Thursday, November 18, 2021

Environment Awareness railly by students of GHS KARERA KHURD


गली-गली में जाएंगे, पर्यावरण बचाएंगे

नारों के साथ विद्यार्थियों ने निकाली पर्यावरण जागरूकता रैली

यमुनानगर, 18 नवंबर

गांव करेड़ा खुर्द स्थित राजकीय उच्च विद्यालय के विद्यार्थियों ने गांव में पराली और कचरा न जलाने का आह्वान करते हुए पर्यावरण जागरूकता रैली निकाली। गली-गली में जाएंगे, पर्यावरण बचाएंगे, पराली नहीं जलाएंगे, साफ-सफाई लाएंगे आदि नारों के साथ गांव की गलियों में घूमते हुए विद्यार्थियों ने लोगों को जागरूक किया। रैली को मुख्याध्यापक विपिन कुमार ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। रैली की अगुवाई हिंदी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा, विज्ञान अध्यापक विजय गर्ग, प्राथमिक पाठशाला के प्रभारी वीरेंद्र कुमार, प्राथमिक शिक्षक सुल्तान सिंह ने की। 


विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए मुख्याध्यापक विपिन कुमार ने कहा कि पर्यावरण को लेकर सामाजिक उदासीनता चिंता का कारण है। पराली एवं कचरा जलाने, उद्योगों और वाहनों के धुएं के कारण वातावरण में जहर घुलता जा रहा है। उन्होंने पर्यावरण जागरूकता लाने के लिए विद्यार्थियों का आह्वान किया।

हिंदी प्राध्यापक अरुण कैहरबा ने कहा कि हवा में हम सांस लेते हैं। जैसी हवा होगी, वैसा ही हमारा स्वास्थ्य होगा। वायु प्रदूषण आज की सबसे बड़ी समस्या है। हवा में जहरीले तत्व मिल जाने से हम अनेक प्रकार की बिमारियों के शिकार हो रहे हैं। इस समस्या को लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक भी सरकारों को निर्देश दे चुका है। उन्होंने कहा कि सामाजिक जागरूकता के बिना हम पर्यावरण संरक्षण के लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाएंगे। इस मौके पर अध्यापिका सुखविन्द्र कौर, राजरानी, वंदना शर्मा, रवि कुमार, मंजू, राजेंद्र कुमार उपस्थित रहे।

नाटक टीम को किया सम्मानित-


राजकीय उच्च विद्यालय करेड़ा खुर्द की नाटक टीम ने खंड स्तर पर दो प्रतियोगिताओं में उत्कृष्ट स्थान हासिल किया। हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार व संस्कृत अध्यापिका रजनी शास्त्री के निर्देशन में तैयार किया गया नाटक- आओ नशे का नाश करें का मंचन खंड स्तरीय प्रतियोगिताओं में किया गया। कानूनी साक्षरता प्रतियोगिता की स्किट स्पर्धा में नाटक ने दूसरा स्थान प्राप्त किया। वहीं जनसंख्या शिक्षा कार्यक्रम की खंड स्तरीय ड्रामा प्रतियोगिता में नाटक ने तीसरा स्थान लिया। स्कूल में आयोजित समारोह में विद्यार्थियों ने नाटक टीम का तालियों के साथ अभिनंदन किया। मुख्याध्यापक विपिन कुमार ने नाटक टीम में शामिल नौवीं कक्षा की छात्रा भावना, मीनाक्षी, मानसी, तृप्ति, महक व प्रीति को सम्मानित किया और उम्मीद जताई के स्कूल के विद्यार्थी इसी तरह से अपनी उपलब्धियों से स्कूल व अपने माता-पिता का नाम रोशन करेंगे।



Wednesday, November 17, 2021

Jagadhri-Yamunanagar will be filled with flowers

फूलों से महकेगा जगाधरी-यमुनानगर

फूलों की पौध मुफ्त बांटने का काम शुरू

जिला बागवानी अधिकारी डॉ. कृष्ण ने की शुरूआत

जगाधरी/ यमुनानगर, 17 नवंबर


जगाधरी में बुडिय़ा चौक के पास श्मशान घाट में करीब महीना भर पहले फ्लावर मैन डॉ. रामजी जयमल व उनकी टीम द्वारा लगाई गई विभिन्न प्रकार के फूलों की पौध तैयार हो चुकी है। खुशी उन्नति केंद्र महिला विंग की प्रदेश अध्यक्ष हरविंदर कौर ढिल्लों की अध्यक्षता में बुधवार को पौध वितरण समारोह आयोजित किया गया। समारोह में जिला बागवानी अधिकारी डॉ. कृष्ण कुमार ने पौध वितरित करके अभियान का शुभारंभ किया। कार्यक्रम में फूलों के अभियान से जुड़े हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा, जिला बागवानी सलाहकार डॉ. देवेन्द्र सिंह, खुशी उन्नति केंद्र की जिला अध्यक्ष रजनी सोनी, प्रदेश महासचिव रुपिंदर कौर, हरजीत कौर मल्होत्रा, रीता चहल, गायत्री, सुनील शोरेन व अभिषेक सहित अनेक स्वयंसेवियों ने हिस्सा लिया।


