पुस्तक समीक्षा
उपन्यास : देहाती दुनियालेखक : शरतचन्द्र
प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स
पृष्ठ-110
मूल्य : रु. 150.
ग्रामीण जीवन की झांकी है शरतचन्द्र का उपन्यास
अरुण कुमार कैहरबा
समीक्षक व हिन्दी प्राध्यापक
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जिला-करनाल, हरियाणा
मो.नं.-9466220145
उपन्यास में गांव में जातिवाद, साम्प्रदायिकता, घटिया दर्जे की राजनीति, गरीबी, कर्ज की समस्याओं को उठाया गया है।
अरुण कुमार कैहरबा
शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय बांग्ला के बेहद प्रसिद्ध कहानीकार एवं उपन्यासकार हैं। वैसे तो उनके बहुत से उपन्यास बांग्ला से अनुवादित होकर विश्व साहित्य का हिस्सा हो चुके हैं। हम यहां पर उनके बांग्ला उपन्यास पल्ली समाज पर ही चर्चा करेंगे। जिसका श्री रामनाथ सुमन ने देहाती दुनिया के रूप में हिन्दी अनुवाद किया है। उपन्यास ग्रामीण जीवन की झांकी प्रस्तुत करता है। आदर्शवादी आईने से इतर उपन्यास का केन्द्र बिंदु गांव कुंआपुर जातिवाद से बुरी तरह से त्रस्त, साम्प्रदायिकता की भावना से आहत, कुरीतियों व बुराईयों से परेशान, गंदी राजनीति का अड्डा और साम-दाम दंड भेद से ग्रस्त दिखाई देता है।
आम तौर गांव, खेत-खलिहान और संबंधों को भावनात्मक ढ़ंग से देखा जाता है और ग्राम्य जीवन की महिमा गाई जाती है। उपन्यास के मुख्य पात्र रमेश घोषाल की शिक्षा गांव से बाहर शहर में हुई है। शहर में रहते हुए वह अक्सर गांव को इसी तरह से देखा करता था। किताबें पढक़र लोगों से सुन कर और कल्पनाएं करके वह कितनी ही बार सोचा करता था-
‘हमारी बंगाली जाति के पास चाहे और कुछ भी न हो, पर एकांत में बसे गांवों की वह शांति और स्वछंदता तो है जो बहुजनाकीर्ण शहरों में नहीं है। बहुत थोड़े में संतुष्ट रहने वाले ये गांवों के निवासी सहानुभूति से पिघल जाते हैं। एक आदमी के ऊपर दुख पड़ता है तो दूसरा आदमी अपनी छाती लगा देता है और एक आदमी कुछ सुखी होता है तो दूसरा उसके यहां बिना बुलाए ही पहुंच कर आनंद मनाने लगता है। सिर्फ वहीं और उन्हीं सब हृदयों में बंगालियों का वास्तविक ऐश्वर्य अक्षय हो रहा है।’
लेकिन जब वह गांव के यथार्थ से रूबरू हुआ तो उसे बहुत निराशा हुई। गांव का यथार्थ क्या है? भावुक दृष्टि को त्याग दें तो ही हमें सच्चाई का पता चलेगा। समीक्ष्य उपन्यास का मुख्य केन्द्र कुंआपुर गांव है। नजदीकी गांव पीरपुर है, जोकि मुस्लिम बहुल है। दोनों गांव के जमींदार कुंआपुर में ही रहते हैं। शहर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके रमेश तब गांव में आता है, जब उसके पिता तारिणी घोषाल की मृत्यु हो जाती है। उसके ताऊ का बेटा वेणी घोषाल गांव का महत्वाकांक्षी जमींदार है। चाचा की मृत्यु के बाद वह गांव की सम्पत्ति और राजनीति पर वर्चस्व स्थापित करना चाहता है। उसकी हरसंभव कोशिश है कि अपने चाचा के मृत्यु भोज में कोई भी व्यक्ति शामिल ना हो और रमेश वापिस शहर चला जाए ताकि जमीन-जायदाद पर उसका एकाधिकार स्थापित हो जाए। वह यदुनाथ मुकर्जी की बेटी और उपन्यास की मुख्य महिला किरदार रमा व उसकी मां को उकसाता है कि वे किसी भी सूरत में रमेश के घर ना जाएं।
