नई राजनीतिक संस्कृति का सूत्रपात करने वाले थे ताऊ देवी लाल
अरुण कुमार कैहरबा
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देवी लाल का जन्म 25सितंबर, 1914 को सिरसा के गांव तेजाखेड़ा में चौ. लेखराम व शुंगा देवी के सम्पन्न जमींदार परिवार में हुआ था। तब देश अंग्रेजों का गुलाम था। आजादी के लिए अंग्रेजी शासन के खिलाफ चल रहे आंदोलन ने कम उम्र के बालक को अपनी ओर खींचा और वे तत्कालीन राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा लेने लगे। 1929 में उन्होंने कांग्रेस लाहौर अधिवेशन में एक स्वयंसेवी के रूप में हिस्सा लिया। देशप्रेम के कारण ही दसवीं कक्षा में उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया। इससे वे स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े और उन्हें कईं बार जेल भी जाना पड़ा। देश की आजादी के बाद संयुक्त पंजाब की राजनीति में सक्रिय हो गए। विधायक व मुख्य संसदीय सचिव आदि पदों पर रहते हुए हरियाणा की जनता के हितों के लिए वे ताकतवर मुख्यमंत्रियों से भी टकराए। संयुक्त पंजाब में हिन्दी भाषी क्षेत्रों में विकास के मामले में भेदभाव होता देखकर उन्होंने अलग राज्य की मांग उठाई और इसके लिए अथक संघर्ष किया। उनके संघर्षों से 1नवंबर, 1966 में हरियाणा के रूप में अलग राज्य अस्तित्व में आया और उन्हें हरियाणा के निर्माता होने का सम्मान प्राप्त हुआ। देश में आपातकाल लगाया गया तो इसका उन्होंने विरोध किया और जेल में डाल दिए गए। 1977 से 1979 तथा 1987 से 1989 तक वे हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे। प्रदेश का मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने जो नीतियां लागू की, उससे देश भर में उनको पहचान मिली। 19अक्टूबर,1989 से 21जून, 1991 तक वे भारत के उप-प्रधानमंत्री रहे। जनता दल की सरकार में तब उन्हें सर्वसम्मति से प्रधानमंत्री चुना जा रहा था। लेकिन वे देश के अति महत्वपूर्ण पद पर खुद ना बैठ कर वी.पी. सिंह को बैठा दिया और स्वयं उपप्रधानमंत्री बन गए। त्याग की भावना और दूसरों को आगे करने के कारण ही उन्हें राजनीति का भीष्म पितामह कहा जाता है। छह अप्रैल, 2001 में उनकी मृत्यु हो गई।
मुख्यमंत्री रहते हुए हरियाणा में विभिन्न प्रकार के नाजायज टैक्स व अफसरशाही को समाप्त करने में उनका अहम योगदान रहा। उन्होंने वृद्धावस्था पैंशन शुरू करके देशभर में नाम कमाया। अपने शासनकाल में उन्होंने घुमंतु समुदायों की सूची बनवाई और स्कूल में हाजरी होने पर प्रति बच्चा प्रतिदिन के हिसाब से एक रूपया देने की घोषणा की ताकि बच्चे स्कूलों में आ सकें और शिक्षा से अपने जीवन को संवार सकें। गांव और किसान उनकी राजनीति के केन्द्र-बिंदु थे। वे मानते थे कि असली भारत तो गांव में ही बसता है। वे कहा करते थे-भारत के विकास का रास्ता खेतों से होकर गुजऱता है। जब तक गऱीब किसान, मज़दूर इस देश में सम्पन्न नहीं होगा, तब तक इस देश की उन्नति के कोई मायने नहीं हैं। इसलिए वो अक्सर यह दोहराया करते थे- हर खेत को पानी, हर हाथ को काम, हर तन पे कपड़ा, हर सिर पे मकान, हर पेट में रोटी, बाकी बात खोटी। अपने इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए उन्होंने जीवनभर संघर्ष किया। किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए उन्होंने फसलों के लाभकारी मूल्यों और कर्जा मुक्ति के उपाय किए।
ताऊ देवी लाल मानते थे कि देश में दो वर्ग हैं-लुटेरे और कमेरे। लुटेरों का साथ और सहयोग लेकर राजनेता कमेरों के लिए काम नहीं कर सकते। वे चुनावों में भी जनता का सहयोग लेने में विश्वास रखते थे। इसलिए उन्होंने एक वोट-एक नोट का नारा दिया था। हरियाणा के गांव-गांव में उन्होंने चौपालें बनवाईं। प्रदेश व देश की राजनीति में सक्रिय रहते हुए जहां उन्होंने नीति के स्तर पर बदलाव किया, वहीं सत्ता के नशे में गांव-देहात व किसान-मजदूर को नहीं भूले। गांव में खेत में काम कर रहे और या फिर हुक्का गुडग़ुड़ा रहे लोगों के बीच बैठकर उनके साथ बात करना उनका शौक था। सत्ता के नशे से दूर लोगों के बीच में बैठकर उनके मन की बात जानना और उसके अनुकूल कार्य करना अपना धर्म मानते थे। वे मानते थे कि सत्ता सिर्फ अपने मन की बात करने या सुख भोगने के लिए नहीं है, बल्कि जनसेवा के लिए है। पुत्रमोह, परिवारवाद और जातिवादी राजनीति के लिए उनकी आलोचना भी की जाती है, लेकिन हरियाणा ही नहीं देश की राजनीति में उन्हें हमेशा याद रखा जाएगा।
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