Monday, June 26, 2023

NASHA MUKTI DIVAS IN GMSSSS BIANA (KARNAL)

रा.मॉ.सं.व.मा. विद्यालय ब्याना में मनाया नशा मुक्ति दिवस

पेंटिंग प्रतियोगिता में तनु ने पहला और हर्षिता ने पाया दूसरा स्थान

विज्ञापनों की बजाय प्रेरक शख्सियतों के जीवन-संघर्षों से सीखें: अरुण 

करनाल,  26 जून
गांव ब्याना स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में अन्तर्राष्ट्रीय नशा मुक्ति दिवस मनाया गया। इस मौके पर स्कूल में पेंटिंग प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। प्रतियोगिता का संयोजन प्राध्यापक अरुण कुमार कैहरबा, सतीश राणा, गोपाल दास, विनोद कुमार, राजेश कुमार, दिनेश कुमार व प्राथमिक पाठशाला की प्रभारी स्नेह लता ने किया।

प्रतियोगिता में नौवीं कक्षा की छात्रा तनु ने पहला, कॉमर्स संकाय से 11वीं कक्षा की छात्रा हर्षिता ने दूसरा और दसवीं कक्षा की छात्रा उमा शर्मा, 11वीं वाणिज्य संकाय की छात्रा प्राची व याचिका ने संयुक्त रूप से तीसरा स्थान हासिल किया। अध्यापकों ने सभी विजेताओं को पुरस्कार देकर सम्मानित किया। कार्यक्रम के दौरान विद्यार्थियों ने नारों के माध्यम से भी नशा मुक्ति का संदेश दिया। इस मौके पर अध्यापकों ने विद्यार्थियों के साथ संवाद किया और समाज में नशे के फैलाव के कारणों को समझते हुए इसे समाप्त करने के प्रयास करने का आह्वान किया। प्रतियोगिता में प्रथम व द्वितीय स्थान पर आई छात्रा तनु व हर्षिता ने अपनी पेंटिंग पर बोलते हुए कहा कि उन्होंने अपनी पेंटिंग में नशे के प्रकार और दुष्प्रभावाओं को चित्रित किया है।

हिन्दी प्राध्यापक अरुण कैहरबा ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि नशा व्यक्ति के मनुष्य के स्वास्थ्य, आर्थिक व सामाजिक स्थिति की दृष्टि से खतरनाक है। उन्होंने कहा कि टेलीविजन, सिनेमा और विज्ञापन कईं बार नशे की महिमा गाते दिखाई देते हैं। उन्होंने कहा कि युवाओं को फिल्मी हीरो की बजाय जीवन में प्रेरक शख्सियतों की मेहनत से प्रेरणा लेकर आगे बढऩा चाहिए। उन्होंने कहा कि आजादी की लड़ाई, साहित्य, विज्ञान और समाज के बहुत से व्यक्तित्वों के बारे में स्कूल में पढ़ाया जा रहा है। उनके जीवन और संघर्षों में बहुत सी प्रेरणाएं हैं। विज्ञापनों के दुष्प्रचार से ना केवल विद्यार्थियों को खुद बचना है, बल्कि जागरूकता फैलाते हुए नशे सहित अन्य बुराईयों से मुक्त समाज का भी निर्माण करना है।


DAINIK JAGMARG 27-6-2023

HARYANA PRADEEP 27-6-2023

HARYANA DINRAAT 26-6-2023

AMAR UJALA 27-6-2023

AMBALA COVERAGE 26-6-2023

Monday, June 5, 2023

JOURNEY OF MEMORIES / DELHI TO KALRI NANHERA INDRI

 मिसाल बना सेवानिवृत्त अध्यापक दम्पति का परिवार

दिल्ली से संजोने ग्रामांचल आया स्मृतियों का संसार

कलरी नन्हेड़ा के लोगों ने स्वागत में पलक-पांवड़े बिछाए
स्कूल ने अपनी पहली छात्रा को रजिस्टर के पन्ने दिखाए

