देश की एकता व व भाईचारे को बढ़ावा दें: साबिर खान
भाषा बहता नीर कबीरा, देता सबको धीर कबीरा
शाम-ए-गज़ल में कवियों-शायरों ने बांधा समां
करनाल, 28 अप्रैल
मन की उड़ान साहित्यिक मंच करनाल हरियाणा द्वारा अपना ग्यारहवां साहित्यिक कार्यक्रम- शाम-ए-गज़ल एमडीडी बाल भवन करनाल में आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात गज़़लकार साबिर ख़ान ने की। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि वरिष्ठ शायर डॉ. एसके शर्मा, विशिष्ट अतिथि कवयित्री डॉ. कान्ता वर्मा व कवि अरुण कुमार कैहरबा, विशेष अतिथि के तौर पर कवि बलवान सिंह मानव व एमडीडी बाल भवन संस्थापक पीआर नाथ व अध्यक्ष परमिंदर पाल सिंह ने शिरकत की।
काव्य गोष्ठी की शुरुआत कुमारी खुशबू ने सरस्वती वंदना से की। कार्यक्रम अध्यक्ष साबिर ख़ान ने कहा कि हमें देश की एकता और भाईचारे को बढ़ावा देना है, जिससे आतंकियों के मंसूबे सफल न हों। कवयित्री कान्ता वर्मा ने कहा-गुस्से के अब बांध बना दो थर-थर कांपे लाहौर कराची, दुश्मन को अब धर्म बता दो कसम तुझे है भारत मां की। कवि अरुण कुमार कैहरबा ने कबीरा शैली में अपनी $गज़ल में कहा- भाषा बहता नीर कबीरा, देता सबको धीर कबीरा, अपनी बोली से शर्माते, देखे हमने वीर कबीरा। पंचकूला से पधारे कवि बलवान सिंह मानव ने कहा- आ सनम तेरा शृंगार करूं, दिल से थोड़ा प्यार करूं। शायर इकबाल पानीपती ने कहा- न हिन्दू मुस्लिम न सिख ईसाई वो शक्ल-ए-इसां में हैं दरिन्दे, जहां में इकबाल बेगुनाहों का खूं जो नाहक बहा रहे हैं। वरिष्ठ शायर डॉ. एसके शर्मा ने अपनी $गज़ल में कुछ यूं बयां किया- बे इरादा नजऱ उनसे टकरा गई, जिंदगी में अचानक बहार छा गई। कवयित्री अंजू शर्मा ने कहा- माता और बहनों को लक्ष्मी बाई बनना होगा, युद्धभूमि में शत्रु को मार भगाना होगा। मन की उड़ान मंच संस्थापक रामेश्वर देव ने कहा- लहू टपकता है आंखों से अंतड़ी फडक़ती है, जब पत्नी की मांग और मां की गोद उजड़ती है। युवा शायर आशीष ताज नीलोखेड़ी ने कहा नफरतों को शर्म से मिसमार होना चाहिए, आदमी को आदमी से प्यार होना चाहिए। गुरमुख सिंह वड़ैच ने कहा- जनाजे को मेरे रूकवा के बोले, ये लौटेंगे कब तक कहां जा रहे हैं। कवयित्री सुषमा चौपड़ा ने कहा- हमेशा दूसरों को रोशनी दिया करते, चिराग अपने लिए तो नहीं जला करते। डॉ. श्याम प्रीति ने कहा कि- करो प्रतीक्षा खेलने की उम्र में बच्चे को, शादी में कभी नहीं जकड़ा जाएगा।
शायर अशोक मलंग ने कहा- गमगीन आज आलम जन्नत की वादियों में, पसरा हुआ है मातम जन्नत की वादियों में। कवि राकेश आदि ने कहा- ना करो बाबुल मुझ पे अत्याचार, ना करो बचपन में मेरा सिंगार। युवा शायर करनजीत सिंह ने कहा- तुम देखो परखो इन्हीं को ये भोले चेहरे वो ही हैं, सेठों की गद्दी खातिर जो पीढिय़ों से शोषण सहते आऐ। संगीता मिगलानी ने कहा- साथी हमारा कौन बनेगा, तुम न बनोगे कौन बनेगा। कवि अंकित कुमार ने कहा हवाओं के बरखो पे लिख, भेजा है एक संदेश तेरे लिए, कोई बरसों से राह देख रहा बन कर दरवेश तेरे लिए, कवि दयाल जास्ट ने कहा- अपने दिल की कह दे भई के धर्मा चुपचाप क्ह, शायर रविन्द्र सरोहा ने कहा- गर तुम चाहते दरख्तों पर परिंदे फिर सच्ची मोहब्बत की हिमायत कीजिए। कार्यक्रम में डॉ. बलदेव सिंह, सुरेन्द्र कल्याण, कुमारी भूवी ने भी प्रस्तुति दी। इस अवसर पर गोपाल दास, नवीन कुमार, देव, शीला रानी, गुरमीत सिंह, आफऱीन सहित श्रोतागण उपस्थित रहे।
कार्यक्रम में अध्यक्ष मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथियों व विशेष अतिथि को अंग वस्त्र, शॉल व स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संयोजन मन की उड़ान के संस्थापक रामेश्वर देव ने किया और मंच का संचालन कवयित्री सुषमा चोपड़ा ने किया। कार्यक्रम में पहलगाम में शहीद हुए लेफ्टिनेंट विनय नरवाल सहित सत्ताईस अन्य नागरिकों को मौन रखकर भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई।
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