कार्यक्रम में बागवानी अधिकारी डॉ. कृष्ण कुमार ने फूलों के इस अनोखे अभियान की तारीफ करते हुए कहा कि यह अभियान पर्यावरण के संरक्षण के लिए बहुत अहम है। उन्होंने कहा कि पौध का एक-एक पौधा उपयोग में लाया जाना चाहिए ताकि फूलों का वातावरण निर्मित किया जा सके। उन्होंने प्राकृतिक तरीके से खेती करने पर बल दिया और मधुमक्खी द्वारा शहद तैयार करने की प्रक्रिया और शहर की उपयोगिता के बारे में बताया।
आओ पर्यावरण बचाएं, चलो फूल लगाएं-


अरुण कुमार कैहरबा ने अपने संबोधन में कहा कि मौजूदा परिवेश में विकास की अंधी दौड़ लगी है। इस दौड़ में हम प्रकृति से कटते जा रहे हैं। पर्यावरण और प्रकृति को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। जिसका खामियाजा मनुष्य चुका भी रहा है। अनेक प्रकार की बिमारियां जन्म ले रही हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के भयंकर दौर से हम निकले हैं। आने वाले समय में भी कोरोना की तीसरी लहर की आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं। ऐसे में सबसे ज्यादा जरूरी है कि हम प्रकृति माँ का सम्मान करें। प्रकृति का संरक्षण करें। उन्होंने कहा कि डॉ. रामजी जयमल के द्वारा शुरू किया गया अभियान प्रकृति के और नजदीक जाने और फूलों के रंग व सुगंध से अपने वातावरण को सम्पन्न करने का अभियान है। उन्होंने कहा कि फूलों का चाहवान प्रत्येक व्यक्ति इस अभियान में स्वैच्छिक रूप से हिस्सा ले सकता है। उन्होंने अध्यापकों से अपने शिक्षा संस्थानों, कर्मचारियों को अपने विभाग के कार्यालयों को फूलों से सुसज्जित करने और फूलों की पौध मुफ्त प्राप्त करने का आह्वान किया।
लोगों के सहयोग से धूल की जगह फूलों से महकेंगे दोनों शहर-


फूलों की पौध लगवाकर मुफ्त बांट रही हरविन्दर कौर ढि़ल्लों ने कहा कि खुशी उन्नति केन्द्र ने यमुनानगर व जगाधरी शहर को फूलों से सजाने का सपना देखा है। उन्होंने कहा कि लोगों के सहयोग से यह सपना हकीकत में बदल सकता है। उन्होंने कहा कि जगाधरी व यमुनानगर में हर तरफ धूल व धूआं दिखाई देता है। यदि सभी का सहयोग मिले तो धूल की जगह हमारे शहर में फूल खिल सकते हैं। उन्होंने कहा कि जो भी चाहे यहां से फूल प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि पौध बांटने का काम आज से शुरू हो गया है, आने वाले कुछ दिन लगातार यह काम किया जाएगा।








Thursday, November 11, 2021

EDUCATION DAY IN GHS KARERA KHURD (YAMUNANAGAR)

राष्ट्रीय शिक्षा दिवस मनाया

देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना कलाम को दी श्रद्धांजलि

भाषण प्रतियोगिता में मानसी, मुस्कान, तृप्ति व रूक्मणी ने पाया पुरस्कार

मौलाना अबुल कलाम आधुनिक शिक्षा के शिल्पकार: अरुण 


यमुनानगर, 11 नवंबर

गांव करेड़ा खुर्द स्थित राजकीय उच्च विद्यालय में राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के अवसर पर देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। कार्यक्रम के दौरान हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार की अगुवाई में भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें नौवीं कक्षा की छात्रा मानसी, मुस्कान, तृप्ति व रूक्मणि ने अग्रणी स्थान प्राप्त किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता मुख्याध्यापक विपिन कुमार मिश्रा ने की। मुख्याध्यापक विपिन कुमार, सेवानिवृत्त मुख्याध्यापक एवं विज्ञान अध्यापक विजय गर्ग और ईएसएचएम विष्णु दत्त ने विद्यार्थियों को पुरस्कार देकर सम्मानित किया।

हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि मौलाना अबुल कलाम आजाद हमारे देश के महान स्वतंत्रता सेनानी, लेखक, पत्रकार, संपादक एवं विचारक थे। 11 नवंबर, 1888 को उनका साउदी अरब के मक्का में जन्म हुआ। बाद में परिवार कलकत्ता में आ गया। बचपन से ही कलाम को पढऩे का चाव था। घर पर रह कर ही उन्होंने अरबी व फारसी का ज्ञान प्राप्त किया। वे घर से मिलने वाली जेब खर्ची को किताबें लेने के लिए इस्तेमाल करते थे। घर का माहौल सख्त अनुशासन में बंधा हुआ था। साढ़े नौ बजे के बाद घर में कोई बच्चा जाग नहीं सकता है। ऐसे में अबुल कलाम ने अपने अपने पढऩे की चाव को पूरा करने के लिए मोमबत्तियां खरीदी। जब परिवार के सभी सदस्य सो जाते थे तो वे मोमबत्ती जलाकर किताबें पढ़ते थे। एक रात को किताब पढ़ते हुए मोमबत्ती से उनका बिस्तरा भी जल गया था। उन्होंने बताया कि 1912 में अबुल कलाम ने साप्ताहिक निकाला और अंग्रेजी साम्राज्य के विरूद्ध जमकर लिखा। इससे परेशान अंग्रेजों ने साप्ताहिक पर प्रैस एक्ट के तहत पाबंदी लगा दी। मौलाना ने दूसरी पत्रिका निकाली। फिर अंग्रेजों ने उन्हें कलकत्ता छोडऩे के लिए विवश कर दिया। वे रांची में जाकर रहे। वहां पर भी अंग्रजों ने उन्हें नजरबंद कर लिया। पत्रकार से वे राष्ट्रीय नेता के रूप में पहचान बना रहे थे। 1920 के आसपास महात्मा गांधी से उनकी भेंट हुई। गांधी के व्यक्तित्व ने उनका  पर खासा प्रभाव डाला। मौलाना अबुल कमाल ने असहयोग आंदोलन व भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया। 8 अगस्त, 1942 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में रहते हुए उनकी पत्नी का देहांत हो गया। कृतज्ञ देशवासियों ने बेगम कलाम का स्मारक बनाने के लिए एक स्मृति कोष बनाया। कोष में लोगों में खूब आर्थिक सहयोग किया। तीन साल के करीब का कारावास काटने के बाद मौलाना को रिहा किया गया। जब मौलाना को कोष के बारे में बताया गया तो वे बहुत नाराज हुए। उन्होंने कोष के सारे धन को इलाहाबाद में कमला नेहरू अस्तपाल के लिए दे दिया। 

अरुण कैहरबा ने कहा कि आजादी के बाद देश को धर्म के आधार पर बांटने का आजाद ने विरोध किया। उन्होंने हमेशा साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता की पक्षधरता की। आजादी के बाद मौलाना अबुल कमाल आजाद देश के पहले शिक्षा मंत्री बने। शिक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न संस्थाओं की स्थापना की। उन्होंने सीबीएसई, यूजीसी, ललित कला अकादमी, संगीत नाटक अकादमी, आईआईटी खडग़पुर सहित अनेक संस्थानों का गठन किया। वे सभी बच्चों को अच्छी और मुफ्त शिक्षा देना चाहते थे। उन्होंने लड़कियों, समाज के कमजोर वर्ग के बच्चों की शिक्षा के लिए काम किया।

आजाद जैसी शख्सियतों से मिलती है प्रेरणा: विपिन मिश्रा


मुख्याध्यापक विपिन कुमार ने सभी बच्चों को मन लगाकर पढऩे का संदेश देते हुए कहा कि मौलाना अबुल कमाल आजाद जैसी शख्सियतों से हमें प्रेरणा मिलती है। उनसे प्रेरणा लेकर हमें शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढऩा चाहिए। उन्होंने कहा कि शिक्षा से ही इन्सान की शोभा बढ़ती है। शिक्षा के बिना हम आगे नहीं बढ़ सकते। उन्होंने कहा कि अबुल कलाम के जन्मदिन को शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है। सभी विद्यार्थियों को पढ़ाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए। 

मोबाइल से बचें, किताबों से बढ़ाएं दोस्ती: विजय गर्ग


विज्ञान अध्यापक विजय गर्ग ने कहा कि उनके विद्यार्थी काल में वे स्वयं थोड़े-थोड़े रूपये जमाकर किताबें खरीदते थे। किताबों से ही विद्यार्थी की शोभा बढ़ती है और किताबें ही ज्ञान का सागर है। उन्होंने कहा कि आज बच्चे मोबाइल के साथ अपना ज्यादा समय बिता रहे हैं, जोकि अच्छा नहीं है। मोबाइल का अधिक प्रयोग हमारे मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बहुत खतरनाक है। इसलिए सभी विद्यार्थी किताबों के साथ दोस्ती बढ़ाएं।

मेहनत से मिलेगी मंजिल: विष्णु दत्त


ईएसएचएम विष्णु दत्त ने कहा कि मेहनत और लगन विद्यार्थियों का गहना होता है। मेहनत के साथ किया गया कोई भी काम बेकार नहीं जाता। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में विद्यार्थियों को मेहनत करने का संदेश दिया। 

योजना बनाकर करें पढ़ाई: रजनी शास्त्री/सुखिन्द्र कौर

संस्कृत अध्यापिका रजनी शास्त्री व पंजाबी अध्यापिका सुखिन्द्र कौर ने कहा कि परीक्षाओं का समय नजदीक आ रहा है। मौसम के लिहाज से यह समय पढ़ाई के लिए बहुत अनुकूल है। इसलिए अपनी समय सारणी बना कर पढ़ाई के कार्य में जुट जाएं। इस मौके पर सामाजिक विज्ञान अध्यापिका राज रानी, कम्प्यूटर शिक्षिका डिंपल, एलए रवि कुमार, राजेन्द्र कुमार उपस्थित रहे।

