Sunday, January 30, 2022

Educational tour give pleasure of learning

सीखने को आनंद से जोड़ता शैक्षिक भ्रमण

घूम-घूम कर सीखना देता कमाल का अनुभव

अरुण कुमार कैहरबा

बच्चे अपनी ऊर्जा व उत्साह के लिए जाने जाते हैं। यही ऊर्जा उनकी चंचलता और सक्रियता का कारण है। बच्चों की सीखने की चाह उनके नए-नए सवालों से झांकती है। यदि अवसर मिले तो वे प्रश्रों की झड़ी लगा देते हैं। ये प्रश्र बड़ों को भी सीखने का मौका देते हैं। बच्चों की सृजनशीलता को उपयुक्त मंच प्रदान करने की जरूरत है। हालांकि सभी बच्चे एक से नहीं होते। बल्कि यह कहना उचित होगा कि हर एक बच्चा अपने आप में अनूठा और विलक्षण होता है। सभी बच्चों की रूचियां, अभिरूचियां, आदतें, सीखने की शैली और तरीका भी भिन्न होता है। इसलिए सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में नीरसता और जड़ता बहुत खतरनाक चीज है। विविधतापूर्ण बच्चों की सृजनशीलता को पंख देने के लिए विषय-वस्तु, विधियों व प्रविधियों में भी विविधता की जरूरत होती है। इसलिए यदि कोई कड़े और बनावटी अनुशासन में रखकर बच्चों को अच्छी शिक्षा देने की कल्पना करता है, तो वह भूल-भुलैया में है। बच्चों की रचनात्मकता नवीनता और नवाचारों से शांत होती है।
स्कूलों में अध्यापक कक्षा-कक्ष में शिक्षण कार्य करते हुए सीखने-सिखाने के साधनों व विधियों में विविधता लेकर आते हैं। इसके बावजूद कुछ विद्यार्थियों के लिए यह नीरस लगता है। विद्यार्थियों में रूचियों का विकास करने और सीखने का भरपूर आनंद प्रदान करने के लिए अध्यापक बच्चों को कक्षा-कक्ष से बाहर लेकर आते हैं और पुस्तकालय, प्रयोगशालाओं व खेल के मैदान में विद्यार्थियों को लाकर अपने तरीकों में और खुलापन लाते हैं। जब स्कूल प्रांगण के भी बाहर अध्यापक विद्यार्थियों लेकर आते हैं और किसी स्थान, भवन, प्राकृतिक नजारों आदि को दिखाते हुए शिक्षण कार्य करते हैं तो सीखने-सिखाने के काम में एक नई ताजगी आती है। ऐसे में सीखने वाले विद्यार्थियों के चेहरों पर खुशी और चमक देखते ही बनती है।
अपने अध्यापकों के साथ स्कूल के दायरों से बाहर निकल कर किसी प्रतियोगिता में हिस्सेदारी करना, किसी ऐतिहासिक तथा ज्ञान-विज्ञान के स्थल का भ्रमण करना, किसी पुस्तक मेले या सांस्कृतिक मेले का भ्रमण करना विद्यार्थियों के लिए अविस्मरणीय होता है। इन अनुभवों को कोई भूलना भी चाहे तो वह उसे भुला नहीं सकता। हम सभी अपने ही बचपन व स्कूली शिक्षा के दिनों को याद करें तो वे अध्यापक भी हमें ससम्मान याद आ जाते हैं जोकि हमें किसी स्थान पर लेकर गए थे। जहां हमें लेकर जाया गया था और जो कुछ सिखाया गया था, वह भी हमें सहज ही याद आ जाता है। उसे याद करने की जरूरत नहीं होती। क्योंकि शैक्षिक भ्रमणों में हम जाकर, देखकर, चर्चाएं करके व सवाल करके सीखते हैं तो वह अनुभव जीवन भर हमारे साथ होता है।
अपने अनुभव के आधार पर यह कहा जा सकता है कि शैक्षिक भ्रमण सीखने-सिखाने का सबसे अच्छा तरीका है। हालांकि विद्यार्थी अपने माता-पिता के साथ भी विभिन्न स्थानों पर भ्रमण के लिए जाते हैं। लेकिन अध्यापकों के सानिध्य व सहपाठियों के साथ घूमने का आनंद अलग ही होता है। स्कूल प्रशासन व अध्यापकों को इस विधि का हर संभव प्रयोग करना चाहिए। योजनाबद्ध ढ़ंग से आयोजित किए गए शैक्षिक भ्रमण विद्यार्थियों के लिए ज्ञान का नया संसार खोलने वाले होते हैं। घूमते हुए सहपाठियों के साथ कल्पनाओं से भरी चर्चाएं और अध्यापकों का मार्गदर्शन बच्चों को सीखने के आनंद से भर देते हैं। इनसे उनमें निरंतर सीखने का उत्साह संचरित होता है।
शैक्षिक भ्रमण का एक और बड़ा लाभ अध्यापक व विद्यार्थियों के संबंधों में तरोताजगी के संचार के रूप में होता है। स्कूल में पढ़ते-पढ़ाते हुए बच्चे अध्यापकों के बारे में एक राय बना लेते हैं। ऐसा ही अध्यापकों के साथ भी हो सकता है कि वे किसी बच्चे के बारे में एक रूढ़ दृष्टिकोण तैयार कर लें। बच्चों के खास तरह के व्यवहार से कईं बार अध्यापकों में गुस्सा आता है। बच्चे अध्यापकों को गुस्सैल मान लेते हैं। विद्यार्थियों द्वारा अध्यापकों के नाम रख लिए जाते हैं, जोकि अधिकतर दोनों के रिश्तों में आई खटास की तरफ ही संकेत करते हैं। अध्यापकों और विद्यार्थियों में आई इसी नीरसता को तोडऩे में शैक्षणिक भ्रमण महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनके माध्यम से दोनों को एक दूसरे को अच्छी तरह से समझने का मौका मिलता है। दोनों में विश्वास पैदा होता है, जोकि सीखने-सिखाने के ठोस धरातल का कार्य करता है। किसी शैक्षिक भ्रमण से लौट के आने पर विद्यार्थी अपने अध्यापकों का कहा मानने में उत्साह प्रदर्शित करते हैं। ऐसा ही उनके अधिगम उत्साह व स्तर के रूप में भी होता है।
