जयंती विशेष
आजादी की लड़ाई के अग्रणी नायक शेरे-पंजाब लाला लाजपत राय
अपने विचारों व कार्यों से कांग्रेस को दिया नया जोश
पंजाब नेशनल बैंक, लक्ष्मी बीमा कंपनी व डीएवी संस्थाओं के संस्थापक के रूप में निभाई महत्वपूर्ण भूमिकाअरुण कुमार कैहरबा![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiyWjKictq2YMu55piSFqvhfdJ6JZg4slbnCSGmLGb6ys3EGiyqOS26ACh_d9IVryDhyBqGwXSr1J3Id7qbnKUQZJOeU1_NhdN90sqPbxoyOq4NC10jsmHuxRxM5KdXVch-gcdMBobmRjkb/w640-h306/AjitSamachar-28-01-2021.jpg)
आजादी की लड़ाई में एक से बढक़र एक वीर व क्रांतिकारियों ने अपनी शहादत दी है। उन शख्सियतों के जीवन और संघर्षों पर नजर डालें तो हैरानी भी होती है और रगों में जोश भी भरता है। उन्हीं क्रांतिकारियों में से एक शेरे पंजाब व पंजाब केसरी के नाम से विख्यात लाला लाजपत राय हैं, जोकि बहु आयामी शख्सियत के मालिक हैं। वे जहां आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों के साथ लोहा ले रहे थे। वहीं आर्य समाज व अन्य संस्थाओं के साथ जुड़ कर शिक्षा व समाज सुधार के लिए उल्लेखनीय कार्य कर रहे थे। अखबार व पत्रिकाएं निकाल कर आजादी के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने में लगे थे। साईमन कमीशन के विरोध में आंदोलन के दौरान अंग्रेजी सरकार की लाठियों से घायल होने के बाद वे शहीद हो गए। उन्होंने कहा था कि मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी अंग्रेजी शासन के ताबूत पर आखिरी कील साबित होगी। ऐसा ही हुआ और उनकी शहादत के बाद अनेक क्रांतिकारियों ने उसका बदला लेने के लिए कमर कस ली।![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiyWjKictq2YMu55piSFqvhfdJ6JZg4slbnCSGmLGb6ys3EGiyqOS26ACh_d9IVryDhyBqGwXSr1J3Id7qbnKUQZJOeU1_NhdN90sqPbxoyOq4NC10jsmHuxRxM5KdXVch-gcdMBobmRjkb/w640-h306/AjitSamachar-28-01-2021.jpg)
लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी, 1865 को गांव दुधिके में अपने ननिहाल में हुआ था। यह गांव अब पंजाब के मोगा जिले में पड़ता है। उनके अध्यापक पिता मुंशी राधाकृष्ण लुधियाना के जगरांव कस्बे में रहते थे। राधाकृष्ण उर्दू और फारसी के अच्छे जानकार थे और इस्लामी धार्मिक रीति-रिवाजों व धार्मिक अनुष्ठानों के अध्येता थे। लाला लाजपत राय को अपने वैश्य अग्रवाल पिता और सिक्ख माता गुलाब देवी से संस्कार मिले। 70 के दशक के अंत में पिता का तबादला रेवाड़ी में हो गया। रेवाड़ी के राजकीय स्कूल में ही उनकी प्रारंभिक पढ़ाई हुई। लाहौर में राजकीय कॉलेज से उन्होंने एफए व मुख्तारी की पढ़ाई साथ-साथ की। यहीं पर वे आर्य समाजी लाला साईंदास व लाला मदन सिंह के संपर्क में आए और आर्य समाज से जुड़ गए। जगरांव में उन्होंने मुख्तारी शुरू कर दी। लेकिन छोटा कस्बा होने के कारण आगे बढऩे की संभावना कम थी। वकालत की पढ़ाई के लिए वे रोहतक आ गए और 1885 में वकालत की पढ़ाई सफलता से पूरी की। 1886 से 1892 तक हिसार में वकालत की। यहां पर वे कांग्रेस की गतिविधियों में हिस्सा लेते हुए कांग्रेस के सक्रिय सदस्य बन गए थे। यहीं से वे अपने तीन अन्य साथियों के साथ 1888 में कांग्रेस के इलाहाबाद अधिवेशन का हिस्सा बने। वे हिसार नगरपालिका के सदस्य भी चुने गए थे और नगरपालिका के पहले भारतीय सचिव बने थे। लोगों पर उनका प्रभाव इतना गहरा था कि वे मुस्लिम बहुल इलाके से चुने गए थे। लाला जी आधुनिक हिसार के विकास के सूत्रधार थे। उनके कार्यकाल में हिसार में ईंटों की पहली पक्की सडक़ बनी थी। हिसार में ही उन्होंने शादी करवाई। हिसार की जैन गली निवासी राधा रानी उनकी जीवन संगिनी बनी। 1892 में लाला लाजपत राय ने फिर से लाहौर की ओर रूख किया।
