कविता- बस बहाने
कुछ लोग कहां मानें हैंवो तो बस दीवाने हैं
कुछ टोटके बताए थे
बाकी तो बस छिपाए थे
नौ बजे नौ मिनट तक दीप जलाना
कोरोना को बस यूं भगाना
बाकी के टोटके नहीं बताने हैं
वे तो बस पूरे करवाने हैं
कुछ लोग..
दीप जलाकर लोग उत्साहित हुए
भाव इतने तेज प्रवाहित हुए
गलियों में लोगों के लग गए जमघट
हिलोरें लेने लगा उल्लास
जैसे दिवाली की हो आहट
लोग यहीं तक नहीं मानें हैं
वे तो ना जाने क्या ठाने हैं
कुछ लोग..
दिए के साथ में बम फोडऩा तो बनता है
कोरोना की कड़ तोडऩा तो बनता है
ऐसे कोरोना कहां सुनेगा
बमों के शोर में भागा फिरेगा
भक्त जनों के पक्के निशानें हैं
दीप जलाने के तो बस बहाने हैं
-अरुण कुमार कैहरबा
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