‘उजाले हर तरफ होंगे’ / मनजीत भोला / गज़ल संग्रह समीक्षा /समीक्षक: अरुण कुमार कैहरबा

 पुस्तक समीक्षा

आम जन के संघर्षों के साथ खड़ी ‘उजाले हर तरफ होंगे’ की गज़लें
उम्मीद जगाता मनजीत भोला का पहला गज़ल-संग्रह
समीक्षक: अरुण कुमार कैहरबा
पुस्तक: उजाले हर तरफ होंगे
शायर: मनजीत भोला
प्रकाशक: सत्यशोधक फाउंडेशन, कुरुक्षेत्र
पृष्ठ: 64
मूल्य: रु. 80.
आशिक, माशूक, हुस्न, इश्क, साकी और शराब जैसे विषयों तक महदूद रहने वाली गज़ल आज सामाजिक विसंगतियों और विद्रूपताओं को प्रकट करके वंचित और शोषित वर्ग के संघर्षों के साथ खड़ी हो रही है। गज़ल की प्रगतिशील पंरपरा की कड़ी में ही सत्यशोधक फाउंडेशन, कुरुक्षेत्र द्वारा मनजीत भोला का पहला गज़ल संग्रह- ‘उजाले हर तरफ होंगे’ प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह ने गज़ल में नई संभावनाओं की उम्मीद जगाई है और गज़ल प्रेमियों को सुखद अहसास से भर दिया है। भोला के संग्रह में 50 से अधिक गज़लें हैं। ये गज़लें किसान, मजदूर, दलित, वंचित व शोषित वर्गों के जीवन-संघर्षों और आकांक्षाओं को बड़ी संजीदगी के साथ आवाज प्रदान करती हैं। इनमें संवेदनशून्य व क्रूर शासन सत्ताओं से टकराने का साहस मुखर होकर सामने आया है। अहंकार के नशे में चूर सत्ताओं की चालबाजी और खून में रंगे हाथों को भोला साफ-साफ देखते हैं। वे कहते हैं-
नशा उतरे हकूमत का तभी हाकिम कोई समझे
जहाँ तामीर कुरसी है पराई वो इमारत है।
रंगे हैं हाथ जिसके खून से खैरात वो बांटे
कयामत है कयामत है कयामत है कयामत है।
झूठी सरकारी घोषणाओं को भोला आड़े हाथ लेते हैं। वे जिंदगी के लिए रोटी के सवाल को सबसे अहम मानते हैं। यदि लोगों को दो वक्त का मान-सम्मान के साथ भोजन ही नहीं मिला तो फिर सरकारी घोषणाओं से कोई फायदा होने वाला नहीं है-
ये दिया है वो दिया है रोटियां पर हैं कहाँ 
घोषणा सरकार की हमको करे बदनाम है।
गज़लकार मानवता के लिए संघर्षरत शक्तियों के पक्ष में पूरी मजबूती से खड़ा होता है। वह श्रम की अहमियत को शिद्दत से पहचानता है और विकास में श्रम और श्रमिकों की योगदान की प्रशंसा करता है। उनकी पक्षधरता में कोई कन्फ्यूजन नहीं है। यह शेर देखिए-
मेरे महबूब यारों से कभी तुमको मिलाऊँगा
कोई रिक्शा चलाता है कोई फसलें उगाता है।
साथ ही भोला की गज़लें मजदूर-किसानों की कड़ी मेहनत के बावजूद उनके यहां पसरी गरीबी के प्रति भी संजीदा हैं- 
मुफलिसों की बस्तियों में ये नजारा आम है
धूप को दिन खा गया है बेचरागां शाम है।
तप रहा था गात फिर भी जा चुकी है काम पर
कह रही थी चाँदनी कुछ आज तो आराम है।
भोला की गज़लों में गरीबी और बेबसी की मार झेल रहे ग्रामीण अंचल के बच्चे यदा-कदा दिखाई देते हैं। उनके पोषण, स्कूलों से दूरी और उनकी जीवन स्थितियों पर वे पूरी संवेदनशीलता के साथ नजर दौड़ाते हैं-
गेट के भीतर नहीं जो जा सके इस्कूल के
आपकी हर योजना उनके लिए बेकाम है।
मजबूरियों और बाल मन को इस शेर में बहुत करीबी से पकड़ा गया है-
खेलने की सिन है जिनकी बोझ ढो सकते नहीं
हाय रे मजबूरियां हल्के गुबारे बेचते।
सरकारी स्तर पर शिक्षा का मजाक बनाए जाने की चिंताजनक स्थितियों को भोला ने इस तरह भी बयां किया है-
महकमा तालीम का उसको मिला सरकार में
पास दसवीं कर न पाया शख्स जो छह बार में।
$गज़लकार केवल विभिन्न प्रकार के नामों वाली योजनाएं घोषित करने का प्रचार करने और उनके क्रियान्वयन के प्रति बेरूखी के कारण सरकार को ही कटघरे में नहीं खड़ा करता, बल्कि अच्छी शिक्षा के प्रति ध्यान नहीं देने वाले अभिभावकों पर भी सवाल उठाता है, जोकि अंबेडकर का नाम तो लेते हैं और बच्चों को शिक्षा के लिए बुनियादी सुविधाएं तक नहीं दे सकते-
इक कलम औ कुछ किताबें दे नहीं सकते अगर
झोंपड़ी पे क्यों लिखा है अंबेडकर का नाम है।
बच्चे आज यांत्रिकता और दिखावे की जिंदगी की तरफ तेजी से अग्रसर हो रहे हैं। शहरों में अच्छी शिक्षा के लिए दौड़-धूप कर रहे बच्चों को और सुविधाएं भले मिल रही हों, लेकिन प्राकृतिक परिवेश और उसके अनुभव उनके हाथ से छिटक गए हैं। इसको भोला ने देखिए किस तरह बयां किया है-
बारिशें अब ना रही वो, ना रही वो कश्तियां
सब खिलौने बालकों के हाथ से खोने लगे।
शेर में शिक्षा और सौहाद्र्र का यह नजारा पेश कर गज़लकार पाठकों व श्रोताओं की वाहवाही लूट ले जाता है-
