जन्मदिन विशेष
Friday, February 28, 2014
Thursday, February 27, 2014
चन्द्रशेखर आजाद
आजादी की लड़ाई का अमर योद्धा चन्द्रशेखर आजाद
अरुण कुमार कैहरबा
गुलाम देश में भी जीता था, जो बन आज़ादी का परवाज़।नहीं हुआ है, कभी ना होगा चन्द्रशेखर सा आज़ाद।
आजादी की लड़ाई में चन्द्रशेखर आजाद ने अपने साहस, त्याग और बलिदान की बदौलत एक खास पहचान बनाई थी। वे राम प्रसाद बिस्मिल व भगत सिंह सरीखे महान् क्रांतिकारियों के अनन्यतम साथियों में से थे। 1922 में गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन को अचानक बन्द कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गये। इस संस्था के माध्यम से उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में पहले 9 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड किया और फरार हो गये। इसके बाद सन् 1927 में बिस्मिल के साथ 4 प्रमुख साथियों के बलिदान के बाद उन्होंने उत्तर भारत की सभी क्रान्तिकारी पार्टियों को मिलाकर एक करते हुए हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसिएशन का गठन किया तथा भगत सिंह के साथ लाहौर में लाला लाजपत राय की मौत का बदला सॉण्डर्स का वध करके लिया और दिल्ली पहुँच कर असेम्बली बम काण्ड को अंजाम दिया।
चन्द्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्यप्रदेश के वर्तमान अलीराजपुर के भाँवरा गाँव में हुआ था। उनके पिता पं. सीताराम तिवारी और माता का नाम जगरानी देवी था। आजाद का प्रारम्भिक जीवन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित भावरा गाँव में बीता अतएव बचपन में आजाद ने भील बालकों के साथ खूब धनुष बाण चलाये। जिससे उन्होंने निशानेबाजी बचपन में ही सीख ली थी। 1919 में हुए अमृतसर के जलियांवाला बाग नरसंहार ने देश के नवयुवकों को उद्वेलित कर दिया। चन्द्रशेखर उस समय पढ़ाई कर रहे थे। तभी से उनके मन में एक आग धधक रही थी। जब गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन का की शुरूआत की, तो तमाम अन्य छात्रों की भाँति चन्द्रशेखर भी उसमें कूद पड़े। अपने विद्यालय के छात्रों के जत्थे के साथ इस आन्दोलन में भाग लेने पर वे पहली बार गिरफ़्तार हुए और उन्हें 15 बेतों की सज़ा मिली। इस घटना का उल्लेख पं0 जवाहरलाल नेहरू ने कायदा तोडऩे वाले एक छोटे से लडके की कहानी के रूप में किया है-
‘ऐसे ही कायदे (कानून) तोडने के लिये एक छोटे से लडक़े को, जिसकी उम्र 15 या 16 साल की थी और जो अपने को आज़ाद कहता था, बेंत की सजा दी गयी। वह नंगा किया गया और बेंत की टिकटी से बाँध दिया गया। जैसे-जैसे बेंत उस पर पड़ते थे और उसकी चमड़ी उधेड़ डालते थे, वह भारत माता की जय चिल्लाता था। हर बेंत के साथ वह लडक़ा तब तक यही नारा लगाता रहा, जब तक वह बेहोश न हो गया। बाद में वही लडक़ा उत्तर भारत के आतंककारी कार्यों के दल का एक बड़ा नेता बना।’
