Sunday, March 16, 2014

पर्यावरण के लिए खतरा बने कचरे के दैत्यकार पहाड़


कचरा प्रबंधन के लिए सबको मिलकर करने होंगे प्रयास

अरुण कुमार कैहरबा

भारत के लोग सफाई पसंद हैं। हर रोज महिलाएं घरों की सफाई करती हैं। तीज-त्योहारों पर सफाई के लिए घरों में अभियान चलाए जाते हैं और घरों को विशेष तरह से सजाया-संवारा जाता है। देश के अनेक स्थान बेइंतहा खूबसूरती के लिए जाने जाते हैं। लेकिन इसके बावजूद सफाई पसंद लोगों को गंदगी में रहना पड़ता है। बड़े-बड़े शहरों के नज़दीक कचरे के दैत्यकार पहाड़ बने हुए हैं। देश में प्रतिदिन 1लाख 60हजार मिट्रिक टन कचरे की पैदावार करके इन पहाड़ों की ऊंचाई और चौड़ाई में दिनोंदिन इजाफा किया जा रहा है। बहुत-सी भूमि कचरा डालने के लिए इस्तेमाल हो रही है। यह कचरा जन स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। लेकिन कचरे का प्रबंधन करने की बजाय राजनीति, प्रशासन एवं माफिया मिलकर कचरे को बनाए रखकर अपने हितों की पूर्ति कर रहा है। जबकि यही कचरा गैस एवं जैविक खाद उत्पादन में काम आ सकता है। दिनों दिन बढ़ते जा रहे कचरे की समस्या को लेकर फिल्म इंडस्ट्री के मिस्टर परफैक्शनिस्ट आमिर खान ने रविवार को सत्यमेव जयते कार्यक्रम प्रस्तुत कर जागरूकता की अलख जगाई। उन्होंने देश भर में कचरा प्रबंधन को लेकर किए जा रहे प्रयोगों और शख्सियतों से दर्शकों का परिचय कराया। उन्होंने घरों में गीले और सूखे कचरे को अलग-अलग इक_ा करने का आह्वान किया।
देश के विभिन्न शहरों के नगर निगमों द्वारा शहर के पास ही कचरों के ढ़ेर लगाए गए हैं। कचरे के इन पहाड़ों से उठने वाली दर्गन्ध लोगों का जीना मुहाल किए हुए है। कचरे के इन ढ़ेरों के पास रहने वाली आबादी का जीना मुहाल हो रहा है। कचरे से रिस कर जहरीला पानी भूमि, हवा और पानी को दूषित कर रहा है। लोग अनेक गंभीर बिमारियों की चपेट में आ रहे हैं। लेकिन इन सबसे नगर-निगम प्रशासन ना केवल बेखबर बने हुए हैं, बल्कि ठोस कचरा प्रबंधन के नाम पर राजनेता, प्रशासन और कंपनियों का गठबंधन बदमाशी पर उतारू हैं। सत्यमेव जयते में शामिल हुए रिषी अग्रवाल ने आरोप लगाया कि कचरों के यह पहाड़ कचरा घोटाले का ज्वलंत उदाहरण हैं। नगर निगमों की जिम्मेदारी है कि वे लोगों को गीला कचरा और सूखा कचरा अलग-अलग रखने के लिए प्रेरित करें। वे कचरे को कम से कम पैदा करने, पुन: प्रयोग करने और रिसाईकिल करने के लिए जन जागरूकता लाने के लिए प्रयास करें। दुर्भाग्य से ऐसा नहीं किया जाता है। 10 से 15 किस्म की तकनीक मौजूद है, जिससे शहरों को कचरा विहीन किया जा सकता है। लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं किया जाता है। कार्यक्रम में वैज्ञानिक डॉ. एस.आर. माले के प्रयासों से मुंबई के गौराई नामक स्थान पर लगे कूड़े के ढ़ेरों को समाप्त करके हरे-भरे स्थान में विकसित करने की कहानी बताई गई। माले ने बताया कि कचरा एक संसाधन है। 90 प्रतिशत कचरे को कीमती खाद में तब्दील किया जा सकता है। कचरा डालने के लिए इस्तेमाल की जा रही भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकता है। कचरा मुक्त समाज बनाने का लक्ष्य लेकर काम कर रहे वैज्ञानिक डॉ. शरद काले ने बताया कि एक टन कचरे से 2 सिलैंडर गैस तैयार हो सकती है।
देश में कचरा प्रबंधन के लिए इस्तेमाल की जा रही अनुपयुक्त तकनीक पर भी सवाल उठाए जाने जरूरी हैं। जैसे दक्षिणी दिल्ली में लगाए गए प्लांट में कचरे को जलाया जाता है। कचरा जलाए जाने से पैदा होने वाली खतरनाक गैस, धूआं और राख से लोग बिमारियों के शिकार हो रहे हैं। कचरा प्रबंधन के क्षेत्र में काम कर रही एक संस्था के निदेशक रवि वर्मा ने बताया कि यह तकनीक विदेश से ली गई है। विदेश में सूखा कचरा अधिक होता है, जिस कारण वहां पर यह तकनीक ठीक हो सकती है। लेकिन भारत में कुल कचरे में से गीला कचरा अधिक होता है। इस कचरे को जलाया जाना बेहद खतरनाक है। कार्यक्रम में कचरा बीनने वाले लोगों के पुनर्वास और संगठन के लिए काम कर रही स्वच्छ संस्था के प्रयासों को भी दर्शाया गया। संस्था में काम करने वाली सरू बाई ने बताया कि कचरा इक_ा करने वालों को समाज किस निगाह से देखता है। उन्होंने सरकार से मांग की कि कचरे के साथ काम करने वाले लोगों को जमीन दी जाए, जहां पर वे सूखा और गीला कचरा अलग-अलग कर सकें। लक्ष्मी ने जनता में अलग-अलग प्रकार के कचरे को अलग-अलग रखे जाने की जरूरत रेखांकित की। कार्यक्रम में आंध्र प्रदेश के वारंगल शहर की स्वच्छता के लिए निगम आयुक्त विवेक द्वारा किए गए प्रयासों को दिखाया गया। आयुक्त ने शहर में स्वच्छ शहर प्रतियोगिता आयोजित करके शहर को स्वच्छ बनाने में अहम योगदान किया। इसी प्रकार आईएएस जनार्धन रेड्डी ने प्रशासन को कचरा प्रबंधन के लिए संवेदनशील बनाने के लिए कचरे के ढ़ेर पर अधिकारियों की बैठक करने की परंपरा शुरू की। अधिकारियों को यह भी आदेश दिया गया कि कोई भी अधिकारी नाक पर रूमाल नहीं रखेगा। कार्यक्रम में यह भी दिखाया गया कि गाय, मुर्गी, बत्तख, मछली, केंचूए और मक्खी वातावरण को साफ रखने और कचरे का प्रबंधन करने में योगदान कर सकते हैं। प्लास्टिक की सडक़ बनाने की तकनीक विकसित करने वाले वौज्ञानिक प्रो. वासुदेवन के प्रयासों को भी कार्यक्रम में उजागर किया गया।

No comments:

Post a Comment