Wednesday, December 16, 2020

Teacher work for outcome, not for Income- Ranjisinh Disale Global Teacher Award Winner

 प्रेरणास्रोत

‘इंकम के लिए नहीं आउटकम के लिए काम करता है शिक्षक’

ग्लोबल टीचर पुरस्कार पाकर सुर्खियों में आए प्राथमिक शिक्षक रणजीत डिसले के नवाचार

अरुण कुमार कैहरबा

भारत के एक प्राथमिक शिक्षक की उल्लेखनीय उपलब्धियों की चर्चा आजकल अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर हो रही है। महाराष्ट्र के सोलापुर जिला के पारितवाडी गांव के जिला परिषद प्राथमिक स्कूल के 31वर्षीय शिक्षक रणजीत सिंह डिसले ने शिक्षा के नॉबेल पुरस्कार के रूप में प्रसिद्ध ग्लोबल टीचर पुरस्कार-2020 प्राप्त किया है। पुरस्कार के रूप में उन्हें सात करोड़ रूपये का राशि मिली है। पुरस्कार के साथ-साथ वे इसलिए भी चर्चाओं में हैं कि इतनी बड़ी राशि का आधा हिस्सा उन्होंने अपने साथ शामिल हुए नौ अन्य उपविजेताओं में बांटने का फैसला किया है। प्रतियोगिता में दुनिया के 140 देशों के 12 हजार से अधिक अध्यापकों ने हिस्सा लिया था। वर्की फाउंडेशन व यूनेस्को द्वारा दिए जाने वाले पुरस्कार की घोषणा लंदन में प्रसिद्ध अभिनेता स्टीफन फ्राई द्वारा की गई तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था। यह सम्मान प्राप्त करने वाले वे पहले भारतीय हैं।
PRAKHAR VIKAS 15-12-2020


अवार्ड से अधिक रणजीत डिसले के कार्य हैं, जोकि शिक्षा जगत को गौरवान्वित होने का अवसर देते हैं। उन्हें यह नामचीन अवार्ड लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए दिया गया है। पितृसत्तात्मक समाज में लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने का कार्य इतना सरल नहीं होता है, जितना इसे कहा जाता है। ऐसा ही उस गांव में भी था, जिसमें डिसले को शिक्षण कार्य का जिम्मा मिला था। वहां पर लड़कियों की कम उम्र में शादी कर दी जाती थी। बाल विवाह के कारण लड़कियों पर परिवार की जिम्मेदारियों का बोझ आन पड़ता था और पढ़ाई छूट जाती थी। नन्हीं उम्र में ही शादी कर दिए जाने के कारण स्कूल में आने वाली लड़कियों की भी पढ़ाई में रूचि नहीं बन पाती थी। रणजीत सिंह डिसले ने समाज की सोच और बाल विवाह की कुरीति पर समाज में व्यापक अलख जगाई। लोगों को कुरीति के दुष्प्रभावों के बारे में समझाया। यह कार्य भी इतना आसान नहीं रहा होगा। कोई समाज जिन मूल्य-मान्यताओं में वर्षों से यकीन करता है, उन्हें आसानी से छोड़ता नहीं है। यदि उसके विपरीत कोई बोलता है तो उसके बारे में भी नकारात्मक धारणाएं बना लेता है। डिसले बताते हैं कि 11 साल बाद अपने काम को देखता हूँ तो संतोष होता है। बाल विवाह पूरी तरह से खत्म हो गए हैं। लड़कियों की स्कूल में शत-प्रतिशत उपस्थिति रहती है। हालांकि उपस्थिति ही शिक्षा नहीं होती। लड़कियां अपने समाज में सुरक्षित महसूस करने लगी हैं। उनमें हौंसला और आत्मविश्वास आया है। शिक्षा सभी सामुदायिक व सामाजिक समस्याओं का हल है। चुनौतिपूर्ण क्षेत्रों में असर ही शिक्षा की कसौटी भी है।
शिक्षा के कार्य को सरल बनाने के लिए डिसले ने तकनीक का सहारा लिया। उन्हें क्विक रिस्पोंस कोड पर आधारित किताबों की क्रांति लाने का श्रेय दिया जाता है। उनके द्वारा इजाद की गई तकनीक को एनसीईआरटी ने भी स्वीकार किया। इस तकनीक के तहत उन्होंने उन्होंने विद्यार्थियों के लिए उपयोगी किताबों के हर अध्याय के अंत में क्यूआर कोड प्रकाशित किया। किताब की पाठ्य सामग्री पर उन्होंने दृश्य-श्रव्य सामग्री तैयार की। जिससे विद्यार्थियों का स्कैनिंग के जरिये डिजीटल सामग्री तक पहुंचना सरल हो गया। बच्चों को कम्प्यूटर-लैपटॉप आदि की मदद से पढ़ाया जाने लगा। शिक्षा को मनोरंजन और मनोरंजन को शिक्षा में बदलना डिसले के शिक्षण की खूबी है। वे खुद के द्वारा दी जाने वाली शिक्षा को एजूटेनमैंट कहते हैं। बच्चा पढ़ाई का मजा लेता है। वह उसके लिए बोझ नहीं रहती है। डिजीटल सामग्री की मदद से बच्चे दूसरों से स्पर्धा करने की बजाय अपनी गति से सीखते हैं।