असहयोग आन्दोलन के दौरान जब फरवरी, 1922 में चौरी चौरा की घटना के बाद बिना किसी से पूछे गाँधीजी ने आन्दोलन वापस ले लिया तो देश के तमाम नवयुवकों की तरह आज़ाद का भी कांग्रेस से मोह भंग हो गया और राम प्रसाद बिस्मिल, शचीन्द्रनाथ सान्याल व योगेशचन्द्र चटर्जी ने 1924 में उत्तर भारत के क्रान्तिकारियों को लेकर एक दल हिन्दुस्तानी प्रजातान्त्रिक संघ का गठन किया। चन्द्रशेखर आज़ाद भी इस दल में शामिल हो गये। इस संगठन ने जब गाँव के अमीर घरों में डकैतियाँ डालीं, ताकि दल के लिए धन जुटाने की व्यवस्था हो सके तो यह तय किया गया कि किसी भी औरत के ऊपर हाथ नहीं उठाया जाएगा। एक गाँव में राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में डाली गई डकैती में जब एक औरत ने आज़ाद का पिस्तौल छीन लिया तो अपने बलशाली शरीर के बावजूद आज़ाद ने अपने उसूलों के कारण उस पर हाथ नहीं उठाया। इस डकैती में क्रान्तिकारी दल के आठ सदस्यों पर, जिसमें आज़ाद और बिस्मिल भी शामिल थे, पूरे गाँव ने हमला कर दिया। बिस्मिल ने मकान के अन्दर घुसकर उस औरत के कसकर चाँटा मारा, पिस्तौल वापस छीनी और आजाद को डाँटते हुए खींचकर बाहर लाये। संघ द्वारा 9अगस्त, 1925 को काकोरी काण्ड को अंजाम दिया गया। जब शाहजहाँपुर में इस योजना के बारे में चर्चा करने के लिये मीटिंग बुलायी गयी तो दल के एक मात्र सदस्य अशफाक उल्ला खाँ ने इसका विरोध किया था। उनका तर्क था कि इससे प्रशासन उनके दल को जड़ से उखाडऩे पर तुल जायेगा और ऐसा ही हुआ भी। अंग्रेज़ चन्द्रशेखर आज़ाद को तो पकड़ नहीं सके पर अन्य सर्वोच्च कार्यकर्ताओं-राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ एवं ठाकुर रोशन सिंह को 19 दिसम्बर 1927 तथा उससे 2 दिन पूर्व राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को 17 दिसम्बर 1927 को फाँसी पर लटकाकर मार दिया गया। चार क्रान्तिकारियों को फाँसी और 16 को कड़ी कैद की सजा के बाद चन्द्रशेखर आज़ाद ने उत्तर भारत के सभी कान्तिकारियों को एकत्र कर 8 सितम्बर,1928 को दिल्ली के फिरोज शाह कोटला मैदान में एक गुप्त सभा का आयोजन किया। इसी सभा में भगत सिंह को दल का प्रचार-प्रमुख बनाया गया। इसी सभा में यह भी तय किया गया कि सभी क्रान्तिकारी दलों को अपने-अपने उद्देश्य इस नयी पार्टी में विलय कर लेने चाहिये। पर्याप्त विचार-विमर्श के पश्चात् एकमत से समाजवाद को दल के प्रमुख उद्देश्यों में शामिल घोषित करते हुए हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन का नाम बदलकर हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन रखा गया। चन्द्रशेखर आज़ाद को सेना-प्रमुख (कमाण्डर-इन-चीफ) का दायित्व दिया गया। इस दल के गठन के पश्चात् एक नया लक्ष्य निर्धारित किया गया-हमारी लड़ाई आखिरी फैसला होने तक जारी रहेगी और वह फैसला है जीत या मौत।
