Wednesday, November 28, 2018

महात्मा ज्योतिबा फुले की पुण्यतिथि मनाई

प्रतियोगिता के विजेताओं को किया सम्मानित

यमुनानगर, 28 नवंबर
कैंप स्थित राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में 19वीं सदी में सामाजिक परिवर्तन के अग्रदूत महात्मा ज्योतिबा फुले की पुण्यतिथि पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रधानाचार्य परमजीत गर्ग ने विभिन्न प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने वाले विद्यार्थियों को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया। प्रधानाचार्य ने कहा कि शिक्षा की बदौलत ही हम आगे बढ़ सकते हैं। इसलिए बच्चों को अपनी पढ़ाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

हिन्दी प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा ने कहा कि महात्मा ज्योतिबा फुले ने जाति भेद, वर्ण भेद, लिंग भेद, ऊंच नीच के खिलाफ कड़ा संघर्ष किया और न्याय व समानता के मूल्यों पर आधारित समाज की परिकल्पना प्रस्तुत की। उन्होंने अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले को पढऩे के लिए प्रेरित किया, जोकि देश की पहली प्रशिक्षित महिला अध्यापिका बनी। 1848 में दोनों ने मिलकर पुणे में लड़कियों के लिए देश का पहला स्कूल स्थापित किया।
लड़कियों व समाज के कमजोर वर्ग के बच्चों को पढ़ाने के लिए उन्होंने अथक परिश्रम किया। उन्होंने कहा कि उस समय यह सब काम करना इतना आसान नहीं था। इसके लिए फुले के पिता ने उन्हें घर से निकाल दिया। लेकिन उन्होंने अपने विचारों से समझौता नहीं किया। उन्होंने कहा कि विधवाओं की दशा को सुधारने और पुनर्विवाह के लिए भी उन्होंने सक्रिय रूप से कार्य किया। 
प्रधानाचार्य ने संगीत शिक्षक अभिषेक, छात्रा अर्चना, शबनम, रविता, वैशाली, नृति, शिव कुमार, हर्ष, रंजन कुमार, अमन कुमार, दिलीप, शुभम, अनुज को प्रमाण-पत्र व स्मृति चिह्न सम्मानित किया। इस मौके पर अनुराधा रीन, चंचल, सेवा सिंह, आलोक ढ़ोंढिय़ाल, सुरेश रावल, श्याम कुमार, ज्ञानचंद, चन्द्रशेखर, दर्शन लाल बवेजा, ओमप्रकाश, पंकज मल्होत्रा, राकेश मल्होत्रा, नरेश शर्मा, सुखजीत सिंह, ममता शर्मा उपस्थित रहे।