मजेदार शिक्षा का असर यह हुआ कि स्कूल से बाहर रहने वाले विद्यार्थी स्कूल में खिंचे चले आने लगे। स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़ी। विद्यार्थियों का सीखना समझ से जुड़ा। जब डिसले ने 2009 में स्कूल में कार्य करना शुरू किया था, तब स्कूल की दशा बेहद खराब थी। स्कूल भवन टूटा था। स्कूल के एक तरफ पशु बांधे जाते थे, दूसरी तरफ गोदाम था। उन्होंने स्कूल की दशा बदलने के लिए अथक मेहतन की।
डिसले के प्रयासों का असर यह हुआ कि 2016 में उनके स्कूल को जिले के सर्वश्रेष्ठ स्कूल का दर्जा मिला। उनकी इस कामयाबी का जिक्र माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्य नडेला ने अपनी पुस्तक ‘हिट रिफ्रेश’ में भी किया। 2016 में ही केन्द्र सरकार ने उन्हें इनोवेटिव रिसर्चर ऑफ द ईयर पुरस्कार से सम्मानित किया। 2018 में नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन द्वारा उन्हें इनोवेटर ऑफ दा ईयर का पुरस्कार दिया।
डिसले 83 देशों में ऑनलाइन विज्ञान पढ़ाते हैं। वे एक अन्तर्राष्ट्रीय परियोजना चलाते हैं, जिसमें युद्ध सहित अनेक संघर्षशील क्षेत्रों के विद्यार्थी शांति की शिक्षा ग्रहण करते हैं। रणजीत सिंह डिसले के स्कूल के विद्यार्थी अन्य देशों के विद्यार्थियों के साथ अंग्रेजी में बेझिझक बातचीत करते हैं। इसके लिए उन्होंने मातृभाषा के महत्व को समझा और विद्यार्थियों को मातृभाषा के माध्यम से पढ़ाया। उन्होंने किताबों का अनुवाद बच्चों की मातृभाषा में किया। फिर उन पर डिजीटल सामग्री तैयार की। मातृभाषा का मजबूत आधार मिलने के बाद अंग्रेजी भाषा सीखना भी आसान हो गया।
हमारे समाज में सरकारी स्कूलों को  नकारात्मक ढ़ंग से लिया जाता है। जबकि सरकारी स्कूल किसी से कम नहीं हैं। सरकारी स्कूलों के अध्यापक अपने स्कूलों को चमकाने और विद्यार्थियों के उज्ज्वल भविष्य के लिए कईं दिशाओं में मेहनत कर रहे हैं। डिसले की उपलब्धि इसका उदाहरण है। उन्होंने स्कूल को मनोरंजन का स्थान बना दिया। एक कक्षा से दूसरी कक्षा में जाते हुए विद्यार्थी आनंदित महसूस करते हैं। लैपटॉप, कम्प्यूटर, टीवी, फिल्में, गानें, कहानियां, कविताएं, खेल खेलते हुए बच्चों को बोझ का कोई अहसास ही नहीं होता। शिक्षा को आनंद से जोडऩा ही आज की सबसे बड़ी जरूरत है। यदि शिक्षा बोझ बन जाएगी तो शिक्षा ही निरर्थक हो जाएगी।
यह भी हैरानी पैदा करने वाला है कि शिक्षण डिसले की पहली पसंद नहीं थी। वे इंजीनियर बनना चाहते थे। उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू की, लेकिन पूरा नहीं कर पाए। पिता जी की सलाह पर उन्होंने शिक्षण महाविद्यालय में दाखिला लिया। जिस शिक्षण महाविद्यालय में डिसले ने दाखिला लिया, उस महाविद्यालय के अध्यापक प्रशिक्षकों ने उसे पूरी तरह बदल दिया। वहां पर उन्होंने महसूस किया कि किस तरह अध्यापक परिवर्तनकर्ता है। वहां के अध्यापकों ने उनमें शिक्षण का जुनून भरा, उसी ऊर्जा का परिणाम है कि वे अपने स्कूल में बदलाव के लिए जुट गए।
वे चाहते हैं कि हर दिन उनके बच्चे उन्हें हंसते-खेलते दिखें। जब भी वे कक्षा में जाते हैं तो उनसे ऊर्जा ग्रहण करते हैं। बच्चों की खुशी उन्हें नया-नया करने के लिए प्रेरित करती है। डिसले ने कहा, ‘टीचर बदलाव लाने वाले लोगों में से होते हैं, जो चॉक और चुनौतियों को मिलाकर अपने स्टूडेंट की जिंदगी बदलते हैं, इसलिए मैं यह कहते हुए खुश हूँ कि मैं अवार्ड की राशि का आधा हिस्सा अपने साथी प्रतिभागियों को दूँगा। मेरा मानना है कि साथ मिलकर हम दुनिया बदल सकते हैं क्योंकि साझा करने वाली चीज ही बढ़ती है।.. शिक्षक इंकम के लिए काम नहीं करता आउटकम के लिए काम करता है।’ उन्होंने बताया कि पुरस्कार राशि के एक हिस्से से वे टीचर इनोवेशन फंड विकसित करेंगे ताकि अध्यापकों के कक्षा कक्षा में नवाचारों को महत्व व मदद दी जा सके।

अरुण कुमार कैहरबा
हिन्दी प्राध्यापक, स्तंभकार व लेखक
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जिला-करनाल, हरियाणा
मो.नं.-9466220145

ADHUNIK RAJASTHAN 16-12-2020



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