Monday, February 3, 2014

रोशनी बनी महिलाओं की चहेती।

शिक्षा की अलख जगाने वाली रोशनी बनी महिलाओं की चहेती।

अरुण कुमार कैहरबा



अपने नाम के अनुरूप रोशनी देवी लोगों में शिक्षा और जागरूकता की अलख जगा रही है। आशा वर्कर रोशनी अपने विचारों एवं कामों की बदौलत अपने गांव नन्दी खालसा में ही नहीं बल्कि बड़े क्षेत्र में महिलाओं की चहेती बनी हुई है। उनके जुझारू व्यक्तित्व को देखते हुए आशा वर्करों ने उन्हें यूनियन का प्रदेशाध्यक्ष चुना था। अपने पद की जिम्मेदारी का पालन करते हुए वे आशा वर्करों की मांगों को मनवाने के लिए संघर्ष कर रही हैं। उनका कहना है कि आशा वर्कर जमीनी स्तर पर गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य, टीकाकरण, संस्थागत डिलीवरी और शिशु स्वास्थ्य के लिए मेहनत कर रही हैं, तो सरकार की भी जिम्मेदारी है कि उन्हें न्यूनतम वेतन व सुविधाएं प्रदान करे।

जिला यमुनानगर के गांव कंडरौली में बलबीर सिंह व राजबाला के घर पर 4 जनवरी, 1975 को रोशनी का जन्म हुआ था। वह पढऩे में बहुत होशियार थी। लेकिन 1987 में जब वह सातवीं कक्षा में ही थी, उसे स्कूल से हटा लिया गया। बड़ा परिवार और जागरूकता के अभाव के चलते पढ़ाई जारी करवाने के रोशनी के बार-बार अनुरोध को परिवार के सदस्यों द्वारा अनसुना कर दिया गया। इसके बावजूद स्कूल में जाकर पढऩे और कुछ बनने की चाह बनी रही। अपनी बौद्धिक भूख को शांत करने के लिए रोशनी को जो भी पठनीय सामग्री मिलती, उसे पढ़ डालती। 1995 में करनाल जिला के गांव नन्दी खालसा निवासी नरेश कुमार से उनकी शादी हुई और गृहस्थी के बोझ में पढ़ाई की लालसा बनी रही। किसी ने कहा है कि जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही जाती है। 2005 में गांव में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत आशा वर्कर लगाई जानी थी। रोशनी ने आवेदन किया, तो चिकित्सकों ने रोशनी के ज्ञान व समझदारी को देखते हुए उसे अवसर दिया, लेकिन नियुक्ति के वक्त पढऩे की हिदायत भी दी। इससे रोशनी में पढऩे की दबी हुई चाह को चिंगारी मिल गई। उसने पढऩा शुरू किया और 2010 में हरियाणा ओपन बोर्ड से दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। रोशनी ने बताया कि परीक्षा के लिए फिर से गणित पढऩा उसके लिए बहुत मजेदार रहा। हां अंग्रेजी में थोड़ी दिक्कत आई। इसके बाद 2012 में बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। अब रोशनी कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से प्राईवेट बी.ए. कर रही है। 

आत्म विकास के लिए शिक्षा हासिल करने के अलावा वह आशा वर्कर होने के नाते अपने ज्ञान को बांटने और सेवा में आगे रहती ह। अपने गांव में वह घुमंतु कलंदर समुदाय, अनुसूचित जाति की गरीब महिलाओं और पढ़ी-लिखी महिलाओं की अग्रणी नेता है। कारण साफ है कि गर्भवती महिलाओं की सेवा में वह हमेशा तत्पर रहती है। गांव से एक किलोमीटर की दूरी पर बनी गांव की बस्ती में भी वह जरूरत पडऩे पर रात को भी पहुंच जाती है। गर्भवती महिलाओं का पंजीकरण, टीकाकरण, उपचार व शिशुओं की देखभाल के अनेक प्रकार के काम वह पूरी जिम्मेदारी से करती है। महिलाओं के साथ रोशनी के मित्रवत् व्यवहार और विचारों का ही परिणाम है कि गांव की सभी गर्भवती महिलाओं की संस्थागत डिलीवरी होती है। शिशुओं व महिलाओं की प्राथमिक चिकित्सा के लिए रोशनी घर पर ही जरूरी दवाईयां रखती है। आस-पास के अनेक गांव की महिलाएं भी उससे बच्चों व गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य के बारे में सलाह लेने आती हैं।
आशा वर्कर के रूप में अपनी जिम्मेदारी के साथ न्याय करते हुए रोशनी वर्करों के अधिकारों के लिए पूरी तरह सजग है। इसके लिए वह यूनियन को हथियार बना रही है। हरियाणा सर्व कर्मचारी संघ ने जनवरी, 2009 में आशा वर्कर यूनियन बनाई, तो उसे इन्द्री खण्ड की प्रधान चुना गया। इसी वर्ष उसे जिला प्रधान की जिम्मेदारी सौंप दी गई। 2011 में उसे राज्याध्यक्ष बना दिया गया। यूनियन के मंच पर वह पूरे राज्य में निरंतर वर्करों की एकजुटता के लिए काम करती है। राज्य स्तरीय रैलियों में बेहद कम मानदेय में काम करने वाली आशा वर्करों की समस्याओं को बहुत मार्मिक ढ़ंग से उठाती हैं। यूनियन की उपलब्धियों के बारे में वे बताती हैं कि लंबे संघर्ष के बाद आशा वर्करों को थोड़ा-सा मानदेय मिलने का सरकार द्वारा भरोसा मिला है। गर्भवती महिला के पंजीकरण के लिए 25 रूपये से अब 125 रूपये मिलने लगे हैं। टीकाकरण शिविर के 25 रूपये से 150रूपये हो गए हैं। मासिक बैठक के लिए भी 150 रूपये का मानदेय मिलने लगा है। पहचान पत्र, नाम की प्लेट, सम्पर्क के लिए मोबाईल सिम व डायरी आदि सुविधाएं भी मिली हैं। रोशनी ने कहा कि न्यूनतम 15000रूपये प्रतिमास वेतन या फिर डीसी रेट देने पर फिलहाल सरकार के द्वारा सहमति व्यक्त नहीं की जा रही है। उन्होंने कहा कि आशा वर्करों की कड़ी मेहनत के कारण ही हरियाणा संस्थागत डिलीवरी के मामले में अच्छा प्रदर्शन कर रहा है, लेकिन मेहनत करने वालों को क्या मिल रहा है, सवाल तो यह है। उन्होंने कहा कि हरियाणा में इस समय 17 हजार आशा वर्कर हैं। इतनी बड़ी संख्या में संगठित महिलाओं के हित में सरकार को ज्यादा से ज्यादा काम करना चाहिए। 



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