सीखने को आनंद से जोड़ता शैक्षिक भ्रमण
घूम-घूम कर सीखना देता कमाल का अनुभव
अरुण कुमार कैहरबा
बच्चे अपनी ऊर्जा व उत्साह के लिए जाने जाते हैं। यही ऊर्जा उनकी चंचलता और सक्रियता का कारण है। बच्चों की सीखने की चाह उनके नए-नए सवालों से झांकती है। यदि अवसर मिले तो वे प्रश्रों की झड़ी लगा देते हैं। ये प्रश्र बड़ों को भी सीखने का मौका देते हैं। बच्चों की सृजनशीलता को उपयुक्त मंच प्रदान करने की जरूरत है। हालांकि सभी बच्चे एक से नहीं होते। बल्कि यह कहना उचित होगा कि हर एक बच्चा अपने आप में अनूठा और विलक्षण होता है। सभी बच्चों की रूचियां, अभिरूचियां, आदतें, सीखने की शैली और तरीका भी भिन्न होता है। इसलिए सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में नीरसता और जड़ता बहुत खतरनाक चीज है। विविधतापूर्ण बच्चों की सृजनशीलता को पंख देने के लिए विषय-वस्तु, विधियों व प्रविधियों में भी विविधता की जरूरत होती है। इसलिए यदि कोई कड़े और बनावटी अनुशासन में रखकर बच्चों को अच्छी शिक्षा देने की कल्पना करता है, तो वह भूल-भुलैया में है। बच्चों की रचनात्मकता नवीनता और नवाचारों से शांत होती है।
स्कूलों में अध्यापक कक्षा-कक्ष में शिक्षण कार्य करते हुए सीखने-सिखाने के साधनों व विधियों में विविधता लेकर आते हैं। इसके बावजूद कुछ विद्यार्थियों के लिए यह नीरस लगता है। विद्यार्थियों में रूचियों का विकास करने और सीखने का भरपूर आनंद प्रदान करने के लिए अध्यापक बच्चों को कक्षा-कक्ष से बाहर लेकर आते हैं और पुस्तकालय, प्रयोगशालाओं व खेल के मैदान में विद्यार्थियों को लाकर अपने तरीकों में और खुलापन लाते हैं। जब स्कूल प्रांगण के भी बाहर अध्यापक विद्यार्थियों लेकर आते हैं और किसी स्थान, भवन, प्राकृतिक नजारों आदि को दिखाते हुए शिक्षण कार्य करते हैं तो सीखने-सिखाने के काम में एक नई ताजगी आती है। ऐसे में सीखने वाले विद्यार्थियों के चेहरों पर खुशी और चमक देखते ही बनती है।
अपने अध्यापकों के साथ स्कूल के दायरों से बाहर निकल कर किसी प्रतियोगिता में हिस्सेदारी करना, किसी ऐतिहासिक तथा ज्ञान-विज्ञान के स्थल का भ्रमण करना, किसी पुस्तक मेले या सांस्कृतिक मेले का भ्रमण करना विद्यार्थियों के लिए अविस्मरणीय होता है। इन अनुभवों को कोई भूलना भी चाहे तो वह उसे भुला नहीं सकता। हम सभी अपने ही बचपन व स्कूली शिक्षा के दिनों को याद करें तो वे अध्यापक भी हमें ससम्मान याद आ जाते हैं जोकि हमें किसी स्थान पर लेकर गए थे। जहां हमें लेकर जाया गया था और जो कुछ सिखाया गया था, वह भी हमें सहज ही याद आ जाता है। उसे याद करने की जरूरत नहीं होती। क्योंकि शैक्षिक भ्रमणों में हम जाकर, देखकर, चर्चाएं करके व सवाल करके सीखते हैं तो वह अनुभव जीवन भर हमारे साथ होता है।