चन्द्रशेखर आज़ाद की इच्छा के विरुद्ध जब भगत सिंह एसेम्बली में बम फेंकने गये तो आज़ाद पर दल की पूरी जिम्मेवारी आ गयी। साण्डर्स वध में भी उन्होंने भगत सिंह का साथ दिया और बाद में उन्हें छुड़ाने की पूरी कोशिश भी की। आज़ाद की सलाह के खिलाफ जाकर यशपाल ने 23 दिसम्बर 1929 को दिल्ली के नज़दीक वायसराय की गाड़ी पर बम फेंका तो इससे आज़ाद क्षुब्ध थे क्योंकि इसमें वायसराय तो बच गया था पर कुछ और कर्मचारी मारे गए थे। आज़ाद को 28 मई 1930 को भगवती चरण वोहरा की बम-परीक्षण में हुई शहादत से भी गहरा आघात लगा था। इसके कारण भगत सिंह को जेल से छुड़ाने की योजना भी खटाई में पड़ गयी थी। एच0एस0आर0ए0 द्वारा किये गये साण्डर्स-वध और दिल्ली एसेम्बली बम काण्ड में फाँसी की सजा पाये तीन अभियुक्तों- भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव ने अपील करने से साफ मना कर ही दिया था। चन्द्रशेखर आज़ाद ने मृत्यु दण्ड पाये तीनों प्रमुख क्रान्तिकारियों की सजा कम कराने का काफी प्रयास किया। वे उत्तर प्रदेश की सीतापुर जेल में जाकर गणेशशंकर विद्यार्थी से मिले। विद्यार्थी से परामर्श कर वे इलाहाबाद गये और जवाहरलाल नेहरू से उनके निवास आनन्द भवन में भेंट की। आजाद ने पण्डित नेहरू से यह आग्रह किया कि वे गांधी जी पर लॉर्ड इरविन से इन तीनों की फाँसी को उम्र- कैद में बदलवाने के लिये जोर डालें। नेहरू जी ने जब आजाद की बात नहीं मानी तो आजाद ने उनसे काफी देर तक बहस भी की। वे इसी सिलसिले में 27फरवरी, 1931 को अल्फ्रेड पार्क में अपने एक मित्र सुखदेव राज से मन्त्रणा कर ही रहे थे तभी सी0आई0डी0 का एस0एस0पी0 नॉट बाबर जीप से वहाँ आ पहुँचा। उसके साथ भारी संख्या में पुलिस बल भी था। दोनों ओर से हुई भयंकर गोलीबारी में आजाद को वीरगति प्राप्त हुई। पुलिस ने बिना किसी को इसकी सूचना दिये चन्द्रशेखर आज़ाद का अन्तिम संस्कार कर दिया था। जैसे ही आजाद के बलिदान की खबर जनता को लगी सारा इलाहाबाद अलफ्रेड पार्क में उमड़ पडा। जवाहर लाल नेहरू ने आजाद के बारे में कहा था-‘चन्द्रशेखर आजाद की शहादत से पूरे देश में आजादी के आन्दोलन का नये रूप में शंखनाद होगा। आजाद की शहादत को हिन्दुस्तान हमेशा याद रखेगा।’
आजाद प्रखर देशभक्त थे। काकोरी काण्ड में फरार होने के बाद से ही उन्होंने छिपने के लिए साधु का वेश बनाना बखूबी सीख लिया था और इसका उपयोग उन्होंने कई बार किया। एक बार आजाद कानपुर के मशहूर व्यवसायी सेठ प्यारेलाल के निवास पर एक समारोह में आये हुये थे। प्यारेलाल प्रखर देशभक्त थे और प्राय: क्रांतिकारियों की आर्थिक मदद भी किया करते थे। आजाद और सेठ जी बातें कर ही रहे थे तभी सूचना मिली कि पुलिस ने हवेली को घेर लिया है। प्यारेलाल घबरा गये फिर भी उन्होंने आजाद से कहा कि वे अपनी जान दे देंगे पर उनको कुछ नहीं होने देंगे। आजाद हँसते हुए बोले-आप चिंन्ता न करें, मैं कानपुर के लोगों को मिठाई खिलाये बिना जाने वाला नहीं। फिर वे सेठानी से बोले- आओ भाभी जी! बाहर चलकर मिठाई बाँट आयें। आजाद ने गमछा सिर पर बाँधा, मिठाई का टोक़रा उठाया और सेठानी के साथ चल दिये। दोनों मिठाई बाँटते हुए हवेली से बाहर आ गये। बाहर खड़ी पुलिस को भी मिठाई खिलायी। पुलिस की आँखों के सामने से आजाद मिठाई-वाला बनकर निकल गये और पुलिस सोच भी नहीं पायी कि जिसे पकडऩे आयी थी वह परिन्दा तो कब का उड़ चुका है। ऐसे थे आजाद!
