संवेदनशील नागरिक बनाने में किताबों की भूमिका अहम: अरुण
पोस्टर बनाओ प्रतियोगिता में रविता ने पाया पहला स्थान
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यमुनानगर के कैंप स्थित राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में पुस्तक दिवस पर आयोजित पोस्टर बनाओ प्रतियोगिता के विजेताओं को सम्मानित करते प्रधानाचार्य परमजीत गर्ग व हिन्दी प्राध्यापक अरुण कैहरबा।
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यमुनानगर, 23 अप्रैल
अंधकार में सूरज बनकर सबको दे उजियारा पुस्तक, जब भी भटकें सही दिशा से बने भोर का तारा पुस्तक जैसी पुस्तकों की महिमा को बताने वाली काव्य-पंक्तियों से राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय कैंप का प्रांगण गूंज उठा। अवसर था विश्व पुस्तक दिवस समारोह का। समारोह में हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने किताबों से दोस्ती करने का विद्यार्थियों से आह्वान किया। इस मौके पर स्कूल की दसवीं-ए कक्षा में पोस्टर बनाओ प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। प्रतियोगिता में विद्यार्थियों ने सुंदर पोस्टर बनाए। रविता द्वारा बनाए गए पोस्टर ने पहला स्थान प्राप्त किया। मीना और नीरू ने दूसरा तथा सिमरण व अर्चना ने तीसरा स्थान प्राप्त किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए स्कूल प्रधानाचार्य परमजीत गर्ग ने विजेता विद्यार्थियों को सम्मानित किया। उन्होंने विद्यार्थियों को मन लगाकर पढऩे और आगे बढऩे का संदेश दिया।पुस्तक संस्कृति की जोरदार पक्षधरता करते हुए हिन्दी प्राध्यापक अरुण कैहरबा ने कहा कि बच्चों व युवाओं को बुराईयों से बचाने में किताबें सशक्त औजार की भूमिका निभा सकती हैं। उन्होंने कहा कि टेलीविजन व इंटरनेट के अत्यधिक प्रयोग ने युवा हिंसा, नशे और अश£ीलता के जाल में फंसते जा रहे हैं। इसके अलावा भी बच्चों में जल्दबाजी, तनाव व चिड़चिड़ापन जैसी समस्याएं पैदा हो रही हैं। उनमें वाहन तेज चलाने की प्रवृत्ति देखी जा रही है। फिल्मों में अभिनेताओं की भूमिका का अनुसरण करते हुए अनुशासनहीनता और नियमों की अवहेलना करना गौरव की बात माना जा रहा है। ऐसे में सोचने-विचारने, ठहराव और अनुशासन की भावना पैदा करना बेहद जरूरी है। संवेदनशील और विचारशील नागरिकों के विकास में किताबें अहम भूमिका निभा सकती हैं। किताबें हमारी सच्ची दोस्त होती हैं। यदि हम किताबों की दोस्ती को स्वीकार करें और इनके साथ समय बिताएं तो किताबें हमें आगे लेकर जाएंगी।
परीक्षा के लिए ही नहीं ज्ञान के लिए भी पढ़ी जाएं किताबें-
बहुत से विद्यार्थी परीक्षा पास करने के लिए तो खूब पढ़ते हैं, जोकि पढऩी ही चाहिएं। यह आगे बढऩे की लालसा के कारण होता है। अरुण कैहरबा ने कहा कि आगे बढऩे की चाह तो हम सभी में होती है। लेकिन विद्यार्थियों को इससे भी आगे बढ़ते हुए ज्ञान की लालसा और भूख पैदा करनी चाहिए। नई-नई चीजों को जानना और साहित्य का आनंद उठाना यदि हमारी आदत बन जाए तो आगे बढऩे से भी कोई नहीं रोक सकता। उन्होंने कहा कि अच्छे-अच्छे विद्यार्थी विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में इसलिए रह जाते हैं, क्योंकि परीक्षा के अलावा उन्होंने अधिक कुछ नहीं पढ़ा होता।
क्या हो पढऩे का तरीका-
विद्यार्थियों के साथ संवाद करते हुए अरुण कैहरबा ने कहा कि पढऩे की आदत का विकास हमारी पढऩे की आदत पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है। बहुत से विद्यार्थी अधिक समय लगाते हैं, लेकिन सीखते कम हैं। कुछ विद्यार्थी किताबों को कम समय देते हैं, लेकिन ज्यादा अंक हासिल कर ले जाते हैं। ऐसा पढऩे के तरीके के कारण भी होता है। किताब पढऩे से पहले विद्यार्थियों को मन में अपना लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए। सीधे बैठकर पढऩा चाहिए।
मौन पठन बहुत गुणकारी-
अक्सर विद्यार्थियों में बोल-बोल कर पढऩे की आदत होती है। बोल-बोल कर पढऩे से विद्यार्थियों की ऊर्जा ज्यादा खर्च होती है और वे जल्दी थक जाते हैं। समझ का स्तर भी कमजोर हो सकता है। इसके विपरीत विद्यार्थियों को मौन पठन की आदत विकसित करनी चाहिए। अरुण ने बताया कि मौन पठन से विद्यार्थी ज्यादा समय तक बैठ कर पढ़ सकता है और पढ़ कर ज्यादा समझ सकता है। उन्होंने कक्षाओं में विद्यार्थियों को हिन्दी साहित्य में गद्य और पद्य के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी।
इस मौके पर प्राध्यापक श्याम कुमार, सुखजीत सिंह, सेवा सिंह, नरेश शर्मा, रोहताश राणा, सुरेश रावल, आलोक कुमार, ज्ञानचंद, अनिल गुप्ता, अनुराधा रीन, मंजू शर्मा, राकेश मल्होत्रा, वीरेन्द्र कुमार, पंकज मल्होत्रा उपस्थित रहे।
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