आम धारणा है कि शैक्षिक भ्रमण खर्चीले होते हैं। लेकिन ऐसा है नहीं। हर विषय के शिक्षण में कितनी ही बार ऐसा होता है कि विषय-वस्तु की बेहतर समझ बनाने में अध्यापक को शैक्षिक भ्रमण की जरूरत महसूस होती है। समुदाय, पंचायती राज संस्थाओं व नगर निकायों की कार्यप्रणाली आदि पढ़ाते हुए यदि गांव में सरपंच या नगरपालिका के पार्षद आदि से बात करके विद्यार्थियों को हम बाहर ले जाकर इनके प्रतिनिधियों से मिलवाते हैं और दिखाते हुए इनके कार्य के बारे में बताते हैं तो किताबों में पढऩे-पढ़ाने व रटाने से कहीं ज्यादा आनंददायी हो जाएगा। इसी प्रकार डाकखाना व बैंक के कार्यों के बारे में पढ़ाने के साथ-साथ यदि बच्चों को इन स्थानों का भ्रमण करवा दिया जाए तो सीखी गई बातें अधिक उपयोगी हो जाएंगी। हमारे आस-पास भी इतिहास से जुड़े स्थान हैं, थोड़े से खर्चे में वहां पर विद्यार्थियों को ले जाया जा सकता है। 
हिन्दी, पंजाबी व अंग्रेजी भाषाओं के साहित्य का परिचय करवाने के लिए विद्यार्थियों को आस-पास होने वाले कवि सम्मेलन व संगोष्ठी में ले जाया जा सकता है। हो तो ऐसा भी सकता है कि अपने आस-पास के कवि या लेखक को स्कूल में बुलाया जाए और उनके साथ विद्यार्थियों की चर्चा करवाई जाए। लेकिन स्कूल के बाहर ले जाकर भी लेखक या कवि से बच्चों की मुलाकात व चर्चा करवाई जा सकती है। हमारे आस-पास ऐसी साहित्यिक संस्थाएं हैं, जोकि साहित्य को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न प्रकार के आयोजन करती हैं। उनके आयोजनों में ले जाना विद्यार्थियों के लिए किताबों व साहित्य से जुडऩे के लिए बहुत उत्साहवर्धक होता है। अपने आस-पास के स्थानों पर विद्यार्थियों के छोटे-छोटे समूहों को ले जाना खर्चीला भी नहीं होता है। अनुभव की दृष्टि से यह बड़े या ज्यादा लंबी दूरी के शैक्षिक भ्रमणों से कहीं कमतर नहीं है।
वर्ष में एक बार तो अवश्य ही हर एक विद्यार्थी को अपने अध्यापकों के मार्गदर्शन में सहपाठियों के साथ शैक्षिक भ्रमण का अवसर मिलना ही चाहिए। थोड़ी दूरी पर तो शैक्षिक भ्रमण ज्यादा भी हो सकते हैं। ज्यादा लंबी दूरी पर बस, रेलगाड़ी या अन्य वाहनों पर सवार होकर जाना विद्यार्थियों की कल्पना को पंख लगा देता है। सभी बच्चे घर से खाना बनवाकर लेकर आएं और अध्यापकों के साथ मिलकर खाना खाएं। या फिर किसी लंगर या ढ़ाबे पर खाने का स्वाद लें तो सोने पर सुहागे का काम करता है। 
हरियाणा विद्यालय शिक्षा विभाग द्वारा विद्यार्थियों के शैक्षिक भ्रमण को प्रोत्साहित किया जाता है। वार्षिक रूप से ऐसे कईं शैक्षिक भ्रमणों का आयोजन किया जाता है। जिसमें लड़कियों, विशेष आवश्यकता वाले विद्यार्थियों को दूरवर्ती स्थलों के दर्शन करवाए जाते हैं। विभाग के द्वारा ऐसे कईं शिविर भी आयोजित किए जाते हैं, जिनमें हिस्सा लेने से विद्यार्थी बहुत कुछ सीखते हैं। विभिन्न राज्यों में सांस्कृतिक आदान-प्रदान के अवसर भी मिलते हैं। विभाग के द्वारा केरल राज्य में आयोजित किए गए समुद्र तटीय अध्ययन शिविर में हरियाणा के विभिन्न स्कूलों के बहुत से बच्चे हिस्सा ले चुके हैं। इन शिविरों में विद्यार्थियों को दक्षिण भारत के शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी राज्य की भाषा, कला व संस्कृति का जीवंत अनुभव मिला है। इन शिविरों के माध्यम से विद्यार्थियों को पहली बार समुद्र देखने और उसकी लहरों के साथ खेलने का मौका मिला है। पर्वतीय स्थलों पर भी विभाग ने साहसिक गतिविधियों के शिविर आयोजित किए हैं, जिनमें विद्यार्थियों ने कमाल का प्रदर्शन करके प्रदेश भर का नाम रोशन किया है। सभी बच्चों के सीखने के आनंद को यकीनी बनाने के लिए शैक्षिक भ्रमण कार्यक्रमों को स्कूल प्रशासन व अध्यापक अपनी तरह से डिजाइन कर सकते हैं। 
अरुण कुमार कैहरबा
हिन्दी प्राध्यापक
राजकीय उच्च विद्यालय, करेड़ा खुर्द,
खंड-जगाधरी, जिला-यमुनानगर 
घर का पता-वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जिला-करनाल, हरियाणा
मो.नं.-9466220145   
 