एक बार की घटना है आजाद पुलिस से छिपकर जंगल में साधु के भेष में रह रहे थे। तभी वहाँ एक दिन पुलिस आ गयी। दैवयोग से पुलिस उन्हीं के पास पहुँच भी गयी। पुलिस ने साधु वेश धारी आजाद से पूछा-बाबा! आपने आजाद को देखा है क्या? साधु भेषधारी आजाद तपाक से बोले- बच्चा आजाद को क्या देखना, हम तो हमेशा आजाद रहते? हें हम भी तो आजाद हैं। पुलिस समझी बाबा सच बोल रहा है, वह शायद गलत जगह आ गयी है अत: हाथ जोडकर माफी माँगी और उलटे पैरों वापस लौट गयी।
Friday, February 21, 2014
शील-जागा नया इंसान ज़माना बदलेगा
जागा नया इंसान ज़माना बदलेगा
जागा नया इंसान ज़माना बदलेगा, बदलेगा
उठा है जो तूफ़ान, वो इस दुनिया को बदल कर दम लेगा
आयेंगी मुश्किलें हजारों, पर हम भी लाचार नहीं
दो कौड़ी के मोल आज हम बिकने को तैयार नहीं
इस जीवन का इतिहास आज से, एक नई करवट लेगा
जागा नया इंसान ज़माना बदलेगा, बदलेगा
एका सबसे पहले यारों समय की है पुकार यही
एका हर बल से जीतेगा ढाल यही तलवार यही
हम एक अगर हो जाएँ तो एका सारे करतब कर लेगा
जागा नया इंसान ज़माना बदलेगा, बदलेगा
-शील
ओमप्रकाश वाल्मीकि
तब तुम क्या करोगे?
यदि तुम्हें,
धकेलकर गांव से बाहर कर दिया जाय
पानी तक न लेने दिया जाय कुएं से
दुत्कारा फटकारा जाय चिल-चिलाती दुपहर में
कहा जाय तोडने को पत्थर
काम के बदले
दिया जाय खाने को जूठन
तब तुम क्या करोगे?
यदि तुम्हें,
मरे जानवर को खींचकर
ले जाने के लिए कहा जाय
और
कहा जाय ढोने को
पूरे परिवार का मैला
पहनने को दी जाय उतरन
तब तुम क्या करोगे?
यदि तुम्हें,
पुस्तकों से दूर रखा जाय
जाने नहीं दिया जाय
विद्या मंदिर की चौकट तक
ढिबरी की मंद रोशनी में
काली पुती दिवारों पर
ईसा की तरह टांग दिया जाय
तब तुम क्या करोगे?
यदि तुम्हें,
रहने को दिया जाय
फूंस का कच्चा घर
वक्त-बे-वक्त फूंक कर जिसे
स्वाहा कर दिया जाय
बर्षा की रातों में
घुटने-घुटने पानी में
सोने को कहा जाय
तब तुम क्या करोगे?
यदि तुम्हें,
नदी के तेज बहाव में
उल्टा बहना पड़े
दर्द का दरवाजा खोलकर
भूख से जूझना पड़े
भेजना पड़े नई नवेली दुल्हन को
पहली रात ठाकुर की हवेली
तब तुम क्या करोगे?
यदि तुम्हें,
अपने ही देश में नकार दिया जाय
मानकर बंधुआ
छीन लिए जाय अधिकार सभी
जला दी जाय समूची सभ्यता तुम्हारी
नोच-नोच कर
फेंक दिया जाएं
गौरव में इतिहास के पृष्ठ तुम्हारे
तब तुम क्या करोगे?
यदि तुम्हें,
वोट डालने से रोका जाय
कर दिया जाय लहू-लुहान
पीट-पीट कर लोकतंत्र के नाम पर
याद दिलाया जाय जाति का ओछापन
दुर्गन्ध भरा हो जीवन
हाथ में पड़ गये हों छाले
फिर भी कहा जाय
खोदो नदी नाले
तब तुम क्या करोगे?
यदि तुम्हें,
सरे आम बेइज्त किया जाय
छीन ली जाय संपत्ति तुम्हारी
धर्म के नाम पर
कहा जाय बनने को देवदासी
तुम्हारी स्त्रियों को
कराई जाय उनसे वेश्यावृत्ति
तब तुम क्या करोगे?
साफ सुथरा रंग तुम्हारा
झुलस कर सांवला पड़ जायेगा
खो जायेगा आंखों का सलोनापन
तब तुम कागज पर
नहीं लिख पाओगे
सत्यम, शिवम, सुन्दरम!
देवी-देवताओं के वंशज तुम
हो जाओगे लूले लंगड़े और अपाहिज
जो जीना पड़ जाय युगों-युगों तक
मेरी तरह?
तब तुम क्या करोगे?
- ओमप्रकाश वाल्मीकि
धकेलकर गांव से बाहर कर दिया जाय
पानी तक न लेने दिया जाय कुएं से
दुत्कारा फटकारा जाय चिल-चिलाती दुपहर में
कहा जाय तोडने को पत्थर
काम के बदले
दिया जाय खाने को जूठन
तब तुम क्या करोगे?