अपने अनुभव के आधार पर यह कहा जा सकता है कि शैक्षिक भ्रमण सीखने-सिखाने का सबसे अच्छा तरीका है। हालांकि विद्यार्थी अपने माता-पिता के साथ भी विभिन्न स्थानों पर भ्रमण के लिए जाते हैं। लेकिन अध्यापकों के सानिध्य व सहपाठियों के साथ घूमने का आनंद अलग ही होता है। स्कूल प्रशासन व अध्यापकों को इस विधि का हर संभव प्रयोग करना चाहिए। योजनाबद्ध ढ़ंग से आयोजित किए गए शैक्षिक भ्रमण विद्यार्थियों के लिए ज्ञान का नया संसार खोलने वाले होते हैं। घूमते हुए सहपाठियों के साथ कल्पनाओं से भरी चर्चाएं और अध्यापकों का मार्गदर्शन बच्चों को सीखने के आनंद से भर देते हैं। इनसे उनमें निरंतर सीखने का उत्साह संचरित होता है।
शैक्षिक भ्रमण का एक और बड़ा लाभ अध्यापक व विद्यार्थियों के संबंधों में तरोताजगी के संचार के रूप में होता है। स्कूल में पढ़ते-पढ़ाते हुए बच्चे अध्यापकों के बारे में एक राय बना लेते हैं। ऐसा ही अध्यापकों के साथ भी हो सकता है कि वे किसी बच्चे के बारे में एक रूढ़ दृष्टिकोण तैयार कर लें। बच्चों के खास तरह के व्यवहार से कईं बार अध्यापकों में गुस्सा आता है। बच्चे अध्यापकों को गुस्सैल मान लेते हैं। विद्यार्थियों द्वारा अध्यापकों के नाम रख लिए जाते हैं, जोकि अधिकतर दोनों के रिश्तों में आई खटास की तरफ ही संकेत करते हैं। अध्यापकों और विद्यार्थियों में आई इसी नीरसता को तोडऩे में शैक्षणिक भ्रमण महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनके माध्यम से दोनों को एक दूसरे को अच्छी तरह से समझने का मौका मिलता है। दोनों में विश्वास पैदा होता है, जोकि सीखने-सिखाने के ठोस धरातल का कार्य करता है। किसी शैक्षिक भ्रमण से लौट के आने पर विद्यार्थी अपने अध्यापकों का कहा मानने में उत्साह प्रदर्शित करते हैं। ऐसा ही उनके अधिगम उत्साह व स्तर के रूप में भी होता है।
आम धारणा है कि शैक्षिक भ्रमण खर्चीले होते हैं। लेकिन ऐसा है नहीं। हर विषय के शिक्षण में कितनी ही बार ऐसा होता है कि विषय-वस्तु की बेहतर समझ बनाने में अध्यापक को शैक्षिक भ्रमण की जरूरत महसूस होती है। समुदाय, पंचायती राज संस्थाओं व नगर निकायों की कार्यप्रणाली आदि पढ़ाते हुए यदि गांव में सरपंच या नगरपालिका के पार्षद आदि से बात करके विद्यार्थियों को हम बाहर ले जाकर इनके प्रतिनिधियों से मिलवाते हैं और दिखाते हुए इनके कार्य के बारे में बताते हैं तो किताबों में पढऩे-पढ़ाने व रटाने से कहीं ज्यादा आनंददायी हो जाएगा। इसी प्रकार डाकखाना व बैंक के कार्यों के बारे में पढ़ाने के साथ-साथ यदि बच्चों को इन स्थानों का भ्रमण करवा दिया जाए तो सीखी गई बातें अधिक उपयोगी हो जाएंगी। हमारे आस-पास भी इतिहास से जुड़े स्थान हैं, थोड़े से खर्चे में वहां पर विद्यार्थियों को ले जाया जा सकता है।
