Saturday, January 16, 2021

धरा को फूलों, रंगों और खुश्बू से महकाने में लगे हैं फ्लावर मैन डॉ. रामजी जयमल

हरियाणा सहित कईं राज्यों में लगाए फूल

फूलों की मुहिम पर फिल्म निर्देशक नकुल देव ने बनाई डोक्यूमेंटरी- ‘बिफोर आई डाई’

फिल्म महोत्सवों में फिल्म और जयमल की हो रही चर्चा
DAILY NEWS ACTIVIST 10 JANUARY 2021

अरुण कुमार कैहरबा
फूल लगाएं, आओ धरा को रंगों और खुश्बू से महकाएं। ऐसा ही संकल्प लेकर एक शख्स कईं सालों से फूलों की खेती में जुटा हुआ है। यह खेती निजी लाभ की बजाय पर्यावरण को स्वच्छ और धरा को सुंदर बनाने की है। प्रकृति को माता मान कर उसका सम्मान बढ़ाने में लगा वह शख्स है- हरियाणा के जिला सिरसा के गांव दड़बी निवासी डॉ. रामजी लाल जयमल। अपने ही गांव से शुरू की गई उनकी मुहिम अब पूरे हरियाणा सहित दिल्ली, पंजाब, उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड सहित अनेक राज्यों में पहुंच गई है। वे फूल उगाते हैं। फूलों के बीज संग्रहित करते हैं। उन्हें उगाते हैं। फूलों की पौध बांटते हैं। पौध को उगाने में लोगों का मार्गदर्शन करते हैं। इस वर्ष उन्होंने 50 से अधिक किस्म के फूलों के ढ़ाई अरब बीज हरियाणा, उत्तर प्रदेश व पंजाब के विभिन्न स्थानों पर बोए हैं। बीजों की पौध को पौध वितरण उत्सव आयोजित करके बांटा गया।
फ्लावर मैन ऑफ इंडिया के नाम से मशहूर हो चुके डॉ. रामजी के यह स्वैच्छिक प्रयास आगे बढ़ते जा रहे हैं। फिल्मकार व निर्देशक नकुल देव ने उनके कार्य पर चार साल उनके साथ रहते व मेहनत करके डोक्यूमेंटरी फिल्म बनाई है। फिल्म का नाम रखा गया है- ‘बिफोर आई डाई’ यानी मेरे मरने से पहले। फिल्म अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सवों में शामिल हो रही है। फिल्म का अनेक स्थानों पर प्रदर्शन हो चुका है, जिसे देखकर डॉ. रामजी की पर्यावरण के प्रति साधना व समर्पण के प्रति दर्शकों की आंखें नम हो जाती हैं। उनके दिल में संवेदनशीलता की कोंपलें उगने लगती हैं। फूलों की खेती करने के लिए वे भी उठ खड़े होते हैं।
डॉ. रामजी ने इस लेखक से विशेष साक्षात्कार में बताया कि उन्होंने करीब 14 साल पहले अपने गांव में ऐसे स्थान पर फूल उगाए, जहां पर लोग मरे पशुओं को डालने का काम करते थे। जब वे सार्वजनिक स्थान पर पौध उगा रहे थे, तो लोगों ने उन्हें तरह-तरह की बातें कहना शुरू कर दिया। उनके घरवालों को भी उन्हें समझाने की हिदायत दी गई। कुछ लोग उनसे नफरत भी करने लगे। उन्होंने बताया कि पौधे बड़े होने लगे और ज्यों-ज्यों उन पर फूल उगने लगे तो लोगों की भावनाएं भी बदलने लगी। एक गंदे स्थान पर खिले फूलों ने लोगों का उनके प्रति भाव बिल्कुल बदल दिया। उन्होंने कहा कि फूल केवल दृश्य को ही नहीं बदलते मनुष्य को भी बदलते हैं और उसकी सोच पर सकारात्मक असर डालते हैं।
DAINIK TRIBUNE 16 JAN.2021


