Sunday, June 9, 2024

EYE DONATION DAY 10 JUNE SPECIAL ARTICLE

दृष्टिहीनों की दुनिया में उजाला लाने के लिए नेत्रदान करें

जाते-जाते नेत्रदान करके दृष्टिहीनों के जीवन में फैलाएं उजाला

अरुण कुमार कैहरबा

कुदरत के नजारों और रंगों को देखने के लिए आंखें अनमोल वरदान हैं। आंखों के माध्यम से हम दुनिया के साथ अपना रिश्ता बनाते हैं। आंखें केवल वातावरण से जानकारियों को ग्रहण ही नहीं करती बल्कि सशक्त अभिव्यक्ति में भी इनका महत्वपूर्ण योगदान है। इसे प्रख्यात शायर एवं गीतकार साहिर लुधियानवी ने अपने एक गीत में कुछ इस प्रकार कहा है-
हर तरह के जज़्बात का ऐलान है आंखें
शबनम कभी शोला कभी तूफान हैं आंखें।
आंखें ही मिलती हैं जमाने में दिलों को
अनजान हैं हम तुम अगर अनजान हंै आंखें
उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता
जिस मुल्क की सरहद की निगहबान है आंखें।
लेकिन दुनिया में बहुत बड़ी आबादी ऐसी भी है, दृष्टिहीनता के कारण जो देखा नहीं पा रही है। उनमें से कुछ लोगों के पास दृष्टि के विकल्प के तौर पर अन्य इंद्रियों का प्रयोग करने के अलावा कोई चारा नहीं है। स्पर्श व श्रवण इंद्रियों के समुचित प्रशिक्षण के द्वारा वह भी अच्छा जीवन जी सकते हैं, इसमें कोई शक नहीं रह गया। ब्रेल लिपि और अन्य तकनीकी साधनों ने उनके जीवन को रोशन किया है। दुनिया में ऐसे कई उदाहरण हुए हैं जिन्होंने अपनी लगन व मेहनत से दृष्टिहीनता के बावजूद अपनी सफलताओं का इतिहास लिखा है। फिर भी आंखों का कोई विकल्प नहीं है। कोरनियल दिक्कत के कारण दृष्टिहीन हुए लोगों के लिए खुशकिस्मती की बात यह है कि प्रत्यारोपण के द्वारा वे फिर से दुनिया देख सकते हैं। लेकिन यह भी तभी संभव है जबकि दृष्टिवान लोगों के द्वारा बढ़-चढक़र नेत्रदान किया जाए। नेत्रदान मृत्यु के बाद होता है। लेकिन इसके लिए जीते जी संकल्प पत्र भरना होता है। संकल्प पत्र के बावजूद भी मृत्यु के पश्चात परिजनों का सहयोग व तत्परता जरूरी है। मृत्यु के बाद परिजनों की जिम्मेदारी है कि वे तत्काल नेत्रबैंक को सूचित करें। चिकित्सकों के आने से पूर्व मृतक की आंखें बंद कर देनी चाहिएं। मृत्यु के 6 घंटे के भीतर कॉर्निया निकाल लिया जाना जरूरी है। व्यावहारिक रूप से एक वर्ष की उम्र से लेकर कोई भी व्यक्ति नेत्रदान कर सकता है। नेत्रदान के लिए अधिकतम आयु की कोई सीमा नहीं है। कम दिखाई देना व उम्र का कोई अंतर कोई नहीं है। वे लोग भी नेत्रदान कर सकते हैं जो चश्मा पहनते हैं और जिन्होंने मोतियाबिंद का ऑपरेशन करवा रखा है। मधुमेह के रोगी भी नेत्रदान कर सकते हैं। यहां तक कि दृष्टिपटल एवं ऑप्टिक नर्व की समस्या के कारण दृष्टिबाधित व्यक्ति भी नेत्रदान कर सकते हैं।
