द्वार-द्वार दाखिला अभियान
बच्चों के दाखिले के लिए फैक्ट्रियों में पहुंचा अध्यापकों का काफिला
मजदूरों को समझाया, स्कूल में दाखिले किए
फैक्टरी मालिकों से भी मजदूरों के बच्चों को दाखिल करवाने की चर्चा की
विद्यार्थियों से जानी शिक्षा की प्रगति
यमुनानगर, 28 जूनगांव करेड़ा खुर्द स्थित राजकीय उच्च विद्यालय का द्वार-द्वार दाखिला अभियान सोमवार को भी जारी रहा। मुख्याध्यापक विपिन कुमार के मार्गदर्शन में हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा, पंजाबी अध्यापिका सुखिन्द्र कौर, संस्कृत अध्यापिका रजनी शास्त्री व प्राथमिक शिक्षक सुल्तान सिंह ने बीच का माजरा और मिश्री का माजरा के पास स्थित फैक्ट्रियों में रह रहे प्रवासी मजदूरों के साथ सम्पर्क किया और उन्हें अपने बच्चों को स्कूल में दाखिला करवाने की अपील की। कुछ बच्चों के घर पर ही दाखिले किए गए। मजदूरों को स्कूल में आकर बच्चों का दाखिला करवाने की भी अपील की गई। अध्यापकों ने बच्चों का दाखिला करवाने के लिए फैक्टरी मालिकों से भी विचार-विमर्श किया और उन्हें मजदूरों को समझाने का अनुरोध किया।
स्कूलों से बाहर छूट रहे बच्चों का दाखिला करने, विद्यार्थियों का हालचाल जानने, कोरोना काल में उनकी शैक्षिक प्रगति पर चर्चा करने व मार्गदर्शन करने के लिए राजकीय उच्च विद्यालय करेड़ा खुर्द के अध्यापकों का काफिला सबसे पहले बीच का माजरा पहुंचा। यहां पर अभिभावकों से घर-घर जाकर सम्पर्क किया गया और उन्हें अपने बच्चों की शिक्षा में रूचि लेने पर बातचीत की गई। अरुण कैहरबा ने कहा कि शिक्षा से ही हम आगे बढ़ सकते हैं। आज के दौर में भी यदि बच्चे शिक्षा से वंचित रह गए तो देश व समाज आगे नहीं बढ़ पाएगा। उन्होंने कहा कि हमारे आसपास के बच्चों के प्रति केवल मां-बाप की ही जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि उनकी भी उतनी ही जिम्मेदारी है, जिनके खेतों या फैक्ट्रियों में बच्चों के मां-बाप काम करते हैं। हर पढ़े-लिखे व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि सभी बच्चे स्कूल में दाखिल होकर शिक्षा ग्रहण करें।
जब मजदूरों व बच्चों ने अध्यापकों को डॉक्टर मान कर चले जाने के लिए कहा-
मिश्री का माजरा के पास स्थित एक फैक्टरी के मजदूरों के रहने के लिए बनाए गए कमरों के पास उस समय असमंजस व दहशत की स्थिति पैदा हो गई, जब बच्चों ने अध्यापकों को डॉक्टर मान लिया। अध्यापकों के बार-बार अनुरोध करने पर भी कुछ महिलाओं व बच्चों ने एक ना सुनी। आशंकित महिलाओं ने कहा कि उन्हें पता है कि आप कोरोना के टीके लगाने आए हो, ऐसा हम बिल्कुल नहीं होने देंगे। हालांकि कईं बच्चों ने पढऩे की इच्छा व्यक्त की। लेकिन वे अध्यापकों को डॉक्टर मान कर चल रहे थे। बाद में काफी बातचीत के बाद अभिभावकों ने शिक्षा की अहमियत को माना और बच्चों को स्कूल में दाखिल करवाने का आश्वासन दिया। मजदूरों को मनाने के लिए अध्यापकों ने फैक्टरी मालिकों से भी चर्चा की और उन्होंने भी मजदूरों को अपने बच्चों को स्कूल में दाखिल करवाने के लिए समझाया। अरुण ने कहा कि यह घटनाक्रम स्वास्थ्य विभाग के सामने सभी का कोरोना वैक्सीनेशन करवाने के मार्ग की एक चुनौति है।क्या है सबसे बड़ी दिक्कत-
हिन्दी प्राध्यापक अरुण कैहरबा ने बताया कि फैक्ट्रियों में काम करने वाले प्रवासी मजदूरों के बहुत बड़ी संख्या में बच्चे आवाजाही, गरीबी, जागरूकता के कमी के कारण शिक्षा में वंचित रह जाते हैं। दूसरे राज्यों से आए मजदूर महिला-पुरूष अपने काम में लगे रहते हैं। उनके पास ना तो समय होता है और ना ही सोच कि वो अपने बच्चों को स्कूल में दाखिल करवाएं और उनकी शिक्षा पर ध्यान दें। एक बड़ी समस्या यह भी है कि मजदूरों के पास आधार-कार्ड, राशन कार्ड, बच्चों का जन्म प्रमाण-पत्र सहित कोई भी प्रमाण-पत्र नहीं होता है, जिससे उनके दाखिले में मुश्किलें आती हैं। ऐसे में फैक्ट्रियों में काम करने वाले प्रवासी मजदूरों के बच्चों के प्रमाण-पत्र बनाने और उनके दाखिले के लिए विशेष प्रयासों की जरूरत है। इसमें फैक्टरी मालिकों को अपनी सामाजिक जिम्मेदारी अवश्य ही निभानी चाहिए।क्या कहते हैं समाजसेवी-
उद्यमी एवं समाजसेवी अनिल शर्मा व सुभाष कांबोज ने कहा कि वे बच्चों की शिक्षा के लिए हर संभव सहयोग करेंगे। उन्होंने कहा कि वे समय-समय पर मजदूरों से बातचीत करते हैं और उन्हें बच्चों को स्कूल में दाखिला करवाने के लिए प्रेरित करते हैं। सुभाष ने बताया कि कईं पुरूष मजदूरों की शराबखोरी की आदत के कारण बच्चों की शिक्षा पर ध्यान परिवार ध्यान नहीं दे पाते हैं। उन्होंने मजदूरों को एकत्रित करवाकर उन्हें बच्चों की शिक्षा के लिए प्रेरित किया।
क्या कहते हैं मुख्याध्यापक-
मुख्याध्यापक विपिन कुमार ने कहा कि उनका स्कूल आसपास के सभी बच्चों को स्कूल में दाखिल करवाने व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए हर संभव कोशिश कर रहा है। अध्यापक हर रोज आसपास के गांवों में जा रहे हैं और बच्चों को ऑनलाईन शिक्षा प्रदान करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
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