Saturday, March 28, 2020

महादेवी वर्मा पर विशेष

DAINIK ARTH PARKASH

महादेवी वर्मा ने कलम व कर्म के जरिये उठाई महिला मुक्ति की 

अरुण कुमार कैहरबा
DAINIK JAGMARG 26/03/2020

समाज में महिलाओं की स्थिति शुरू से ही अच्छी नहीं रही। 20वीं सदी के शुरूआत में तो स्थिति ज्यादा खराब थी। जब लेखन ही नहीं किसी भी क्षेत्र में गिनी-चुनी महिलाएं अग्रणी भूमिकाओं में दिखाई देती थी। ऐसे में महादेवी वर्मा ने लेखन के जरिये ना केवल अपने समय को वाणी दी, बल्कि दो कदम आगे बढक़र अपनी लेखनी और कार्यों के जरिये महिला मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया। 20वीं सदी की सबसे अधिक लोकप्रिय महिला साहित्यकार और आधुनिक मीरा के रूप में विख्यात महादेवी वर्मा हिन्दी साहित्य में छायावादी कविता के चार आधार स्तंभों में से एक हैं। आधुनिक गीत काव्य में महादेवी का स्थान सर्वोपरि है। प्रेम की पीर और भावों की तीव्रता से पूर्ण उनके गीतों के अलावा गद्य में उनके लिखे संस्मरण एवं रेखाचित्र बहुत प्रसिद्ध हैं। खड़ी बोली को परिष्कृत बनाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने खड़ी बोली को ब्रजभाषा की कोमलता प्रदान की। निराला ने उन्हें हिन्दी के विशाल मंदिर की सरस्वती कह कर सम्मानित किया है। महादेवी का जन्म 26 मार्च 1907 को उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद में हुआ था। उनके परिवार में सात पीढिय़ों के बाद पहली पुत्री का जन्म हुआ था। अत: बेटी के जन्म पर पूरा परिवार खुशी से झूम उठा। उनके बाबा ने उन्हें घर की देवी-महादेवी नाम दिया। उनके पिता गोविंद प्रसाद वर्मा भागलपुर के एक कॉलेज में प्राध्यापक थे। उनकी माता हेमरानी देवी अध्ययनशील थीं और मीरा के पद विशेष रूप से गाती थी। छायावाद के अन्य स्तंभों में शामिल सुमित्रानंदन पंत एवं निराला उनके मानस बंधु थे। वे सात वर्ष की अवस्था में ही कविता लिखने लगी थीं। क्रास्थवेट गल्र्स कॉलेज के छात्रावास में रहते हुए सुभद्रा कुमारी चौहान के पूछने पर जब महादेवी ने उनसे कविता लिखने की बात छुपाई तो सुभद्रा ने डेस्क में रखी उसकी किताबों की छानबीन की। किताबों में ही महादेवी वर्मा की लिखी कविताएं भी निकल आई और सुभद्रा कुमारी ने सबको बता दिया कि महादेवी कविताएं लिखती है। जब अन्य सहेलियां खेल रही होती तो छात्रावास में पेड़ की डाल पर बैठ कर महादेवी वर्मा और सुभद्रा कुमारी तुकबंदी करती थी। मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करते-करते वे एक सफल कवयित्री के रूप में प्रसिद्ध हो चुकी थीं। कईं पत्र-पत्रिकाओं में उनकी कविताओं का प्रकाशन होने लगा था। बाल विवाह ने उनकी साहित्य साधना का मार्ग अवरूद्ध करने की कोशिश जरूर की, लेकिन उनके इरादों के आगे यह बाधा भी दूर हो गई। 1932 में जब उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमए किया तो उनके दो कविता संग्रह नीहार तथा रश्मि प्रकाशित हो चुके थे। उन्होंने खड़ी बोली में लिखे अपने गीतों में ब्रज भाषा की कोमलता का समावेश किया।
महादेवी वर्मा का लेखन के अलावा संपादन और अध्यापन कार्यक्षेत्र रहा। उन्होंने इलाहाबाद में प्रयाग महिला विद्यापीठ के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया। यह कार्य अपने समय में महिला-शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम था। 1932 में उन्होंने महिलाओं की प्रमुख पत्रिका ‘चाँद’ का कार्यभार संभाला। 1930 में नीहार, 1932 में रश्मि, 1934 में नीरजा, तथा 1936 में सांध्यगीत नाम के चार कविता संग्रह प्रकाशित हुए। 