Wednesday, September 20, 2017

विश्व शांति दिवस (21सितंबर) पर विशेष

युद्ध और विनाश नहीं, शांति और विकास हो

अरुण कुमार कैहरबा

DAINIK HARIBHOOMI 21-9-2017
देश-दुनिया के पूरे परिदृश्य पर निगाह दौड़ाई जाए तो निराशाजनक स्थितियां साफ दिखाई देती हैं। एक देश दूसरे देश से प्रतिद्वंदिता में लगा है। युद्ध हो रहे हैं या फिर युद्ध की तैयारियां हो रही हैं। परमाणु बमों के परीक्षण हो रहे हैं। युद्ध का भरा पूरा बाजार है। विश्व के पैमाने पर कुछ देश अपना वर्चस्व कायम करने के लिए साम्राज्यवादी सोच को बढ़ावा दे रहे हैं। युद्ध का सामान का उत्पादन करने वाली कंपनियां देशों की विदेश नीतियों को संचालित कर रही हैं। अपना सामान बेचने के लिए वे दुनिया को युद्ध की आग में झोंक रही हैं। पूंजीवादी, साम्राज्यवादी और नव-उपनिवेशवादी विचारधाराएं लेकर कुछ देश लोकतंत्र के ध्वजवाहक भी बने हुए हैं। ऐसे में शांति कैसे स्थापित होगी, यह एक ज्वलंत प्रश्र है।
DAINIK HIMACHAL DASTAK 21-9-2017
पूरी दुनिया युद्धों, साम्प्रदायिक हिंसा और दंगों के दुष्परिणामों से भली-भांति परिचित है। कितनी बड़ी आबादी इसकी भेंट चढ़ चुकी है। कितने लोगों को अपने हंसते-खेलते घरों से उजडऩा पड़ा है। हम विश्वयुद्धों का संताप झेल चुके हैं। हिरोशिमा और नागाशाकी में परमाणु बमों से पैदा हुए विनाश को भी झेल चुके हैं। लेकिन फिर भी युद्धों से बाज नहीं आ रहे। देश के अंदर भी विकास के मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए किसी देश को दुश्मन देश करार देकर छदम युद्ध का माहौल बना दिया जाता है। यह एक बेहद घातक रूझान है। राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रश्र अहम है, यह तो सही है लेकिन क्या बाहरी हमले की आशंकाओं को आधार बनाकर राजनीति करना उचित है।
DAINIK SAVERA TIMES 21-9-2017
युद्ध और आतंकवाद के घातक परिणामों से साहित्य भरा हुआ है। युद्ध संवेदनशीलता को समाप्त कर देता है और मनुष्य को हैवान बना देता है। मलाला युसूफजई ने तालिबानी आतंकियों द्वारा पाकिस्तान में किए गए अत्याचारों का मार्मिक चित्रण किया है। तालिबान द्वारा स्कूल बंद कर दिए जाने और लड़कियों पर लगाई गई पाबंदियों से पैदा हुई व्यथा को बयां किया तो आतंकी उसकी जान के दुश्मन बन गए। इसी प्रकार दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी में हिटलर की अगुवाई में यहुदियों को दी गई यातनाओं और जनसंहार को ऐन फ्रैंक ने अपनी डायरी में लिखा, जिससे हिटलर के अत्याचारों से दुनिया रूबरू हुई। दुनिया में अमन-शांति और संवेदनशीलता का माहौल पैदा करने में साहित्य व कलाओं का महत्वपूर्ण योगदान है। साहित्य कमजोर के पक्ष में खड़ा होकर न्यायसंगत व समता पर आधारित व्यवस्था की स्थापना के पक्ष को मजबूत करता है। लेकिन आजकल कविता को भी युद्धोन्माद पैदा करने का जरिया बनाया जा रहा है। कविताओं में कवियों को किसी देश या दुश्मन को ललकारने को देखा हुआ जा रहा है। देश में बहुत से चैनल टाइम पास करने के लिए किसी देश को दुश्मन देश करार देकर मोर्चेबंदी करते हुए देखे जा रहे हैं।
ऐसे में शांति की पक्षधरता करते हुए मजबूती से खड़े होने की जरूरत है। आज जब सोशल मीडिया के द्वारा सूचनाएं और अफवाहें पल भर में ही पूरी दुनिया में फैल जाती हैं तो सही-गलत की पहचान करके युद्ध के किसी छदम आह्वान को नाकाम करने की जरूरत है। शांति कमजोरी नहीं है। आजादी की लड़ाई में गांधी जी ने अहिंसा का प्रयोग करके दिखाया कि अहिंसा के जरिये भी अत्याचारी ताकतों को डराया जा सकता है। आज गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी हमारे सबसे बड़े दुश्मन हैं। विकास की राह तैयार करने के लिए शांति और अहिंसा मजबूत शस्त्र हैं। इन शस्त्रों का प्रयोग करना सीखना जरूरी है। संयुक्त राष्ट्र संघ के आह्वान पर 21 सितंबर को प्रति वर्ष विश्व शांति दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष इस दिवस के लिए ‘शांति के लिए साथ दें-सभी के लिए सम्मान, सुरक्षा और गरिमा’ रखा गया है। हर रोज दूसरों को ललकार कर एक दिन शांति पर विचार करने से तो काम नहीं चलेगा। शांति के लिए सभी को काम करना होगा और एकजुटता भी दिखानी होगी। भाईचारे और सह-अस्तित्व की भावना से ही आगे बढ़ा जा सकता है।



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