अब सवाल यह है कि जब नेत्रदान के द्वारा लाखों दृष्टिहीन लोग दुनिया देख सकते हैं तो फिर इसमें दिक्कत क्या है। हर रोज तो हजारों लोग मारे जाते हैं तो आखिर फिर भी क्यों दुनिया को कॉर्नियल दृष्टिहीनता से मुक्ति नहीं मिलती। यह सवाल कचोटने वाला है। सामाजिक पहलकदमी के बिना बहुत से लोग आज भी दृष्टिहीनता का दंश झेल रहे हैं। आखिर नेत्रदान में अवरोध क्या है? निश्चय ही जागरूकता की कमी और अंधविश्वास नेत्रदान के मार्ग के रोड हैं। जनसंचार के साधनों की क्रांति के युग में आज भी लोगों को नेत्रदान की सही जानकारी नहीं हो तो कोई आश्चर्य नहीं। क्योंकि मनोरंजन और मुनाफा कमाने की होड़ में लगे जनसंचार माध्यमों को इतनी फुर्सत ही नहीं है कि वह नेत्रदान को अभियान बनाने में जुटें। जो थोड़ा बहुत समय व स्थान इस प्रकार के जनकल्याणकारी विज्ञापनों को मिलता भी है, उसकी तुलना ऊंट के मुंह में जीरे से की जा सकती है। जानकारी मिल भी जाती है तो अंधविश्वासों का निराकरण नहीं हो पता। आज भी बड़ी आबादी अनेक प्रकार के अंधविश्वासों के जाल में फंसी है। मृत्यु के बाद नेत्रदान व देहदान की कल्पना उन्हें सिहरा देती है। वे अगले जन्म के बारे में चिंतित हो जाते हैं। नेत्रदान की बात करने पर उन्हें यह आशंका घेर लेती है कि अगले जन्म में नेत्रदान करने वाला दिवंगत व्यक्ति दृष्टिहीन ना हो जाए। धर्म में विश्वास करने वाले लोगों के ऐसे अंधविश्वास और भ्रांतियां उनके धर्म ज्ञान पर ही सवाल खड़ा कर देते हैं। सभी धर्म संप्रदायों में दया एवं परोपकार को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। जीते जी दूसरों के काम आना हमारा धर्म है। लेकिन यदि मृत्यु के बाद हम नेत्रदान करके दूसरों के अंधेरे जीवन में उजाला भरें तो इससे बड़ा परोपकार और क्या हो सकता है। समाज को अंधविश्वासों से निकालकर नेत्रदान को बढ़ावा देने के लिए व्यापक जागरूकता अभियान चलाए जाने की जरूरत है।
@अरुण कुमार कैहरबा
हिन्दी प्राध्यापक एवं दृष्टिबाधित विद्यार्थियों की शिक्षा विशेषज्ञ
हरियाणा विद्यालय शिक्षा विभाग।
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जिला-करनाल, हरियाणा-132041
मो.नं.-9466220145