अरुण कुमार कैहरबा


यादें हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। इन्सान मुसाफिर की तरह जीवन-यात्रा करता है। आज के भागम-भाग भरे जीवन में हमें कभी कहीं तो कभी कहीं जाना होता है। आज जब पूरा विश्व एक छोटे से गांव में बदल गया है, हम जहां जाते हैं, वहीं हमारा ठिकाना हो जाता है। इस आवाजाही में जगहें और लोग हमसे बिछुड़ते जाते हैं। हम यादों की धरोहर लिए घूमते रहते हैं। हमारा जीवन सुखद, दुखद, खट्टी-मीठी, कसैली व तरह-तरह की यादों से भरा हुआ है। कड़वी और दुखद यादें हमें सीख देती हैं। यदि हम सीख नहीं लेते तो हमें पछताना होता है। सुखद यादें हमें आनंद से भर देती हैं। ये ही वे यादें हैं, जो हमें सदा प्रोत्साहित करती हैं और आगे बढऩे की प्रेरणा देती हैं। इन यादों को हमेशा हम संजोए रखना चाहते हैं। यादों को इतिहास के रूप में संजोना और उनके झरोखे से अपने वर्तमान का आकलन करना और भविष्य की योजनाएं बनाना बेहद जरूरी काम है। 


हर कोई यादों को धरोहर के रूप में लिए फिरता है। थोड़ी बड़ी उम्र होते ही हम अपनी यादों को आने वाली पीढ़ी को सुनाते हैं। बार-बार सुनाई गई बातें आने वाली पीढ़ी के जेहन में जाने लगती हैं। यादों को विरासत के रूप में धारण करना और उसे इतिहास का रूप देकर संजोना एक महत्वपूर्ण दायित्व है। यह दायित्व कम लोग निभाते हैं। अपने पूरे परिवार को साथ लेकर गर्मी की छुट्टियों में एक जोड़ा हमें यह दायित्व निभाते दिखा। छोटा-सा गांव व कस्बा छोड़ कर वर्षों पहले देश की राजधानी में जा बसे इस सेवानिवृत्त अध्यापक पति-पत्नी और उनके परिवार का ग्रामीणों ने जोरदार स्वागत किया।


यादों को धरोहर के रूप में नई पीढ़ी को सौंपने के लिए एक सुखद यात्रा कर रहे सेवानिवृत्त अध्यापक, कवि व बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी राम नारायण गणहोत्रा और उनकी सेवानिवृत्त अध्यापिका पत्नी सीता देवी दिल्ली से अपने परिवार को लेकर इन्द्री के छोटे से गांव कलरी नन्हेड़ा पहुंचे और अपने बचपन को ना केवल याद किया, बल्कि यादों की धरोहर को अपनी संतान को सौंपने के महत्वपूर्ण दायित्व का भी निर्वाह किया। 40 साल बाद बच्चों के साथ पहुंची प्रेरणादायी दम्पति का ग्रामीणों ने जोरदार स्वागत किया। सीता देवी ने बताया कि नन्हेड़ा में जब राजकीय प्राथमिक पाठशाला  खुली थी, तो उस समय वह छोटी-सी थी। गांव की चौपाल में खुले स्कूल के पहले सत्र में वह पहली छात्राओं में शामिल थी। आज उस स्कूल का  नाम राजकीय मॉडल संस्कृति प्राथमिक पाठशाला नन्हेड़ा है। स्कूल में अध्यापकों ने अपने स्कूल की पहली छात्रा और उनके परिवार का जोरदार स्वागत किया। स्कूल के पहले दाखिला-खारिज रजिस्टर में अपनी दादी का नाम जन्म-तिथि देखकर बच्चों की खुशी का ठिकाना ना था।


 

