Sunday, June 9, 2024

EYE DONATION DAY 10 JUNE SPECIAL ARTICLE

दृष्टिहीनों की दुनिया में उजाला लाने के लिए नेत्रदान करें

जाते-जाते नेत्रदान करके दृष्टिहीनों के जीवन में फैलाएं उजाला

अरुण कुमार कैहरबा

कुदरत के नजारों और रंगों को देखने के लिए आंखें अनमोल वरदान हैं। आंखों के माध्यम से हम दुनिया के साथ अपना रिश्ता बनाते हैं। आंखें केवल वातावरण से जानकारियों को ग्रहण ही नहीं करती बल्कि सशक्त अभिव्यक्ति में भी इनका महत्वपूर्ण योगदान है। इसे प्रख्यात शायर एवं गीतकार साहिर लुधियानवी ने अपने एक गीत में कुछ इस प्रकार कहा है-
हर तरह के जज़्बात का ऐलान है आंखें
शबनम कभी शोला कभी तूफान हैं आंखें।
आंखें ही मिलती हैं जमाने में दिलों को
अनजान हैं हम तुम अगर अनजान हंै आंखें
उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता
जिस मुल्क की सरहद की निगहबान है आंखें।
लेकिन दुनिया में बहुत बड़ी आबादी ऐसी भी है, दृष्टिहीनता के कारण जो देखा नहीं पा रही है। उनमें से कुछ लोगों के पास दृष्टि के विकल्प के तौर पर अन्य इंद्रियों का प्रयोग करने के अलावा कोई चारा नहीं है। स्पर्श व श्रवण इंद्रियों के समुचित प्रशिक्षण के द्वारा वह भी अच्छा जीवन जी सकते हैं, इसमें कोई शक नहीं रह गया। ब्रेल लिपि और अन्य तकनीकी साधनों ने उनके जीवन को रोशन किया है। दुनिया में ऐसे कई उदाहरण हुए हैं जिन्होंने अपनी लगन व मेहनत से दृष्टिहीनता के बावजूद अपनी सफलताओं का इतिहास लिखा है। फिर भी आंखों का कोई विकल्प नहीं है। कोरनियल दिक्कत के कारण दृष्टिहीन हुए लोगों के लिए खुशकिस्मती की बात यह है कि प्रत्यारोपण के द्वारा वे फिर से दुनिया देख सकते हैं। लेकिन यह भी तभी संभव है जबकि दृष्टिवान लोगों के द्वारा बढ़-चढक़र नेत्रदान किया जाए। नेत्रदान मृत्यु के बाद होता है। लेकिन इसके लिए जीते जी संकल्प पत्र भरना होता है। संकल्प पत्र के बावजूद भी मृत्यु के पश्चात परिजनों का सहयोग व तत्परता जरूरी है। मृत्यु के बाद परिजनों की जिम्मेदारी है कि वे तत्काल नेत्रबैंक को सूचित करें। चिकित्सकों के आने से पूर्व मृतक की आंखें बंद कर देनी चाहिएं। मृत्यु के 6 घंटे के भीतर कॉर्निया निकाल लिया जाना जरूरी है। व्यावहारिक रूप से एक वर्ष की उम्र से लेकर कोई भी व्यक्ति नेत्रदान कर सकता है। नेत्रदान के लिए अधिकतम आयु की कोई सीमा नहीं है। कम दिखाई देना व उम्र का कोई अंतर कोई नहीं है। वे लोग भी नेत्रदान कर सकते हैं जो चश्मा पहनते हैं और जिन्होंने मोतियाबिंद का ऑपरेशन करवा रखा है। मधुमेह के रोगी भी नेत्रदान कर सकते हैं। यहां तक कि दृष्टिपटल एवं ऑप्टिक नर्व की समस्या के कारण दृष्टिबाधित व्यक्ति भी नेत्रदान कर सकते हैं।
अब सवाल यह है कि जब नेत्रदान के द्वारा लाखों दृष्टिहीन लोग दुनिया देख सकते हैं तो फिर इसमें दिक्कत क्या है। हर रोज तो हजारों लोग मारे जाते हैं तो आखिर फिर भी क्यों दुनिया को कॉर्नियल दृष्टिहीनता से मुक्ति नहीं मिलती। यह सवाल कचोटने वाला है। सामाजिक पहलकदमी के बिना बहुत से लोग आज भी दृष्टिहीनता का दंश झेल रहे हैं। आखिर नेत्रदान में अवरोध क्या है? निश्चय ही जागरूकता की कमी और अंधविश्वास नेत्रदान के मार्ग के रोड हैं। जनसंचार के साधनों की क्रांति के युग में आज भी लोगों को नेत्रदान की सही जानकारी नहीं हो तो कोई आश्चर्य नहीं। क्योंकि मनोरंजन और मुनाफा कमाने की होड़ में लगे जनसंचार माध्यमों को इतनी फुर्सत ही नहीं है कि वह नेत्रदान को अभियान बनाने में जुटें। जो थोड़ा बहुत समय व स्थान इस प्रकार के जनकल्याणकारी विज्ञापनों को मिलता भी है, उसकी तुलना ऊंट के मुंह में जीरे से की जा सकती है। जानकारी मिल भी जाती है तो अंधविश्वासों का निराकरण नहीं हो पता। आज भी बड़ी आबादी अनेक प्रकार के अंधविश्वासों के जाल में फंसी है। मृत्यु के बाद नेत्रदान व देहदान की कल्पना उन्हें सिहरा देती है। वे अगले जन्म के बारे में चिंतित हो जाते हैं। नेत्रदान की बात करने पर उन्हें यह आशंका घेर लेती है कि अगले जन्म में नेत्रदान करने वाला दिवंगत व्यक्ति दृष्टिहीन ना हो जाए। धर्म में विश्वास करने वाले लोगों के ऐसे अंधविश्वास और भ्रांतियां उनके धर्म ज्ञान पर ही सवाल खड़ा कर देते हैं। सभी धर्म संप्रदायों में दया एवं परोपकार को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। जीते जी दूसरों के काम आना हमारा धर्म है। लेकिन यदि मृत्यु के बाद हम नेत्रदान करके दूसरों के अंधेरे जीवन में उजाला भरें तो इससे बड़ा परोपकार और क्या हो सकता है। समाज को अंधविश्वासों से निकालकर नेत्रदान को बढ़ावा देने के लिए व्यापक जागरूकता अभियान चलाए जाने की जरूरत है।
@अरुण कुमार कैहरबा
हिन्दी प्राध्यापक एवं दृष्टिबाधित विद्यार्थियों की शिक्षा विशेषज्ञ
हरियाणा विद्यालय शिक्षा विभाग।
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जिला-करनाल, हरियाणा-132041
मो.नं.-9466220145


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