जयंती विशेष
आधुनिक रंगमंच को अपनी मेहनत से सींचने वाले हैं इब्राहिम अल्काज़ी
पहले निदेशक के रूप में एनएसडी को बनाया एशिया का प्रतिष्ठित नाट्य संस्थान
अरुण कुमार कैहरबा
इब्राहिम अल्काज़ी ने भारत में आधुनिक रंगमंच की नींव रखी। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय नई दिल्ली में पहले निदेशक के रूप में उन्होंने रंगमंच का पौधा रोपा और नाटक व सिनेमा की विभिन्न शख्सियतों को अभिनय के गुर सिखाते हुए पौधे को सींचा और विशाल वृक्ष बनाया। बहुमुखी प्रतिभा के कलाकार अल्काज़ी को उनके योगदान के कारण आधुनिक रंगमंच के पिता होने का गौरव मिला। इसी साल 4 अगस्त को उनका निधन हुआ तो रंगमंच व कलाओं के क्षेत्र में किए गए उनके योगदान को लेकर चर्चाओं का दौर भी चला।
इब्राहम अल्काज़ी का जन्म 18 अगस्त, 1925 को महाराष्ट्र के पुणे शहर में तब हुआ जब देश अंग्रेजी गुलामी के नीचे दबा हुआ था। बचपन में पढ़ते हुए ही उनमें नाटक के प्रति पे्रम पैदा हो गया। मुंबई में सेंट जेवियर कॉलेज में सुल्तान बॉबी पदमसी की थियेटर कंपनी से जुड़ गए। पिता ने रंगमंच के प्रति बेटे का लगाव देखा तो लंदन में विख्यात रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रेमेटिक आर्ट में जाकर पढ़ाई करने का सुझाव दिया। वहीं से 1947 में थियेटर आर्ट की पढ़ाई करके वे भारत आए तो मुंबई में थियेटर गु्रप के साथ जुड़ गए। उस समय की प्रगतिशील शख्सियतों के साथ उनका संपर्क रहा।
1962 में नई दिल्ली में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की शुरूआत हुई तो उन्हें विद्यालय का पहला निदेशक बनने का उन्हें गौरव प्राप्त हुआ। 1977 तक 15वर्षों तक वे एनएसडी के निदेशक रहे। अल्काजी ने विद्यालय में विद्यार्थियों के चयन, उनके शिक्षण-प्रशिक्षण और नाटक के लिए देश में माहौल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। फिल्मी दुनिया के सितारे नसीरूदीन शाह, ओमपुरी व अनुपम खेर सहित अनेक लोगों को अभिनय सिखाया। उन्होंने सिनेमा को प्रशिक्षित कलाकार देकर सिनेमा के आधुनिकीकरण में भी अपनी अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने अनेक नाटकों का निर्देशन और मंचन किया। तुगलक (गिरीश कर्नाड), आषाढ़ का एक दिन (मोहन राकेश), धर्मवीर भारती का अंधा युग जैसे उनके बेहद चर्चित नाटक हैं।
ऑनलाईन सभा में एनएसडी ने दी थी अल्काजी साहब को श्रद्धांजलि
अल्काजी साहब की मृत्यु पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए आयोजित ऑनलाइन सभा में एनएसडी के पूर्व निदेशक व अल्काज़ी साहब के छात्र रहे प्रो. रामगोपाल बजाज, एनएसडी के अध्यापक व जानेमाने रंगकर्मी बंसी कौल, एमके रैना, मोहन महर्षि, उनके बेटे फैसल अल्काजी, रोहिणी, विजय कश्यप, बॉबी, एनएसडी की अध्यक्ष अमाल अलाना व निदेशक सुरेश शर्मा सहित अनेक शख्सियतों व उनके विद्यार्थियों ने अल्काज़ी साहब के योगदान को याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
माता-पिता व प्रेयसी की तरह बात करते थे अल्काज़ी-
श्रद्धांजलि सभा में प्रो. रामगोपाल बजाज ने 1962 के वे संस्मरण याद किए जब वे एनएसडी में दाखिले के लिए कलकत्ता में आयोजित ऑडिशन में पहली बार अल्काज़ी साहब से मिले थे। हालांकि उन्हें उनकी पहचान नहीं थी। उन्होंने बताया कि कैलाश कॉलोनी में 1अगस्त, 1962 एनएसडी की पहली कक्षा लगी। चि_ी में अल्काजी लिखा था तो हमने सोचा कि यह कोई महिला हैं। पहली कक्षा अल्काजी साहब ने ली थी। अल्काजी साहब पाठ कर रहे थे और मैं सुन रहा था। उन्होंने बताया कि वे पिता-माता या बिलव्ड की तरह बात करते थे।
हिन्दुस्तान के पहले टीचर, जिनकी हर चीज राईट ऐंगल थी-
