हरियाणवी समाज की उदासीनता को तोड़ रहा हरियाणा सृजन उत्सव
एक स्थान पर परिसंवाद, नाटकों, कविताओं, पुस्तक प्रदर्शनी
अरुण कुमार कैहरबा
उत्सवधर्मिता हमारे देश की खासियत है। पूरे देश की भांति हरियाणा के लोग तीज-त्याहारों के अलावा भी उत्सव और उल्लास के अवसर ढूंढ़ लेते हैं। हालांकि आलोचक यह कहते हुए भी पाए जाते हैं कि हरियाणा में कल्चर के नाम पर एग्रीकल्चर होती है। यहां लोगों में बौद्धिक उदासीनता के भी चर्चे होते हैं। इसमें आंशिक सच्चाई भी है। लेकिन देस हरियाणा पत्रिका की तरफ से कुरुक्षेत्र में हर साल आयोजित होने वाला हरियाणा सृजन उत्सव बौद्धिकता और उत्सवधर्मिता की नई परिभाषा गढ़ रहा है, जिसमें देश भर से साहित्यकार व विचारक आते हैं। हरियाणा के रचनाकारों में तो इस उत्सव में हिस्सा लेने का खास आकर्षण देखने को मिलता है। देस हरियाणा के संपादक एवं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर डॉ. सुभाष चन्द्र की अगुवाई मे सृजन उत्सव प्रदेश का सामाजिक-सांस्कृतिक-साहित्यिक उत्सव बन गया है।
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हरियाणा सृजन उत्सव में प्रदेश भर के साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी, कलाकार, रंगकर्मी, चित्रकार जुटते हैं। विभिन्न विषयों पर संगोष्ठियां होती हैं। नाटक होते हैं, कवि सम्मेलन में कवि कविताएं पढ़ते हैं। नाटकों का मंचन होता है। प्रकाशक अपनी पुस्तकें लेकर आते हैं और पाठक पसंदीदा पुस्तकें खरीदते हैं। विभिन्न शख्सियतों पर के जीवन और विचारों को दर्शाने वाली प्रदर्शनियां लगती हैं। देस हरियाणा पत्रिका के द्वारा 2017 में हरियाणा सृजन उत्सव के आयोजन का सिलसिला शुरू हुआ। अब तक इन उत्सवों में देश के जाने-माने साहित्यकार, कवि, समीक्षक, पत्रकार, चित्रकार, रंगकर्मी शिरकत कर चुके हैं।
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इस वर्ष देस हरियाणा और सत्यशोधक फाउंडेशन के तत्वावधान में कुरुक्षेत्र की सैनी धर्मशाला में 14-15 मार्च को सृजन उत्सव हुआ। हरियाणा सृजन उत्सव का शुभारंभ सामूहिक रूप से संविधान की प्रस्तावना पढऩे के साथ हर्षोल्लास के माहौल में हुआ। छत्तीसगढ़ से आए जाने-माने कानूनविद कनक तिवारी सहित विभिन्न साहित्यकारों ने देस हरियाणा के अंक-27,28 का विमोचन किया। कनक तिवारी ने भारतीय संविधान और हम भारत के लोग विषय पर अपने उद्घाटन वक्तव्य में कहा कि भारत का संविधान स्वतंत्रता आंदोलन की प्राप्ति है। यह संविधान डॉ. आंबेडकर के बिना बन ही नहीं सकता था। आज संविधान राजपथ बन गया है, जिसे जनपथ बनाने की जरूरत है। समारोह में देस हरियाणा के अंक-27 एवं 28 का विमोचन किया गया। उन्होंने कहा कि भारत की आजादी की लड़ाई आम आदमी की लड़ाई थी। जब संविधान बनाया गया तो आम आदमी के प्रतिनिधि संविधान बनाने के काम में शामिल थे। लेकिन साथ ही राजे-रजवाड़ों के प्रतिनिधि भी इसमें शामिल किए थे। उन्होंने कहा कि संविधान निर्माता डॉ भीमराव आंबेडकर ने कहा था कि हम भारत के लोग ही संविधान बना रहे हैं। लेकिन सत्ताओं की अनदेखी के चलते आज संविधान में से भारत के लोग गायब हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि संविधान की परिकल्पना जवाहर लाल नेहरू ने पेश की थी और डॉ भीम राव आंबेडकर ने इस परिकल्पना को साकार किया। उन्होंने कहा कि 1942 में अंग्रेजों के खिलाफ शुरू किए गए भारत छोडो आंदोलन युवाओं का आंदोलन था, जिसकी परिणति 1947 में आजादी के रूप में हुई। देस हरियाणा के संपादक एवं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के चेयरमैन डॉ. सुभाष चन्द्र ने सृजन उत्सव में आए अतिथियों व प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा कि यह वैचारिक उद्वेलन का समय है। संकीर्णताएं, नफरत व भेदभाव के माहौल में साहित्यकारों एवं बुद्धिजीवियों की अहम भूमिका है। उन्होंने कहा कि हरियाणा सृजन उत्सव इसी भूमिका पर विचार-विमर्श करने का मंच बन गया है।