महात्मा ज्योतिबा फुले ने दिखाई सामाजिक बदलाव की राह

महात्मा ज्योतिबा फुले की पुण्यतिथि (28 नवंबर) पर विशेष।

अरुण कुमार कैहरबा
महात्मा ज्योतिबा फुले भारत में सामाजिक परिवर्तन की लड़ाई के अगुवा हैं। अपने विचारों और कार्यों की बदौलत उन्होंने दलित-वंचित समाज को वर्ण-व्यवस्था के भेदभावकारी व शोषणकारी चंगुल से आजादी के लिए निर्णायक संघर्ष का नेतृत्व किया। इसके साथ ही उन्होंने देश की पहली महिला शिक्षिका व अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर महिलाओं की मुक्ति के लिए भी अथक आंदोलन चलाया। देश के समाज सुधार आंदोलन पर उनके प्रभाव को इस बात से समझा जा सकता है कि संविधान-निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर महात्मा फुले को अपना प्रेरणास्रोत मानते थे।
ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के पुणे में हुआ। एक वर्ष की अवस्था में ही उनकी माता का देहांत हो गया। जाति व्यवस्था द्वारा खड़ी की गई बाधाएं कदम-कदम पर उनके रास्ते में आई। 13 साल की उम्र में सावित्री बाई से उनका विवाह हुआ। अपनी पढ़ाई के साथ-साथ पत्नी की पढ़ाई का ध्यान रखा। थॉमस पेन की पुस्तक ‘मनुष्य के अधिकार’ से प्रभावित होकर फुले सामाजिक न्याय की गहरी समझ विकसित करते हैं और भारतीय जाति व्यवस्था के कटु आलोचक बन जाते हैं। उन्होंने तर्क दिया कि महिलाओं और निचली जातियों की सामाजिक असमानताओं को संबोधित करने में शिक्षा एक महत्वपूर्ण कारक है। उन्होंने अपनी पत्नी को शिक्षित करने के बाद देश में पहला लड़कियों का स्कूल अगस्त 1848 में खोला। यह काम उस समय के सवर्ण समाज को इतना नागवार गुजरा कि पति-पत्नी को अपना घर छोडऩा पड़ गया। लेकिन इससे वे जरा भी निरुत्साहित नहीं हुए। उनका संघर्ष और तीखा हो गया। अनपढ़ महिलाओं को पढ़ाने के लिए उन्होंने साक्षरता की कक्षाएं शुरू की। रात्रि स्कूल की शुरूआत की। विचार और आचरण के क्षेत्र में बुनियादी परिवर्तन लाने के लिए महात्मा ने ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की। फुले स्वयं इसके अध्यक्ष बने। सावित्रीबाई ने उसकी महिला शाखा की अध्यक्षता संभाली। दोनों ने विधवा पुनर्विवाह का अभियान छेड़ा। पति के गुजर जाने पर विधवा हुई महिलाओं का मुंडन कर दिया जाता था। इस अपमानजनक प्रथा के खिलाफ उन्होंने नाईयों को प्रेरित किया। एक ऐसे आश्रम की स्थापना की, जिसमें सभी जातियों की तिरस्कृत विधवाएं सम्मान के साथ रह सकें। उन नवजात शिशु कन्याओं के लिए भी एक घर बनाया, जो अवैध संबंधों से पैदा हुई थीं और जिनका सडक़ या घूरे पर फेंक दिया जाना निश्चित था। 
उन्होंने मूर्ति पूजा का विरोध किया और जाति व्यवस्था की निंदा की। सत्य शोधक समाज ने तर्कसंगत सोच पर बल देते हुए शैक्षिक और धार्मिक नेताओं के रूप में ब्राह्मणों एवं पुरोहितों की जरूरत को खारिज कर दिया। उनका दृढ़ विश्वास था कि अगर आप स्वतंत्रता, समानता, भाईचारे, मानवीय गरिमा, आर्थिक न्याय जैसे मूल्यों पर आधारित नई सामाजिक व्यवस्था की स्थापना करना चाहते हैं तो सड़ी-गली, पुरानी, असमान व शोषणकारी सामाजिक व्यवस्था और मूल्यों को उखाड़ फेंकना होगा। यह अच्छी तरह से जानने के बाद उन्होंने धार्मिक पुस्तकों और भगवान के नाम पर परोसे जाने वाले अंधविश्वास पर हमला किया। उन्होंने महिलाओं और शूद्रों के मन में बैठी मिथ्या धारणाओं की चीर-फाड़ की।