रमेश के पिता तारिणी कभी रमेश का विवाह रमा से करना चाहते थे। रमा के दिल के किसी कोने में रमेश के प्रति प्रेम है। रमेश की मां रमा के ऊपर स्नेह बरसाती थी। लेकिन रमा की मां अपने मुकर्जी गोत्र को ऊंचा और घोषालों को नीचा मानती है। रमेश जब मृत्यु भोज का सारा कार्यभार रमा को सौंपने के लिए आता है तो वहीं पर उसकी अपने चचेरे भाई वेणी से भी भेंट होती है। रमा की मां रमेश को जली-कटी सुनाती है। यह वेणी की योजना के अनुसार था। इससे वेणी को अपार खुशी होती है। इससे रमेश को एक बात समझ आ जाती है कि कुंआपुर गांव के लोग पिता के श्राद्ध में शामिल नहीं होंगे। हालांकि गोविंद गांगूली व धर्मदास जैसे लोग शामिल होने का दिखावा करते हैं, लेकिन वे वेणी घोषाल की तरफ से तैयारियों में रंग में भंग डालने के लिए कार्यक्रम में शामिल होते हैं। इस बात को वेणी की मां और रमेश की ताई विश्वेश्वरी अच्छी तरह जानती है। वह रमेश के प्रति सहानुभूति रखती है और बातचीत के दौरान वह गांव के सच पर कहती है-
‘बेटा बहुत सी बातें हैं। यदि यहां रहोगे तो आप ही सब जान लोगे। किसी का सचमुच का कुछ दोष या अपराध होता है और किसी पर यों ही झूठ-मूठ अपराध लगा दिया जाता है और फिर मामले-मुकदमों और झूठी गवाही-साखियों के कारण भी बड़ी-बड़ी दलबंदियाँ होती हैं।’
विश्वेश्वरी ने रमेश को सारी सच्चाई बता दी। रमेश पिता के श्राद्ध का बड़ा कार्यक्रम करने के प्रति संकल्पित है। आखिर कार्यक्रम का दिन आ जाता है। गोविंद भट्टाचार्य, पराण हालदार, क्षेन्ती व अन्यों ने बखेड़ा खड़ा कर दिया। जाति के मुद्दे पर ब्राह्मण लोग रमेश को घेरने लगे। ऐसे में विश्वेश्वरी ने मोर्चा संभाला और स्थिति को सख्ती के साथ शांत किया। रमेश की जान में जान आई। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ताई विश्वेश्वरी इस तरह स्थिति को संभाल लेंगी। लेकिन रमेश गांव की सारी स्थिति से बुरी तरह आहत है। वे दीनू भट्टाचार्य से गांव में ईष्र्या-द्वेष का कारण पूछते हैं। दीनू कुंआपुर गांव के अलावा अपनी मुनिया के मामा के गांव का हाल सुनाता है कि किस तरह से वहां पर चार दल हैं।
वेणी की मां विश्वेश्वरी ने श्राद्ध भोज में स्थिति को संभाला था। इसी वजह से वेणी रमा की मां से उसे प्रताडि़त करवाता है। यह बहुत ही विचित्र है कि बेटा अपनी राजनीति के लिए मां को भी बख्श नहीं रहा है। गांव की एक प्रकृति है कि यहां कोई भी खबर छुप नहीं सकती है। पुत्र द्वारा मां के अपमान की खबर भी चारों दिशाओं में फैल जाती है।
रमेश द्वरा गांव में स्कूल की दशा सुधारने को लोग सकारात्मक ढ़ंग से लेने की बजाय नकारात्मक ढ़ंग से लेते हैं। रेलवे स्टेशन की तरफ जाने वाली सडक़ की खस्ता हालत को सुधारने की बजाय उम्मीद करते हैं कि यह सब रमेश खुद कर देगा। मंदिर के लिए भी वे रमेश से सहयोग लेना चाहते हैं। लेकिन इसके लिए उसका आदर करने की बजाय मजाक उड़ाते हैं। इस स्थिति से आहत होकर रमेश अपनी ताई विश्वेश्वरी के पास विदाई लेने के लिए जाता है। ताई से बात कर रमेश को समझ आता है- ‘शिक्षा के अभाव के कारण इतने अंधे हैं कि अपने पड़ोसियों के बल का नाश करने को ही अपने बल-संचय का सबसे श्रेष्ठ उपाय समझते हैं, भलाई करते देखकर भी संशय से कंटकित हो जाते हैं। उन लोगों के ऊपर क्रोध करने या चिढऩे से बढक़र भ्रम भला और क्या हो सकता है?’