BOOK REVIEW / BEBAK, SABIR ALI SABIR

पुस्तक समीक्षा

पुस्तक : बेबाक
कवि : साबिर अली साबिर
अनुवादक: सुरेन्द्र पाल सिंह
प्रकाशक : यूनिक्रिएशन पब्लिशर्स, कुरुक्षेत्र
पृष्ठ-78
मूल्य : रु. 200.


साबिर अली साबिर की पंजाबी कविताओं का शानदार हिन्दी अनुवाद

साबिर की कविताओं में बुल्लेशाह और फरीद की वाणी की गूंज सुनाई देती है

अरुण कुमार कैहरबा
DAILY NEWS ACTIVIST 9-6-2024
पश्चिमी पंजाब के प्रसिद्ध शायर व कवि साबिर अली साबिर भारत और पाकिस्तान के दोनों पंजाब में समान रूप से जाना-माना नाम है। उनकी रचनाएं बहुत ही सीधे-सादे शब्दों में गहरे अर्थ लिए होती हैं। उनकी शायरी में बाबा बुल्लेशाह और बाबा फरीद की छाप स्पष्ट रूप से दिखाई और सुनाई देती है। साबिर को कभी आमने-सामने तो नहीं सुन पाए, लेकिन पाकिस्तान में आयोजित मुशायरों के वीडियो देखने से पता चलता है कि उनको सुनने के लिए काव्य रसिक दूर-दूर से पहुंचते हैं। इसी तरह वीडियो भी दोनों देशों के लोग देखते हैं। उनकी रचनाओं को उनके मुंह से सुनना बहुत ही शानदार अनुभव होता है।
हरियाणा के लोक इतिहास की तह तक जाने वाले लेखक एवं सामाजिक कार्यकर्ता सुरेन्द्र पाल सिंह अपने गहरे सरोकारों के लिए पहचान रखते हैं। पंजाबी के मकबूल रचनाकार साबिर अली साबिर को हिन्दी के पाठकों तक ले जाने का यह महत्वपूर्ण कार्य उन्होंने अनुवाद के जरिये किया है, किताब को यूनिक्रिएशन पब्लिशर्स ने प्रकाशित किया है। अनुवाद के लिए सुरेन्द्र पाल सिंह ने एक शब्द की रचना से लेकर अधिकतर छोटे आकार की रचनाओं का चयन किया है। अनुदित रचनाओं में छंदमुक्त कविताएं और $गज़ल भी शामिल हैं। यह काम बहुत ही सुंदर व सार्थक बन पड़ा है। हिन्दी पाठकों तक साबिर की कविताएं पहुंचना किसी उपलब्धि से कम नहीं है। इसके लिए अनुवादक को हार्दिक बधाई।
साबिर अली साबिर की रचनाएं संवेदना और शिल्प दोनों ही दृष्टियों से महत्वपूर्ण हैं। संवेदना की बात करें तो साबिर अन्य अनेक सूफी-संत कवियों की तरह सच की तलाश में लगे हैं। सत्य का शोध करने के लिए तमाम तरह के झूठ व प्रपंच को पहचानते हैं। उसे बहुत बेबाकी के साथ अभिव्यक्त करते हुए उसका खंडन करते हैं। हिन्दी संत कवि कबीर की तरह का उनका मिजाज है, जो झूठ और पाखंड के प्रचारकों को बुरी तरह लताड़ता है। साबिर को जो दिखाई देता है, वे उसे कहने में जरा भी संकोच नहीं करते।  वे अपनी कविता ‘झूठ’ में कहते हैं- ‘सच अकेला एक है, गाँव है झूठ का।’ सच और झूठ की जंग में साबिर अकेले सच के साथ मजबूती के साथ खड़े होते हैं। इकबाल ने कभी कहा था-‘मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना।’ लेकिन वक्त ने मजहब के नए-नए रंग देखे हैं। धर्म ने आज जो रूप ले लिया है, अनुवादित पुस्तक की सबसे छोटी कविता ‘मजहब’ में एक ही शब्द में वे पूरा सच कह जाते हैं। इस कविता को सरसरी तौर पर पढ़ कर तो यही लगता है कि मजहब के बारे में कवि ज्यादा कुछ कहना नहीं चाहता। लेकिन इस कविता में वे मजहब को ‘माफिया’ की संज्ञा देते हुए एक शब्द में ही बहुत कुछ कह जाते हैं। क्योंकि मजहब के नाम पर कुछ लोगों को पाप कर्म करने का लाइसेंस मिल गया है। इसी के नाम पर वे दूसरे धर्म के लोगों को इन्सान भी मानने को तैयार नहीं है। अपनी धार्मिकता के दंभ का ही नया रूप दिखाते हुए वे मॉब लिंचिंग करते हैं। इसी के नाम पर वे दंगा करते हैं। कवि का कहना है कि इस तरह की घटनाओं से ऐसा नहीं कि कुछ हो नहीं रहा है। धर्म का नाम लेकर तरह-तरह के काम करने वाले लोगों का सच उजागर हो रहा है। वे कहते हैं- ‘कौन क्या है, नंगा हुआ है।’ एक अन्य कविता में वे साहस के साथ उन पंडत, फादर और मुल्लों को ललकारते हैं, जोकि भगवान के नाम पर इन्सानों को मारते हैं।