Thursday, January 27, 2022

Republic Day celebrated in GHS Karera Khurd

 करेड़ा खुर्द स्कूल में धूमधाम से मनाया गणतंत्र दिवस

ध्वजारोहण के बाद विद्यार्थियों ने सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के जरिये मोहा मन

यमुनानगर, 26 जनवरी

गांव करेड़ा खुर्द स्थित राजकीय उच्च विद्यालय में गणतंत्र दिवस समारोह धूमधाम से मनाया गया। मुख्याध्यापक विपिन कुमार मिश्रा, उच्च विद्यालय प्रबंधन कमेटी प्रधान जयवीर, प्राथमिक पाठशाला प्रधान रोशनी देवी ने मिलकर ध्वजारोहण किया। सभी ने ध्वज को सलामी दी। इस मौके पर हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा, मौलिक मुख्याध्यापक विष्णु दत्त, पंजाबी अध्यापिका सुखिन्द्र कौर, संस्कृत अध्यापिका रजनी शास्त्री, विज्ञान अध्यापक विजय गर्ग, सामाजिक विज्ञान अध्यापिका राजरानी, प्राथमिक पाठशाला प्रभारी वीरेन्द्र कुमार, अध्यापक सुल्तान सिंह, वंदन शर्मा, कम्प्यूटर अध्यापिका डिंपल, एलए रवि कुमार सहित समस्त स्टाफ सदस्य और बहुत से अभिभावक व विद्यार्थी मौजूद रहे।


समारोह में यहाना, गरिमा, महक, रीतिक सहित अनेक विद्यार्थियों ने सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दी। अतिथियों व अध्यापकों ने विद्यार्थियों को पुरस्कार देकर सम्मानित किया। मुख्याध्यापक विपिन मिश्रा ने कहा कि गणतंत्र दिवस देश का गौरवशाली पर्व है। इसी दिन देश का संविधान लागू हुआ था। उन्होंने कहा कि देश के गौरव को चार चांद तभी लगेंगे, जब सभी विद्यार्थी मन लगाकर शिक्षा ग्रहण करेंगे।


