शिक्षा के सवालों पर छेड़ा विमर्श, किए तीखे व्यंग्य
आनंददायी शिक्षा का आह्वान
अरुण कैहरबा ने बड़े भाई और गुरनाम कैहरबा ने छोटे भाई की भूमिका में किया शानदार अभिनय
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यमुनानगर, 31अगस्त
स्थानीय शशि महल में आयोजित हरियाणा विद्यालय अध्यापक संघ के 23 वे राज्यस्तरीय सम्मेलन में देस हरियाणा से जुड़े रंगकर्मी अरुण कैहरबा और गुरनाम कैहरबा ने प्रेमचंद की कहानी बड़े भाईसाहब का नाट्य मंचन प्रस्तुत किया। शिक्षा के सवालों पर गहरे विमर्श और तीखे व्यंग्य से भरपूर कहानी के मंचन को प्रदेश भर के अध्यापकों की तरफ से खूब सराहा गया। नाटक में राजकीय उच्च विद्यालय करेड़ा खुर्द में हिन्दी प्राध्यापक अरुण कैहरबा ने बड़े भाई और पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ के भारतीय रंगमंच विभाग से पीएचडी कर रहे गुरनाम कैहरबा ने छोटे भाई की भूमिका निभाई। प्रस्तुति व स्टेज संयोजन राजकुमार जांगड़ा, महिन्द्र खेड़ा व अजय सिसाना ने किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता अध्यापक संघ के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष जरनैल सिंह सांगवान ने की।
नाटक में दोनों भाई होस्टल में रह कर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। छोटा भाई आनंददाई ढंग से खेलते-कूदते पढ़ता है। उसे मैदान की हरियाली और हवा के झोंके आकर्षित करते हैं। कमरा हो या खेल का मैदान वह बाहर जाकर खेलता है। गुरनाम ने छोटे भाई के अल्हड़पन और बचपन की गतिविधियों को पूरी जिंदादिली के साथ अभिनीत किया। वहीं बड़ा भाई पढ़ाई के दबाव में रहता है। वह छोटे भाई को मन लगाकर पढ़ने की सीख देता है और स्वयं समझकर पढ़ने की बजाय रट-रटकर पढ़ता है। इसी के अनुकूल परिणाम भी आता है। रट्टा पद्धति का परिणाम यह होता है कि बड़ा भाई फेल होता जाता है और छोटा भाई पास होता है। दोनों के बीच में कक्षाओं का अंतर कम हो जाता है।
बड़े भाई के रूप में अभिनय करते हुए अरुण कैहरबा द्वारा बोले गए संवाद विभिन्न विषयों के सिलेबस, पाठ्य पुस्तक, शिक्षण विधियों, साधनों और परीक्षा प्रणाली के बारे में सोचने को मजबूर करते हैं। बड़े भाई का एक संवाद- 'आखिर इन बेसिर पैर की बातों को रटने से फायदा। इस रेखा पर लंब गिरा दो तो लंब आधार से दूना होना। पूछिए से इससे प्रयोजन... लेकिन परीक्षा में पास होना है तो सब खुराफात याद करनी पड़ेगी।' नाटक शिक्षा को आनंददायी और जीवन के साथ जोड़ने का आह्वान करता है। जो शिक्षा जीवन की विसंगतियों को पकड़ कर बदलाव की राह ना खोले, ऐसी शिक्षा बेमानी हो जाती है।
नाट्य मंचन में राम नरेश, राकेश कुमार, विक्रम राही, सुरेन्द्र सैनी आदि ने सहयोग किया। जरनैल सिंह सांगवान ने कहा कि इस तरह की नाट्य प्रस्तुतियों के माध्यम से जटिल विषयों को सहजता के साथ दर्शकों तक पहुंचाया जा सकता है। उन्होंने शिक्षा केंद्रित प्रेमचंद की कहानी को जन-जन तक ले जाने के लिए दोनों कलाकारों के प्रयासों की सराहना की।
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