राम नारायण गणहोत्रा अपने अध्यापकों के प्रिय और प्रतिभावान विद्यार्थी रहे। बाद में अध्यापक के रूप में अपने विद्यार्थियों के प्रिय अध्यापक के रूप में ख्याति प्राप्त की। उन्होंने 1964 के आस-पास अध्यापन की शुरूआत की थी, जब जिला में चयनित अध्यापकों की सूची में उनका पांचवां नंबर आया था। उन्हें खंड-इन्द्री के ही गांव गढ़पुर खालसा स्थित राजकीय प्राथमिक पाठशाला में पहली बार अध्यापक बनने का मौका मिला था। बाद में उनका चयन दिल्ली शिक्षा विभाग में हो गया और वे दिल्ली चले गए। गांव मटक माजरी के राजकीय प्राथमिक पाठशाला में पढ़ा रही उनकी पत्नी सीता देवी का भी उन्होंने स्थानांतरण दिल्ली के पास पीपली के स्कूल में करवा लिया और परिवार दिल्ली शिफ्ट हो गया। ऐसा नहीं कि राम नारायण व उनकी पत्नी बीच में कभी इन्द्री क्षेत्र में आए ना हों। लेकिन किसी कार्य से आए और फिर दिल्ली चले गए। 


चालीस साल बाद राम नारायण गणहोत्रा व सीता देवी परिवार संग ट्रेवलर में सवार होकर आए। उनके साथ उनके सुपुत्र बैंक अधिकारी कुश गणहोत्रा, दोनों पुत्रवधु शारदा गणहोत्रा व मीना गणहोत्रा, बेटी सपना, इंजीनियर पोता तन्मय गणहोत्रा, वैभवी, कुसुमिता, पोलक, रिया, पलक सहित परिवारजन शामिल थे। उनकी इस यादगार यात्रा का पहला पड़ाव कलरी नन्हेड़ा गांव ही बना, जहां पर राम नारायण ने अपने जीवन का कुछ समय बिताया था। परिवार के छोटे-बड़े सभी सदस्यों को उन्होंने वह स्थान दिखाया, जहां पर कभी उनका परिवार रहता था। आज उस स्थान पर पशुओं का बाड़ा बना हुआ है, जोकि ईंटों की इमारत है। जबकि कभी वह मिट्टी की दिवारों और कच्ची छत वाला घर था। गांव की चौपाल में वह पिलखन का पेड़ आज भी खड़ा है, जिसकी छाया में राम नारायण व सीता देवी को बचपन में खेलने का मौका मिला था। वर्षों बाद पुरानी गलियों से होते हुए गुजरना बहुत भावुक पल रहे। जिस गांव में तब मिट्टी के कच्चे घर होते थे, आज वहां पर बड़े आकर्षक घर बने हैं। गांव की गलियां कच्ची से पक्की हो गई हैं। भौतिक विकास के साथ-साथ मानवीय प्रवृत्तियों में क्या बदलाव आए हैं। लोगों में नजदीकियां बढ़ी हैं या दूरियां। आजादी और बंटवारे के बाद के गांव, उनकी यादों के गांव, उनके सपनों के गांव और यथार्थ के गांव में क्या फर्क है। दम्पति ने तमाम विषयों को बारीकी से देखा और समझा।


बच्चे अपनी आंचलिक यात्रा से प्रफुल्लित थे। कुछ बच्चों के लिए गांव की गलियों में घूमने का यह अनोखा अवसर होगा। परिवार जहां से गुजरता वहीं पर लोगों में उत्सुकता जाग जाती। नई पीढ़ी के लिए वे अनजाने थे तो पुरानी पीढ़ी के लोगों को परिचय मिलते ही वे उनका स्वागत करते। सीता देवी के भाई प्रभु दयाल हंस, संजय हंस, ग्रामीण सोमनाथ कांबोज सहित ग्रामीणों ने परिवार का जोरदार स्वागत किया। सीता देवी के भाईयों के परिवारों ने अपनी बहन व उनके परिवार को पलकों पर बिठा कर सेवा-स्वागत किया।