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उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता देस हरियाणा के सलाहकार प्रो टीआर कुंडू ने की और संचालन डॉ. अमित मनोज ने किया। इस मौके पर पूर्व सांसद गुरदयाल सिंह सैनी, सैनी सभा के प्रधान गुरनाम सिंह सैनी, सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी आरआर फुलिया, शहीद भगत सिंह के भांजे प्रो. जगमोहन, वरिष्ठ पत्रकार प्रसून लतांत, एसपी सिंह व हिसार से साहित्य प्रसारक वीना मंच पर उपस्थित रहे।
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सृजन उत्सव के दूसरे सत्र में गांधी, आंबेडकर व भगत सिंह के चिंतन की सांझी जमीन विषय पर परिसंवाद आयोजित किया गया। सत्र का संचालन हरविन्द्र सिंह सिरसा ने किया। परिसंवाद में शहीद भगत सिंह के भानजे एवं चिंतक प्रो. जगमोहन सिंह ने कहा कि महात्मा गांधी की एक आवाज पर शहीद भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद व साथी सत्याग्रह में पहुंचे थे। भगत सिंह द्वारा एसेंबली में आवाज करने वाला बम फेंकना और जेल में भूख हड़ताल करना यह दर्शाता कि गांधी और भागत सिंह के विचारों में कितनी समानता है। उन्होंने कहा कि शैक्षिक संस्थाओं से भगत सिंह को वैज्ञानिक विचार की जमीन मिली। इससे उनके सोचने का तरीका बदला। आगे चल कर भगत सिंह ने नौजवान भारत सभा बनाई, जिसका लक्ष्य था कि युवाओं के दिमाग से जात-पात व धार्मिक संकीर्णताओं की सोच को हटाकर वैज्ञानिक नजरिये वाला समाज बनाया जाए। गांधीवादी चिंतक व पत्रकार प्रसून लतांत ने कहा कि गांधी, आंबेडकर व भगत सिंह तीनों धर्म का राजनीति के लिए इस्तेमाल किए जाने के खिलाफ थे। प्रो. सुभाष चन्द्र ने कहा कि गांधी, आंबेडकर और शहीद भगतसिंह की विचारधाराओं को एक दूसरे की विरोधी के रूप में पढऩे-समझने का जमाना बीत गया है। भारतीय समाज व राजनीति जिस दौर से गुजर रही है उसके लिए इन महानायकों के अवदान को समूचे तौर पर ग्रहण करके ही कुछ नया संभव हो सकता है। उसमें समानता तलाशने की जरूरत है।
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तीसरा सत्र हरियाणवी समाज: सृजन और बौद्धिक उदासीनता विषय पर रहा। जिसमें समाजशास्त्री प्रो. टीआर कुंडू, युवा उपन्यासकार अमित ओहलान और मीडिया विश£ेषक महेन्द्र सिंह ने अपने विचार व्यक्त किए। सत्र का संचालन देस हरियाणा के संपादक डॉ. सुभाष चन्द्र ने किया।
सांस्कृतिक संध्या में चरदास चोर और ईदगाह का हुआ मंचन-
हरियाणा सृजन उत्सव की सांस्कृतिक संध्या ने प्रतिभागियों का मन मोह लिया। संध्या में रंगटोली के कलाकारों ने रंगकर्मी राजवीर राजू के निर्देशन में हबीब तनवीर के प्रसिद्ध नाटक- चरणदास चोर का मंचन किया। नाटक ने दर्शकों के मन को आह्लादित करने के साथ-साथ विचारों को उद्वेलित कर दिया। लोककथा पर आधारित यह नाटक देश भर में चर्चित है। रंगटोली के कलाकारों के अभिनय के साथ-साथ निर्देशक राजवीर राजू, गायिका संजना संजू, चमन सहित कलाकारों के समूह ने गायन व वादन के जरिये समां बांध दिया।
सांस्कृतिक संध्या में दूसरा नाटक प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी-ईदगाह पर आधारित था। नाटक का मंचन थियेटर आर्ट गु्रप के कलाकारों ने किया, जिसका निर्देशन और मुख्य किरदार हामिद की भूमिका प्रवेश त्यागी ने निभाई। प्रवेश त्यागी के अभिनय की दर्शकों द्वारा जोरदार प्रशंसा की गई। हामिद के बालपन, समझदारी और दादी के प्रति स्नेह ने दर्शकों के जेहन पर अमिट छाप छोड़ी। मंच संचालन देस हरियाणा टीम के सदस्य राज कुमार जांगड़ा व अरुण कैहरबा ने किया।