एक अन्य कविता में वे कहते हैं-‘गंगा है या मक्का है, सीधा-सीधा धक्का है।’ कविता- ‘रब्बा तेरे हुक्म बिना’ में भी कवि साबिर अली साबिर रब से ही सवाल करते हैं कि यदि तेरे बिना पत्ता भी नहीं हिलता तो फिर दुनिया में ये क्या हो रहा है? कवि का रब से भी ज्यादा बंदे में यकीन है। अपनी कविता ‘रब्ब और बंदा’ में वे कहते हैं कि बंदा ही रब का निर्माता है। यदि इन्सान ने भगवान को ना बनाया होता तो भगवान भी इन्सान बन गया होता। जिस सच को कवि व्यक्त कर रहा है, उसके प्रति लोगों का दृष्टिकोण ‘ये कहां लिखा है’ कविता में उजागर हुआ है। कवि जब भी कुछ कहता और लिखता है तो लोग सवाल करते हैं कि कहां लिखा है। फिर कवि उनसे ही सवाल करता है कि जो बात आज तक किसी ने नहीं कही और ना ही लिखी हो उसे कोई कहे और लिखे ना, ऐसा भी तो किसी ने नहीं लिखा है। कवि अव्यक्त को व्यक्त करना महत्वपूर्ण मानता है। कवि मौजूदा दौर में चुप्पी साध गए कलमकारों की मतलबपरस्ती को समझता है। चुप हो गए लोगों को मरा हुआ ही मानता है। सिर उठाकर अपनी बात कहने में यकीन रखता है। यदि हम अपनी बात ना कह पाएं तो फिर हमारे होने का कोई मतलब नहीं है। अभिव्यक्ति के खतरे उठाने के लिए कवि तैयार है। वह अपनी कविता-‘पहुँच’ में कहता है-‘अब तो मेरे गले में ही उलटना है, जो जहर का प्याला तेरा है।’
कवि साबिर अपने समय के यथार्थ को व्यक्त करता है। ‘अंदेशा’ कविता में पांच साल की एक बच्ची की असुरक्षा का चित्र अंकित किया गया है। लड़कियों के लिए असुरक्षित हो चुके वातावरण के प्रति चिंता व्यक्त की गई है। कवि की नजर आगे कदम बढ़ाने वाले रास्ते पर है। रास्ते को देखना, उसके बारे में पूछना और बदला जाना तो उन्हें पसंद है, लेकिन रास्ते को रोका जाना उन्हें पसंद नहीं है। न्यायिक व्यवस्था के बारे में वे ‘अदालतें’ कविता में कहते हैं कि अदालतें भी कमजोर लोगों के लिए न्याय नहीं करती हैं।
पंजाबी की एक कहावत है-पेट ना पईयां रोटियां ते सब्बे गल्लां खोटियां। अपनी एक क्षणिका-भूख में वे कहते हैं- ‘जोर की भूख लगी हो तो बगल में बैठी लडक़ी भी सुंदर नहीं लगती।’ साबिर का सूफियाना अंदाज कईं कविताओं में मुखर हो जाता है। ‘तू मैं’ कविता इसका सुंदर उदाहरण है। ‘बड़ी लंबी कहानी’ में यथार्थ और दार्शनिकता के दर्शन होते हैं। वे अपनी कविता में प्यार को अहमियत देते हैं। कवि के अनुसार प्यार सबसे पहले आता है और रब से भी पहले आता है।
संकलित संग्रह में बहुत ही कम शब्दों में गहरी और दार्शनिक बात कहने के प्रयोग पाठकों को आकर्षित करते हैं। देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर की तर्ज पर ये कविताएं गहरे अर्थ लिए हुए हैं। इनमें गहरा फलसफा है। ‘आस्था’ को वे ‘गले में पड़ा ढ़ोल’ कह कर ही कविता पूरी कर देते हैं। तो एक दूसरे का हालचाल पूछने पर कही जाने वाली उक्ति ‘शुक्र है रब का’ को ‘आम झूठ’ की संज्ञा देते हैं। साबिर धारा के विपरीत चलने वाले मोहब्बत और इंकलाब के रचनाकार हैं। वे अपनी रचनाओं के बारे में पंजाबी में कहते हैं- सीद्दा-सादा बयान देणा है, हक खादा ना खाण देणा है। शेर सुण के ही दाद नहीं देणी, विचली गल्ल ते ध्यान देणा है। आकार में भले ही कोई कविता अत्यंत छोटी हो या फिर कुछ बड़ी। उन सबके बीच सार की बात है, जिस पर हम ध्यान देते हैं तो संग्रह की सभी रचनाएं समय की आलोचना पेश करने वाली और दिशा दिखाने वाली हैं।
साबिर जैसे महत्वपूर्ण कवि की पहचान करके उन्हें भारत के हिन्दी पाठकों तक ले जाने का जो काम सुरेन्द्र पाल सिंह ने किया है। इसी तरह के प्रयास वे निरंतर करते रहें, इसके लिए हमारी ढ़ेर सारी शुभकामनाएँ।
अरुण कुमार कैहरबा
समीक्षक व हिन्दी प्राध्यापक
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जिला-करनाल, हरियाणा
मो.नं.-9466220145