हिन्दी, पंजाबी व अंग्रेजी भाषाओं के साहित्य का परिचय करवाने के लिए विद्यार्थियों को आस-पास होने वाले कवि सम्मेलन व संगोष्ठी में ले जाया जा सकता है। हो तो ऐसा भी सकता है कि अपने आस-पास के कवि या लेखक को स्कूल में बुलाया जाए और उनके साथ विद्यार्थियों की चर्चा करवाई जाए। लेकिन स्कूल के बाहर ले जाकर भी लेखक या कवि से बच्चों की मुलाकात व चर्चा करवाई जा सकती है। हमारे आस-पास ऐसी साहित्यिक संस्थाएं हैं, जोकि साहित्य को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न प्रकार के आयोजन करती हैं। उनके आयोजनों में ले जाना विद्यार्थियों के लिए किताबों व साहित्य से जुडऩे के लिए बहुत उत्साहवर्धक होता है। अपने आस-पास के स्थानों पर विद्यार्थियों के छोटे-छोटे समूहों को ले जाना खर्चीला भी नहीं होता है। अनुभव की दृष्टि से यह बड़े या ज्यादा लंबी दूरी के शैक्षिक भ्रमणों से कहीं कमतर नहीं है।
वर्ष में एक बार तो अवश्य ही हर एक विद्यार्थी को अपने अध्यापकों के मार्गदर्शन में सहपाठियों के साथ शैक्षिक भ्रमण का अवसर मिलना ही चाहिए। थोड़ी दूरी पर तो शैक्षिक भ्रमण ज्यादा भी हो सकते हैं। ज्यादा लंबी दूरी पर बस, रेलगाड़ी या अन्य वाहनों पर सवार होकर जाना विद्यार्थियों की कल्पना को पंख लगा देता है। सभी बच्चे घर से खाना बनवाकर लेकर आएं और अध्यापकों के साथ मिलकर खाना खाएं। या फिर किसी लंगर या ढ़ाबे पर खाने का स्वाद लें तो सोने पर सुहागे का काम करता है।
हरियाणा विद्यालय शिक्षा विभाग द्वारा विद्यार्थियों के शैक्षिक भ्रमण को प्रोत्साहित किया जाता है। वार्षिक रूप से ऐसे कईं शैक्षिक भ्रमणों का आयोजन किया जाता है। जिसमें लड़कियों, विशेष आवश्यकता वाले विद्यार्थियों को दूरवर्ती स्थलों के दर्शन करवाए जाते हैं। विभाग के द्वारा ऐसे कईं शिविर भी आयोजित किए जाते हैं, जिनमें हिस्सा लेने से विद्यार्थी बहुत कुछ सीखते हैं। विभिन्न राज्यों में सांस्कृतिक आदान-प्रदान के अवसर भी मिलते हैं। विभाग के द्वारा केरल राज्य में आयोजित किए गए समुद्र तटीय अध्ययन शिविर में हरियाणा के विभिन्न स्कूलों के बहुत से बच्चे हिस्सा ले चुके हैं। इन शिविरों में विद्यार्थियों को दक्षिण भारत के शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी राज्य की भाषा, कला व संस्कृति का जीवंत अनुभव मिला है। इन शिविरों के माध्यम से विद्यार्थियों को पहली बार समुद्र देखने और उसकी लहरों के साथ खेलने का मौका मिला है। पर्वतीय स्थलों पर भी विभाग ने साहसिक गतिविधियों के शिविर आयोजित किए हैं, जिनमें विद्यार्थियों ने कमाल का प्रदर्शन करके प्रदेश भर का नाम रोशन किया है। सभी बच्चों के सीखने के आनंद को यकीनी बनाने के लिए शैक्षिक भ्रमण कार्यक्रमों को स्कूल प्रशासन व अध्यापक अपनी तरह से डिजाइन कर सकते हैं।
अरुण कुमार कैहरबा
हिन्दी प्राध्यापक
राजकीय उच्च विद्यालय, करेड़ा खुर्द,
खंड-जगाधरी, जिला-यमुनानगर
घर का पता-वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जिला-करनाल, हरियाणा
मो.नं.-9466220145
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