आखिर हम न्यायपूर्ण व संवेदनशील व्यवस्था क्यों नहीं बना पाए?
अरुण कुमार कैहरबा
तय हुआ था वंचना कोई ना होगी और ना होगा कोई भूखा, बुनियादी सुविधाएं होंगी सबके आंगन में, और खुशियां ही खुशियां सबके जीवन में। पर दुखद है कि आज तक वह सपना पूरा नहीं हो पाया है। आज भी कितने ही लोगों का जीवन अभावों और संकटों में घिरा हुआ है। कोरोना वायरस की आपदा में लगे लॉकडाउन ने गरीब लोगों का काम छीन लिया है और जीवन में अप्रत्याशित संकटों को न्योता दिया है।![]() |
DAINIK SWADESH FROM BHOPAL 12-5-2020 |
आज इस लेख में हम आपको एक ही घर में रह रहे दो परिवारों की व्यथा-कथा सुना रहे हैं। हरियाणा के करनाल जिला के गांव कलरी खालसा में रहने वाले परिवारों में कुल मिलाकर 12 सदस्य हैं। इन सदस्यों में जहां एक 75वर्षीय वृद्धा है, वहीं एक नन्हा बच्चा भी है। परिवारों के दोनों मुखिया व नन्हें बच्चे को छोड़ कर बाकी 9 सदस्य लड़कियां व महिलाएं हैं। इनमें से एक परिवार के चार सदस्य कुछ समय से शहर में रह रहे थे। परिवार का मुखिया कढ़ी-चावल की रेहड़ी लगाता था। लेकिन लॉकडाउन के दौरान जब धंधा पूरी तरह से चौपट हो गया तो सभी का पेट भरने के लिए शहर से अपने गांव में आना पड़ा। बाकी आठ सदस्य-75 साला बुजुर्ग मां कलावंती, मुखिया मदन पाल, पत्नी पालो, पांच बेटियां-दसवीं, आठवीं और छठी में एक-एक और नौवीं में पढऩे वाली दो बेटियां।
घर में ना तो बिजली का कनैक्शन है और ना ही शौचालय। इन दोनों बुनियादी सुविधाओं के अभाव में घर में ही नहीं जीवन में भी अंधेरा है। खुले में शौच जाने की मजबूरी के कारण महिलाओं व बच्चियों को कितनी मुश्किलों व अपमान का सामना करना पड़ता होगा, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। कहां गई गांव की बेटी-सबकी बेटी की संस्कृति? परिवार का मुखिया मदन टीबी की बिमारी का मरीज है। दुखद यह है कि इस परिवार का राशन कार्ड गरीबी रेखा से नीचे वाला नहीं है। गरीबी रेखा से ऊपर वाला राशन कार्ड है। जिससे परिवार सरकार की गरीब लोगों के लिए सस्ते राशन की योजना का भी लाभ नहीं ले पाता।
![]() |
DAINIK HARIBHOOMI 13-5-2020 |
आजकल तो स्कूल बंद हैं। लेकिन स्कूल के दिनों में इस परिवार की छात्राओं से अध्यापक होमवर्क पूरा नहीं करके आने व नहा कर नहीं आने की शिकायत करते तो छात्राएं निरूत्तर हो जाती। अब मैडम व सर को क्या बताएं कि वे क्यों नहा कर स्कूल नहीं आ पाती हैं। आखिर कहां नहाएं? कहां तैयार हों? वे मन ही मन सोचती- बन ठन कर स्कूल आने वाली मैडम व सर को क्या मालूम कि वे कैसे पढ़ रही हैं। स्कूल से जाने के बाद घर पर कितने ही काम होते हैं। रात को अंधेरे में पढऩा भी मुश्किल होता है। परिवार की बच्चियां अपने जीवन की सारी व्यथा को बता नहीं पाती। आए दिन की इस पूछताछ को देख रहे एक मास्टर साहब को लगता है कि निरे उपदेश देने से कुछ नहीं होगा। परिवार की स्थितियों को जानने के लिए घर जाना चाहिए। वे घर जाते हैं तो सारी सच्चाई सामने आ जाती है। सामने यह भी आता है कि एक ही गांव में रहने वाले लोग अपने ही आस-पास रहने वाले लोगों के जीवन के प्रति उदासीन बने हुए हैं। परस्पर सहयोग करने की भावना खत्म होते जाने के कारण गांव में भी लोग अपने तक ही महदूद होकर रह गए हैं। किसी के घर में बिजली ही नहीं भोजन भी है या नहीं, किसी दूसरे को कुछ फर्क नहीं पड़ता है। कुछ परिवारों की भयानक आर्थिक स्थिति के बावजूद लोग बेअसर और संवेदनशून्य हैं। क्या इसी लिए गांव बसाए गए थे? क्या इसीलिए पंचायतों का चुनाव होता है? खैर, मास्टर जी मन ही मन परिवार के लिए सहयोग जुटाने की ठान लेते हैं।
![]() |
DAINIK JAMMU PARIVARTAN 12-5-2020 |
अपनी सामाजिक जिम्मेदारी के अहसास से लबरेज मास्टर जी कुछ अधिकारियों के सामने परिवार की दशा का जिक्र करते हैं तो एक अधिकारी जेब से रूपये निकाल कर महिन्द्र मास्टर जी को ही बिजली का कनैक्शन लगवाने की जिम्मेदारी दे देते हैं। कुछ और साथी भी सहयोग करते हैं। मास्टर जी के आग्रह पर बिजली विभाग तत्परता के साथ बिजली चालू कर देता है। सालों बाद बिजली का बल्ब जलने पर परिवार में खुशी का माहौल था। रात को खाना खाने के बाद सारा परिवार बल्ब की रोशनी में नीचे पल्लड़ बिछा कर बैठा है। दादी और बच्चियां मिलकर ताली बजाते हुए गीत गा रहे हैं।
मास्टर जी अपनी छात्राओं के घर में शौचालय निर्माण की तैयारियों में लग गए हैं। यह एक परिवार के लिए तो खुशी का कारण बना है। लेकिन देश में ऐसे तो कितने ही परिवार हैं, जहां पर सुविधाओं का अभाव है। ऐसे एक मास्टर जी ही नहीं अनेक चाहिएं। मास्टर जी ही क्यों? पूरा समाज आपसी सहयोग से समस्याओं का समाधान करने वाला क्यों नहीं बनता? सरकारें, प्रशासनिक इदारे, पंचायती राज संस्थाएं क्यों ऐसे लोगों की पहचान करके उन तक सुविधाएं नहीं पहुंचा पाती? या जानबूझ कर अपने-अपनों को लाभ पहुंचाना और अपना भरने के लिए कोई भी तरीका अपनाना, लेकिन जरूरतमंद को नजंदराज करते रहना। ऐसी भेदभावकारी नजर और नीति हमारे समाज का भला नहीं कर सकती। ऐसी स्थिति में आम गरीब लोगों पर लॉकडाउन में क्या बन रही होगी, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। पहली बार घर में बिजली के बल्ब जलने की खुशी को आपने भी वर्षों पहले महसूस किया था। आज भी बहुत से लोग इस खुशी से वंचित हैं। आईये, सहयोग का हाथ बढ़ाएं।
![]() |
ARTH PARKASH 13-5-2020 |
अरुण कुमार कैहरबा
हिन्दी प्राध्यापक
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान,
इन्द्री, जिला-करनाल, हरियाणा
मो.नं.-9466220145
No comments:
Post a Comment