नाज़ ने तख्ती गढ़ी बस्ता बनाया नूर ने
इस तरह भोला मिरा इस्कूल में जाना हुआ।
हर बड़ी जंग कलम से लड़ी जा सकती है। कलम को हथियार बनाकर जंग जीतने का जज़्बा हमें उत्साह से भर देता है-
अब कलम से ही लडूंगा जंग मैं
हो गई है म्यान से शमसीर गुम।
इन $गज़लों में आनंद और उल्लास के पल भी हैं और विपदाओं से बोझिल पलों को भी बहुत सुंदर ढ़ंग से प्रकट किया गया है। 
शिक्षा के निजीकरण की तरफ बढ़ती जा रही सरकारी नीतियों के कारण शिक्षा आम आदमी के बच्चों के हाथ से छिटकने का खतरा मंडरा रहा है। आने वाले समय में क्या स्थितियां बनेंगी, चेतावनी देते हुए गज़लकार ने भविष्यवाणी कुछ यूं की है-
मकतब के दर खुले हुए थे सबके वास्ते
थी फीस भी मुआफ अभी कल की बात है। 
भोला की गज़लों में जहां एक तरफ मजदूरों और उनके बच्चों की दशा को दर्शाया गया है, वहीं किसानों के हको-हुकूक के लिए भी आवाज बुलंद की गई है। किसानों की दिन-रात हाड़तोड़ मेहनत से उपजाई हुई फसलों का मोल उसे नहीं मिलता है। उसकी मेहनत की कमाई को कईं ताकतें हड़प कर जाती हैं। जो मिट्टी के साथ मिट्टी होकर फसल पैदा करता है, उसकी बजाय बिचौलियों को ज्यादा लाभ मिलता है। यही नहीं, उसकी जमीन पर पूंजीवादी ताकतें और कारपोरेट कंपनियां उसकी जमीन पर गिद्ध दृष्टि लगाए हुए हैं। इन स्थितियों को व्यक्त करते संग्रह की गज़लों के कुछ शेर देखिए-
सूख ना पाए पसीना होट नम होते नहीं
रोटियां उगती हैं कैसे हलधरों से पूछिये।
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बचा है क्या मियाँ हलकू तुम्हारे खेत में बाकी
उगाए थे चने तुमने मगर भुनवा चुका हूँ मैं।
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आज गर न जागे तो बारहा कहोगे कल
खेत ये हमारे थे क्यारियाँ हमारी थी।
मीडिया के द्वारा सच को उजागर करने की बजाय जब महिमागान ही होता है। तो आम आदमी का जी उससे उकता जाता है। शायर पत्रकारों द्वारा अपनी कलम को गिरवी रखने से खासा आक्रोशित है। हमने पत्रकारों को बड़े-बड़े सियासतदानों से सवाल करते हुए देखा है। लेकिन जब पत्रकार अपनी कलम की जिम्मेदारी से बेपरवाह हो जाएं तो शायर किस तरह से पत्रकारों से सवाल पूछता है। इसकी बानगी देखिए-
है कहाँ गिरवी कलम, कुछ ऐ सहाफी तुम कहो
खुदकुशी लिखते कत्ल को क्या गजब अंदाज है।
सच से मुंह मोड़ चुके अखबारों के प्रति आम आदमी के मन में क्या भाव पैदा होता है, यह शेर दिखा रहा है-
और कुछ तो पेश अपनी चल नहीं सकती यहाँ
चाहता है जी लगादूँ आग मैं अखबार में।
मौजूदा दौर के मुख्य धारा के मीडिया से अब उम्मीदें नहीं रखी जा सकती। ऐसे समय में जब घर-घर में चैनल कहर बरपा रहे हैं। ऐसे में शायर की कल्पना पर गौर फरमाईये-
कम-अज-कम वो आदमी तो चैन से होगा यहाँ
जो किसी चैनल किसी अखबार से वाकिफ नहीं।
भोला के गज़ल संग्रह में अनेक स्थानों पर नाजुकता और संवेदनशीलता की प्रतीक तितलियों व चिडिय़ों का जिक्र आता है। लेकिन आज के हिंसक दौर में उनके साथ सलूक कैसा होता है। कौन उन्हें कुचलने पर उतारु है। मौजूदा परिवेश की क्रूरताओं को पेश करते कुछ शेर देखिए-
बागबां को डूबकर अब मर ही जाना चाहिए
एक भी तितली नहीं महफूज इस गुलजार में।
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कौन चिडिय़ा गुनगुनाए गीत प्यारे बाग में
हर शजर पे आजकल बैठा हुआ इक बाज है।
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तानपूरे ढ़ोल, तबले बाँसुरी खामोश है
गोलियों की धुन सुनो बंदूक ही अब साज है।
खुद शायर क्या चाहता है, इस शेर से स्पष्ट है-
तितलियाँ बेखौफ जिसमें उड़ सकें
इस तरह आबाद ये गुलजार हो।
संग्रह के कुछ शेर तो ऐतिहासिक बन पड़े हैं, जिनमें एक पूरा फलसफा छिपा हुआ है। इन शेरों को समझने और उनका आनंद उठाने के लिए पाठक को पूरी पृष्ठभूमि से परिचित होना जरूरी है।
बनारस के नसीबों में लिखी फिरदौस की महफिल
मगर जश्र-ए-कज़ा मुर्शिद मेरा मगहर मनाता है।
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आजकल हिन्दोस्तां का रूप है बदला हुआ
मर गया गांधी बेचारा, गोडसे जिंदा हुआ।
मेहनतकश को उसका हक ना मिलना सबसे अधिक चिंताजनक है। मेहनत कोई करता है। मेहनत कर-करके मर जाता है। लेकिन उसका श्रेय चालाक लोग लूट ले जाते हैं-
गटर में मर गया रमलू मगर हैरत हुई सुनके
सुना तमगा सफाई का सचिन के नाम होता है।