कार्यक्रम का संचालन करते हुए हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने संविधान की प्रस्तावना का पाठ किया, उनके बाद सभी ने उसे दोहराया। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि अंग्रेजी दासता से मुक्ति पाने के लिए देशवासियों ने लंबी लड़ाई लड़ी। इस दौरान देशवासियों की एकजुटता और मिलीजुली संस्कृति और निखर कर आई। अनेक प्रतिभाओं ने अपने विचारों से एक अच्छे समाज और देश की परिकल्पना पेश की। अनेक लोगों ने बलिदान दिए। उस दौरान जो सपने देखे गए, उन सपनों, अपेक्षा, आकांक्षाओं और विचारों का लिखित दस्तावेज है भारतीय संविधान। संविधान की प्रस्तावना में हम भारत के लोग, लोकतंत्र, गणतंत्र, पंथ निरपेक्षता, सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक न्याय सहित अनेक शब्द गहरी बातों को व्यक्त करते हैं। उन्होंने विद्यार्थियों को लोकतंत्र व गणतंत्र के अर्थ को विस्तार से बताते हुए कहा कि लोकतंत्र जनता का जनता के लिए और जनता द्वारा शासन है। लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि होती है। गणतंत्र में देश का मुखिया जनता द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है। दुनिया में कईं देश ऐसे हैं, जो लोकतांत्रिक तो हैं, लेकिन वे गणतंत्र नहीं हैं। देश का मुखिया वहां वंश परंपरा से आता है। लेकिन भारत देश लोकतंत्र भी है और गणतंत्र भी। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की सफलता लोगों की शिक्षा पर निर्भर करती है। क्योंकि चुनावों के जरिये जनता को अपना भाज्य विधाता चुनना होता है।


मौलिक मुख्याध्यापक विष्णु दत्त ने कहा कि भारत का संविधान बनाने में डॉ. भीमराव अंबेडकर का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने समानता, बंधुता और न्याय पर आधारित समाज की स्थापना की कल्पना की है। उन्होंने गणतंत्र दिवस के अवसर पर डॉ. अंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि सफलता के लिए सभी को ईमानदारी, लगन, मेहनत व कर्तव्यनिष्ठा के साथ आगे बढऩा चाहिए।

पंजाबी अध्यापिका सुखिन्द्र कौर ने कहा कि कोरोना के दौर में सभी सुरक्षित रहें। जल्द ही देश से यह बला टले और स्कूल खुलें, ऐसी वे कामना करती हैं। उन्होंने विद्यार्थियों को घर पर रह कर भी मन लगा कर पढऩे का संदेश दिया। संस्कृत अध्यापिका रजनी शास्त्री ने कहा कि भारत देश की पहचान यहां की मिलीजुली संस्कृति से है। उन्होंने संस्कृति शब्द के गहरे अर्थों से विद्यार्थियों को परिचित करवाया। प्राथमिक शिक्षिका वंदना शर्मा ने तरन्नुम के साथ गीत गाया- ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछड़े चमन, तुझपे दिल कुर्बान। 


प्रबंधन कमेटी प्रधान रोशनी देवी व जयवीर सिंह ने गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं देते हुए विद्यार्थियों को मन लगाकर पढऩे का संदेश दिया। आशा वर्कर एवं प्रबंधन कमेटी सदस्या मीनू ने 15 साल से ऊपर के सभी विद्यार्थियों को कोरोना वैक्सीन अवश्य लगवाने, अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने, स्कूल में मिलने वाली आयरन व एलबैंडाजोल की गोली अवश्य लेने का संदेश दिया। छात्रा यहाना ने अंगे्रजी भाषा में गणतंत्र दिवस के महत्व से अवगत करवाया। नौवीं कक्षा के विद्यार्थी रीतिक ने शायरी के जरिये देश देश के लिए काम करने का भाव व्यक्त किया।


Wednesday, January 5, 2022

Out of School Survey in village Baag ka Majra & Beech ka Majra by GHS KARERA KHURD TEACHERS

