Monday, August 4, 2014

काव्य-तरंग-3

जात-गोत के रिश्ते सारे होते बड़े विचित्र।
साथ में मिलकर जो चलें कहलाते हैं मित्र।
कहलाते हैं मित्र मुसीबत में जो आएँ काम।
स्वार्थ के रिश्ते जो बनते होते बड़े हराम।
मित्रता ऐसी गढ़ें, जिसमें हों गहरे जज़्बात।
सरोकार की बात हो, पूछे ना कोई जात।

-अरुण कुमार कैहरबा

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