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पानियों के दाम बेशक बढ़ गए हैं देश में
आदमी का खून लेकिन और भी सस्ता हुआ।
संग्रह का शीर्षक एक गज़ल के जिस शेर से लिया गया है, पहले उसे देखिए-
किया वादा वफा उसने उजाले हर तरफ होंगे
हवा को दे दिया ठेका चरागों की हिफाजत का।
यह शेर हमारी राजनैतिक-सामाजिक व्यवस्था के रहनुमाओं की चालबाजी का पटाक्षेप करता है। वे जो वादा करते हैं, व्यवहार उसके बिल्कुल उलट करते हैं। उनके वादों में हमें अच्छे दिनों और खुशहालियों के सपने दिखाए जाते हैं। और हकीकत कुछ और होती है। हालांकि यह प्रतिनिधि शेर व्यवस्था पर सवाल उठा रहा है। लेकिन यदि पूरे संग्रह के मूलभाव को समझने की चेष्टा की जाए तो भी संग्रह का शीर्षक पूरी तरह से उपयुक्त एवं सटीक है। शीर्षक पूरे संग्रह की गज़लों का प्रतिनिधित्व करता है, जोकि अंधेरे दौर में उजालों की उम्मीदों को अभिव्यक्त करता है। कटु यथार्थ को बयां करते हुए वे हर वंचित-शोषित तक ज्ञान व अधिकारों के उजाले की उम्मीदों से लबरेज हैं। अपनी ग़ज़लों के जरिये वे एक बेहतर समाज का सपना रचते हैं। वे चाहते हैं- ‘मंदिरी की बात हो ना मस्जिदी की बात हो, मजहबों को भूलकर अब आदमी की बात हो। मुन्सिफों मजलूम की अब एक ही फरियाद है, की गई सदियों तलक उस ज्यादती की बात हो।’ शीर्षक और विषय-वस्तु के अनुकूल ही युवा कलाकार कीर्ति सैनी द्वारा तैयार किया गया आवरण है। आवरण में मशालें हाथ में लिए किसी बस्ती के महिला-पुरूष और बच्चे दिखाए गए हैं। यह आवरण इतना आकर्षक है कि किसी को भी गज़लें पढऩे के लिए आमंत्रण देता है।
ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती, मीर तकी मीर, मोमिन, जौक, गालिब, फैज़, हाली पानीपती सहित कितने ही शायरों ने गज़ल के लिए जरिये ना केवल अपने भावों और अपने समय को अभिव्यक्त किया बल्कि गज़ल के बारे में चले आ रहे विचारों में भी बदलाव किया। हिन्दी की बात करें तो अमीर खुसरो की कुछ रचनाओं में गज़ल की संभावनाएं दिखाई देने लगी थी। संत कबीर ने भी गज़ल में हाथ आजमाया। भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने गज़ल में भावाभिव्यक्ति की। हिन्दी गज़ल को एक स्वतंत्र विधा के रूप में प्रतिष्ठित करने का श्रेय दुष्यंत कुमार को जाता है। शमशेर बहादुर सिंह ने गज़ल का नया सौंदर्यशास्त्र गढऩे में योगदान किया। अदम गोंडवी ने समाज और राजनीति की सच्चाईयों को मुखरता के साथ गज़ल के माध्यम से आवाज दी। गज़ल की प्रगतिशील परंपरा के प्रति मनजीत भोला पूरी तरह से सजग हैं और अपने पहले ही संग्रह में वे इस परंपरा में अपना नाम दर्ज करवा चुके हैं। वे अदम गोंडवी की यथार्थपरक दृष्टि और बेबाक बयानी से खासे प्रभावित हैं। उनके कईं शेरों में हमें गोंडवी साहब झांकते हुए मिलेंगे। कुछ शेरों को पढक़र हमें अदम गोंडवी के शेर बरबस ही याद आ जाते हैं-
फाइलों में हुआ है उजाला बहुत
एक लट्टू भी बाहर जला ही नहीं।
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चमारों की ये बस्ती है यहाँ हर प्यास प्यासी है
यहाँ तो भूक भी भूकी ही रहकर है पली यारो।
इसके बावजूद भोला ने मौलिकता बरकरार रखी है। उनकी गज़लों में जज़्बात की गहराई और समाज-राजनीति की कटु सच्चाई मुखर होकर व्यक्त होती है। वे अपनी गज़लों में कवियों और शायरों को याद करते हुए चलते हैं-
कबीरा हूँ गौतम हूँ रसखान हूँ
नहीं कोई झूटी इबारत हूँ मैं
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है गजब की शय यहां भोला ग़ज़ल
अब तलक गालिब हुए ना मीर गुम।
शायर मनजीत भोला ने उर्दू को सीखने और गज़ल के व्याकरण पर पकड़ बनाने के लिए कड़ी मेहनत की है। यह जानकारी हमें संग्रह की शुरूआत में उनके लिखे से मिलती है। लेकिन उनकी गज़लों को पढक़र ऐसा लगता नहीं है। गज़लों में उनकी सशक्त भाषा-शैली के दर्शन होते हैं। हमें लगता है कि उर्दू और हिन्दी पर उनकी पूरी पकड़ है। उनकी भाषा का पैनापन और नफासत गज़लों से झांकती ही नहीं बल्कि टपकती है। निश्चय की शायर ने इसके लिए अथक मेहनत की है। कविता और गज़ल के चाहवानों को यह संग्रह जरूर पढऩा चाहिए। आने वाले समय में भोला की गज़लें और ज्यादा सशक्त होकर हमारे सामने आएंगी। ऐसी हमें उम्मीद है। उनके लिए ढ़ेर सारी शुभकामनाएं।
HARYANA PRADEEP 09-11-2011