JANSANDESH TIMES 9-6-2024

Thursday, June 6, 2024

TREE PLANTATION FESTIVAL IN GMS ISLAMNAGAR (KARNAL)

पोलिथीन व प्लास्टिक का कचरा पर्यावरण के लिए खतरा: बीएस मलिक

पर्यावरण संरक्षण और स्कूल सौंदर्यीकरण के संबंधों को किया जाएगा सशक्त: राजपाल

इस्लामनगर के सरकारी स्कूल में पौधारोपण-पौधापोषण उत्सव आयोजित

सेवानिवृत्त आईएएस व पूर्व डीईओ ने पौधारोपण करके की कार्यक्रम की शुरूआत

इन्द्री, 6 जून
गांव इस्लाम नगर स्थित राजकीय माध्यमिक विद्यालय में विश्व पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य में पौधारोपण-पौधापोषण उत्सव आयोजित किया गया। उत्सव में पूर्व उपायुक्त व सेवानिवृत्त आईएएस बीएस मलिक और पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी राजपाल चौधरी ने मुख्य अतिथि के रूप में पौधारोपण किया और उत्सव का शुभारंभ किया। ग्राम सरपंच संगीता देवी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। स्कूल अध्यापक पंकज कंबोज, सुनील कुमार, धर्मवीर लठवाल, अजैब सिंह, सतीश शर्मा, राजेंद्र कुमार ने आए अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में समाजसेवी दिलबाग लाठर, अध्यापक महिंद्र खेड़ा, अरुण कैहरबा, मान सिंह चंदेल,  सुरेश नगली, जसवंत बांकुरा, देवेंद्र देवा, जगदीश भादसों, रमेश खरक, विजय चोपड़ा, सबरेज अहमद, राजकुमार, कुलदीप रोहिला, सार्थक, सविता देवी और सोनिया देवी सहित अनेक लोगों ने अपना योगदान दिया। सरपंच व अध्यापकों ने आए अतिथियों को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया। कार्यक्रम के दौरान ग्रामीणों को भी विभिन्न प्रजातियों के पौधे वितरित किए गए।
अध्यापकों व पर्यावरण प्रेमियों को संबोधित करते हुए सेवानिवृत्त आईएएस बीएस मलिक ने कहा कि गीले और सूखे कचरे को अलग-अलग ना किया जाना पर्यावरण के लिए काफी खतरनाक है। धरती पर बिखरे पोलिथीन व प्लास्टिक के कचरे ने धरती में पानी जाने के रास्तों को बंद कर दिया है। दूसरी तरफ मनुष्य द्वारा धरती के पानी का अंधाधुंध दोहन किया जा रहा है। बरसात का पानी पोलिथीन की परतों की वजह से नीचे नहीं जा पा रहा है। ऊपर से धरती पर पेड़ों का भी अंधाधुंध कटान किया गया है और निरंतर विकास परियोजनाओं के नाम पर यह कार्य जारी है। उन्होंने कहा कि आज पर्यावरण कर्मियों को पौधे रोपने के साथ-साथ पर्यावरण के अन्य शत्रुओं के साथ भी लड़ाई लडऩी पड़ेगी।
सेवानिवृत्त डीईओ राजपाल चौधरी ने कहा कि पेड़ धरती का शृंगार हैं। पेड़ों के बिना धरती सुनसान हो जाएगी। पेड़ जहां बरसात लाने में सहायक होते हैं। वहीं गलोबल वार्मिंग व जलवायु परिवर्तन के साथ लड़ाई लडऩे वाले सशक्त सिपाही हैं। आज जरूरत इस बात की है कि पौधे लगाने के साथ-साथ उनका संरक्षण व पोषण करके उन्हें पेड़ बनाया जाए। उन्होंने कहा कि इस्लामनगर स्कूल और आसपास के स्कूलों के अध्यापकों की टीम जहां विद्यार्थियों को अच्छी शिक्षा प्रदान करते हुए उन्हें पर्यावरण संरक्षण के संस्कार दे रहे हैं, वहीं स्वयं भी स्कूलों में हरियाली को सौंदर्यीकरण का जरिया बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण व स्कूल सौंदर्यीकरण के अन्तर्संबंधों को और अधिक सशक्त किया जाएगा। 