 परिवेश के बारे में सजग बनाती है शिक्षा: अरुण

स्कूल से बाहर बच्चों की पहचान करने के लिए अध्यापकों ने किया सर्वेक्षण

यमुनानगर, 5 जनवरी
गांव करेड़ा खुर्द राजकीय उच्च विद्यालय के अध्यापकों द्वारा चार गांव में स्कूल से बाहर रह गए बच्चों का सर्वेक्षण किया जा रहा है। मुख्याध्यापक विपिन कुमार मिश्रा के मार्गदर्शन में अध्यापकों की अलग-अलग टीमें करेड़ा खुर्द, बाग का माजरा, बीच का माजरा, मिस्री का माजरा और इन गांवों के अन्तर्गत पड़ने वाली फैक्ट्रियों के मज़दूरों की बस्तियों में सर्वेक्षण करने में लगी हैं। बुधवार को हिंदी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा, मौलिक मुख्याध्यापक विष्णु दत्त और एलए रवि कुमार ने बाग का माजरा और बीच का माजरा में सर्वेक्षण किया। पंजाबी शिक्षिका सुखविन्द्र कौर और संस्कृत अध्यापिका रजनी शास्त्री ने करेड़ा खुर्द में सर्वेक्षण किया। अध्यापक घर घर जाकर जानकारी जुटा रहे हैं और स्कूल से बाहर बच्चों की विस्तृत जानकारी एकत्रित कर रहे हैं। 

हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने सर्वेक्षण के दौरान ग्रामीणों को संबोधित करते हुए कहा कि शिक्षा अनमोल धन है। आज हमें ऐसी शिक्षा की जरूरत है, जो हमें विवेकशील और संवेदनशील बनाए। उन्होंने कहा कि शिक्षा का मकसद केवल अक्षर ज्ञान हासिल करना ही नहीं है। शिक्षा हमें हमारे आसपास के परिवेश के बारे में सजग बनाती है। उन्होंने शिक्षा से दूर रह रहे बच्चों के बारे में भी सोचने का आह्वान करते हुए कहा कि सभी बच्चे स्कूल में आएं और अच्छी शिक्षा पाएं, यह सब की जिम्मेदारी है। अध्यापकों ने अपने विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों से भी संपर्क किया और छुट्टियों में सतत अध्ययन करना का संदेश दिया। 
मौलिक मुख्य अध्यापक विष्णु दत्त ने कहा कि स्कूल समय समय पर इस प्रकार के सर्वेक्षण करता है। औद्योगिक क्षेत्र होने के कारण यहां पर बहुत से मजदूर दूसरे नए आते हैं और मजदूर अपने बच्चों को लेकर वापस अपने स्थानों पर चले जाते हैं। सर्वेक्षण में जो भी बच्चे स्कूल से बाहर पाए जा रहे हैं उन्हें जल्द ही स्कूल में दाखिल करने की प्रक्रिया भी शुरू की जाएगी।
सर्वेक्षण में लवकेश, अमन, गरिमा आदि विद्यार्थियों सहित स्कूल प्रबंधन समिति सदस्यों ने सहयोग किया।










Monday, January 3, 2022

LECTURE ON FIRST INDIAN LADY TEACHER SAVITRI BAI PHULE BY KUK HINDI DEPTT.

 देश की पहली महिलावादी थी सावित्री बाई फुले: डॉ. एस.के. चहल

सावित्री बाई शिक्षा और समानता को समर्पित अनूठा व्यक्तित्व

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग ने प्रथम शिक्षिका की जयंती पर आयोजित किया ऑनलाइन व्याख्यान

अरुण कुमार कैहरबा

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा साहित्य परिषद हिन्दी विभाग व देस हरियाणा के सहयोग से प्रथम शिक्षिका एवं क्रांतिज्योति सावित्री बाई फुले की जयंती पर ऑनलाइन सेमिनार का आयोजन किया गया। सेमिनार की अध्यक्षता विभाग के अध्यक्ष एवं देस हरियाणा के संपादक डॉ. सुभाष चन्द्र ने की।

मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के अध्यक्ष डॉ. एस. के. चहल ने कहा कि सावित्रीबाई फुले देश की  पहली महिला शिक्षिका ही नहीं, बल्कि देश की पहली महिलावादी थी। 3 जनवरी, 1831 को सावित्री बाई फुले का सतारा जिला में नायगांव में जन्म हुआ। मां का नाम लक्ष्मी और पिता का नाम खांडोजी था। 1840 में विवाह हुआ। पहले बचपन में ही शादी कर दी जाती थी। ज्योतिबा फुले मि. जॉन सहित मिशनरियों के साथ रहे। ज्योतिबा ने सावित्री को प्राथमिक शिक्षा प्रदान की। उन्होंने कहा कि मैडम फरार ने लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला था। वहीं शिक्षक प्रशिक्षण की व्यवस्था भी होती थी। यहां पर शुरूआती प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद में सावित्रीबाई ने पुणे में शिक्षक प्रशिक्षण लिया। पुणे में सावित्रीबाई व ज्योतिबा फुले ने अछूत कन्याओं के लिए स्कूल खोला। लोग लड़कियों को पढ़ाने के खिलाफ थे और वे दोनों लड़कियों की शिक्षा की बात कर रहे थे। ऐसे में सावित्रीबाई को स्कूल जाते हुए अनेक प्रकार की मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। उनके ऊपर कीचड़ व गंदगी फैंकी जाती थी। सावित्रीबाई सहनशीलता की मूर्ति तो थी, लेकिन इतनी भी सहनशील ना थी कि कोई अन्याय पर तुल जाए और वे जवाब ना दें। गंदगी डालती हुए सावित्रीबाई ने एक व्यक्ति को झापड़ जड़ दिया था। उसके बाद अन्यायकारी बर्ताव करने वालों के हौंसले पस्त हो गए थे।
डॉ. चहल ने बताया कि सावित्री बाई फुले और महात्मा ज्योतिबा के क्रांतिकारी कदमों के कारण उनके ऊपर दबाव बनाया गया। ब्राह्मणवादी ताकतों के प्रभाव में बिरादरी ने ज्योतिबा के पिता पर दबाव बनाया। पिता ने ज्योतिबा और सावित्री को चेतावनी दी कि या तो ये काम छोड़ दो या फिर घर से निकल जाओ। इरादों के पक्के और स्वाभिमानी ज्योतिबा अपने शिक्षा व समाज सुधार के मार्ग से पीछे हटने वाले नहीं थे। उन्होंने घर से निकलना उचित समझा। ऐसे में शेख उस्मान ने ज्योतिबा को अपने घर में शरण दी। शेख उस्मान की पत्नी फातिमा शेख थी। फातिमा शेख भी बाद में स्कूल में पढ़ाने लगी थी। वह पहली मुस्लिम शिक्षिका थी। 1850 में उन्होंने ट्रस्ट बनाया- सोसायटी फॉर प्रोमोटिंग एजूकेशन अमंग डाउ ट्रोडन सोसायटी। 
डॉ. चहल ने कहा कि सावित्रीबाई के क्रांतिकारी व्यक्तित्व के कईं आयाम थो। सावित्रीबाई ने अपने पति ज्योतिबा को पत्र लिखे। पत्रों से पता चलता है कि वह किस तरह से लोगों को समझाती है। वह जब अपने मायके सतारा गई हुई थी तो सावित्री का भाई और मां ज्योतिबा की आलोचना करते हैं। वह भाई और मां को समझाती है। चहल ने कहा कि पूना में बाल विवाह की बड़ी समस्या थी। चितपावन ब्राह्मणों में छोटी-छोटी उम्र की लड़कियों से बड़ी उम्र के लोग शादी कर लेते थे। उनमें कईं मारे जाते। छोटी उम्र में लड़कियां विधवा हो जाती थी। उनमें से कईंयों को यौन शोषण का सामना करना पड़ता था। सावित्रीबाई फुले ने बालिका हत्या प्रतिबंधक गृह खोला। वहां पर गर्भवती विधवा महिलाओं की प्रसूति होती थी। सावित्री बाई फुले व फामिमा शेख डिलीवरी करवाती थी। वहां पर करीब 40 विधवाओं की प्रसूति हुई। सावित्रीबाई फुले ने महिला सेवा मंडल शुरू किया। जिस मंच से महिलाओं की स्थिति में सुधार व समाज सुधार के अनेक प्रकार के काम किया।
चहल ने बताया कि सावित्री बाई फुले ने देश का पहला अन्तर्जातीय विवाह आयोजित करवाया। यह सावित्री बाई फुले का मौलिक कार्य था। वह सतारा जिला में गई हुई थी। एक ब्राह्मण लडक़े का मातंग दलित जाति की लडक़ी से प्रेम हो गया। कुछ लोग दोनों की लिंचिंग करने वाले थे। ऐसे में सावित्रीबाई फुले में लोगों को समझाया। उन्होंने दोनों को बचाया और अपने अधीन लेकर सुरक्षा प्रदान की। सावित्री ने जोड़े को सतारा से पुणे भेजा। 
सावित्रीबाई फुले ने बाल आश्रम की स्थापना की। 1880-82 के करीब की बात है। 1879 को महाराष्ट्र में अकाल पड़ा। कईं लोग मारे गए। ऐसे में अनाथ हुए बच्चों के लिए यह आश्रम स्थापित किया गया। उन्होंने आश्रम में सभी बच्चों के लिए खाने के लिए सामूहिक रसोई की व्यवस्था की और बच्चों के पढऩे की व्यवस्था की। फुले ने सत्यशोधक समाज की स्थापना की। इस संगठन के लिए सावित्रीबाई फुले ने सक्रिय रूप से कार्य किया। 1890 में ज्योतिबा की मृत्यु हो जाती थी। ऐसे में सावित्री ने सत्यशोधक समाज का नेतृत्व किया। यह भी अपने आप में अनोखा था कि कोई महिला किसी बड़े संगठन का नेतृत्व करे। 
सावित्रीबाई फुले का अंतिम बलिदान भी प्रेरणादायी है। उन्होंने शाहदत दी। 1897 में पुणे व महाराष्ट्र के विभिन्न स्थानों पर प्लेग फैल गया। ऐसे में उन्होंने प्लेग पीडि़तों के इलाज के लिए कार्य किया। उन्होंने अपने बेटे डॉ. यशवंत को क्लिीनिक खोलने के लिए कहा। सावित्रीबाई फुले के सामने एक किशोर प्लेग से पीडि़त हो गया। सावित्री ने उस किशोर को कंधे पर उठाकर क्लिीनिक पहुंचाया। वह भी चपेट में आ गई और लोगों को बचाते हुए उसने शहादत दी।
सावित्रीबाई फुले एक क्रांतिकारी कवयित्री थी। उसके दो काव्य-संग्रह- काव्य फुले और बावन काशी सुबोध प्रकाशित हुए हैं। सावित्री बाई ने अपनी कविता में कहा-जाओ शिक्षा हासिल करो और प्रबुद्ध हो जाओ। सावित्री बाई ने उस समय शिक्षा को केवल लिखने-पढऩे तक सीमित नहीं किया बल्कि पढऩे का उद्देश्य प्रबुद्धता बताया। सावित्री बाई एक अन्य स्थान पर लिखती हैं- उठो, जागो, प्रबुद्ध बनो और परंपराओं की बेडिय़ों को तोड़ दो। सावित्री बाई देश की पहली स्त्रीवादी महिला हैं।