उसके बाद फिर से रमेश बाबू पूरी प्रतिबद्धता से जनहितैषी कामों की तरफ ध्यान देते हैं। उसके पास कुछ किसान आते हैं, जलभराव के कारण जिनकी खेती को संकट है। वेणी और रमा के खेतों की तरफ से पानी को काटना जरूरी था। लेकिन वहां उनकी मछलियां थी, जिससे उनका थोड़ा नुकसान होता। दोनों ने रमेश के पानी काटने के प्रस्ताव को सिरे से नकार दिया। इसके बाद रमेश ने जबरन पानी तुड़वा दिया। इस मामले में रमेश के व्यक्ति भजुआ को गिरफ्तार कर लिया गया। भैरव की गवाही पर भजुआ छूटा। भैरव ने वेणी के इशारे पर रमेश के घर जाकर नाटक कर दिया। राधानगर निवासी वेणी के चचिया ससुर सनत मुकर्जी ने 11सौ से अधिक रूपये की डिग्र्री करा ली है। अब कोर्ट के सम्मन के मुताबिक यह रूपये उन्हें भरने हैं। रमेश चैक काट कर गोपाल सरकार को हर्जाना भरने का निर्देश देता है। जिस दिन भैरव आचार्य की कोर्ट में पेशी थी, उस दिन रमेश देखता है कि उसके घर में शादी का सा माहौल है। गांव भर के लोगों को बुलाया गया है। लेकिन रमेश को इस बात की खबर तक नहीं। वह उसके घर जाता है तो पता चलता है कि गांव के ब्राह्मणों ने रमेश का बहिष्कार कर रखा है। इसलिए उसे बुलाया नहीं गया है। उसे यह समझते भी देर नहीं लगी कि कोर्ट में डिग्री और हरजाना सिर्फ रमेश को गुमराह करने के लिए था। रमेश भैरव के घर गया और उसके हाथ को पकड़ कर उसे घुमा देते हैं। भैरव और परिवार के सभी सदस्य शोर मचाने लगते हैं। रमेश भैरव से सवाल पूछ रहे थे-ऐसा क्यों किया? शोर सुन लोग इक_ा हो जाते हैं। वेणी भी वहां आता है। लेकिन वह कुछ कह नहीं पाता। वहां पर रमा भीड़ को चीरती हुई आती है और रमेश को भैरव को छोड़ देने और घर जाने का आदेश देती है। तभी रमेश उसे छोड़ कर चला जाता है। वेणी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था, उसे जेल भेजने का। रमेश के खिलाफ मुकदमा चलता है, उसमें रमा गवाही देती है। हालांकि रमेश के ऊपर लगाए गए छुरी लेकर भैरव को मारने, डकैती डालने आदि के आरोपों से वह अनभिज्ञता जताते हुए वह कहती है कि रमेश भैरव को मारने आए थे। पुलिस के रजिस्टर में रमेश पर तरह-तरह के आरोप लगाए गए थे। ऐसे में नए मजिस्ट्रेट ने रमेश को छह महीने के सश्रम कारवास की सजा सुनाई और उसके बाद भी पुलिस को उन पर नजर रखने का परामर्श दिया। रमा को कोर्ट में अपना बयान देते हुए भी इस सजा की उम्मीद नहीं थी। उसे लगता था कि सौ-दो सौ रूपये का जुर्माना उस पर लगाया जाएगा। आखिर अपने मन से वह भी रमेश को चाहती थी। रमेश को सजा मिलने के बाद रमा की हालत खराब थी। वह बीमार रहने लगी। दूसरी तरफ सतनाम हाजरा से वेणी व रमा को पता चला कि जब से रमेश जेल गए हैं। तब से कुंआपुर व पीरपुर गांवों के लोग गुस्साए हुए हैं। वे पीरपुर में जाफर के घर पर रोज इक_ा होते हैं। किसी दिन वे बाहर मिल गए तो उन हमला कर सकते हैं। सतनाम बताता है कि पीरपुर के लोग तो रमेश को भगवान की तरह पूजते हैं। उनके नाम पर नमाज अदा की जाती है। अब सारी स्थिति पलटी हुई है। इस सूचना से वेणी घबरा जाते हैं। उन पर हमला भी कर दिया जाता है, जिसकी वजह से वह कईं दिन अस्पताल में रहता है। लेकिन अपनी राजनैतिक चाल को आगे बढ़ाते हुए वह जाफर के घर पर पुलिस की रेड करवाता है। हालांकि रमा लोगों को पहले ही आगाह कर देती है।
