हरियाणा के वीरों ने अपनी कुर्बानियों से बढ़ाया देश का मान
अरुण कुमार कैहरबा
भारत की आजादी की लड़ाई में संघर्षों और शहादतों का बड़ा ही गौरवशाली इतिहास रहा है। स्वतंत्रता आंदोलन में वीरता और बहादुरी के अनेक प्रकार के उदाहरण देखने को मिलते हैं। इस आंदोलन का आगाज़ 1857 से होता है, जब बड़े पैमाने पर अंग्रेजों की साम्राज्यवादी एवं उपनिवेशवादी नीतियों के खिलाफ आक्रोश और विद्रोह देखने को मिला। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन के देश भर में अनेक केन्द्र थे और विभिन्न रियासतों के राजा उसका नेतृत्व कर रहे थे। बहादुर शाह जफर, मंगल पांडे, तात्या टोपे, नाना साहब, कुंवर सिंह, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल, रानी राजेश्वरी देवी सहित अनेक नेता थे, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लोगों का नेतृत्व किया। एक नवंबर, 1966 को आजाद भारत में अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आए हरियाणा के लोगों ने भी इस आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और शहादतें दी। इन्हीं में से एक थे-राजा राव तुलाराम। राव तुलाराम 1857 की क्रांति के महान नायक थे। भारत से अंग्रेजी शासन का खात्मा करने के लिए अहीरवाल के राजा राव तुलाराम ने हजारों सैनिकों की बहादुर सेना तैयार की और अंग्रेजों की सेना के साथ जंग लड़ा। स्वतंत्रता आंदोलन का वह महानायक काबुल में अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चेबंदी करते हुए 23सितंबर 1863 को गंभीर रूप से बीमार होकर शहीद हो गया था। उन्हीं के शहीदी दिवस को हरियाणा वीर एवं शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।यह दिन जंगे-आजादी में 1857 की पहली क्रांति, आजादी की लड़ाई के नायक राव तुलाराम तथा आजादी की लड़ाई में हरियाणा के योगदान की एक साथ याद दिलाता है। राव तुलाराम का जन्म 9दिसंबर, 1825 को रेवाड़ी के राज परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम राव पूर्ण सिंह और माता का नाम ज्ञान कुंवर था। पांच साल की अवस्था में शुरू हुई शिक्षा में शस्त्र चलाना और घुड़सवारी भी सिखाई जा रही थी। जब तुलाराम 14साल के हुए तो पिता राजा पूर्ण सिंह की मृत्यु हो गई। इस अल्पायु में ही उनके कंधों पर राजपाट की जिम्मेदारी भी आ गई। 1857 में पहले स्वतंत्रता आंदोलन की लहर जब अहीरवाल पहुंची तो राव तुलाराम ने आंदोलन में हिस्सा लेने में देर नहीं लगाई। राव तुलाराम ने क्रांति का बिगुल बजा दिया। क्रांतिकारी नेताओं ने बहादुर शाह जफर को हिंदोस्तान का बादशाह घोषित कर दिया। राव तुलाराम ने अंग्रेजों के शासन को समाप्त करने का ऐलान कर दिया। तुलाराम की तैयारियों को देखते हुए अंग्रेज गुडगांव व आसपास के क्षेत्र को छोड़ कर भाग खड़े हुए। लेकिन संगठित होकर राव तुलाराम को घेरने की कोशिश की। राव तुलाराम के हजारों सैनिकों की सेना नसीबपुर के मैदान में पूरी वीरता के साथ अंग्रेजी सेना के साथ लड़ी। हरियाणा के मजदूर व किसान परिवारों के वीरों ने सुविधाओं व हथियारों से सम्पन्न अंग्रेजी सेना के छक्के छुड़ा दिए। अंग्रेजों के कर्नर जैराल्ड व अनेक अफसर मारे गए। लंबे संघर्ष के बाद राव तुलाराम घायल हो गए और राजस्थान की तरफ चले गए। इलाज के बाद वे अंग्रेजों के खिलाफ मदद मांगने के लिए अनेक शहरों से होते हुए
DAINIK HARIBHOOMI 23-9-2017 |
DAINIK JAGMARG 23-9-2017 |
DAINIK PAL PAL 23-9-2017 |
हरियाणा वीरों की भूमि है। वीरता और साहस की सार्थकता तभी है, जब इसका प्रयोग समाज व देश हित में किया जाए। 1857 के पहले स्वतंत्रता आंदोलन में ही नहीं हरियाणा के वीरों ने इससे पहले और बाद में आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया। आजादी की लड़ाई की महान विरासत की खूबी यह है कि उसमें युवाओं का साहस और उनकी कुर्बानियां विचारहीन नहीं थी। अंग्रेजी दासता व अत्याचारों से अपमान की पीड़ा और क्रांति का विचार प्रेरक शक्ति थी, जो युवाओं को कुर्बानियों के लिए आगे बढ़ाती थी। आजादी के बाद में भारतीय सेना के तीनों अंगों और सुरक्षा बलों में हरियाणा के युवाओं का अहम स्थान रहता है। हरियाणा के वीर एवं शहीदी दिवस पर वीरों की शहादतों को श्रद्धांजलि देते हुए हरियाणा में सामाजिक परिवर्तन के बारे में संकल्प करने की जरूरत है। प्रति व्यक्ति आय, खेती में फसलों की पैदावार और सेनाओं व सुरक्षा बलों में अव्वल रहने वाले हरियाणा में समाज को कन्या भ्रूण हत्याओं, ऑनर कीलिंग और जातिवाद के कलंक से मुक्त करने का संकल्प भी लिया जाना चाहिए।
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