'वंदे मतरम' ने आजादी की चेतना फैलाने में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका: अरुण कैहरबा
राष्ट्रीय गीत की रचना के 150 वर्ष पूरे होने पर कार्यक्रम आयोजित
इन्द्री, 7 नवंबर
गांव ब्याना स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में राष्ट्रगीत 'वंदे मातरम' की रचना के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें सभी विद्यार्थियों व अध्यापकों ने मिलकर राष्ट्रगीत का सामूहिक रूप से गान किया। कार्यक्रम के दौरान स्वतंत्रता आंदोलन में राष्ट्रीय गीत की भूमिका पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रधानाचार्य रामकुमार सैनी ने की।
मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए हिंदी प्रध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने कहा कि बंकिम चन्द्र चटर्जी भारतीय साहित्य के बेहद महत्वपूर्ण साहित्यकार हैं। उनके 'आनंद मठ' नाम के उपन्यास में राष्ट्रीय गीत संकलित है। वंदे मातरम की रचना आज ही के लिए 7 नवंबर, 1875 में हुई मानी जाती है। इस गीत के लिखने के पीछे एक रोचक कहानी है। बताता जाता है कि अंग्रेजी शासकों ने इंग्लैंड की महारानी के सम्मान में लिखे गए एक गीत को प्रत्येक समारोह में गाना अनिवार्य कर दिया था। इससे भारत के लोग बेहद आहत हुए। इसके जवाब में बंकिम चन्द्र चटर्जी ने भारत देश की शान में यह अमर कृति लिखी। आनंद मठ 1882 में प्रकाशित हुआ, जिसमें इस गीत का भी प्रयोग किया गया है। आनंद मठ और राष्ट्रीय गीत दोनों देश भक्ति की भावना और स्वतंत्रता की चेतना से ओतप्रोत हैं । आनंद मठ के प्रकाशन से अंग्रेजी शासन घबरा गया था। अंग्रेजों ने इस पर पाबंदी लगा दी थी। देश के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान राष्ट्रीय गीत हर आजादी के मतवाले की जुबान पर था।
प्रधानाचार्य राम कुमार सैनी ने कहा कि सभी विद्यार्थियों को स्वतंत्रता आंदोलन के नारों और गीतों की महत्ता को समझना चाहिए। वंदे मातरम की चेतना को अपनाकर ही हम देश की तरक्की और विकसित भारत के सपने को साकार कर सकते हैं।
कार्यक्रम का संचालन शारीरिक शिक्षा अध्यापक रमन बग्गा ने किया। इस मौके पर प्राध्यापक डॉ. सुभाष भारती, सतीश राणा, बलविंद्र सिंह, विनोद भारतीय, सीमा गोयल, संजीव कुमार, बलराज कांबोज, राजेश सैनी, सलिन्द्र मंढाण, विनोद आचार्य, दिनेश कुमार, मुकेश खंडवाल, अनिल पाल, नरिन्द्र कुमार, विवेक शर्मा, नरेश मीत, अश्वनी कांबोज, बलिन्द्र कुमार, सोमपाल मौजूद रहे।

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