यदि तुम्हें,
मरे जानवर को खींचकर
ले जाने के लिए कहा जाय
और
कहा जाय ढोने को
पूरे परिवार का मैला
पहनने को दी जाय उतरन
तब तुम क्या करोगे?
यदि तुम्हें,
पुस्तकों से दूर रखा जाय
जाने नहीं दिया जाय
विद्या मंदिर की चौकट तक
ढिबरी की मंद रोशनी में
काली पुती दिवारों पर
ईसा की तरह टांग दिया जाय
तब तुम क्या करोगे?
यदि तुम्हें,
रहने को दिया जाय
फूंस का कच्चा घर
वक्त-बे-वक्त फूंक कर जिसे
स्वाहा कर दिया जाय
बर्षा की रातों में
घुटने-घुटने पानी में
सोने को कहा जाय
तब तुम क्या करोगे?
यदि तुम्हें,
नदी के तेज बहाव में
उल्टा बहना पड़े
दर्द का दरवाजा खोलकर
भूख से जूझना पड़े
भेजना पड़े नई नवेली दुल्हन को
पहली रात ठाकुर की हवेली
तब तुम क्या करोगे?
यदि तुम्हें,
अपने ही देश में नकार दिया जाय
मानकर बंधुआ
छीन लिए जाय अधिकार सभी
जला दी जाय समूची सभ्यता तुम्हारी
नोच-नोच कर
फेंक दिया जाएं
गौरव में इतिहास के पृष्ठ तुम्हारे
तब तुम क्या करोगे?
यदि तुम्हें,
वोट डालने से रोका जाय
कर दिया जाय लहू-लुहान
पीट-पीट कर लोकतंत्र के नाम पर
याद दिलाया जाय जाति का ओछापन
दुर्गन्ध भरा हो जीवन
हाथ में पड़ गये हों छाले
फिर भी कहा जाय
खोदो नदी नाले
तब तुम क्या करोगे?
यदि तुम्हें,
सरे आम बेइज्त किया जाय
छीन ली जाय संपत्ति तुम्हारी
धर्म के नाम पर
कहा जाय बनने को देवदासी
तुम्हारी स्त्रियों को
कराई जाय उनसे वेश्यावृत्ति
तब तुम क्या करोगे?
साफ सुथरा रंग तुम्हारा
झुलस कर सांवला पड़ जायेगा
खो जायेगा आंखों का सलोनापन
तब तुम कागज पर
नहीं लिख पाओगे
सत्यम, शिवम, सुन्दरम!
देवी-देवताओं के वंशज तुम
हो जाओगे लूले लंगड़े और अपाहिज
जो जीना पड़ जाय युगों-युगों तक
मेरी तरह?
तब तुम क्या करोगे?
- ओमप्रकाश वाल्मीकि
बाबा नागार्जुन
ॐ शब्द ही ब्रह्म है..
ॐ शब्द्, और शब्द, और शब्द, और शब्द
ॐ प्रणव, ॐ नाद, ॐ मुद्रायें
ॐ वक्तव्य, ॐ उदगार्, ॐ घोषणाएं
ॐ भाषण...
ॐ प्रवचन...
