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साक्षरता का सिपाही : मोहम्मद मुरसलीन। अपने साथ ही परिवार के छोटी-बड़ी उम्र के अन्य सदस्यों को पांचवीं की परीक्षा दिलवाई। उनका मानना है-‘जब तक अनपढ़ है इंसान, नहीं रूकेगा यह अभियान’ सामाजिक कार्यों के लिए मुरसलीन राज्यपाल व सांसद से हो चुके हैं सम्मानित।
अरुण कुमार कैहरबा
साक्षरता की कक्षा में साक्षर बनने के बाद लोगों में साक्षरता की अलख जगाने वाला मोहम्मद मुरसलीन लोगों की आंखों का तारा बन गया है। मुरसलीन ने अपने साथ-साथ अपने अब्बू, अम्मी, भाई व बहनों को भी पढऩे के लिए प्रेरित किया। बड़ी-छोटी उम्र के परिवार के सात सदस्य एक साथ कक्षा में गए और एक साथ पंाचवीं की कक्षा पास की। विभिन्न सामाजिक अवरोधों के बावजूद मुरसलीन ने ‘जब तक अनपढ़ है इंसान, नहीं रूकेगा यह अभियान’ की तर्ज पर अन्य लोगों को साक्षर बनाने के लिए अक्षर सैनिक, जन चेतना केन्द्र संयोजक, सह प्रेरक और नाटक मंडली के कलाकार की भूमिका में स्वैच्छिक कार्य किए। विभिन्न विषयों पर सामाजिक जागरूकता लाने के लिए मुरसलीन आज भी लगा हुआ है। उसके सामाजिक कार्यों के कारण उसे महामहिम राज्यपाल बाबू परमानंद तथा सांसद डॉ. अरविंद शर्मा द्वारा सम्मानित किया जा चुका है।
उपमण्डल के यमुना के साथ लगते गांव सैय्यद छपरा निवासी अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज के निरक्षर युवक मुरसलीन को 1998 में गांव के तत्कालीन सरपंच रज़ा हुसैन से सम्पूर्ण साक्षरता अभियान की जानकारी मिली। उसने गांव में लगाई जाने वाली कक्षा में जाना शुरू कर दिया। कक्षा में अक्षरों से परिचय प्राप्त करते हुए उसे परिवार के अन्य सदस्यों की अनपढ़ता भी कचोटने लगी। उसने अपने पिता मंजूर अहमद से इस बारे में बात की। मंजूर अहमद को अपने बेटे की बात में दम लगा और उसने पूरे परिवार समेत कक्षा में जाना शुरू कर दिया। मुरसलीन अपने पिता, बहन मुरसलीना, फुलबानो, नौसाबा, फातिमा और भाई नौसाद के साथ जब बस्ता व किताबें उठाकर गांव की चौपाल में जाते थे तो अन्य लोग उनका मजाक उड़ाया करते थे। लेकिन मुरसलीन व उसका परिवार लोगों के मजाक से घबराया नहीं और अपनी राह नहीं छोड़ी। जब वे कक्षा में जाया करते थे तो मुरसलीन की अम्मी रूखसाना घर का काम देखा करती। कईं बार तो मुरसलीन अपनी अम्मी को भी कक्षा में साथ ले जाया करते थे।
लगातार तीन महीने तक कक्षा में जाने के बाद सभी ने बुनियादी शिक्षा हासिल की। वह करनाल के साक्षरता अभियान का एतिहासिक क्षण था, जब 1999 में मुरसलीन के परिवार के सात सदस्यों ने नबियाबाद स्थित गुरू नानक उच्च विद्यालय में पांचवीं की परीक्षा दी और उत्तीर्ण हुए। अभियान के दौरान हासिल की गई शिक्षा से परिवार में हौंसले का संचार हुआ है और वे अधिकारियों के सामने बड़ी बेबाकी से अपनी बात रखते हैं। मुरसलीन ने पांचवीं करने के बाद आगे भी पढ़ाई जारी रखी। वह गांव डेरा हलवाना के राजकीय स्कूल में बस्ता टांग कर जाया करता था। बड़ी उम्र के युवक को बस्ता लेकर स्कूल में आता देखकर बच्चे खूब खिलखिलाकर हंसते थे लेकिन मुरसलीन बच्चों को कहता- ‘पढऩे की कोई उम्र नहीं, पढऩे में कोई शर्म नहीं।’ हालांकि $गरीबी व पारिवारिक परिस्थितियों के कारण अपनी औपचारिक शिक्षा वह जारी नहीं रख सका। लेकिन उसने किताबों का दामन नहीं छोड़ा। साथ ही उसने अक्षर सैनिक के रूप में विभिन्न गांवों में साक्षरता की मुहिम जारी रखी। सम्पूर्ण साक्षरता अभियान के बाद 2002 में शुरू हुए उत्तर साक्षरता अभियान में उसे गांव के जन चेतना केन्द्र का संयोजक बनाया गया।
उसने जिला सैनिक रैस्ट हाऊस करनाल में आयोजित नाट्य प्रोडक्शन कार्यशाला में हिस्सा लिया और सफदर नाटक टीम में साक्षरता का संदेश देने के लिए नाटक भी करने लगा। सतत् शिक्षा कार्यक्रम में मुरसलीन ने सहप्रेरक की भूमिका निभाई। अपने कार्यों के लिए वह निरक्षरों व गरीब लोगों का चितेरा बन गया है। परिवार चलाने के लिए वह समय-समय पर राज मिस्त्री, बढ़ई, साईकिल व मोटरों की मुरम्मत, रंग-रोगन, बंटाई पर खेती जैसे अनेक कार्य करता रहता है। लेकिन आज भी साक्षरता के कार्यों में वह लगा हुआ है। उसने हाल ही में मुस्लिम तालीम केन्द्र के संयोजक के तौर पर राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय से अपनी पत्नी व पंचायत सदस्य ज़रीना बे$गम सहित 18 निरक्षरों को बुनियादी तालीम की परीक्षा दिलवाई है।
इसी दौरान 2003 में करनाल के कर्ण स्टेडियम में आयोजित विशाल साक्षरता रैली में महामहिम राज्यपाल बाबू परमानंद ने मुरसलीन को अपने परिजनों समेत खुद साक्षर होने और साक्षरता के कार्यों के लिए सम्मानित किया। 2006 में सांसद अरविंद शर्मा ने भी मुरसलीन को प्रशस्ति-पत्र व स्मृति चिन्ह देकर तथा शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया।
मुरसलीन व उनके अब्बू मंजूर अहमद ने दैनिक ट्रिब्यून से बातचीत करते हुए कहा कि पढ़-लिखकर उसके परिवार में आत्मविश्वास आया है। उन्हें सही-गलत का पता चला है। ग्रामीणों को जब विभिन्न समस्याएं पेश आती हैं तो वे बेझिझकर उनके पास आ जाते हैं और वे उनका समाधान करने में लग जाते हैं। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार खेती नलाई से संवरती है, उसी प्रकार जिंदगी पढ़ाई से संवरती है। जब सर्च राज्य संसाधन केन्द्र हरियाणा के सलाहकार प्रो. वी.बी. अबरोल, जिला साक्षरता कार्यक्रम के सचिव रहे डॉ. अशोक अरोड़ा और जिला संयोजक रहे महिन्द्र खेड़ा से इस बारे में बात की गई तो उन्होंने कहा कि अभियान में साक्षर होने वाला मो. मुरसलीन साक्षरता का प्रेरक और साहसी सिपाही है।