य भूमिका है। चुनौतियों का सामना करने के लिए विश्वविद्यालयों में हिन्दी के पाठ्यक्रमों को बाजार की जरूरतों के अनुसार ढाला जाए। ऐसा ना हो कि मास्टर डिग्री प्राप्त करने के बाद हिन्दी के विद्यार्थी अपने बुजुर्गों से पूछ रहे हों कि अब वे क्या करें?   

 
अरुण कुमार कैहरबा
हिन्दी प्राध्यापक व लेखक
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जिला-करनाल, हरियाणा-132041
मो.नं.-9466220145



DAINIK JAGMARG 14-9-2025

 

Thursday, September 11, 2025

CENSUS ASSESSMENT TEACHER TRAINING WORKSHOP IN GMSSSS BIANA

 दूसरी-तीसरी के विद्यार्थियों के सीखने के स्तर का 15-16 सितंबर को होगा मूल्यांकन

हिन्दी व गणित का ऑनलाइन मूल्यांकन करेंगे दोनों विषयों के अध्यापक व प्राध्यापक

संकुल स्तरीय अध्यापक प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित
गांव ब्याना स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में निपुण हरियाणा के तहत आयोजित संकुल स्तरीय प्रशिक्षण कार्यशाला के प्रशिक्षकों व प्रतिभागियों का समूह चित्र।

इन्द्री, 11 सितंबर
गांव ब्याना स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में निपुण हरियाणा मिशन के तहत 15-16 सितंबर को पूरे हरियाणा में प्राथमिक स्कूलों में बच्चों के अधिगम स्तर के मूल्यांकन की तैयारियों के लिए संकुल स्तरीय प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया। प्रशिक्षण कार्यशाला की अध्यक्षता प्रधानाचार्य एवं संकुल संसाधन समन्वयक राम कुमार सैनी ने की। एबीआरसी सुखविन्द्र कांबोज ने ब्याना संकुल के विभिन्न स्कूलों के हिन्दी व गणित अध्यापकों व प्राध्यापकों को प्रशिक्षण प्रदान किया। प्रशिक्षण में हिन्दी प्राध्यापक डॉ. सुभाष भारती, अरुण कुमार कैहरबा, सलिन्द्र मंढ़ाण, संदीप कुमार, गणित प्राध्यापक सतीश राणा, सीमा गोयल, गोपाल दास, विदुषी, दोनों विषयों के अध्यापक बलिन्द्र कुमार, निशा रानी, सतबीर सिंह, राकेश कुमार, दीपक कुमार ने हिस्सा लिया।
प्रधानाचार्य राम कुमार सैनी ने कहा कि निपुण हरियाणा मिशन के तहत दूसरी और तीसरी कक्षा के विद्यार्थियों के हिन्दी और गणित के सीखने के स्तर का मूल्यांकन करने के लिए 15 व 16 सितंबर को अभियान चलाया जा रहा है। दोनों कक्षाओं का मूल्यांकन करने के लिए विभिन्न स्कूलों के हिन्दी और गणित विषय के अध्यापकों व प्राध्यापकों को जिम्मेदारी दी गई है। उन्होंने कहा कि यह मूल्यांकन निपुण हरियाणा बनाने की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण होगा। एबीआरसी सुखविन्द्र कांबोज ने डिजीटल बोर्ड के माध्यम से पीपीटी की प्रस्तुति करते हुए मूल्यांकन की प्रक्रिया के बारे में अध्यापकों को विस्तार से अवगत करवाया। उन्होंने कहा कि यह मूल्यांकन निपुण हरियाणा टीचर ऐप के माध्यम से ऑनलाइन होगा। मूल्यांकन करने वाले अध्यापक व प्राध्यापक सुबह आठ बजे ही स्कूल में पहुंच जाएंगे। ऐप को संबंधित कक्षा के अध्यापक की आईडी से लॉगिन किया जाएगा। एक समय में एक ही बच्चा मूल्यांकन की प्रक्रिया में शामिल होगा। डॉ. सुभाष भारती ने कहा कि शिक्षण में मूल्यांकन एक सतत प्रक्रिया है। अरुण कुमार कैहरबा ने कहा कि मूल्यांकन की प्रक्रिया में नन्हें बच्चे नए आगंतुक अध्यापक से भयभीत ना हों और अपने स्तर के अनुसार ही प्रदर्शन कर सकें, इसके लिए जरूरी है कि अध्यापक बच्चों के साथ मित्रवत व्यवहार करते हुए बच्चों के साथ तालमेल बैठाए। प्रशिक्षण के बाद गूगल फॉर्म के माध्यम से प्रशिक्षण के विभिन्न बिंदुओं पर प्रश्रोत्तरी का आयोजन किया गया, जिसमें सभी प्रतिभागियों ने शिरकत की। 