आजादी की लड़ाई के साथ ही मोर्चा चाहे सामाजिक हो या शैक्षिक, लाला लाजपत राय पीछे नहीं रहते थे। 30 अक्तूबर, 1883 को स्वामी दयानंद के देहांत के बाद 9नवंबर को लाहौर में एक शोक सभा का आयोजन किया गया। शोक सभा में यह निर्णय किया गया कि स्वामी जी की याद में एक ऐसा महाविद्यालय स्थापित किया जाए, जिसमें वैदिक संस्कृति के साथ ही आधुनिक ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा दी जाए। अन्य आर्य समाजी नेताओं के साथ में लाला जी ने संस्थान स्थापित करने के लिए अथक मेहनत की। लाहौर में 1886 में पहले दयानन्द एंग्लो वैदिक संस्थान (डीएवी) की स्थापना की गई। इसके बाद डीएवी स्कूलों की स्थापना और प्रचार-प्रसार के लिए भी उन्होंने प्रयास किए। 1897 और 1899 में अकाल व समय-समय पर आई आपदाओं के समय पीडि़तों की मदद के कार्यों में लाला लाजपत राय अग्रिम मोर्चे पर रहे। अंग्रेज लेखक विन्सन ने लाला जी के स्वभाव व सेवाभाव की तारीफ करते हुए कहा था- लाजपत राय के सादगी और उदारता भरे जीवन की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। उन्होंने अशिक्षित गऱीबों और असहायों की बड़ी सेवा की थी। इस क्षेत्र में अंग्रेजी सरकार बिल्कुल ध्यान नहीं देती थी।
लाला लाजपत राय ने देश के विकास के लिए व्यापार और उद्योग के विकास पर जोर दिया। उन्होंने कांग्रेस को अपने वार्षिक अधिवेशनों के दौरान औद्योगिक सम्मेलन आयोजित के भी सुझाव दिए। उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कंपनी जैसी आर्थिक संस्थाओं की स्थापना की। साथ ही उन्होंने भारतीय व्यापारियों द्वारा निर्यात को बढ़ावा देने के लिए स्वदेशी संगठनों की स्थापना का पक्ष लिया, क्योंकि प्रतियोगिता के अभाव में ब्रिटिश उद्यमी भारी मुनाफा कमा रहे थे। उन्होंने छात्रों के राजनीतिक प्रशिक्षण के लिए तिलक स्कूल ऑफ पॉलिटिक्स की स्थापना की और देश के लिए निस्वार्थ भाव से काम करने का संकल्प करने वाले सदस्यों को भर्ती करने और प्रशिक्षित करने के लिए सर्वेंट ऑफ दा पीपुल सोसाइटी की स्थापना की। उन्होंने जातीय व साम्प्रदायिक लड़ाई लडऩे की बजाय गरीबी और अज्ञानता के विरूद्ध एकजुट होकर लड़ाई लडऩे की जरूरत पर बल दिया।
लाला लाजपत राय ने लोकमान्य बालगंगाधर तिलक व विपिन चन्द्र पाल के साथ मिलकर कांग्रेस में गर्म दल को जन्म दिया। तीनों की यह तिकड़ी इतिहास में लाल-बाल-पाल के नाम से मशहूर हुई। इसने कांग्रेस में प्रखर अभिव्यक्ति और आजादी के उग्र आंदोलन की जरूरत रेखांकित की। इससे पहले कांग्रेस पार्टी साल में एक बार अधिवेशन करने और शांतिपूर्ण ढ़ंग से अपनी मांगें रखने वाले लोगों का समूह था। लाला जी ने कांग्रेस के 1907 में हुए सूरत अधिवेशन में गर्म दल की विचारधारा का सूत्रपात किया। इससे पहले उन्होंने बंग-भंग का कड़ा विरोध किया। 