अपनी प्राकृतिक संपदा और जैव-विविधता के लिए विख्यात हो चुके गांव नन्हेड़ा के राजकीय मॉडल संस्कृति प्राथमिक पाठशाला में परिवार आया। यहां स्कूल मुखिया महिन्द्र कुमार, अध्यापक उधम सिंह व सुनील सिवाच ने उन्हें स्कूल में घुमाया। उन्होंने शहीद उधम सिंह पार्क में भ्रमण किया। यहां पर विभिन्न प्रकार के औषधीय, फूल व फलों के पौधों ने सभी आश्चर्य में डाल दिया। स्कूल के पार्क में विभिन्न प्रकार के आम, सेब, लीची, नींबू, मौसमी, संतरा, आडू, अनानास, निर्गुंडी, मेहंदी, सिंदूर, हींग सहित कईं पौधे एक साथ देखना अद्भुत अनुभव रहा होगा। औषधीय पौधे देखकर परिवार के एक सदस्य के मुंह से अनायास निकल गया कि यहां पर आयुर्वेदाचार्य डॉ. लव गणहोत्रा को जरूर होना चाहिए था, जोकि परिवार के अकेले सदस्य यात्रा में नहीं आए थे। पार्क में एक जगह ठहर कर राम नारायण जी ने कहा कि गांव के स्कूल में इतनी तरह के पौधे अध्यापकों की अथक मेहनत का परिणाम हैं। यह स्कूल और इसमें उगी वनस्पति बेमिसाल है। उन्होंने स्कूल के माली सुदर्शन लाल को पुरस्कार देकर सम्मानित किया। इसी बीच सीता देवी ने अपने बचपन के स्कूल में बच्चों को पढ़ाने और संवाद करने आनंद उठाया। अध्यापकों ने स्कूल का पहला दाखिला खारिज रजिस्टर निकाला। 1956 में यह प्राथमिक स्कूल स्थापित हुआ था। सीता देवी ने बताया कि वे स्कूल की पहली छात्राओं में शामिल थी। उस समय स्कूल में बहुत कम बच्चे पढ़ते थे और लड़कियां तो बेहद कम होती थी। स्कूल गांव की चौपाल में लगता था। अध्यापकों ने दाखिला-खारिज रजिस्टर में उनका नाम दिखाया। यह अनुभव परिवार के सभी सदस्यों को आनंद से भर गया। 


स्कूल के बाद यादों की धरोहर के यात्रियों का काफिला इन्द्री के लिए चल दिया। इन्द्री के राजकीय कन्या स्कूल और मटक माजरी राजकीय प्राथमिक पाठशाला में सीता देवी ने पढ़ाया था। इन्द्री में ही उनके पुत्र कुश गणहोत्रा और पुत्री जागृति का जन्म हुआ था। यहां पर शहर की सबसे पतली गली गीता मंदिर के पास है। बचपन में इस गली से गुजरने की यादें आज भी उनके मन में थी। इसी को पार करके उनका घर हुआ करता था। वह मकान बहुत पहले बेच दिया गया था। उस घर के पास परिवार के सदस्य काफी देर खड़े रहे। गलियों में चले और पुरानी यादें ताजा की। जिस कन्या स्कूल में सपना ने कुछ वर्ष पढ़ाई की थी, वहां जाना यादों को ताजा करना था।


स्कूल में खड़ा पिलखन का पेड़ ज्यादा पुराना नहीं है। सपना ने बताया कि यह पेड़ उस समय नहीं होता था। उन्होंने अपनी सहेलियों को भी याद किया, जिनके घर बचपन में जाती थी। लेकिन समय चक्र लगातार चलता है और हर घड़ी बदलाव होता है। स्कूल में उनके साथ पढ़ी सहेलियां आज कहां होंगी, क्या पता। क्या पता वे भी कभी स्कूल में आई हों और उसे याद किया हो। 