समीक्षक: अरुण कुमार कैहरबा
हिन्दी प्राध्यापक
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जिला-करनाल, हरियाणा
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PRAKHAR VIKAS 10-11-2021


Maulana Abul Kalam Azad

जयंती एवं शिक्षा दिवस विशेष

आधुनिक शिक्षा के कुशल शिल्पकार: अबुल कलाम आजाद


अरुण कुमार कैहरबा

मौलाना अबुल कलाम आजाद भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के मुख्य नेता थे जिन्होंने जनतंत्र, विवेकवाद, सद्भाव, स्वतंत्रता और समानता के उच्च मूल्यों केे लिए आजीवन काम किया। वे उन मुख्य मुस्लिम नेताओं में से एक थे जिन्होंने हिन्दु-मुस्लिम एकता की पुरजोर पक्षधरता की और साम्प्रदायिक आधार पर देश के विभाजन का विरोध किया। देश की आजादी के बाद वे देश के पहले शिक्षा मंत्री बने। भारतीय शिक्षा को आधारशिला प्रदान करने में उनके अतुलनीय योगदान को याद करने के लिए उनके जन्मदिवस को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

अबुल कलाम का जन्म 11 नवंबर, 1888 में मक्का में हुआ। उनका शुरूआती नाम अबुल कलाम गुलाम मोहियुद्दीन था लेकिन बाद में वे मौलाना अबुल कलाम आजाद के रूप में जाने गए। उनके पिता मौलाना खैरूद्दीन अपने समय के बड़े विद्वान थे। अबुल कलाम की बचपन से ही पढऩे में रूचि पैदा हो गई थी। 12 वर्ष की उम्र ही उन्होंने लिखना शुरू कर दिया था। शुरूआत में उनका रूझान शेरो-शायरी की तरफ था। मौलवी अब्दुल वाहिद ने उनका तखल्लुस आजाद  रखा। 1912 में उन्होंने अल-हिलाल नाम की साप्ताहिक पत्रिका निकालनी शुरू की। मौलाना अबुल कलाम  ने क्रांतिकारी संपादक और पत्रकार के तौर पर काम करते हुए अंग्रेजी सरकार की साम्राज्यवादी नीतियों का विरोध किया। अल-हिलाल के क्रांतिकारी तेवरों से अंग्रेज परेशान हो गए। उन्होंने 1914 में प्रैस एक्ट के तहत इस पर पाबंदी लगा दी। इसके बाद मौलाना ने अल-बलाग साप्ताहिक निकाला। इसके भी अल-हिलाल से तेवर थे। 1916 में ब्रिटिश सरकार ने मौलाना आजाद को कलकत्ता छोडऩे को विवश कर दिया। वे कलकत्ता से रांची आ गए। यहां आने के बाद उन्हें तीन साल तक नज़रबंद कर लिया गया। रांची की कैद ने उन्हें राष्ट्रीय नेता बना दिया था।
वे 1920 के आस-पास महात्मा गांधी के सम्पर्क में आए और गांधी जी के अहिंसा और सविनय अवज्ञा के विचार के उत्साही समर्थक बन गए। उन्होंने असहयोग आंदोलन में सक्रिय हिस्सा लिया। आजाद ने गांधी जी के स्वदेशी आंदोलन को बढ़ावा देने और भारत के स्वराज के लिए समर्पित होकर कार्य किया। वे 1923 में कांग्रेस के सबसे युवा अध्यक्ष बन गए। बाद में वे 1940 से 1946 तक भी कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। इसी दौरान भारत छोड़ो आंदोलन चला और वे भी कांग्रेस के सारे नेतृत्व के साथ तीन वर्ष तक जेल में रहे। उन्होंने अलग मुस्लिम राज्य की स्थापना का जोरदार विरोध किया और जब देश साम्प्रदायिक दंगों की आग में धू-धू कर जल रहा था, उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता और धर्मनिरपेक्षता का प्रचार किया। वे भारत के बंटवारे को किसी भी सूरत में स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। हिन्दू-मुस्लिम एकता और भाईचारा उनके लिए सबसे प्राथमिक सरोकार था। यहां तक कि भाईचारा की शर्त पर यदि स्वराज दिया जाए तो इसके लिए भी वे तैयार नहीं थे। भाईचारा व एकता को सबसे बड़ा इन्सानी सरोकार मानते थे, जिसके साथ किसी तरह का समझौता नहीं हो सकता था। आखिर जब बंटवार हुआ और धर्म के नाम पर पंजाब और बंगाल में दंगे हुए तो उसके कारण मौलाना आजाद काफी परेशान रहे। आजादी की लड़ाई में वे देश के अग्रणी नेताओं में शुमार थे। उन्होंने अनेक बार जेल की सजाएं काटी।
