Friday, February 28, 2014

रविन्द्र जैन

जन्मदिन विशेष

लोगों के दिलों को झंकृत करने वाले संगीतकार एवं गीतकार रविन्द्र जैन

अरुण कुमार कैहरबा

अखियों के झरोखों से मंैने देखा जो सांवरेतुम दूर नजऱ आये, बड़ी दूर नजऱ आयेबंद कर के झरोखों को जऱा बैठी जो सोचनेमन में तुम ही मुसकाये, मन में तुम ही मुसकाये मैं जब से तेरे प्यार के रंगों में रंगी हूँ जगते हुये सोयी रही, नींदों में जगी हूँ मेरे प्यार भरे सपने, कहीं कोई ना छीन लेमन सोच के घबराये, यही सोच के घबराये लाखों लोगों के दिलों को झंकृत करने वाला अखियों के झरोखों से (1978) फिल्म का यह गीत उस शख़्स ने लिखा है, जिसकी जन्म से आँखें नहीं हैं। गीत में रंगों और नज़रों के गहरे अहसास को देखकर इस बात पर आम लोगों को यकीन नहीं होता है। लेकिन यह पूरी तरह सच है और वह शख़्िसयत हैं-रविन्द्र जैन। उन्होंने हिन्दी फिल्मों के लिए अनेक गीत लिखे, गाए और उन्हें संगीत प्रदान किया। उनके गीत लोगों की जुबान पर पूरे अधिकार और संवेदनओं के साथ थिरकते हैं। उन्होंने विभिन्न भाषाओं के गीतों को अपने संगीत से नवाज़ा है।   रविन्द्र जैन का जन्म 28फरवरी, 1944 में राजस्थान के गाँव लोहरिया में हुआ था। रविन्द्र के परिवार में माता-पिता के साथ सात भाई व एक बहन थी। भाई-बहनो मे इनका स्थान तीसरा है। उनकी आरंभिक शिक्षा संस्कृत व आयुर्वेद गुरु पंडित इंद्रमनी जैन के सान्निध्य में हुई। संगीत की शिक्षा उन्हें पं. जी.एल. जैन, पं. जनार्दन शर्मा तथा पं नाथुराम से संयुक्त रूप से प्राप्त हुई। इसके बाद वह कोलकाता पहुंचे और फिऱ अंतत: मायानगरी मुंबई ने रविन्द्र जैन के सपनों को नई उड़ान एवं अभिव्यक्ति प्रदान की। बतौर संगीत निर्देशक ‘चोर मचाए शोर’ (1974) पहली फि़ल्म थी। इसके बाद गीत गाता चल (1975), चितचोर (1976), अखियों के झरोखे से (1978) एवं अमिताभ अभिनीत ‘सौदागर’ जैसी फि़ल्मों में भी अपनी सेवाएं दी। अपने सफ़ल कैरियर में रविन्द्र को आर के फि़ल्मस (राज कपूर), राजश्री प्रोडक्शन, क्षेत्रीय सिनेमा, धार्मिक फि़ल्म तथा टेलीविजऩ में सेवाएं देने का अवसर मिला। हिन्दी फि़ल्मों में राजश्री बैनर के लिए अनेक फि़ल्में की। इसमें-नदिया के पार, नैय्या, गीत गाता चल, चितचोर, अंखियों के झरोखे से, विवाह और एक विवाह ऐसा भी उल्लेखनीय हैं। राज कपूर के बैनर तले बनने वाली फिल्में भी कम नहीं हैं। यह वर्ष 1982 की बात है, जब नदिया के पार फिल्म के संगीत की सफलता के कारण रविन्द्र जैन के संगीत बजा हुआ था। एक विवाह समारोह में रविन्द्र जैन की मुलाकात राज कपूर से हुई। हुआ यूं कि महफिल जमी थी और जैन साहब से गाने के लिए कहा गया। उन्होंने अपने मधुर आवाज़ में गाना शुरू किया-‘एक राधा, एक मीरा, दोनों ने श्याम को चाहा, अन्तर क्या दोनों की चाह में बोलो, एक प्रेम दीवानी एक दरस दीवानी...’। राज साहब इसी मुखड़े को बार बार सुनते रहे और फिऱ उनसे पूछा -‘ये गीत किसी को दिया तो नहीं’। जैन साहब बोले- ‘दे दिया’। चौंक कर राज साहब ने पूछा किसे, जैन साहब ने मुस्कुरा कर कहा ‘राजकपूर जी को’। यहीं से शुरू हुआ रविन्द्र जैन के सफर का शानदार दौर। फि़ल्म राम तेरी गंगा मैली की भी एक दिलचस्प कहानी है। राज साहब की उलझन थी कि उन्होंने ही फि़ल्म ‘जिस देश में गंगा बहती है’  बनाई थी।  