बंसी कौल ने बताया कि 1969 में पहली बार अल्काजी साहब को देखा था। जम्मू में आर्ट गैलरी में उन्होंने लैक्चर दिया था। हम लैक्चर को समझ नहीं पाए थे। उन्होंने पहाड़ी पेंटिंग पर भाषण दिया था। कार्यशाला शुरू हुई तो उन्होंने पहली बार एक्सरसाइज करवाई। उन्होंने एक नई दुनिया से हमें जोड़ दिया, जिसमें साहित्य महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा था। इससे पहले हम अंशकालिक थियेटर एक्टिविस्ट थे। कौल ने बताया कि अल्काजी हिन्दुस्तान में पहले ऐसे टीचर हैं, जिनकी हर चीज राईट एंगल में होती थी। राईट एंगल डायरेक्टर थे। दुनिया के साथ जोडऩे का जो उन्होंने काम किया, उसे कोई और नहीं कर सकता था। उनकी हर बात हमारे काम आती थी। वे बड़े साफ-सुथरे और व्यवस्थित ढ़ंग से काम करते वे होमवर्क करके आते थे। उनके कार्य को आगे बढ़ाते रहना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा-
सिडनी से सबा जै़दी ने बोलते हुए अल्लामा इकबाल के प्रसिद्ध शेर से अपनी शुरूआत की।
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है,
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा।
जै़दी ने कहा कि अल्काजी साहब की शख्सियत अपने दौर के हर एक व्यक्ति को मुतासिर करती है। वे हमारे लिए रोल मॉडल थे। उनके व्यक्तित्व के अनेक आयाम हैं। हमें कुछ अलग करना है। सामान्य से अधिक करना है। उन्होंने एनएसडी के मंच को बहुत बेहतर ढ़ंग से इस्तेमाल किया। यदि वे पहले निदेशक नहीं होते तो कला के क्षेत्र में यह स्थिति नहीं होती। उन्होंने सिखाया कि थियेटर एक जीने का तरीका है। उन्होंने हमें थियेटर में पहचान दी।
लास्ट बैच था उनका, जिसमें हम थे। दीक्षांत समारोह में उन्होंने मेरा नाम लिया था। यही बेहतर डिग्री है। हमारे सरों पर हमेशा उनका साया रहेगा। उनकी शख्सियत के लिए यह शेर उपयुक्त है-
मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर
लोग मिलते गए और काफिला बनता गया।
डिगनिटी ऑफ लेबर था मूलमंत्र-
एमके रैना ने कहा कि जिस तरह से होमी भाभा व स्वामीनाथन ने अपने-अपने क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया, उसी तरह से अल्काजी साहब ने अपने आप को कला एवं रंगमंच के लिए समर्पित कर दिया। डिगनिटी ऑफ लेबर उनका मूलमंत्र था। उन्होंने बताया कि एनएसडी के बाथरूम व टॉयलट में पानी के पीक थूके होते थे। अल्काजी साहब ने उसे खुद साफ करके विद्यालय कर्मियों व विद्यार्थियों को श्रम की महत्ता सिखाई। वे बहु आयामी शख्सियत थे। मैं उनका विद्यार्थी था। वे जीवन के संकटों पर बात करते थे। एशिया में रैफरंस पाईंट बना एनएसडी, उनकी देन है। गांधी ने कहा था कि कोई फैसला लेते हुए सबसे गरीब व्यक्ति की तरफ देखो। नागालैंड के एक विद्यार्थी के पिता आए तो उन्होंने मुझे उन्हें खाना खिलाने का आदेश दिया। अल्काजी साहब ने कहा कि हमारे व्यवहार से ही लोग हमें याद करेंगे।
जो हूँ अल्काजी साहब की वजह से हूँ-
रोहिणी ने कहा कि मैं जहां हूँ सब अल्काजी साहब की वजह से हूँ। मैंने उनसे करीब दो मिनट से अधिक बात नहीं की। उन्होंने जो करने के लिए कहा वह करते गए।
मां की तरह थे इब्राहिम अल्काज़ी-
केके रैना ने कहा कि ईश्वर के बारे में क्या बोलें और कैसे बोलें। मैं कश्मीर से आया था, वे मां की तरह से थे, जो हर बच्चे का ध्यान रखती है। एक दिन मुझे वे पुस्तकालय में ले गए और किताबें निकालने का तरीका सिखाने लगे। यदि तुम अपने आप को साबित करना चाहते हो तो एनएसडी का नाम ना लेना। उनके नक्शेकदम पर चलेंगे और उनका झंडा हमेशा ऊंचा रखेंगे।
गुरुओं के गुरु थे अल्काज़ी-
विजय कश्यप ने कहा कि सूर्य को प्रकाश दिखाने जैसा है उनके बारे में बोलना। वे गुरुओं के गुरू थे। मैं ग्रामीण पृष्ठभूमि से था। पहले साल में मैं सोच रहा था कि इसे छोड़ कर चला जाऊं। उन्होंने मेेरे कंधे पर हाथ रखा तो आगे बढऩे की राह बताई और उत्साह दिया। बॉबी ने कहा कि हिन्दी क्षेत्र में थियेटर को नीची निगाह से देखा जाता था। उन्होंने रंगमंच और रंगकर्मियों को इज्जत दिलाई।
अरुण कुमार कैहरबा
रंगकर्मी, हिन्दी प्राध्यापक व साहित्यकार
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जिला-करनाल, हरियाणा
मो.नं.-9466220145