डॉ. रामजी ने बताया कि तब से शुरू हुआ उनका यह अभियान लगातार आगे बढ़ता गया है। हालांकि धरा को सुंदर बनाने की मुहिम में अपने सारे आर्थिक संसाधन और ऊर्जा झोंक देने के कारण उनके परिवार में आर्थिक मुश्किलें तो बढ़ती गई। लेकिन उनके समर्पण और इरादों के आगे ये सारी मुश्किलें तुच्छ ही साबित हुई। उन्होंने फूलों से अपने गांव की गलियों के दोनों तरफ खाली पड़ी जमीन पर फूल उगाए। स्कूल के अध्यापकों का कहना है कि जिस स्थान से उठने वाली दुर्गंध पढऩे-पढ़ाने में बाधा बनती थी, अब वहां से फूलों की खुश्बू आती है। धीरे-धीरे आस-पास के गांवों के स्कूल व श्मशान भूमि गुलो-गुलजार होने लगी। करनाल रेंज की पुलिस महानिदेशक भारती अरोड़ा सहित पुलिस अधिकारियों का सहयोग मिला तो जेलों में भी फूल खिलने लगे। डॉ. रामजी की फूलों की मुहिम जेलों का रूखापन सोखने की मुहिम बन गई है। इससे कैदियों का जीवन बदल रहा है। वे फूलों की खेती में लगकर बेहद खूबसूरत और रचनात्मक काम में लग रहे हैं।

खाली जमीनों पर महकने लगे फूल-

पौध उगाने के लिए स्कूल के अध्यापक व किसान उन्हें स्वैच्छिक रूप से जगह मुहैया करवाते हैं। पौध उगाकर उसे लोगों को मुफ्त में ही वितरित किया जाता है। बस शर्त यह रहती है कि पौध लेने से पहले फूलों के चाहवान अपनी क्यारियां बनाकर व जमीन तैयार करके आएं और पौध को बिना खराब किए रोप डालें। उनके प्रयासों से खाली पड़ी जमीनों पर फूल महकने लगे हैं। इस बार करनाल जिला में ही निगदू, रायतखाना, नन्हेड़ा के सरकारी स्कूलों सहित पुलिस महानिदेशक के आवास और जेल में पौध लगाई गई। कैथल व यमुनानगर सहित कईं जिलों की जेलों में या तो फूलों के बीज बोए गए या फिर पौध रोपी गई। करनाल, गुरुग्राम, कुरुक्षेत्र, सिरसा सहित कई जिलों में  पौध वितरण उत्सव आयोजित करके फूलों के करोड़ों पौधे मुफ्त बांटे गए, जिनमें अब फूल खिल गए हैं।
DAINIK PRAKHAR VIKAS 11-01-2021


फूलों के जरिये करते पर्यावरण का संरक्षण-

डॉ. रामजी जयमल बताते हैं कि फूल उगाने का मतलब धरती पर फूल उगाने के साथ-साथ बच्चों व युवाओं के मन में प्रकृति प्रेम के बीज उगाना ही है। उनका मानना है कि फूलों से परिवेश तो सुंदर बनता ही है, लेकिन फूलों के जरिये वे बड़ा लक्ष्य लेकर चलते हैं। वे फूलों के बीच में ही ऐसे पौधे लगाना चाहते हैं, जोकि भविष्य में बड़े होकर पर्यावरण को बड़ा लाभ दें। फूलों के बीच-बीच में वे ऐसे पौधे उगाते हैं, जोकि बड़े पेड़ बनते हैं। लोग फूलों से मुहब्बत करते हैं। तीन-चार महीने की उम्र में लोग फूलों को बार-बार निहारते हैं। इससे उनके मन को सुकून मिलता है। उन्हीं के बीच में लगाए गए पौधे इसी दौरान पूरी खुराक प्राप्त करके कुछ समय के बाद पेड़ के रूप में उभर जाते हैं। इसे हम आम के आम और गुठलियों के दाम भी कह सकते हैं। उनका उद्देश्य पेड़ों से धरती को हरा-भरा बनाना है।