JAGAT KRANTI 11-11-2021

मौलाना आजाद ने विरासत में मिली साम्राज्यवादी अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था को स्वतंत्रता आंदोलन में विकसित किए गए उच्च मूल्यों और आजाद भारत की आकांक्षाओं के अनुकूल नया रूप दिया। उनके योगदान के कारण ही उन्हें आधुनिक भारतीय शिक्षा व्यवस्था का कुशल शिल्पकार कहा जाता है। उन्होंने मुफ्त एवं अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की मजबूती के साथ पक्षधरता की। लिंग और जाति-धर्म के भेदभाव के बिना उन्होंने सभी की शिक्षा की आवाज बुलंद की। उन्होंने लड़कियों व समाज के कमजोर तबकों के बच्चों की शिक्षा पर खास जोर दिया। शिक्षा मंत्री के रूप में आधुनिक उच्चतर शिक्षा संस्थानों की स्थापना की। देश में उच्चतर शिक्षा के विकास और पर्यवेक्षण के लिए 1951 में पहले राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान, विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग और 1956 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग स्थापना का श्रेय उन्हें जाता है। माध्यमिक शिक्षा के विकास में क्रांतिकारी भूमिका निभाने वाले माध्यमिक शिक्षा आयोग का गठन भी उनकी दूरदर्शिता का सूचक है।

मौलाना आजाद देश की सांझी संस्कृति के प्रति पूरी तरह से सजग थे। इसलिए उन्होंने सामाजिक-धार्मिक व सांस्कृतिक दूरियां पाटने और भारतीय संस्कृति और विरासत को समृद्ध करने के लिए राष्ट्रीय महत्व की विभिन्न संस्थाएं स्थापित की। उन्होंने 1950 में सांस्कृतिक सम्बन्धों के लिए राष्ट्रीय परिषद की स्थापना के साथ-साथ देश की तीन अहम अकादमियां- संगीत नाटक अकादमी 1953, साहित्य अकादमी और ललित कला अकादमी 1954 की स्थापना की। उनका कहना था कि ‘हमें एक क्षण के लिए भी नहीं भुलाना चाहिए कि कम से कम बुनियादी शिक्षा हासिल करना हर एक व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है जिसके बिना नागरिक के रूप में वह अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन नहीं कर सकता।’ उन्होंने प्राथमिक शिक्षा पर बल देते हुए अन्य स्थान पर कहा कि  ‘देश की पूंजी उसके बैंकों में नहीं बल्कि प्राथमिक स्कूलों में है।’ उन्होंने सामान्य विद्यालय व्यवस्था और पड़ोस के स्कूल की अवधारणा की शुरूआत की। 22 फरवरी 1958 को उनका देहांत हो गया। वे अंतिम क्षणों तक देश के शिक्षा मंत्री रहे। उनके अतुलनीय योगदान का सम्मान करते हुए 1992 में उन्हें मरणोपरान्त देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। मौलाना अबुल कलाम आजाद को सम्मान प्रदान करने के लिए उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
अरुण कुमार कैहरबा
हिन्दी प्राध्यापक, स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखक
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जि़ला-करनाल (हरियाणा)
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