1907 में ही जब किसान अपने अधिकारों के लिए उग्र हुए तो अंग्रेजी सरकार ने गुस्सा उतारते हुए लाला जी व स. अजीत सिंह को बर्मा के मांडले में नजरबंद कर दिया। सरकार के इस फैसले का जोरदार विरोध हुआ और सरकार को अपना फैसला वापिस लेना पड़ा। उन्होंने 1920 में गांधी जी द्वारा शुरू किए गए असहयोग आंदोलन का पंजाब में नेतृत्व किया। लेकिन आंदोलन को अचानक वापिस लिए जाने के प्रति उन्होंने रोष जताया। अंग्रेजी सरकार के शिक्षण संस्थानों का विरोध, विदेशी वस्तुओं व अदालतों का बहिष्कार, शराब के विरूद्ध आंदोलन, चरखा व खादी के प्रचार प्रसार के कामों में नेतृत्वकारी भूमिका निभाई। उन्होंने स्वराज पार्टी व नेशनलिस्ट पार्टी का गठन किया। अपने अमेरिका प्रवास के दौरान उन्होंने होमरूल लीग की स्थापना की। उन्होंने कईं बार ब्रिटेन व अमेरिका की यात्रा की और वहां पर भारतीयों की स्थितियों व अंग्रेजी शासन की क्रूरताओं से लोगों को अवगत करवाया।
संवैधानिक सुधारों पर चर्चा के लिए 1928 में साइमन कमिशन भारत आया। कमिशन में कोई भारतीय प्रतिनिधि नहीं होने के कारण भारतीय नागरिकों का गुस्सा भडक़ गया। देश भर में विरोध-प्रदर्शन होने लगे। 30 अक्तूबर के दिन लाहौर के विरोध-प्रदर्शन में लाला लाजपत राय आगे-आगे थे। पुलिस अधीक्षक जेम्स ए.स्कॉट ने मार्च को रोकने के लिए लाठी चार्ज का आदेश दे दिया। पुलिस ने लाजपत राय की छाती पर निर्ममता से लाठियां बरसाईं। बुरी तरह जख्मी हुए लाला लाजपत राय का 17 नवंबर, 1928 को निधन हो गया। लाला जी की मृत्यु से पूरे देश में गुस्सा फैल गया। भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव व चन्द्रशेखर आजाद सहित क्रांतिकारियों ने इस मौत का बदला लेने का निर्णय किया। उनकी मृत्यु के एक महीने बाद 17 दिसंबर को कार्रवाई करते हुए भगत सिंह व राजगुरु ने स्कॉट पर गोली चलाई, लेकिन निशाना चूक जाने से गोली सहायक पुलिस अधीक्षक जॉन पी. सांडर्स को लगी। सांडर्स की हत्या के इल्जाम में भगत सिंह, राजगुरू व सुखदेव पर लाहौर षडयंत्र केस चला गया और उन्हें फांसी की सजा दी गई। देश को आजाद करवाने की लड़ाई ने गति पकड़ ली। महात्मा गांधी जी ने कहा था-‘भारत के आकाश पर जब तक सूर्य का प्रकाश रहेगा, लाजपत राय अमर रहेंगे।’
उच्च कोटि के राजनैतिक नेता, समाज सुधारक व संस्थाओं के जनक होने के साथ-साथ वे स्वतंत्र सोच के पत्रकार, संपादक, आजस्वी लेखक व प्रभावशाली वक्ता भी थे। जेलों में रहते हुए विशेष रूप से उन्होंने समय का सदुपयोग अध्ययन करके किया। उन्होंने यंग इंडिया नामक मासिक पत्रिका निकाली। जन जागृति व देश प्रेम पर आधारित उनकी पुस्तक ‘तरुण भारत’ पर ब्रिटिश सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था। उन्होंने स्वराज के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने के लिए ‘पंजाबी’, ‘वंदे मातरम’, ‘द पीपुल’ समाचार-पत्रों की स्थापना की। उन्होंने भारत का इंग्लैंड पर ऋण, भारत के लिए आत्मनिर्णय, नेशनल एजुकेशन, अनहैप्पी इंडिया और द स्टोरी ऑफ़ माई डिपोर्डेशन आदि पुस्तकें लिखीं, जो यूरोप की प्रमुख भाषाओं में अनुदित हो चुकी हैं। लाला लाजपत राय ने उर्दू दैनिक वंदे मातरम में लिखा था-
‘मेरा मज़हब हक़परस्ती है, मेरी मिल्लत क़ौमपरस्ती है, मेरी इबादत खलकपरस्ती है, मेरी अदालत मेरा ज़मीर है, मेरी जायदाद मेरी क़लम है, मेरा मंदिर मेरा दिल है और मेरी उमंगें सदा जवान हैं।’
अरुण कुमार कैहरबा
हिन्दी प्राध्यापक, स्तंभकार व लेखक
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जिला-करनाल, हरियाणा
मो.नं.-9466220145
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