Wednesday, June 5, 2024

TREE PLANTATION IN GMSPS NANHERA ON WORLD ENVIRONMENT DAY

भारतीय संस्कृति में पौधों का बहुत महत्व

नन्हेड़ा के सरकारी स्कूल में चलाया पौधारोपण अभियान

इन्द्री, 5 जून 

उपमंडल के गांव नन्हेड़ा स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति प्राथमिक पाठशाला में विश्व पर्यावरण दिवस पर पौधारोपण अभियान में हनुमान फल, चीकू, आडू व आम के पौधे रोपे गए। अभियान में बीआरपी रविन्द्र शिल्पी, धमेन्द्र चौधरी, कविता कांबोज, अध्यापक महिन्द्र कुमार, अरुण कैहरबा, मानसिंह चंदेल, जगदीश भादसों, सार्थक, गुंजन, उधमसिंह नन्हेड़ा, महिंद्र गांधी, उदित, अंशुमान तथा सुदर्शन लाल ने हिस्सा लिया। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति में पेड़ पौधों का बहुत महत्व है। आज भी लोग पेड़ पौधों की पूजा करके उनके संरक्षण के लिए अभियान चलाते हैं और उन्हें देवताओं के समान माना जाता है। पेड़ पौधों की अनदेखी के कारण हर वर्ष लगाए जाने वाले करोड़ों पौधों में से बड़ी संख्या में मर जाते हैं। पेड़ पौधे लगाने के साथ-साथ उनके संरक्षण के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि उन्हें बच्चों की तरह से देखभाल की जरूरत पड़ती है इसलिए उन्हें सुबह शाम उनमें पानी लगाना पड़ता है।

 



WORLD ENVIRONMENT DAY IN GOVT. VETNERY HOSPITAL, INDRI

 स्वच्छ व सुंदर पर्यावरण पर निर्भर है अच्छा जीवन: डॉ. मोनिका

राजकीय पशु चिकित्सालय में चलाया पौधारोपण अभियान

अमलतास, गुलमोहर व बेल पत्थर के पौधे लगाए

इन्द्री, 5 जून 

विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर इन्द्री स्थित राजकीय पशु चिकित्सालय में वेटनरी सर्जन डॉ. मोनिका के नेतृत्व में पौधारोपण अभियान चलाया गया। अभियान के तहत पशु अस्पताल में अमलतास, गुलमोहर और बेल पत्थर के पौधे रोपे गए। अभियान में वीएलडीए भवनेश, अनूप, बंटी, ऐनिमल अटैंडैंट हरविन्द्र सिंह व चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी जसमेर ने सक्रिय हिस्सेदारी की। अभियान को सफल बनाने में शिक्षा विभाग की तरफ से प्राध्यापक अरुण कैहरबा व बलविन्द्र सिंह ने शिरकत की।

वेटनरी सर्जन डॉ. मोनिका ने कहा कि स्वच्छ व सुंदर पर्यावरण के बिना अच्छे जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। धरती, पानी, पेड़, पंछी और जीव-जंतुओं का गहरा संबंध है। पेड़ों के अंधाधुंध कटान से ही आज ग्लोबल वार्मिंग का संकट आन खड़ा हुआ है। आज इतने अधिक असहनीय तापमान का कारण भी यही है कि हम कंकरीट के जंगलों में तो इजाफा  करते जा रहे हैं, लेकिन वास्तविक जंगलों पर कुल्हाड़ा चलाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि अधिक से अधिक पौधे लगाना और उन पौधों की सुरक्षा करते हुए उन्हें बड़ा करके पेड़ बनाना पुण्य का कार्य है। पशु अस्पताल के सभी कर्मचारियों ने लगाए जा रहे पौधों का संरक्षण करने का संकल्प लिया।


पेड़ धरती का शृंगार: अरुण कैहरबा

प्राध्यापक अरुण कैहरबा और बलविन्द्र सिंह ने कहा कि पेड़ धरती का शृंगार हैं। पेड़ होते हैं तो उन पर पक्षी घोंसला बनाते हैं। पेड़ों की हरियाली और पक्षियों का संगीत मन को तरोताजगी प्रदान करते हैं। उन्होंने कहा कि चिलचिलाती धूप में पैदल यात्रा करनी पड़ जाए तब हमें पेड़ों की अहमियत का अंदाजा होता है। आग उगलती सडक़ों के किनारे पेड़ हों तो राहत मिलती है। उन्होंने कहा कि आज विकास की ऐसी अवधारणा विकसित करने की जरूरत है, जोकि पर्यावरण और पेड़ों के अनुकूल हो।