ॐ हुंकार, ॐ फटकार्, ॐ शीत्कार
ॐ फुसफुस, ॐ फुत्कार, ॐ चीत्कार
ॐ आस्फालन, ॐ इंगित, ॐ इशारे
ॐ नारे, और नारे, और नारे, और नारे
ॐ सब कुछ, सब कुछ, सब कुछ
ॐ कुछ नहीं, कुछ नहीं, कुछ नहीं
ॐ पत्थर पर की दूब, खरगोश के सींग
ॐ नमक-तेल-हल्दी-जीरा-हींग
ॐ मूस की लेड़ी, कनेर के पात
ॐ डायन की चीख, औघड़ की अटपट बात
ॐ कोयला-इस्पात-पेट्रोल
ॐ हमी हम ठोस, बाकी सब फूटे ढोल
ॐ इदमान्नं, इमा आपः इदमज्यं, इदं हविः
ॐ यजमान, ॐ पुरोहित, ॐ राजा, ॐ कविः
ॐ क्रांतिः क्रांतिः सर्वग्वंक्रांतिः
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः सर्वग्यं शांतिः
ॐ भ्रांतिः भ्रांतिः भ्रांतिः सर्वग्वं भ्रांतिः
ॐ बचाओ बचाओ बचाओ बचाओ
ॐ हटाओ हटाओ हटाओ हटाओ
ॐ घेराओ घेराओ घेराओ घेराओ
ॐ निभाओ निभाओ निभाओ निभाओ
ॐ दलों में एक दल अपना दल, ॐ
ॐ अंगीकरण, शुद्धीकरण, राष्ट्रीकरण
ॐ मुष्टीकरण, तुष्टिकरण, पुष्टीकरण
ॐ ऎतराज़, आक्षेप, अनुशासन
ॐ गद्दी पर आजन्म वज्रासन
ॐ ट्रिब्यूनल, ॐ आश्वासन
ॐ गुटनिरपेक्ष, सत्तासापेक्ष जोड़-तोड़
ॐ छल-छंद, ॐ मिथ्या, ॐ होड़महोड़
ॐ बकवास, ॐ उदघाटन
ॐ मारण मोहन उच्चाटन
बाबा नागार्जुन
ॐ प्रणव, ॐ नाद, ॐ मुद्रायें
ॐ वक्तव्य, ॐ उदगार्, ॐ घोषणाएं
ॐ भाषण...
ॐ प्रवचन...
ॐ हुंकार, ॐ फटकार्, ॐ शीत्कार
ॐ फुसफुस, ॐ फुत्कार, ॐ चीत्कार
ॐ आस्फालन, ॐ इंगित, ॐ इशारे
ॐ नारे, और नारे, और नारे, और नारे
ॐ सब कुछ, सब कुछ, सब कुछ
ॐ कुछ नहीं, कुछ नहीं, कुछ नहीं
ॐ पत्थर पर की दूब, खरगोश के सींग
ॐ नमक-तेल-हल्दी-जीरा-हींग
ॐ मूस की लेड़ी, कनेर के पात
ॐ डायन की चीख, औघड़ की अटपट बात
ॐ कोयला-इस्पात-पेट्रोल
ॐ हमी हम ठोस, बाकी सब फूटे ढोल
ॐ इदमान्नं, इमा आपः इदमज्यं, इदं हविः
ॐ यजमान, ॐ पुरोहित, ॐ राजा, ॐ कविः
ॐ क्रांतिः क्रांतिः सर्वग्वंक्रांतिः
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः सर्वग्यं शांतिः
ॐ भ्रांतिः भ्रांतिः भ्रांतिः सर्वग्वं भ्रांतिः
ॐ बचाओ बचाओ बचाओ बचाओ
ॐ हटाओ हटाओ हटाओ हटाओ
ॐ घेराओ घेराओ घेराओ घेराओ
ॐ निभाओ निभाओ निभाओ निभाओ
ॐ दलों में एक दल अपना दल, ॐ
ॐ अंगीकरण, शुद्धीकरण, राष्ट्रीकरण
ॐ मुष्टीकरण, तुष्टिकरण, पुष्टीकरण
ॐ ऎतराज़, आक्षेप, अनुशासन
ॐ गद्दी पर आजन्म वज्रासन
ॐ ट्रिब्यूनल, ॐ आश्वासन
ॐ गुटनिरपेक्ष, सत्तासापेक्ष जोड़-तोड़
ॐ छल-छंद, ॐ मिथ्या, ॐ होड़महोड़
ॐ बकवास, ॐ उदघाटन
ॐ मारण मोहन उच्चाटन
बाबा नागार्जुन
भारत में सडक़ों की हालत
भारत में दुनिया के किसी और देश की तुलना में सबसे ज्य़ादा सडक़ हादसे होते हैं। सरकारी आँकड़े कहते हैं कि भारत में हर साल 115,000 हज़ार लोग सडक़ हादसे में मारे जाते हैं। हाल ही में ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में छपी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में सडक़ हादसों में हर साल मरने वालों की संख्या दो लाख के करीब हो सकती है। इसी रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि मरने वालों में 37 फ़ीसदी लोग पैदल चलने वाले होते हैं और 28 फीसदी साइकिल या मोटरसाइकिल सवार होते हैं। इस आंकड़े के अनुसार 55 फ़ीसदी मामलों में मौत हादसे के पांच मिनट के भीतर हो जाती है।