इन्द्री का हृदय स्थल- रामलीला मैदान। यहां वर्षों पहले रामलीला होती थी। रात को लोग दूर-दूर से आते थे और रामलीला देखते थे। वे अनुभव पुरानी पीढ़ी के सभी लोगों के पास हैं। राम नारायण व सीता देवी परिवार संग रामलीला मैदान पहुंचे और रामलीला की पुरानी यादें ताजा की। कहने को तो यह आज भी रामलीला मैदान ही कहा जाता है, लेकिन कहीं से भी यह मैदान नहीं है। ऊंची दिवारों से घिरी छोटी सी जगह को मैदान कैसे कहा जा सकता है। वर्षों से यहां कोई रामलीला भी नहीं हुई। हां, दशहरा मनाने के लिए यहीं पर राम, सीता व अन्य पात्रों का मेकअप होता है और स्कूल के मैदान में जाकर पुतले का दहन। मैदान की चारदिवारी करके उसेे व्यावसायिक उद्देश्य के लिए प्रयोग किया जाने लगा है। यहां पर शादियों सहित अनेक प्रकार के कार्यक्रम होते हैं। रामलीला मैदान के पास रहने वाले लोगों के लिए देर रात तक बजने वाले डीजे की आवाजें किसी यातना से कम नहीं हैं।


इन्द्री में हरिचंद गणहोत्रा, बलराम सचदेवा, प्रभु दयाल हंस सहित कुछ परिवारों में परिवार का ठहराव हुआ। पुरानी यादों पर चर्चाएं हुई। इन्द्री से काफिला करनाल के लिए बढ़ गया। यहां भी राम नारायण और सीता देवी सहित परिजनों की यादों पर खूब चर्चाएं हुई होंगी। इन्द्री और करनाल में एक-एक दिन का पड़ाव रहा। सभी अपने साथ ज्यादा समय बिताने का आग्रह करते रहे। लेकिन भाग-दौड़ भरे जीवन में यादों की धरोहर को समर्पित इतना समय भी क्या कम है? यात्रा में शामिल हुए और यात्रियों के संपर्क में आए सभी बच्चों के लिए यह यात्रा शिक्षाओं से भरी हुई है। आज जब पर्यटन को बढ़ावा देने की बातें की जाती हैं तो यादगार स्थानों पर इस तरह की यात्राओं की अहमियत का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। ग्रामीण अंचल में दबी-छिपी धरोहर को निकाल कर नई पीढ़ी को सौंपने का यह काम हर दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इस तरह की शिक्षाप्रद व यादगार यात्रों को दिल की गहराईयों से सलाम। 

तन्मय से जब इस यात्रा के बारे में जानना चाहा तो उन्होंने कहा कि दादा-दादी प्रति दिन पुरानी यादों पर चर्चाएं करते हैं। उन चर्चाओं को सुनकर उन्हें मन-मस्तिष्क में रूपाकार देते थे, तो सब कुछ काल्पनिक सा लगता था। आज की यात्रा ने यादों को यथार्थ का ठोस धरातल दे दिया है। उनके लिए यह यात्रा किसी तीर्थ यात्रा से कम नहीं है। 


