Monday, March 15, 2021

WORLD CONSUMER RIGHTS DAY ARTICLE

 विश्व उपभोक्ता दिवस विशेष

बेलगाम बाज़ार, उपभोक्ता बेज़ार!

अरुण कुमार कैहरबा
DAILY NEWS ACTIVIST 15-3-21

सभ्यता के विकास के साथ-साथ बाजार एक बड़ी ताकत का रूप ले चुका है। विशेष तौर पर पूंजीवादी व्यवस्था में बाजार अपना क्रूर एवं शोषक रूप लेकर हाजिर होता है। एक ताकत के रूप में ही उसकी कोशिश होती है कि मनुष्य अपनी इंसानियत भूल कर उपभोक्ता का रूप धारण कर ले। ऐसे उपभोक्ता जिनके लिए बाजार में बेची जा रही वस्तुएं हासिल करना और उपभोग करना ही प्राथमिकता हो। उपभोक्ता संस्कृति पूंजीवादी व्यवस्था के तरकश के तीर की भांति काम करती है। एक तरफ निजीकरण, उदारीकरण और वैश्वीकरण के नाम पर वित्तीय पूंजी को असीमित छूट प्रदान की जाती है, दूसरी तरफ जीने के लिए खाने की बात को उलट कर खाने के लिए जीने को मनुष्य के जीवन का ध्येय बना देती है। बड़ी पूंजी को केंद्रीय महत्व प्रदान करने वाली राजनीतिक आर्थिक व्यवस्था में उपभोक्ताओं के अधिकार निश्चित तौर पर हाशिए पर रहते हैं। उपभोक्ताओं को खुले बाजार द्वारा प्रलोभन दिए जाते हैं। ऐसा उपभोक्ताओं को फंसाने, अधिकाधिक लाभ कमाने और अतिरिक्त माल को ठिकाने लगाने के लिए किया जाता है। ऐसी जटिल स्थितियों में ही विश्व उपभोक्ता दिवस जैसे जागरूकता बढ़ाने वाले दिन की प्रासंगिकता को समझा जा सकता है।
उपभोक्ता आंदोलन का प्रारंभ अमेरिका में हुआ। 15 मार्च, 1962 को अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने कांग्रेस में उपभोक्ता अधिकारों को लेकर जोरदार भाषण दिया। उपभोक्ता इंटरनेशनल द्वारा 15 मार्च को पहली बार 1983 में अंतर्राष्ट्रीय उपभोक्ता अधिकार दिवस के रूप में मनाया गया। भारत में 9 दिसंबर 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पहल पर उपभोक्ता संरक्षण विधेयक संसद में पारित किया गया और राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित होने के बाद देशभर में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम लागू हुआ। इसके अनुसार कोई भी व्यक्ति जो अपने उपयोग के लिए सामान अथवा सेवाएं खरीदता है वह उपभोक्ता है। इस अधिनियम ने उपभोक्ता के रूप में हमें कुछ अधिकार प्रदान किए हैं-यदि उत्पादक एवं व्यापारी द्वारा अनुचित तरीके का प्रयोग किए जाने के कारण हमें नुकसान होता है अथवा खरीदे गए सामान में यदि कोई खराबी है या फिर किराए पर ली गई वस्तुओं में कमी पाई गई है या फिर विक्रता ने प्रदर्शित मूल्य से अधिक मूल्य लिया है, इसके अलावा यदि किसी कानून का उल्लंघन करते हुए जीवन तथा सुरक्षा के लिए जोखिम पैदा करने वाला सामान जनता को बेचा जा रहा है तो हम शिकायत कर सकते हैं। कानून के तहत जिला स्तर पर जिला उपभोक्ता फोरम में 20लाख रुपए कीमत की वस्तु या सेवा तक के मामले में शिकायत की जा सकती है। 20लाख से एक करोड़ रुपए तक के मामले राज्य उपभोक्ता आयोग और एक करोड़ रुपए से अधिक के मामले राष्ट्रीय आयोग के समक्ष रखे जाते हैं।