फुले ने महिलाओं, शूद्रों व समाज के अगड़े तबकों में अंधविश्वास को जन्म देने वाली आर्थिक और सामाजिक बाधाओं को हटाने के लिए अभियान चलाए। उन्होंने कथित धार्मिक लोगों के व्यवहार का विश£ेषण करते हुए पाया कि वह राजनीति से प्रेरित था। उन्होंने धार्मिक शिक्षाओं का तार्किक विश्लेषण नहीं करने के विचार का खंडन किया। उन्होंने कहा कि सभी समस्याओं की जड़ अंधविश्वास है, जोकि पूजनीय माने जाने वाले धार्मिक ग्रंथों की गलत व्याख्या द्वारा निर्मित है। इसलिए फुले अंधविश्वास को समाप्त करना चाहते थे। उन्होंने सवाल उठाया कि अगर केवल एक ही परमेश्वर है, जिसने पूरी मानव जाति बनाई है तो उसने पूरी मानव जाति के कल्याण की चिंता के बावजूद वेद संस्कृत भाषा में ही क्यों लिखे? ऐसे में संस्कृत भाषा नहीं जानने वाले लोगों के कल्याण का क्या होगा? फुले इस बात से सहमत नहीं थे कि धार्मिक ग्रंथ भगवान ने लिखे हैं। ऐसा विश्वास करना अज्ञानता और पूर्वाग्रह है। सभी धर्म और उनके धार्मिक ग्रंथ मानव निर्मित हैं और अपने हितों को पूरा करने के लिए कुछ लोग इनका निर्माण करते हैं। फुले ही अपने समय के ऐसे समाजशास्त्री और मानवतावादी थे जिन्होंने ऐसे साहसिक विचार प्रस्तुत किए। फुले ऐसी सामाजिक व्यवस्था के आमूलचूल परिवर्तन के पक्षधर थे, जिसमें शोषण करने के लिए कुछ लोगों को जानबूझकर दूसरों पर निर्भर, अनपढ़, अज्ञानी और गरीब बना दिया जाता है। उनके अनुसार व्यापक सामाजिक -आर्थिक परिवर्तन के लिए अंधविश्वास उन्मूलन एक हिस्सा है। परामर्श, शिक्षा और रहने के वैकल्पिक तरीकों के साथ-साथ शोषण के आर्थिक ढांचे को समाप्त करना भी बेहद जरूरी है। 28नवंबर, 1890 को उनका देहांत हो गया तो सावित्रीबाई फुले ने सत्यशोधक समाज की बागडोर संभाली।
आज जब सामाजिक रूढिय़ों की जकड़बंदी बढ़ती जा रही है। शादी-समारोहों में दहेज, दिखावा और ब्राह्मणवादी तौर-तरीकों का अनुसरण करने की होड़ लगी हुई है। बेहतर है कि पूरा समाज ज्योतिबा फुले को पथ-प्रदर्शक मान कर उनके बताए रास्ते का अनुसरण करते हुए सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष का रास्ता अपनाए। 

Sunday, November 4, 2018

नाटक कर रहे सुधार की आवाज बुलंद

ब्याना के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में सांस्कृतिक उत्सव की तैयारियां जोरों पर     
                                                                       गांव ब्याना स्थित राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में जिला स्तरीय सांस्कृतिक उत्सव-2018 की तैयारियां जोरों-शोरों से की जा रही हैं। करनाल में दो दिन चलने वाले उत्सव की विभिन्न प्रतियोगिताओं में स्कूल की टीमें हिस्सा ले रही हैं। कक्षा छठी से आठवीं और नौवीं से बारहवीं वर्ग की लघु नाटिका प्रतियोगिताओं के लिए स्कूल की टीमों ने रविवार को भी प्राध्यापक बलराज मुरादगढ़ और कम्प्यूटर अध्यापक विनीत के नेतृत्व में अभ्यास किया।
DAINIK JAGRAN 5-11-2018
नाटक तैयार करवाने में प्राध्यापिका नीलम व रचना का सक्रिय योगदान है। हिन्दी प्राध्यापक एवं रंगकर्मी अरुण कैहरबा ने विद्यार्थियों का मार्गदर्शन किया। बलराज ने बताया कि 5नवंबर को छह से आठवीं कक्षा की प्रतियोगिताएं होंगी और 6नवंबर को नौवीं से बारहवीं की।
प्रधानाचार्य अशोक गुप्ता ने बताया कि उनके स्कूल की टीमें पूरी तरह तैयार हैं और आत्मविश्वास से लबरेज हैं। दोनों नाटकों का विवरण इस प्रकार है-

हास्य-व्यंग्य से भरपूर भंडाफोड़ नाटक-

स्कूल के सौरभ, लवकेश, नैंसी, काजल, जागृति, साक्षी, सागर, प्रिंस व गौरव की टीम अपनी नाटिका द्वारा अंधविश्वास सहित अनेक प्रकार की सामाजिक कुरीतियों का भंडाफोड़ कर रही है। नाटक बच्चे के प्रति मां के प्रेम से शुरू होता है। इसमें बच्चे को स्कूल जाने से पहले मां प्यार से खिलाती है, लेकिन ठूंस-ठूंस कर फास्टफूड खिला देती है। बच्चा जाने को होता है तो बिल्ली के गुजरने से वह बच्चे को रोक लेती है। बच्चा परीक्षा में देरी से पहुंचता है। स्कूल का दृश्य हास्य से भरपूर है। बच्चों के लिए परीक्षाएं औपचारिकता ही हैं। स्कूल में परीक्षा देते हुए बच्चे के पेट में दर्द होने लगता है। उसे घर छोड़ा जाता है। फिर मां झाड़-फूंक के चक्कर में पड़ जाती है। बाद में ढ़ोंगी बाबाओं का भंडाफोड़ होता है।