सावित्रीबाई फुले ने न्याय विरोधी व सत्य विरोधी शक्तियों को चुनौति दी: डॉ. सुभाष

व्याख्यान की अध्यक्षता करते हुए हिन्दी विभाग के अध्यक्ष और देस हरियाणा के संपादक डॉ. सुभाष चन्द्र ने कहा कि सावित्रीबाई फुले के जन्म को 191 साल हो गए। वे कौन से काम थे, जिनकी वजह से हम उन्हें याद करते हैं। वे काम हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं। सावित्रीबाई फुले ने रूढि़वादी, सत्यविरोधी व न्याय विरोधी शक्तियों को चुनौति दी।  सावित्री बाई फुले विवेकवादी व सुधारवादी परंपरा का एक हिस्सा हैं। समाज में जितनी तरक्की हुई है, उसका इस ज्ञान से रिश्ता है। ज्योतिबा फुले ऐसे महात्मा नहीं थे, जोकि हिमालय पर बैठ कर तपस्या करें। वे समस्याओं से जूझते व काम करते हुए आगे बढ़ते हैं। सावित्री बाई फुले का निरंतर विकास होता है। कोई भी महापुरूष जन्म व पूर्व जन्म से ही महान नहीं होता। सावित्री बाई फुले के परिवार में ज्ञान की कोई परंपरा नहीं है। लेकिन वह अपने ही अनुभवों से सीखती हुई आगेे बढ़ती है। सावित्री बाई ने महसूस किया कि जीवन व समाज में कुछ गड़बड़ है। उसमें आमूलचूल सुधार की जरूरत है। चीजें शीर्षासन किए हुए हैं, उन्हें सीधा करना है। 
डॉ. सुभाष ने कहा कि भारत की वर्ण व्यवस्था में सबसे ऊंचा वो है, जिसके पास ज्ञान के स्रोत हैं। ज्ञान के स्रोत को भी प्रदूषित किया गया है। सावित्रीबाई ने ऐसे ज्ञान की बात की जो विवेक जगाए। सावित्री बाई फुले का ज्ञान समता, न्याय व सत्य पर आधारित है। सत्य तोहफे में नहीं मिलता है। सत्य की खोज करनी पड़ती है और उसे प्राप्त करना पड़ता है। आज के युग को पोस्ट ट्रूथ एज कहा जा रहा है। ऐसे में सावित्रीबाई फुले के जीवन, विचारों व सच खोजने का संघर्ष देखेंगे तो हमें प्रेरणा मिलेगी। सावित्रीबाई फुले ने बहुत सुंदर कविता लिखी है। जूही का फूल व कनेर का फूल और प्रकृति उनकी कविताओं में है।
सावित्री बाई फुले नवाचारी शिक्षिका थी: अरुण कैहरबा