1939 में इन चारों काव्य संग्रहों को उनकी कलाकृतियों के साथ वृहदाकार में यामा शीर्षक से प्रकाशित किया गया। गद्य में उनकी मेरा परिवार, स्मृति की रेखाएं, पथ के साथी, शृंखला की कडिय़ाँ और अतीत के चलचित्र प्रमुख कृतियां हैं। महादेवी जी ने इलाहाबाद में साहित्यकार संसद और रंगवाणी नाट्य संस्था की स्थापना की। उन्होंने भारत में महिला कवि सम्मेलनों की नींव रखी। पहला अखिल भारतीय महिला कवि सम्मेलन 15अप्रैल, 1933 को सुभद्रा कुमारी चौहान की अध्यक्षता में प्रयाग महिला विद्यापीठ में संपन्न हुआ। महादेवी बौद्ध धर्म से बहुत प्रभावित थीं। महात्मा गांधी के प्रभाव से उन्होंने जनसेवा का व्रत लेकर झूंसी में कार्य किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी हिस्सा लिया। 1936 में नैनीताल से 25 किलोमीटर दूर रामगढ़ कस्बे के उमागढ़ गाँव में महादेवी वर्मा ने एक बँगला बनवाया था। जिसका नाम उन्होंने मीरा मंदिर रखा था। जितने दिन वे यहाँ रहीं इस छोटे से गाँव की शिक्षा और विकास के लिए काम करती रहीं। विशेष रूप से महिलाओं की शिक्षा और उनकी आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए उन्होंने बहुत काम किया। आजकल इस बंगले को महादेवी साहित्य संग्रहालय के नाम से जाना जाता है। शृंखला की कडिय़ाँ में स्त्रियों की मुक्ति और विकास के लिए साहस व दृढ़ता से आवाज उठाई और सामाजिक रूढिय़ों की कड़ी आलोचना प्रस्तुत की। उनके गीतों में जहां वेदना और पीड़ा भरी हई है, लेकिन गद्य में इनके कहीं दर्शन नहीं होते बल्कि अदम्य रचनात्मक रोष, समाज में बदलाव की अदम्य आकांक्षा और विकास के प्रति सहज लगाव दिखाई देता है। समालोचन में श्रीधरम ने महादेवी वर्मा के साहित्य का मूल्यांकन करने में आलोचकों पर मर्दवादी दृष्टि अपनाने के आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि महादेवी वर्मा के साहित्य को उनके समकालीन साहित्यकारों के साथ तुलना करके  नहीं समझा जा सकता। उनका साहित्य तत्कालीन और आज के परिवेश में महिलाओं की स्थितियों के संदर्भ में समझा जाना चाहिए। डॉ. मैनेजर पांडेय का कहना है-‘महादेवी वर्मा भारतीय स्त्री के जीवन के अनुभवों और आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति करने वाली कलाकार हैं, उसके जागरण का अभियान चलाने वाली कार्यकर्ता और उसकी पराधीनता के जटिल रूपों का विश्लेषण तथा स्वाधीनता की संभावनाओं की तलाश करने वाली दार्शनिक भी हैं। उनके गीतों, चित्रों और रेखाचित्रों में उनका कलाकार रूप मिलता है तो उनकी शिक्षा, संस्कृति और साहित्यिक पत्रकारिता संबंधी गतिविधियों में उनका कार्यकर्ता रूप। श्रंखला की कडिय़ां के माध्यम से वे एक स्त्रीवादी दार्शनिक के रूप में हमारे समाने आती हैं।’ मैनेजर पांडेय की बात का ही उद्धरण लें तो-‘महादेवी वर्मा की कविता के साथ आरंभ से ही एक प्रकार के आलोचनात्मक पूर्वग्रह की स्थिति दिखाई देती है। यह ठीक है कि उनकी कविता में दुख है, वेदना है, निराशा है, आंसू हैं, अंतर्मुखता है और अभिव्यक्ति शैली के परोक्ष की प्रधानता भी है, पर साथ ही वहां असंतोष है, आक्रोश है और संघर्ष की चेतना भी। आलोचकों ने उनके आंसुओं पर ध्यान दिया है, लेकिन उनके आक्रोश पर नहीं।’
महादेवी वर्मा को ‘यामा’ काव्य संकलन के लिये भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ। स्वाधीनता प्राप्ति के बाद 1952 में वे उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्या मनोनीत की गयीं। 1956 में भारत सरकार ने उनकी साहित्यिक सेवा के लिये पद्म भूषण की उपाधि दी। वे भारत की यशस्वी महिलाओं में से एक हैं। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद नगर में बिताया। 11 सितंबर 1987 को इलाहाबाद में उनका निधन हो गया। 1988 में उन्हें मरणोपरांत भारत सरकार की पद्म विभूषण उपाधि से सम्मानित किया गया। साहित्य में उनका योगदान हमेशा याद किया जाता रहेगा।
अरुण कुमार कैहरबा,
हिन्दी प्राध्यापक,
घर का पता-वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री, जि़ला-करनाल (हरियाणा)
मो.नं.-09466220145
arunkaharba@gmail.com

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