-अरुण कुमार कैहरबा

हिन्दी प्राध्यापक एवं लेखक

राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, ब्याना। 

घर का पता- वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान,

इन्द्री, जिला-करनाल, हरियाणा

मो.नं.-9466220145






Saturday, June 3, 2023

KERAL TO KASHMIR THEATRE JOURNEY REACHED INDRI, WELCOMED THEATRE ACTIVIST VITHURA SUDHAKARAN

 केरल से कश्मीर यात्रा पर निकले रंगकर्मी सुधाकरन का इन्द्री में जोरदार स्वागत

12 भाषाएं, एक नाटक-एकता

भारत की विविधता में एकता की झांकी प्रस्तुत की


इन्द्री, 2 जून
केरल से कश्मीर की मोटरसाइकिल यात्रा पर निलके रंगकर्मी विथुरा सुधाकरन इन्द्री पहुंचे। केरल के त्रिवेन्द्रम से संबंध रखने वाले सुधाकरन ने स्थानीय लडक़ों के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में आयोजित समारोह में भारत की विविधता में एकता की झांकी पेश करता अपना नाटक- एकता प्रस्तुत किया। नाटक में उन्होंने गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर, मोहन राकेश, बलवंत गार्गी, कालीदास सहित देश के प्रसिद्ध नाटककारों के नाटकों व देश की बहुरंगी संस्कृति की झांकी प्रस्तुत की। भारत की भाषायी विविधता के मामले में भी नाटक अनूठा था। एकल  नाटक-एकता में सुधाकरन ने देश की 12 शास्त्रीय भाषाओं का इस्तेमाल किया। पानीपत से रंगकर्मी उषा गौतम और जरनैल सिंह रंगकर्मी सुधाकरन को इन्द्री छोड़ कर गए। अपनी मोटरसाइकिल पर नाटक का पूरा सेट, परिधान, सामग्री आदि लेकर चल रहे रंगकर्मी का इन्द्री के रंगकर्मियों, अध्यापकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने फूलमालाओं के साथ जोरदार स्वागत किया। मंच संचालन रंगकर्मी अरुण कुमार कैहरबा व रविन्द्र शिल्पी ने किया। बीआरपी धर्मेन्द्र चौधरी, कविता कांबोज, एबीआरसी शैलजा, अध्यापक महिन्द्र खेड़ा, अध्यापक संघ के प्रधान बलराज चहल, पूर्व प्रधान मान सिंह चंदेल, गुंजन, धर्मवीर लठवाल, जगदीश, सुनील सिवाच, सबरेज अहमद, उधम सिंह, सूरजभान बुटानखेड़ी, समय सिंह सहित अनेक अध्यापकों ने उनका स्वागत किया।

सुधाकरन ने बताया कि उन्होंने त्रिवेन्द्रम स्थित भारत भवन में 27 मार्च को विश्व रंगमंच दिवस पर अपनी नाटक यात्रा की शुरूआत की थी। इन्द्री में उन्होंने 42वीं प्रस्तुति दी है। आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में निकाली जा रही इस यात्रा में उन्हें देशवासियों का भरपूर स्नेह मिल रहा है। उन्होंने कहा कि भारत की विविधता को देखना और एकता के सूत्र में पिरोना उनके नाटक का मकसद है। अरुण कैहरबा ने कहा कि सुधाकरन जी की थियेटर ऑन व्हील रंगयात्रा देश के सांस्कृतिक इतिहास में अनूठी यात्रा है। इस तरह की यात्राएं लोगों को आपस में जुडऩे व जानने का मौका देती हैं। रविन्द्र शिल्पी ने नाटक देखने के बाद नाटक के कलात्मक पक्ष पर टिप्पणी करते हुए कहा कि एकता नाम का यह नाटक एकता का प्रयोग है, जिसमें देश की विविध कलाओं की झांकी को देखा जा सकता है।


इन्द्री के बाद गांव नन्हेड़ा स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति प्राथमिक पाठशाला में स्कूल मुखिया महिन्द्र खेड़ा, सुरेश नगली सहित अध्यापकों ने रंगकर्मी सुधाकरन का स्वागत किया। यहां पर अतिथि ने स्कूल के पेड़ों पर उगे आड़ू फल का सेवन किया। उन्होंने स्कूल के प्राकृतिक वैभव और अध्यापकों की मेहनत की सराहना की। 
HARYANA PRADEEP 3-6-2023

DAINIK JAGMARG 3-6-2023

PUNJAB KESARI

HARI BHOOMI

DAINIK BHASKAR


DAILY YUGMARG

HARYNA DINRAT