उपभोक्ता संरक्षण के कानून के बावजूद यथार्थ में बाजार एक बड़ी ताकत है, जिसमें उपभोक्ता जमाखोरी, कालाबाजारी, मिलावट, बिना मानक की वस्तुओं की बिक्री, अधिक दाम, गारंटी के बाद सर्विस नहीं देना, ठगी व कम नापतोल संकटों से घिरे हुए हैं। खाद्य वस्तुओं में मिलावट तो कर्इं बार जानलेवा होती है और कईं बार धीरे-धीरे असर करने वाला जहर। जीवनदायी दूध तक को यूरिया व जहरीले रसायनों के द्वारा कृत्रिम तरीके से बनाया जा रहा है। घी-तेल में मिलावट हो रही है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत खोली गई सस्ते राशन की दुकानों पर खराब हो चुका गेहूं बेचा जाता है तो कई बार कंकड़ वाली दालें। कालाबाजारी के कारण भी वितरण प्रणाली नाकाम हो रही है। यही नहीं नई उदार आर्थिक नीतियों के तहत शहरों में खुल रहे मॉल ऊंची दुकान फीके पकवान साबित हो रहे हैं। यहां पर आठ से दस रूपये में मिलने वाला समोसा धड़ल्ले से 50रूपये में बेचा जा रहा है। कंपनी द्वारा सभी प्रकार के टैक्स जोडक़र निर्धारित किए गए अधिकतम मूल्य से कई गुना अधिक मूल्य वसूला जाता है। सरकार से मान्यता लेकर आई बीमा कंपनियां लोगों के खून पसीने की कमाई को डकार कर गुम हो जाती हैं। मान्यता लेकर खोले गए निजी शिक्षण संस्थानों में न तो पूरा स्टाफ मिलता है और ना ही अन्य सुविधाएं। निजीकरण के कारण शिक्षा के नाम पर डिग्रियां बाजार में बिकने लगी हैं। संकट के बीच फंसे आम उपभोक्ताओं को जागो ग्राहक जागो का नारा आश्वस्त नहीं करता है उन्हें लगता है जैसे उन्हें भागो ग्राहक भागो कहकर चेतावनी दी जा रही है और डराया जा रहा हो।
जब से सरकार ने जनकल्याणकारी नीतियों को छोडक़र कथित उदारवादी नीतियों को अपनाया है तब से उपभोक्ताओं के अधिकारों के हनन का सिलसिला और अधिक तेज हो गया है। अंतरराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा श्रम कानूनों की जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही हैं और अंधाधुंध विज्ञापनों द्वारा लागत से कहीं अधिक मूल्य पर सामान बेचकर लाभ कमाया जा रहा है। उपभोक्ताओं की जागरूकता तो जरूरी है ही लेकिन यह जागरूकता सिर्फ रिक्शा चालकों से मोलभाव करने में ही नहीं चलनी चाहिए। उपभोक्ता अधिकार के विविध आयाम है। उपभोक्ताओं के व्यापक पर्यावरण संरक्षण हितों की अनदेखी भी बाजार के द्वारा धड़ल्ले से की जाती है। इसलिए इस 2021 के उपभोक्ता अधिकार दिवस को ‘प्लास्टिक प्रदूषण पर लगाम’ लगाने पर केंद्रित किया गया है। पूरी दुनिया आज प्लास्टिक प्रदूषण संकट से जूझ रही है। हालांकि प्लास्टिक दैनिक जीवन के लिए बहुत उपयोगी वस्तु हो सकती है, लेकिन आज इसका निर्माण एवं उपभोग अनियंत्रित हो गया है। अगस्त, 2020 में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जारी की गई रिपोर्ट-‘ब्रेकिंग द प्लास्टिक वेव’ बताती है कि यदि योजना व व्यवहार में नवाचार और बदलाव नहीं किए गए तो 2040 तक महासागरों में प्लास्टिक का कचरा तीन गुणा हो जाएगा। अब वैश्विक काविड -19 महामारी प्लास्टिक प्रदूषण को उजागर करने, संबोधित करने और उससे निपटने के लिए महत्वपूर्ण समय है, क्योंकि इस दौरान फेस मास्क, दस्ताने और खाद्य पैकेजिंग सहित एकल-उपयोग प्लास्टिक के उपयोग में बढ़ौतरी हुई है। चूंकि प्लास्टिक के प्रदूषण से निपटने का कोई एक तरीका नहीं है। इसलिए विश्व स्तर पर इस समस्या से निपटने के लिए सात स्तरीय मॉडल की पैरवी की जा रही है, जिसमें  प्लास्टिक के लिए रिप्लेस, पुनर्विचार, अस्वीकार करना, कम करना, पुन: उपयोग, रीसायकल और मरम्मत करन शामिल हैं।
कंस्यूमर इंटरनेशनल की महानिदेशक हेलेना लेउरेंट के अनुसार, ‘प्लास्टिक प्रदूषण हमारे पृथ्वी ग्रह के सामने सबसे अधिक दबाव वाले मुद्दों में से एक है। दुनिया भर में प्लास्टिक संकट के प्रति उपभोक्ता जागरूकता बढ़ रही है। बाजार को आकार देने में उपभोक्ताओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, और हमें प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए व्यवसायों और सरकारों द्वारा किए जा रहे उपायों का समर्थन करना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सभी के लिए टिकाऊ उपभोग सुलभ हो।’
हिन्दी प्राध्यापक, लेखक व स्तंभकार
वार्ड नं.-4,  रामलीला मैदान,
इन्द्री, जिला-करनाल, हरियाणा
मो.नं.-9466220145
JAGAT KRANTI 15-3-2021


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