इरफान खान: शानदार अभिनेता व बेहतरीन इन्सान
इरफान खान: शानदार अभिनेता व बेहतरीन इन्सान
अरुण कुमार कैहरबा
बुधवार को बेहद दुखद खबर मिली। एक शानदार अभिनेता और बेहतरीन इन्सान इरफान खान की मौत की खबर ने रंगकर्मियों व फिल्मी जगत को हिलाकर रख दिया। इरफान खान भारत के ऐसे विरले अभिनेताओं में हैं, जिन्होंने बॉलीवुड ही नहीं हॉलीवुड में भी अपने अभिनय की छाप छोड़ी। उसकी आवाज़ और अंदाज़ तो आकर्षक थे ही उसकी आंखें भी बहुत कुछ बोलती थी। संघर्षों में पले-बढ़े अभिनेता की असामयिक मौत ने बहुत से लोगों को गहरे शोक में डुबो दिया है।
इरफान का जन्म 7 जनवरी, 1967 को राजस्थान के जयपुर में हुआ। उनके पिता टायर का कारोबार चलाते थे। इरफान पहले क्रिकेटर बनना चाहते थे। जब वे एमए कर रहे थे, तो थियेटर के प्रसिद्ध संस्थान नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) में उनका दाखिला हो गया। इरफान खान का शुरुआती दौर संघर्ष से भरा था। जब उनका एनएसडी में प्रवेश हुआ, उन्हीं दिनों उनके पिता की मृत्यु हो गई। घर के आय का स्रोत ही समाप्त हो गया। एनएसडी में सुतापा सिकदर के साथ उनकी दोस्ती प्यार में बदल गई, जिनसे बाद में उन्होंने शादी की। एनएसडी से अभिनय की पढ़ाई पूरी करने के बाद इरफान मुंबई चले गए। शुरूआत में फिल्मों की बजाय उन्हें टीवी सीरियलों में छोटे-मोटे किरदार करने को मिले। इन भूमिकाओं को उन्होंने आगे बढऩे की सीढ़ी के रूप में लिया। चाणक्य, चंद्रकांता, स्टार बेस्ट सेलर्स जैसे लोकप्रिय धारावाहिकों में इरफ़ान ख़ान के बेहतरीन अभिनय ने फिल्म निर्माता-निर्देशकों का ध्यान अपनी ओर खींचा।
मीरा नायर की फिल्म सलाम बांबे में उन्हें मेहमान भूमिका निभाने का अवसर मिला। सलाम बांबे के बाद इरफ़ान ख़ान लगातार ऑफबीट फिल्मों में अभिनय करते रहे। एक डॉक्टर की मौत, कमला की मौत और प्रथा जैसी समांतर फिल्मों में अभिनय के बाद इरफ़ान ख़ान ने मुख्य धारा की फिल्मों की ओर रूख किया। हासिल में रणविजय सिंह की नकारात्मक भूमिका में इरफ़ान ख़ान ने अपनी अभिनय-क्षमता का लोहा मनवाया। देखते-ही-देखते वे मुख्य धारा के निर्माता-निर्देशकों की पसंद बन गए। उसके बाद इरफान ने लंचबॉक्स, गुंडे, हैदर, पीकू और जुरासिक वल्र्ड में भी काम किया। इरफान खान को फिल्म पान सिंह तोमर के लिए नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया और साथ ही उन्हें वर्ष 2011 में भारत सरकार की तरफ से पद्मश्री से सम्मानित किया गया।![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg1-KMTjTtnNmKyBPFm0Ct0SkvmCcq_rgDRBWoWzziVASpSRU0LI4IEoe9L2SDuNEIcr5HXCB09CCKxgnHFGPmolAIZ5FTyxSBq8N9wx3m9gBUqh4xeAL_V3SXYH_W47c2XVQB99oGbUvMl/s640/AjitSamachar-20200430284-108185.jpg)
इर$फान मौजूदा दौर के उन अभिनेताओं में हैं, जो अपने आप को फिल्मों में नायक की भूमिका के दायरे तक महदूद नहीं रखते। वे यदि लाइफ इन ए मेट्रो, आजा नचले, क्रेजी-4 और सनडे जैसी फिल्मों में महत्वपूर्ण चरित्र भूमिकाएं निभाते हैं, तो मकबूल, रोग और बिल्लू में केंद्रीय भूमिका भी निभाते हैं। गंभीर अभिनेता की छवि वाले इरफ़ान ख़ान समय-समय पर हास्य-रस से भरपूर भूमिकाओं में भी दर्शकों के सामने आते हैं। इनके अभिनय का जादू केवल भारत में ही नहीं पूरी दुनिया के लोगों पर छाया हुआ है। उन्होंने हॉलीवुड की सच अ लॉन्ग जर्नी(1988), द नेमसेक (2006), ए माइटी हार्ट (2007), दार्जीलिंग लिमिटेड (2007), स्लमडॉग मिलियनेयर (2008), लाइफ ऑफ पाई (2012), द अमेजिंग स्पाइडर मैन (2012), जुरासिक वल्र्ड (2015) व इन्फर्नो (2016) में काम किया है।
उनके अभिनय का सफर नई बुलंदियों की ओर बढऩा था। लेकिन 2018 में उन्हें पता चला कि उन्हें न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर है, जोकि एक किस्म का कैंसर है। इसके इलाज के लिए वे एक साल तक ब्रिटेन में रहे। कुछ दिन पहले उनकी माता का निधन हो गया था। कोरोना वायरस व लॉकडाउन के चलते वे अपनी मां के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो पाए थे। और 29 अप्रैल को वे भी अपने सफर को पूरा करके चले गए। लोग उन्हें और उनके अभिनय को याद कर रहे हैं। रंगकर्मी नरेश प्रेरणा ने बताया कि ‘पहली बार उनको टीवी फिल्म में देखा था। फिल्म लेनिन के जीवन के बारे में थी-लाल घास पर नीले घोड़े। इरफान ने लेनिन की भूमिका अदा की थी। कमाल ये था कि लेनिन का गेटअप नहीं था फिर भी बेहतरीन ढ़ंग से लेनिन को देखते रह गया था। उनकी आवाज़ और अंदाज़ लोगों को अपने करीब ले जाते थे। वो हीरो नहीं थे लेकिन तमाम हीरो उनके सामने पानी भरते थे। वे स्टार का मायाजाल नहीं बुनते थे बल्कि एक आम इन्सान की संभावनाओं को खोजते हुए किरदार को बुनते थे। विश्व सिनेमा उनका मंच बन गया था। अभी तो उनको बहुत कुछ करना था।’ एनएसडी पासआउट स्नेहा कुमार, गोगे बाम व नरेश नारायण ने इरफान की असामयिक मौत पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए कहा कि बड़े स्टार बनने के बाद भी उनमें लेश मात्र भी अहम नहीं था। वे कलाकारों को आगे बढ़ाते थे और प्रेरणा देते थे। रंगकर्मी कृष्ण नाटक ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा- ‘मैं इरफान हूँ, अंग्रेजी मीडियम का लाजवाब इंसान हूँ, लंचबॉक्स में प्यार का अहसास हूँ, हैदर में रूह का आभास हूँ, स्लमडाग मैलेनियर का चेहरा ए खास हूँ, करामाती कोट में बच्चों की भी आस हूँ, आन हूँ, इरफान हूँ, इसीलिए तेरे जाने से में भी कितना परेशान हूँ।’
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