हरियाणा विद्यालय शिक्षा विभाग में हिन्दी प्राध्यापक व देस हरियाणा से जुड़े अरुण कैहरबा ने कहा कि सावित्रीबाई फुले प्रथम शिक्षिका ही नहीं बल्कि नवाचारी शिक्षिका के रूप में हमारे सामने आती हैं। वे सबसे कमजोर वर्ग के बच्चों की शिक्षा के प्रति संकल्पबद्ध हैं। उन्होंने 150 से अधिक स्कूल खोले और स्कूल में लड़कियों व बच्चों के लिए विज्ञान, गणित, समाज विज्ञान सहित आधुनिक विषयों को नवाचारी ढंंग़ से पढ़ाया जाता था। कुछ स्कूलों में आधुनिक मिड-डे-मील से भी आगे बच्चों के खाने की भी व्यवस्था थी। उन्होंने कहा कि सावित्रीबाई फुले परंरावादी व घिसीपिटी शिक्षा की आलोचक हैं और आधुनिक शिक्षा की पक्षधर हैं।
व्याख्यान के दौरान अंग्रेजी विषय की शोधार्थी कीर्ति सैनी व राजकीय महाविद्यालय पलवल में हिन्दी के सहायक प्रोफेसर सुनील थुआ ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की। व्याख्यान के दौरान हिन्दी विभाग में अध्यापक विकास साल्याण, ब्रजपाल, डॉ. जसबीर सिंह और हिन्दी विभाग और इतिहास विभाग के शोधार्थी और विद्यार्थी शामिल रहे।
अरुण कुमार कैहरबा
हिन्दी प्राध्यापक
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान,
इन्द्री, जिला-करनाल, हरियाणा
मो.नं.-9466220145
HARYANA PRADEEP 4-01-2022

Saturday, January 1, 2022

Celebrated new year 2022 in GHS KARERA KHURD

नए साल पर लें नए संकल्प: अरुण

हींग का पौधा रोप कर मनाया नया साल

स्कूल में लगे डिजीटल बोर्ड, खुशी

यमुनानगर, 1 जनवरी

गांव करेड़ा खुर्द स्थित राजकीय उच्च विद्यालय में नया साल धूमधाम से मनाया गया। इस मौके पर मुख्याध्यापक विपिन कुमार मिश्रा, हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा, अध्यापक विजय गर्ग, सुखिन्दर कौर, रजनी शास्त्री, राजरानी, डिंपल, लिपिक मंजू आदि सभी स्टाफ सदस्यों ने मिलकर स्कूल प्रांगण में हींग का पौधा रोपा। स्कूल में विभाग द्वारा लगाए गए तीन डिजीटल बोर्ड की खुशी मनाई गई। अध्यापकों ने डिजीटल बोर्ड का प्रयोग करते हुए अपने-अपने विषय विद्यार्थियों को समझाए तो विद्यार्थियों के लिए यह सुखद अहसास से कम नहीं था। मुख्याध्यापक विपिन कुमार ने विद्यार्थियों को कक्षा-कक्ष में लगाए गए डिजीटल बोर्ड की महत्ता और सुरक्षा के बारे में प्रशिक्षण प्रदान किया। विद्यार्थियों ने हिन्दी की कविताओं का गायन किया। 


हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि नया साल नई उमंग, उत्साह और नए संकल्पों के नाम होना चाहिए। केवल कलैंडर बदलने से बदलाव नहीं आता है। जीवन में बदलाव नई सोच अपनाने से आता है। नए साल पर नए संकल्प लें और उन्हें साकार करने के लिए मेहनत करें। उन्होंने कहा कि सभी विद्यार्थियों को अपनी आदतों के बारे में सोचना चाहिए। आगे बढऩे के लिए बुरी आदतों को छोडऩे और अच्छी आदतें अपनाने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि नए साल का आने वाला समय कड़ी मेहनत और अध्ययन का है। लक्ष्य पर नजर रखने वाले समस्याओं को परास्त करते हैं। उन्होंने कहा कि परीक्षाएं बहुत नजदीक हैं। उनकी तैयारी के लिए सभी विद्यार्थियों को अपने आप को समर्पित कर देना चाहिए।

इएसएचएम विष्णु दत्त ने कहा कि मेहनत और लगन सफलता की कूंजी है। मेहनत से कार्य करने वाले आगे बढ़ जाते हैं। आलस्य करने वाले रह जाते हैं। संस्कृत अध्यापिका रजनी शास्त्री ने विद्यार्थियों को अंग्रेजी वर्ष और भारतीय कलैंडर के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि यह नया साल अंग्रेजी कलैंडर के अनुसार शुरू हुआ है। 

AMAR UJALA 2-1-2022