भारतीय सिनेमा-एक तस्वीर
भारत में दुनिया का सबसे बड़ा फिल्म उद्योग है। यहां हर साल औसतन 1100 से भी ज्य़ादा फि़ल्में बनाई जाती हैं। यह नाइजीरिया के फि़ल्म उद्योग से थोड़ा ही आगे है, अमरीका के फि़ल्म उद्योग से दोगुना बड़ा है और यहां ब्रिटेन की तुलना में दस गुना ज्य़ादा फिल्में बनती हैं। जैसा कि अक्सर ये समझा जाता है कि भारतीय सिनेमा का मतलब बॉलीवुड है लेकिन यहां साल भर में 200 फिल्में ही बनती हैं। भारत में बोली जाने वाली दो दक्षिण भारतीय भाषाओं तमिल और तेलुगु में भी बड़ी संख्या में फिल्में बनाई जाती हैं। चेन्नई और हैदराबाद भारतीय सिनेमा के दो बड़े केंद्र हैं। हालांकि बॉक्स ऑफिस पर होने वाली कमाई के मामले में भारत का क्रम दुनिया में छठा है। अमरीका, चीन, जापान, ब्रिटेन और फ्रांस भारत से आगे हैं।
Tuesday, February 18, 2014
Sunday, February 16, 2014
Friday, February 14, 2014
Thursday, February 13, 2014
Monday, February 10, 2014
Thursday, February 6, 2014
Tuesday, February 4, 2014
Monday, February 3, 2014
रोशनी बनी महिलाओं की चहेती।
शिक्षा की अलख जगाने वाली रोशनी बनी महिलाओं की चहेती।
अरुण कुमार कैहरबा
अपने नाम के अनुरूप रोशनी देवी लोगों में शिक्षा और जागरूकता की अलख जगा रही है। आशा वर्कर रोशनी अपने विचारों एवं कामों की बदौलत अपने गांव नन्दी खालसा में ही नहीं बल्कि बड़े क्षेत्र में महिलाओं की चहेती बनी हुई है। उनके जुझारू व्यक्तित्व को देखते हुए आशा वर्करों ने उन्हें यूनियन का प्रदेशाध्यक्ष चुना था। अपने पद की जिम्मेदारी का पालन करते हुए वे आशा वर्करों की मांगों को मनवाने के लिए संघर्ष कर रही हैं। उनका कहना है कि आशा वर्कर जमीनी स्तर पर गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य, टीकाकरण, संस्थागत डिलीवरी और शिशु स्वास्थ्य के लिए मेहनत कर रही हैं, तो सरकार की भी जिम्मेदारी है कि उन्हें न्यूनतम वेतन व सुविधाएं प्रदान करे।
जिला यमुनानगर के गांव कंडरौली में बलबीर सिंह व राजबाला के घर पर 4 जनवरी, 1975 को रोशनी का जन्म हुआ था। वह पढऩे में बहुत होशियार थी। लेकिन 1987 में जब वह सातवीं कक्षा में ही थी, उसे स्कूल से हटा लिया गया। बड़ा परिवार और जागरूकता के अभाव के चलते पढ़ाई जारी करवाने के रोशनी के बार-बार अनुरोध को परिवार के सदस्यों द्वारा अनसुना कर दिया गया। इसके बावजूद स्कूल में जाकर पढऩे और कुछ बनने की चाह बनी रही। अपनी बौद्धिक भूख को शांत करने के लिए रोशनी को जो भी पठनीय सामग्री मिलती, उसे पढ़ डालती। 1995 में करनाल जिला के गांव नन्दी खालसा निवासी नरेश कुमार से उनकी शादी हुई और गृहस्थी के बोझ में पढ़ाई की लालसा बनी रही। किसी ने कहा है कि जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही जाती है। 2005 में गांव में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत आशा वर्कर लगाई जानी थी। रोशनी ने आवेदन किया, तो चिकित्सकों ने रोशनी के ज्ञान व समझदारी को देखते हुए उसे अवसर दिया, लेकिन नियुक्ति के वक्त पढऩे की हिदायत भी दी। इससे रोशनी में पढऩे की दबी हुई चाह को चिंगारी मिल गई। उसने पढऩा शुरू किया और 2010 में हरियाणा ओपन बोर्ड से दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। रोशनी ने बताया कि परीक्षा के लिए फिर से गणित पढऩा उसके लिए बहुत मजेदार रहा। हां अंग्रेजी में थोड़ी दिक्कत आई। इसके बाद 2012 में बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। अब रोशनी कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से प्राईवेट बी.ए. कर रही है।