 



Wednesday, September 10, 2025

साक्षरता जागरूकता रैली / GMSSSS BIANA KARNAL

 महल झोंपड़ी घर कच्चे तक, शिक्षा पहुंचे हर बच्चे तक

विद्यार्थियों ने निकाली साक्षरता जागरूकता रैली

सबको शिक्षा का दिया संदेश

इन्द्री, 10 सितंबर 

गांव ब्याना स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय की राष्ट्रीय सेवा योजना यूनिट द्वारा उल्लास कार्यक्रम के तहत साक्षरता दिवस के उपलक्ष्य में साक्षरता जागरूकता रैली का आयोजन किया गया। प्रधानाचार्य राम कुमार सैनी ने रैली को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। एनएसएस प्रभारी अरुण कुमार कैहरबा, प्राध्यापक स्वर्णजीत  शर्मा, अध्यापक रमन बग्गा, अश्वनी कांबोज, सोमपाल कांबोज, संगीता शर्मा ने रैली का नेतृत्व किया। रैली को सफल बनाने में उल्लास कार्यक्रम के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. सुभाष भारती, सर्वेयर नरेश मीत, प्राध्यापक अनिल पाल, दिनेश कुमार, विनोद आचार्य, बलविन्द्र सिंह, नरेन्द्र कुमार, सन्नी चहल, संदीप कुमार सहित अनेक अध्यापकों का सहयोग रहा।


प्रधानाचार्य राम कुमार सैनी ने कहा कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा सभी को साक्षर बनाने के लिए उल्लास कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इस कार्यक्रम से जुड़ कर हम अपने देश को आगे ले जाने में योगदान कर सकते हैं। सुभाष भारती ने कहा कि स्कूल में आ रहे सभी बच्चों को मन लगाकर पढ़ाई करनी चाहिए ताकि आने वाले समय में हमें पछताना ना पड़े। हिन्दी प्राध्यापक व एनएसएस प्रभारी अरुण कुमार कैहरबा ने कहा कि शिक्षा व साक्षरता किसी भी व्यक्ति के विकास के लिए अत्यंत जरूरी है। एक बेहतर समाज के निर्माण में शिक्षा की अहम भूमिका होती है। यदि हमें अपने देश को विकसित देशों की श्रेणी में लाना है तो हमें हर व्यक्ति को साक्षर बनाने के लिए आगे आना होगा। उन्होंने कहा कि जब हम साक्षरता की बात करते हैं तो निरक्षर रही आबादी की जीवन स्थितियों पर भी गौर करना होगा। अधिकतर अनपढ़ रह गए लोगों में ज्यादा संख्या महिलाओं की है। या फिर सामाजिक आर्थिक स्थितियों के कारण वे पढ़ नहीं पाए। समानता पर आधारित भेदभावमुक्त समाज के निर्माण के लिए शिक्षा का जन-जन तक पहुंचना जरूरी है। विद्यार्थियों ने इस अवसर पर संकल्प किया कि हम अपने घर व आस-पास अनपढ़ लोगों को पढ़ाएंगे।

https://www.youtube.com/shorts/cJBrbsLMQDU

रैली के दौरान विद्यार्थियों ने गली-गली में जाना है, पढऩा और पढ़ाना है, शिक्षा हमें जगाती है, शोषण से बचाती है, अंधकार को क्यों धिक्कारें, अच्छा है एक दीप चला लें, महल झोंपड़ी घर कच्चे तक, शिक्षा पहुंचे हर बच्चे तक, हर बेटी का है अधिकार, पूरी शिक्षा पूरा प्यार आदि नारे लगाए। विद्यार्थियों के जोश व उत्साह पूर्वक नारों को सुनकर लोगों ने घरों से निकल-निकल कर रैली को देखा और विद्यार्थियों को आशीर्वाद दिया। रैली को सफल बनाने में माही, माधवी, चेतना पाल, मन्नत, रूही, निशिता, आइना, अस्मिता, कौशल, पृषा कांबोज, प्रतिभा, अदिति, दिशिका सहित अनेक विद्यार्थियों का सक्रिय योगदान रहा।

https://www.youtube.com/shorts/n1JZnx1GJNY