Thursday, May 4, 2023

NEWS WRITING COMPETITION IN GMSSSS BIANA (KARNAL)

 समाचार लेखन कार्यशाला में विद्यार्थियों ने सीखे समाचार लिखने के गुर

जन सरोकारों से भरपूर हों खबरें

समाचार लेखन प्रतियोगिता में मोहम्मद रब्बानी ने पाया पहला स्थान

करनाल जिला के गांव ब्याना स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में समाचार लेखन कार्यशाला का आयोजन किया गया। हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने विद्यार्थियों को समाचार लेखन के गुर सिखाए। इस अवसर पर समाचार लेखन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। प्रतियोगिता में बारहवीं कक्षा के मोहम्मद रब्बानी ने पहला, अरमान ने दूसरा तथा नमनदीप कौर व आरजू ने संयुक्त रूप से तीसरा स्थान प्राप्त किया। हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि किसी घटना या समस्या की यथार्थपरक सूचना समाचार कहलाती है। खबर सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, आर्थिक, खेल, गांव-शहर, खेती, बागवानी सहित किसी भी विषय की हो सकती है। नवीनता, संबद्धता और प्रभाव आदि तत्व किसी भी खबर के अहम तत्व हैं। खबर में ताज़ापन होना अति आवश्यक है। समाचार प्राय: उल्टा पिरामिड शैली में लिखा जाता है। इस शैली की विशेषता यह है कि किसी भी खबर की सबसे अहम बात सबसे पहले आती है। खबर के तीन हिस्से होते हैं-इंट्रो, बॉडी और समापन। इंट्रो में सबसे महत्वपूर्ण बातें आ जाती हैं और सूचना का सार पाठक को मिल जाता है। बॉडी में समाचार का विस्तार होता है और समापन में बाकी बची बातें दर्ज की जाती हैं। खबर सारगर्भित होनी चाहिए। किसी भी खबर में छह ककारों के जवाब होते हैं- कहां, कब, कौन, क्या, क्यों व कैसे। इन सवालों के जवाब देते हुए खबर का निर्माण किया जाता है। अरुण कैहरबा ने कहा कि जनसरोकार खबर का उद्देश्य होता है। जो खबर आम जन के जीवन व समस्याओं से जुड़ी होगी, वही खबर सबसे अच्छी होती है। उन्होंने कहा कि खबर लिखना सीखने के लिए नियमित रूप से अखबारों को पढ़ें और अभ्यास करें। 

हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने जानकारी देते हुए बताया कि समाचार लेखन प्रतियोगिता ग्राम स्वच्छता, पॉलीथीन व पर्यावरण आदि विषयों पर केन्द्रित रही। प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर आए मोहम्मद रब्बानी ने इन्द्री क्षेत्र के यमुना नदी किनारे स्थित अपने गांव सैयद छपरा की खराब निकासी व्यवस्था को उजागर किया। अन्य विद्यार्थियों ने भी अपने-अपने गांव की समस्याओं को उजागर किया। विजेता विद्यार्थियों द्वारा लिखी गई खबरों के मुख्य अंश इस प्रकार हैं-

पॉलीथीन बना निकासी व्यवस्था का रोड़ा-

गांव सैयद छपरा में उचित जल निकासी का अभाव ह। गांव की गलियां संकरी और टेढ़ी-मेढ़ी हैं। नालियों में पानी का बहाव कम तीव्रता से होता है। इसके अतिरिक्त गलियों में प्लास्टिक के पॉलीथीन पड़े रहने के कारण नालियों का पानी रूक जाता है और गलियों में जल भराव हो जाता है। लंबे समय से जल भराव के कारण गांव में मक्खी-मच्छर पनप रहे हैं। गांव में बिमारियां फैलने का खतरा है। आते-जाते लोगों को पानी की वजह से परेशानी का सामना करना पड़ा है। सार्वजनिक टूंटियां चलती रहने के कारण जल भराव की समस्या विकराल हो गई है। 


-मोहम्मद रब्बानी, कक्षा-12, समाचार लेखन प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त विद्यार्थी

अवैध अतिक्रमण से सिकुड़ गई गांव की गलियां-

अवैध अतिक्रमण की वजह से जिला करनाल के गांव रंदौली की गलियां दिन-ब-दिन सिकुड़ती जा रही हैं। गलियों में कहीं भी मवेशियों को बांध दिया जाता है तो कहीं पर बांस-बल्लों से घेरकर या फिर दीवार बनाकर गलियों को संकुचित कर दिया गया है। अतिक्रमण की वजह से कहीं-कहीं तो गलियां पगडंडियों में तब्दील होने के कगार पर पहुंच गई हैं। गांव में कुछ लोग तो अपने ट्रैक्टरों व मोटरसाइकिलों को इस प्रकार खड़ा कर देते हैं कि बची हुई जगह से निकलना मुश्किल हो जाता है। कईं जगह लोग अपने वाहनों को साइड में खड़ा करने की बजाय गली में ही खड़ा कर देते हैं। इससे जाम की स्थिति पैदा हो जाती है। 


-अरमान, कक्षा-12वीं, प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान प्राप्त

हलवाना में निकासी व्यवस्था चरमराई-

गांव हलवाना में निकासी व्यवस्था बुरी तरह से चरमराई हुई है। गलियों के साथ अनेक स्थानों पर नालियां नहीं हैं। टूटी-फूटी गलियों में वर्षा का जल खड़ा हो जाता है। गलियों में पानी के साथ-साथ कूड़ा-कर्कट भी इक_ा हो जाता है, जिसमें मक्खी-मच्छर पनपते हैं। गांव में सफाई कर्मचारी सिर्फ एक है। ऊबड़-खाबड़ गलियों में वाहन चालते हुए भी लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। 


-नमनदीप कौर, कक्षा-12वीं, प्रतियोगिता में तृतीय स्थान प्राप्त

सफाई व्यवस्था में पॉलीथीन बना आफत-

पॉलीथीन सफाई व्यवस्था में आफत बन गया है। छोटे-छोटे बच्चे हों या बड़े सभी पॉलीथीन का प्रयोग करके इधर-उधर फेंक देते हैं। गिराया गया पॉलीथीन धरती की स्तह पर जम जाते हैं और धरती वर्षा के पानी को सोख नहीं पाती है। गांव ब्याना में वर्षों पहले जो धरती में पानी छह फुट पर हुआ करता था, आज वह सौ फुट से भी नीचे चला गया है। आने वाले समय में यदि पॉलीथीन को कहीं भी फेंकने का सिलसिला चलता रहा तो मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। कईं बार गांव के लोग फलों के छिलके व खाद्य सामग्री को पॉलीथीन में बांध कर फेंक देते हैं, जिसे आवारा पशु खाते हैं। पॉलीथीन पशुओं के पेट में जाकर उनके बीमार होने का कारण बन जाता है। पॉलीथीन से पशुओं की मौत भी हो सकती है। सफाई व्यवस्था के लिए पॉलीथीन का कम से कम प्रयोग और इसका सुरक्षित निपटान आवश्यक है।


-आरजू, कक्षा-12वीं, समाचार लेखन प्रतियोगिता में तृतीय स्थान प्राप्त

रिपोर्ट-अरुण कुमार कैहरबा



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