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सृजन उत्सव के दूसरे दिन 15 मार्च को पहला परिसंवाद विश्वविद्यालय परिसरों का माहौल और शैक्षिक परिदृश्य विषय पर हुआ। इस संवाद में अलीगढ़ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कमलानंद झा ने नई शिक्षा नीति-2019 के मसौदे के अन्तर्विरोधों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि छह सौ पृष्ठों के इस दस्तावेज में बहुत अच्छी-अच्छी बातें कही गई हैं, लेकिन दस्तावेज को अध्ययन करने पर सरकारों की शिक्षा नीति और नियत में स्पष्ट अंतर दिखाई देता है। उन्होंने कहा कि मसौदा एक स्थान पर अध्यापकों के ऊपर गैर-शैक्षिक कार्यों का बोझ नहीं डालने की बात करता है, लेकिन दूसरे स्थान पर उच्चतम न्यायालय के निर्देश व चुनावों आदि छोड कर अन्य गैर-शैक्षणिक कार्य अध्यापकों से नहीं लेने की भी बात करता है। मसौदे के एक पृष्ठ पर शिक्षकों को समान वेतन देने की बात की गई है, लेकिन व्यवहार में असमान वेतन दिया जा रहा है। देश के सभी विद्यार्थियों को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा देने की बात भी की जाती है और दूसरी ओर बडे पैमाने पर सरकारी स्कूलों को समाप्त किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति से हमारे देश की शिक्षा पर बहुत बुरा असर होगा। उन्होंने कहा कि हमारे देश में शिक्षा संस्थानों और स्वतंत्र विचारकों को बदनाम किया जा रहा है। उन्होंने विश्वविद्यालयों में शोध कार्यों की स्थिति पर चिंता जताई। डॉ. सुभाष चन्द्र ने कहा कि शिक्षा संस्थानों में सामाजिक न्याय की स्थिति पर चर्चा की।
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एमडीयू के छात्रनेता अरविन्द इन्द्रजीत ने कहा कि संस्थानों का शैक्षिक परिदृश्य बेहद खराब है। युवा रोजगार के लिए दिन-रात पढ़ाई करते हैं। लेकिन निजीकरण के कारण नौकरियां कम होती जा रही हैं। चपड़ासी के रिक्त पदों पर पीएचडी व उच्च शिक्षा प्राप्त युवा आवेदन कर रहे हैं। हर घंटे बेरोजगार व अद्र्ध बेरोजगार तीन युवा आत्महत्या कर रहे हैं। बडी संख्या में युवा अपनी जान गंवा रहे हैं। युवाओं की दिक्कतों की तरफ कोई ध्यान देने वाला नहीं हैं। सरकारें अपनी जिम्मेदारी से लगातार हाथ खींच रही हैं। स्वास्थ्य व शिक्षा, रोजगार नहीं देती तो सरकार है किसलिए। संस्थानों में भी राजनीतिक दल जातिवादी एजेंडे को आगे बढा रहे हैं।
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की छात्र नेता सुमन ने कहा कि शिक्षा सवाल खड़े करना सिखाती है, लेकिन अब सवाल उठाने पर पाबंदियां लगाई जा रही हैं। उन्होंने कहा कि विद्यार्थी अपनी कक्षा में शिक्षकों की मांग कर रहे हैं। परिसंवाद का संचालन डॉ. सुनील थुआ ने किया। रविन्द्र गासो, परमानंद शास्त्री, डॉ गुलाब सिंह, रविन्द्र कुमार, दिवाकर तिवारी, संदीप, डॉ आबिद, शैलेन्द्र सिंह ने सवाल पूछे और टिप्पणियां की।
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समापन समारोह में मुख्य वक्ता के रूप में प्रसिद्ध भाषाविद् प्रो. जोगा सिंह ने हम भारत के लोग और आगे का रास्ता विषय पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारत बहुनस्ली, बहुधर्मी, बहु संस्कृतियों का देश है। भारतीय परंपरा में धर्म, नस्ल, भाषा के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है। देश की एकता व अखंडता के लिए भारत के समस्त लोगों को साम्प्रदायिकता, लैंगिक भेदभाव, धार्मिक विद्वेष को समाप्त किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि संत कबीर, गुरू नानक, महात्मा बुद्ध, बाबा फरीद, महात्मा ज्योतिबा फुले, महात्मा गांधी, डॉ आंबेडकर, भगत सिंह सहित स्वतंत्रता आंदोलन के सेनानियों ने भारत की संस्कृति का निर्माण किया है। हमें उन्हीं के दिखाए रास्ते पर आगे बढऩे की जरूरत है।