नशे के खिलाफ जंग का ऐलान-

प्रिंस, अमृत, अमित, आशीष, सुषांत व मोहित की टीम का नाटक नशे के  विरूद्ध आवाज उठाता है। नाटक में शराब, गुटके, तंबाकू का मानवीकरण किया गया है। वे अपनी भयावहता के बारे में दर्शकों को परिचित करवाते हैं। इनकी आदतों के कारण लोगों की दयनीय हालत को मार्मिक ढ़ंग से उकेरा गया है।बीड़ी-सिगरेट की आदत किस तरह से व्यक्ति को लाचार बना देती है। इनकी आदतों के कारण किन-किन बिमारियों के जाल में मनुष्य फंस जाता है। यह सब नाटक में दिखाया गया है। नाटक हरियाणवी बोली में है। नाटक की शुरूआत हरियाणा की तरक्की से होती है और फिर नशे की बुराई की चिंताजनक स्थिति को उभारा जाता है।


नाटकों की रिहर्सल करवाते हुए कहा अरुण कैहरबा ने कहा कि नाटक में विभिन्न कलाओं का समावेश होता है। नाटक टीम वर्क है। यही कारण है कि इससे मिल कर काम करने की संस्कृति का विकास होता है। उन्होंने विद्यार्थियों को स्टेज के इस्तेमाल, संवाद अदायगी, हाव-भाव-भंगिमाओं, नाटक में संबंधों को स्थापित करने सहित विभिन्न जानकारियां दी।

Friday, November 2, 2018

सांस्कृतिक उत्सव-2018 में बच्चों ने बिखेरे प्रतिभा के रंग

लघु नाटिका में खिजराबाद स्कूल की टीम ने पाया पहला स्थान

शिक्षा विभाग की तरफ से यमुनानगर के डीएवी सीनियर सैकंडरी स्कूल में दो दिवसीय सांस्कृतिक उत्सव-2018 एवं प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।
जिला स्तरीय कार्यक्रम में विभिन्न स्कूलों के सैंकड़ों विद्यार्थियों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और अपनी बहुमुखी प्रतिभा के रंग बिखेर कर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। उप जिला शिक्षा अधिकारी अनूप कोठियाल की देखरेख में कार्यक्रम आयोजित किया गया और संयोजन जिला विज्ञान विशेषज्ञ विशाल सिंघल ने किया। नोडल अधिकारी की भूमिका संदीप गुप्ता, अल्का शर्मा, लवण्या ने निभाई। 