अब वही कैसे कहें ‘राम तेरी गंगा मैली’। गंगा दर्शन को गए रविन्द्र और राज साहब जब गंगा किनारे बैठ इसी बात पर विचार कर रहे थे। रविन्द्र जैन अचानक गाने लगे- ‘गंगा हमारी कहे बात ये रोते रोते...राम तेरी गंगा मैली हो गई पापियों के पाप धोते धोते..।’ सुनकर राज साहब कुछ ऐसे प्रसन्न हुए जैसे किसी बालक को खेलने के लिए चन्द्र खिलौना मिल गया हो। आनंदातिरेक में कहने लगे ‘बात बन गयी...अब फि़ल्म भी बन जायेगी’। यह सभी को पता है कि फिल्म कितनी हिट गई। इस फि़ल्म के दौरान ही अगली फि़ल्म ‘हिना’ पर भी चर्चा शुरू हो चुकी थी। इस फि़ल्म का संगीत भी लाजवाब था। इसके बाद रविन्द्र जैन ने कुछ और भी कामयाब फिल्में की जैसे-मरते दम तक, जंगबाज़, प्रतिघात आदि। छोटे परदे पर भी उन्होंने कामयाबी का परचम फरराया। महा धारावाहिक रामायण में उनका काम उत्कृष्ट रहा। हर धारावाहिक में उन्होंने थीम के अनुसार यादगार संगीत दिया, फिऱ चाहे वो हेमा मालिनी कृत नृत्य आधारित नुपुर हो, या अद्भुत कथाओं की अलिफ़ लैला या फिऱ साईं बाबा का न भूलने वाला संगीत। जैन साहब जितने अच्छे संगीतकार हैं, उतने ही या कहें उससे कहीं बड़े गीतकार, कवि और शायर भी हैं। अपने अधिकतर गीत उन्होंने ख़ुद लिखे पर कभी कभी अन्य संगीतकारों के लिए भी गीतकारी की। कल्याण जी आनंद जी के साथ ‘जा रे जा ओ हरजाई...’(कालीचरण), उषा खन्ना के लिए ‘गड्डी जांदी है छलांगा मार दी’(दादा) आदि उन्हीं के लिखे गीत हैं।रविन्द्र जैन ने फिल्म उद्योग को कईं गायकों और गायिकाओं से भी नवाजा। आरती मुखर्ज़ी को उन्होंने कोलकत्ता से बुलाया फि़ल्म गीत गाता चल के ‘श्याम तेरी बंसी पुकारे..’ के लिए तो इसी फि़ल्म जसपाल सिंह के रूप में उन्होंने एक नया गायक भी दिया। हेमलता, येसुदास और सुरेश वाडेकर ने भी उन्हीं की छात्र छाया में ही ढेरों कमाल के गीत गाये। गायक सुरेश वाडेकर मानते हैं कि आज वो जो भी हैं उसका पूरा श्रेय रविन्द्र जैन साहब को है। एक संगीत प्रतियोगिता के प्रतिभागी सुरेश की आवाज़ से प्रभावित रविन्द्र जैन ने उन्हें फि़ल्म में मौका देने का वादा किया जो उन्होंने निभाया भी, सुरेश से फि़ल्म ‘पहेली’ में गवा कर। उनके लिखे एवं संगीतबद्ध किए गए गीतों को देखकर यह बिल्कुल नहीं लगता कि वे किसी भी प्रकार से देखने में अक्षम हैं। चितचोर फिल्म में उनके लिखे गीत का मुखड़ा देखिए-गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारामैं तो गया माराआके यहाँ रे, आके यहाँ रेउसपर रूप तेरा सादाचन्द्रमधु आधाआधा जवाँ रे, आधा जवाँ रे  इसी फिल्म का अन्य गीत भी श्रोताओं को सम्मोहित कर लेता है-जब दीप जले आना, जब शाम ढ़ले आनासंकेत मिलन का भूल ना जानामेरा प्यार ना बिसरानाचोर मचाए शोर फिल्म में उनका लिखा एवं संगीतबद्ध किया और किशोर कुमार द्वारा गया गीत-घुंघरू की तरह, बजता ही रहा हूँ मैंकभी इस पग में, कभी उस पग मेंबंधता ही रहा हूँ मैंकभी टूट गया, कभी तोड़ा गयासौ बार मूझे फिर जोड़ा गयायूँ ही लूट लूट के, और मिट मिट केबनता ही रहा हूँ मैं                                                                                                              


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