डोक्यूमेंट्री फिल्म-बिफोर आई डाई-

फिल्म निर्माता व निर्देशक नकुल देव ने बताया कि उन्हें डॉ. रामजी के फूल उगाने और बांटने के अभियान के बारे में पता चला तो दिल से प्रकृति प्रेमी होने के कारण इसके बारे में जानने गए। उनके मन में दो-तीन मिनट की कोई प्रचारात्मक सामग्री का निर्माण करके मुहिम में सहयोग करने की इच्छा भी थी। लेकिन जब उन्होंने डॉ. रामजी के प्रयासों व समर्पण को देखा तो उन्हें लगा कि इस पर कुछ अच्छा काम करना चाहिए। उन्हें डॉ. रामजी की सादगी व प्रचार से दूरी ने आकर्षित किया कि किस तरह यह प्रकृति का पुजारी मिट्टी में रम कर फूल उगाता है और फिर उन्हें लोगों को बांट कर खुशियां कमाता है। उन्होंने बताया कि डॉ. रामजी की मुहिम के विविध आयाम जानने के लिए उन्होंने उनके साथ कुछ समय बिताना शुरू किया तो किस तरह से चार साल बीत गए उन्हें भी पता नहीं चला और वे इस मुहिम का अभिन्न हिस्सा बन गए। उसमें से यह डोक्यूमेंटरी-बिफोर आई डाई उपजी है। फिल्म बनाते हुए वे स्वयं भी फूलों के इस शानदार सफर का हिस्सा बन गए हैं। डॉ. रामजी ने बताया कि नकुल देव ने उनकी टपकती छत के नीचे उनके साथ रातें बिताई हैं। उनके साथ ही नमक या चटनी के साथ सूखी रोटी खाई है। फिल्मकार की साधना कम नहीं है।

चारों तरफ हों मोर व गौरैया-

फिल्म में भी बड़े मार्मिक ढ़ंग से दिखाया गया कि किस तरह से घर की जरूरतों की उपेक्षा करते हुए भी उन्होंने फूलों को तरजीह दी। डॉ. रामजी का सपना है कि उनके मरने से पहले चारों तरफ मोर हों। उन्होंने कहा कि लगातार प्रकृति के साथ हो रहे खिलवाड़ के कारण जैव-विविधता पर बुरा असर हुआ है। कुछ वर्षों पूर्व उनके गांव व खेतों में मोर ही मोर दिखाई देते थे। लेकिन धरती से अधिकाधिक दोहन के लिए कीटनाशकों के  अंधाधुंध प्रयोग के कारण मोर कम होते गए हैं। ऐसे में उनके जीवन का बस एक ही सपना है कि धरती मां में जहर ना घोला जाए। उसके कुदरती रूप का संरक्षण हो। मोर, गौरया और मधुमक्खियां लौट आएं। उनका यही सपना फिल्म का शीर्षक बन गया।

बनाया गोबर का गमला-

पोलिथीन पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा खतरा है। लेकिन पर्यावरण के लिए उगाए जाने वाले पौधे भी गमलों में उगाए और एक-दूसरे को दिए जाते हैं। सरकारी नर्सरियों में भी पोलिथीन का प्रयोग धड़ल्ले से होता है। इससे दुखी डॉ. रामजी जयमल ने पोलिथीन से मुक्ति पाने का विचार किया तो गोबर के गमले का आविष्कार हुआ। उन्होंने गाय व पशुओं के गोबर से ऐसा गमला इजाद किया, जोकि पौधे को पूरा पोषण देता है। पौधा जब दूसरी जगह लगाया जाता है तो गमले के साथ ही पौधा लगाया जाता है। इससे ना तो पौधों की जड़ें हिलती हैं और ना ही पौधे का कोई नुकसान होता है। बल्कि पोषक तत्वों से भरपूर गमले से पौधे का विकास तेज गति से होता है।

अरुण कुमार कैहरबा
हिन्दी प्राध्यापक, स्तंभकार व लेखक
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जिला-करनाल, हरियाणा
मो.नं.-9466220145

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