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के चेयरमैन एवं देस हरियाणा के संपादक प्रोफेसर सुभाष चन्द्र ने कहा कि मनुष्य एक बौद्धिक और सांस्कृतिक प्राणी है। बौद्धिकता जैविक गुण नहीं है वह अर्जित करना पड़ता है, जो इस तरह के उत्सवों से ही प्राप्त होता है। मनुष्य के बौद्धिक पक्ष को कुंद करके ही अमानवीय और असामाजिक शक्तियां उसकी मानवीय गरिमा पर कुठाराघात करती हैं। हरियाणा सृजन उत्सव का सिलसिला प्रदेश की साहित्यिक-सांस्कृतिक पहचान को स्थापित करते हुए आगे बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि अध्ययन की संस्कृति को बढ़ावा मिले और जगह-जगह देश-प्रदेश के समाज की स्थितियों पर चर्चाएं हों। हरियाणा सृजन उत्सव के आयोजन का यही मकसद है। उन्होंने कहा कि सभी रचनाकारों के सहयोग से विभिन्न स्थानों पर इस प्रकार के आयोजनों की शृंखला खड़ी की जानी चाहिए ताकि हरियाणा में सृजन का माहौल बने। उन्होंने देश के विभिन्न राज्यों से आए संस्कृतिकर्मियों व साहित्यकारों का सृजन उत्सव में पहुंचने के लिए आभार व्यक्त किया।
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समापन सत्र के अध्यक्ष मंडल में प्रो. टीआर कुंडू, राममोहन राय, डॉ फकीर चंद, रामसरूप किसान शामिल रहे और संचालन परमानंद शास्त्री ने किया। समारोह में शशि सिंह, जगदीश चन्द्र, डॉ. आबिद, कमलेश चौधरी, टीना ने हरियाणा सृजन उत्सव के सफल आयोजन के लिए टीम देस हरियाणा और सत्यशोधक फाउंडेशन की टीम को बधाई दी और इस प्रकार के वैचारिक विमर्श के अधिक कार्यक्रमों की जरूरत रेखांकित की।
इन किताबों का हुआ विमोचन-
हरियाणा सृजन उत्सव में किताबों का विमोचन भी खास अहमियत रखता है। पाठकों को नई किताबों के बारे में जानकारी मिल जाती है और लेखकों को पाठक मिल जाते हैं। सृजन उत्सव में लोक संस्कृति लेखक एसपी सिंह की किताब-बाइटिगोंग, वीरेन्द्र भाटिया के काव्य संग्रह-युद्ध रही हैं लड़कियां, हरभगवान चावला के काव्य-संग्रह इंतजार की उम्र, राधेश्याम भारतीय की किताब-समरीन का स्कूल का विमोचन किया गया। सृजन उत्सव में पुस्तक प्रदर्शनी भी आयोजित की गई, जिसमें पाठकों को किताबें देखने और खरीदने का मौका मिलता है। उत्सव के दौरान देस हरियाणा व महात्मा ज्योतिबा फुले सावित्रीबाई फुले पुस्तकालय के द्वारा फुले दंपत्ति के जीवन की झांकी प्रस्तुत की गई।
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सृजन उत्सव के बारे में युवा कवि कपिल भारद्वाज देखिए क्या कहते हैं- हरियाणा सृजन उत्सव सबसे अलग, सबसे अलहदा और सबसे नवीन उत्सव है जो मनुष्य की चेतना को झंकृत करता है, जो न केवल सामाजिक-सांस्कृतिक उत्सव है बल्कि साहित्यिक विमर्शों को नए सन्दर्भो में भी प्रस्तुत करता है जो हरियाणा की बंजर साहित्यिक भूमि की परतों को न केवल खंड-खड करता है बल्कि नई महकती फसलें भी तैयार करता है। एक तरफ यह उत्सव नई उमंगें, नया उल्लास व नई तरंगें पैदा करता है तो दूसरी तरफ इसमें गम्भीर सामाजिक विमर्श आपके दिलो दिमाग पर गहरा असर डाल जाते हैं। एक तरफ संगीत की वेला है, कविताएं हैं, गजलें हैं, नाटक हैं, हास्य है जो आधुनिक दौर में मशीनी होते जीवन को जीने का सलीका सिखाते हैं तो दूसरी तरफ हमारी सामाजिक संस्कृति में दीमक की तरह पसरे रोगों को चिन्हित करने का काम भी इस उत्सव में बखूबी किया जाता है।
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अरुण कुमार कैहरबा
सह-संपादक, देस हरियाणा
घर का पता-वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान,
इन्द्री, जिला-करनाल, हरियाणा-132041
मो.नं.-9466220145