जिस दिन रमेश के जेल से छूटने का वक्त आता है, उस दिन वेणी व दोनों गांव के लोग उसे लेने जाते हैं। वेणी हृदय परिवर्तन का नाटक करता है। रमेश को रमा के बयान पर सजा हुई थी, इसलिए वह रमेश को रमा के खिलाफ भडक़ाता है। इसका प्रभाव यह पड़ता है कि वह कईं दिन रमा से बात नहीं करता। बीमारी से बिस्तर पर पड़ी रमा रमेश को बुलाती है और उसे अपनी सारी जायदाद संभालने और भाई यतीन्द्र को अपनी तरह शिक्षित व देशभक्त बनाने का संकल्प लेना चाहती है। रमेश के मन में रमा के प्रति वेणी द्वारा पैदा किया गया वैरभाव था, जिससे वह ना तो रमा को माफ कर पाता है और ना ही उक्त दो जिम्मेदारियों के बारे में कोई संकल्प करता है। इससे रमा बेहद आहत होती है।
उपन्यास का अंत ताई विश्वेश्वरी और रमा के घर छोड़ कर किसी तीर्थ पर जाने से होता है। इस अंतिम समय में ताई रमेश के मन में रमा के प्रति भरे गए वैरभाव को निकाल देती है। लेकिन वह आखिरी क्षण थे। रमेश ताई की चरण रज लेता है।
सत्यकथा पर आधारित यह उपन्यास पाठकों के मन से ग्राम्य समाज की भावुक तस्वीर को निकाल देता है और यथार्थपरक समस्याओं और स्थितियों के प्रति जागरूक करता है। गांव की तेजधार राजनीति और भयावह स्थितियों के कारण ही आज पढ़े-लिखे युवा बड़ी संख्या में गांव को छोड़ कर शहरों की तरफ रूख कर रहे हैं। हालांकि अच्छे पढ़े-लिखे लोगों को गांव में ही रहकर बदलाव की जमीन तैयार करने का आह्वान करता है। रमेश की स्थिति को देखकर यह काम आसान नहीं लगता है। उपन्यास के आखिरी मोड़ पर जब विश्वेश्वरी व रमा दोनों रमेश के कारण गांव में बड़े बदलाव की कल्पना कर रही हैं, ऐसे में भी रमेश वेणी की चालबाजियों का शिकार बना हुआ है। उसके पास गांव व वहां के लोगों के बारे में अपना आकलन नहीं है। बड़े बदलाव को रोकने के लिए वेणी ने हृदय परिवर्तन का स्वांग रच लिया है। हालांकि रमेश के गांव में विकास व बदलाव के लिए किए जा रहे सारे प्रयास अपने आप में ही प्रेरणास्रोत बन जाते हैं। सम्पन्न और प्रभावशाली होने के कारण रमेश के लिए जो कार्य आसान हैं, वे कम संसाधनों वाले पढ़े-लिखे युवाओं के लिए और भी मुश्किल काम हैं। उपन्यास में गांव में मलेरिया के प्रकोप, गरीबी और कर्ज, शिक्षा की हालत और शहरों की स्थिति का भी चित्रण पाठकों को सोचने के लिए मजबूर करता है।
अरुण कुमार कैहरबा
समीक्षक व हिन्दी प्राध्यापक
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जिला-करनाल, हरियाणा
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JAGMARG 18-8-2024 |
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