कार्यक्रम के दूसरे दिन नौवीं से बारहवीं कक्षा की लघु नाटिका प्रतियोगिता में राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय खिजराबाद की टीम ने पहला, राजकीय कन्या स्कूल जगाधरी की टीम ने दूसरा तथा राजकीय आदर्श वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय सरस्वतीनगर की टीम ने तीसरा स्थान प्राप्त किया। समूह गीत प्रतियोगिता में जयधर स्कूल की टीम ने पहला, अटावा स्कूल की टीम ने दूसरा व सरावां की टीम ने तीसरा स्थान हासिल किया। एकल गीत एवं रागणी प्रतियोगिता में सढौरा के राजकीय स्कूल की टीम ने पहला, खुर्दबन की टीम ने दूसरा व सरावां की टीम ने तीसरा स्थान हासिल किया।
सांझी प्रतियोगिता में छछरौली के राजकीय आदर्श स्कूल की टीम ने पहला, बक्करवाला स्कूल की टीम ने दूसरा, जगाधरी कन्या स्कूल की टीम ने तीसरा स्थान प्राप्त किया। एकल नृत्य में सढौरा राजकीय स्कूल की टीम ने पहला, छछरौली की टीम ने दूसरा और कन्या स्कूल जगाधरी की टीम ने तीसरा स्थान प्राप्त किया। समूह नृत्य में छछरौली की टीम ने पहला, जगाधरी कन्या स्कूल ने दूसरा और रादौर की टीम ने तीसरा स्थान लिया। 
कार्यक्रम के पहले दिन तीसरी से पांचवीं कक्षा की प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता में प्राथमिक पाठशाला खुर्दबन की लविश, अंशिका, हिमेश की टीम ने पहला, लेदी पाठशाला की साक्षी, माही, अनीश कुमार की टीम ने दूसरा और टिब्बी अराईयां की राजकीय पाठशाला के गुरमीत, शहनाज, रिहान की टीम ने तीसरा स्थान हासिल किया। छह से आठवीं की प्रतियोगिता में राजकीय माध्यमिक विद्यालय बैंडी की सानिया, खुशी, शुभम की टीम ने पहला, राजकीय माध्यमिक विद्यालय टिब्बी अराईयां से खुर्शिदा, सौरव कुमार व दीक्षा की टीम ने दूसरा, राजकीय उच्च विद्यालय फतेहपुर की निरंजना, सानिया व निखिल की टीम ने तीसरा स्थान प्राप्त किया।
नौवीं से दसवीं कक्षा वर्ग में बक्करवाला राजकीय स्कूल की टीम के पायल, सचिन, गौरव ने पहला, तेजली स्कूल के आसिफ, इशरत, साहिन की टीम ने दूसरा, सढौरा राजकीय स्कूल की टीम के देवेन्द्र, वैभव, आशा देवी ने तीसरा स्थान प्राप्त करके पुरस्कार प्राप्त किए। प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता में प्रथम स्थान हासिल करने वाली टीम को 31हजार, दूसरा स्थान पाने वाली टीम को 21 हजार व तीसरा स्थान पाने वाली टीम को 11हजार रूपये का  पुरस्कार दिया गया।

छठी से आठवीं कक्षा की लघु नाटिका प्रतियोगिता में सरावां राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय की टीम ने पहला, समूहगीत व सांझी में पोटली राजकीय स्कूल, एकल एवं समूह नृत्य में भंगेडा राजकीय माध्यमिक स्कूल, एकल गीत व रागनी में छछरौली की टीम ने पहला स्थान हासिल किया। वर्षा रानी, संध्या शर्मा, मनप्रीत, मीना, सन्नी चोपड़ा, मनिन्द्र कुमार, रंजन, जितेन्द्र, रोहिणी, गुरशरण, मयंक, अनुभा, मीता गुप्ता, मोनिका, नीरू, प्रिंस वर्मा विभिन्न स्पर्धाओं के निर्णायक मंडल में शामिल रहे।

समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए उप जिला शिक्षा अधिकारी अनूप कोठियाल ने विजेता टीमों को पुरस्कार एवं प्रमाण-पत्र देकर सम्मानित किया। मंच संचालन प्राध्यापक उमेश खरबंदा ने किया। कोठियाल ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि विद्यार्थियों में प्रतिभा की कमी नहीं है। केवल उन्हें अवसर व मंच प्रदान करने की है। उन्होंने विजेता टीमों को बधाई देते हुए कहा कि राज्य स्तर पर विद्यार्थी हिस्सा लेकर जिला यमुनानगर का नाम रोशन करें।

इस मौके पर प्रधानाचार्य सुशील गुलाटी, अनिल शर्मा, अख्तर अली, राज कुमार बक्शी, ओमप्रकाश सैनी, मधुकर चैहान, संजय गर्ग, रजनीश गुप्ता, अरुण कुमार कैहरबा, सुखजीत सिंह, राकेश मल्हो़त्रा, दीपक कुमार, मुकेश कुमार, लक्ष्मी चोपडा, पूनम रंगा, शिलक, राजेश, उमेश खरबंदा, उमेश वत्स, प्रीति, आशीष गुप्ता, मनोज पंजेटा, अनीता माहिल, रीतू गर्ग, प्रवीन बत्रा, सत्यवीर, रेणुका शर्मा, राजेश कुमार, राकेश गुप्ता, सुरेन्द्र सिंह, अमित कुमार, प्रियंका वर्मा, लवनेश, सहित अनेक प्राध्यापक, विषय विशेषज्ञ निर्णायक गण उपस्थित रहे।