आत्म विकास के लिए शिक्षा हासिल करने के अलावा वह आशा वर्कर होने के नाते अपने ज्ञान को बांटने और सेवा में आगे रहती ह। अपने गांव में वह घुमंतु कलंदर समुदाय, अनुसूचित जाति की गरीब महिलाओं और पढ़ी-लिखी महिलाओं की अग्रणी नेता है। कारण साफ है कि गर्भवती महिलाओं की सेवा में वह हमेशा तत्पर रहती है। गांव से एक किलोमीटर की दूरी पर बनी गांव की बस्ती में भी वह जरूरत पडऩे पर रात को भी पहुंच जाती है। गर्भवती महिलाओं का पंजीकरण, टीकाकरण, उपचार व शिशुओं की देखभाल के अनेक प्रकार के काम वह पूरी जिम्मेदारी से करती है। महिलाओं के साथ रोशनी के मित्रवत् व्यवहार और विचारों का ही परिणाम है कि गांव की सभी गर्भवती महिलाओं की संस्थागत डिलीवरी होती है। शिशुओं व महिलाओं की प्राथमिक चिकित्सा के लिए रोशनी घर पर ही जरूरी दवाईयां रखती है। आस-पास के अनेक गांव की महिलाएं भी उससे बच्चों व गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य के बारे में सलाह लेने आती हैं।
आशा वर्कर के रूप में अपनी जिम्मेदारी के साथ न्याय करते हुए रोशनी वर्करों के अधिकारों के लिए पूरी तरह सजग है। इसके लिए वह यूनियन को हथियार बना रही है। हरियाणा सर्व कर्मचारी संघ ने जनवरी, 2009 में आशा वर्कर यूनियन बनाई, तो उसे इन्द्री खण्ड की प्रधान चुना गया। इसी वर्ष उसे जिला प्रधान की जिम्मेदारी सौंप दी गई। 2011 में उसे राज्याध्यक्ष बना दिया गया। यूनियन के मंच पर वह पूरे राज्य में निरंतर वर्करों की एकजुटता के लिए काम करती है। राज्य स्तरीय रैलियों में बेहद कम मानदेय में काम करने वाली आशा वर्करों की समस्याओं को बहुत मार्मिक ढ़ंग से उठाती हैं। यूनियन की उपलब्धियों के बारे में वे बताती हैं कि लंबे संघर्ष के बाद आशा वर्करों को थोड़ा-सा मानदेय मिलने का सरकार द्वारा भरोसा मिला है। गर्भवती महिला के पंजीकरण के लिए 25 रूपये से अब 125 रूपये मिलने लगे हैं। टीकाकरण शिविर के 25 रूपये से 150रूपये हो गए हैं। मासिक बैठक के लिए भी 150 रूपये का मानदेय मिलने लगा है। पहचान पत्र, नाम की प्लेट, सम्पर्क के लिए मोबाईल सिम व डायरी आदि सुविधाएं भी मिली हैं। रोशनी ने कहा कि न्यूनतम 15000रूपये प्रतिमास वेतन या फिर डीसी रेट देने पर फिलहाल सरकार के द्वारा सहमति व्यक्त नहीं की जा रही है। उन्होंने कहा कि आशा वर्करों की कड़ी मेहनत के कारण ही हरियाणा संस्थागत डिलीवरी के मामले में अच्छा प्रदर्शन कर रहा है, लेकिन मेहनत करने वालों को क्या मिल रहा है, सवाल तो यह है। उन्होंने कहा कि हरियाणा में इस समय 17 हजार आशा वर्कर हैं। इतनी बड़ी संख्या में संगठित महिलाओं के हित में सरकार को ज्यादा से ज्यादा काम करना चाहिए।
Saturday, February 1, 2014
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