Saturday, June 16, 2018

विश्व पिकनिक दिवस विशेष

नीरसता तोड़ जीवन का आनंद देती पिकनिक

अरुण कुमार कैहरबा
JAGMARG 18-6-2018

दुनिया में अनेक प्रकार के दिवस मनाए जाते हैं। इनमें से कईं कुछ लोगों को एक नजर में तो बहुत ही बेमतलब से जान पड़ सकते हैं। लेकिन जब विश्व स्तर पर कोई दिन मनाए जाने की परंपरा शुरू होती है, तो उसके पीछे एक पूरा दर्शन होता है। ऐसा ही एक दिन है- विश्व पिकनिक दिवस। पिकनिक मतलब घर में हर रोज एक ही तरह खाना खाने की बजाय बाहर निकल कर किसी पार्क, खुले उद्यान या प्राकृतिक वातावरण में मिलकर खाना खाने का आनंद लेना। भारत की बात करें तो रोजी-रोटी के चक्कर में उलझे बहुत से परिवारों में तो पिकनिक की ऐसी कोई परंपरा देखने को नहीं मिलती है। पिकनिक एक शहरी अवधारणा है। जब लोग काम-धंधे के लिए गांव छोड़ शहरों में आ बसे तो जीवन का आनंद लेने की जरूरत महसूस हुई और औपचारिकताओं से निकल कर बाहर खुली हवा में सांस लेने की इच्छा पैदा हुई। 
काम-धंधा ही नहीं वर्ण व जाति व्यवस्था की जकड़ से मुक्ति पाने की लालसा भी लोगों को गांवों से शहरों में खींच कर लाई होगी। शहरों में जाति की जकड़ कमजोर हुई। नए सामाजिक संबंध बने। लेकिन पितृसत्तात्मक ढ़ांचा यूं ही बरकरार रहा। घर की चारदिवारी ने महिलाओं को कैद करके रखा। पितृसत्ता बहुत बड़े तबके की मुक्ति में बाधा बनी रही। परंपरागत पारिवारिक ढ़ांचों में सभी को संरक्षण मिलने के बावजूद जकड़बंदी बनी हुई थी। सभी को स्वतंत्रता का अहसास दिलाने के लिए पिकनिक की रीत शुरू हुई होगी। फ्रांस की क्रांति के समानता, स्वतंत्रता व बंधुत्व के विचारों से पिकनिक की अवधारणा को बल मिला। क्रांति के बाद वहां जगह-जगह पार्क व उद्यान विकसित किए गए। आज पूरे विश्व में ही लोग पिकनिक पर जाते हैं। स्कूलों और कॉलेजों के विद्यार्थियों को भी पिकनिक पर ले जाया जाता है। गर्मी की छुट्टियों में टूर, ट्रिप व पिकनिक विशेष तौर पर आयोजित की जाती हैं, जिनमें सीखना, सिखाना व मौज-मस्ती होती है। 
क्रांतिकारी कवि अवतार सिंह पाश अपनी एक प्रसिद्ध कविता में कहते हैं-‘सबसे ख़तरनाक होता है, मुर्दा शांति से भर जाना, ना होना तड़प का, सब कुछ सहन कर जाना, घर से निकलना काम पर और काम से लौट कर घर आना, सबसे ख़तरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना।’ घर से काम और काम से घर के बोरियत भरे रूटीन को तोडऩे के लिए पिकनिक आयोजित की जाती है। इससे परिवार के सदस्य व मित्र एक दूसरे के ज्यादा नजदीक आते हैं और एक दूसरे को समझ पाते हैं। खेल-कूद और आनंददायी पलों में सपनों को पंख लगते हैं। आज बड़े तो बड़े छोटे-छोटे बच्चे भी कितने प्रकार के दबाव में रहते हैं। नन्हें बच्चों पर स्कूल के कार्य का बोझ बना हुआ है। परिवार का मुखिया अनेक प्रकार के झंझटों में उलझा रहता है। गृहणियों के ऊपर घर के कामों का दबाव रहता है। कामकाजी महिलाओं को घर और बाहर के काम की चिंता रहती है। ऐसे में पिकनिक सभी को सुखद पल देती है। 
पिकनिक  व जीवन का आनंद हर कोई उठा सके, इसके लिए जरूरी है कि हर गांव, शहर व कस्बे में  थोड़ी-थोड़ी दूरी पर पार्क व पुस्तकालय आदि विकसित किए जाएं। इस मामले में हमारी पंचायतों व नगर निकायों में समझदारी का अभाव देखने को मिलता है। आज तक हमारी सरकारें ईंट-रोड़े और खड़ंजे को ही विकास माने बैठी हैं। गलियों व सडक़ों को इसलिए बार-बार उखाड़ कर बनवाया जाता है, ताकि पैसा खर्च किया जा सके। बहुत सी पंचायतों व नगर निकायों के पास रूपयों की कमी नहीं होती, लेकिन दृष्टि के अभाव में वे कुछ बेहतर नहीं कर पाती। हमारे देश में कितने ही ऐतिहासिक स्थल आज खंडहर में बदल चुके हैं। ऐसे स्थानों का रखरखाव करके उन्हें एक पिकनिक स्थल के रूप में बदला जा सकता है। इससे लोगों विशेष कर नई पीढ़ी को अपने इतिहास की भी जानकारी मिलेगी और उनके पास एक घूमने की जगह भी होगी। कितने ही जोहड़, नहरें व खलासियां गंदे-बदबूदार स्थान में तब्दील हो गई हैं। थोड़ी सी सूझबूझ से इन्हें भी पर्यटक व पिकनिक स्थलों में तब्दील किया जा सकता है। शहरों के हर कोने में पार्क व पुस्तकालय क्यों नहीं बनवाए जा सकते? हमारी सडक़ों के दोनों तरफ पैदल व साइकिल पर चलने वालों के लिए कोई लेन नहीं बनाई जाती। ऐसे में कैसे लोग मजे से अपने घरों के बाहर निकलेंगे। लोग घरों में कैद होकर ना रह जाएं, घरों से बाहर निकलने के लिए प्रेरित हों। इसके लिए सरकार के स्तर पर अनेक प्रकार के उपाय करने होंगे। शौकीन लोग तो पिकनिक के लिए निकलेंगे ही, उन्हें भला कौन रोक सकता है। तो आओ चलें।
अरुण कुमार कैहरबा,
हिन्दी प्राध्यापक,
रा.व.मा. विद्यालय, कैंप, यमुनानगर। 
घर का पता-वार्ड नं-4, रामलीला मैदान,
इन्द्री, करनाल, हरियाणा-132041  
मो.नं.-09466220145

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