Thursday, June 5, 2014

विश्व पर्यावरण दिवस (5जून ) पर विशेष

विश्व पर्यावरण दिवस (5जून ) पर विशेष

मनुष्य की स्वार्थपरता से पर्यावरण का संकट गहराया

अरुण कुमार कैहरबा

समस्त जैविक और अजैविक तत्वों, घटनाओं व प्रक्रियाओं को पर्यावरण कहा जाता है। अक्सर मनुष्य द्वारा इस शब्द का प्रयोग इस तरह से किया जाता है, जैसे वह इससे अलग और ऊपर है। लेकिन पर्यावरण हमारे चारों ओर है तथा मनुष्य व सभी प्रकार के जीव-जंतु पर्यावरण का अविभाज्य हिस्सा हैं। विज्ञान और तकनीकी क्षमताओं से लैस होकर घमंड से भरा मनुष्य तात्कालिक रूप से पर्यावरण को नियंत्रित कर लेता है। यही कारण है कि वह अपने आप को पर्यावरण से अलग और उससे बड़ा मानने की भूल कर बैठता है। तकनीकी रूप से विकसित मनुष्य द्वारा आर्थिक उद्देश्य और जीवन में विलासिता के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु प्रकृति के साथ व्यापक छेड़छाड़ के क्रियाकलापों ने प्राकृतिक पर्यावरण का संतुलन बिगाड़ कर रख दिया है। जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग और प्रदूषण के चलते पूरा विश्व एक बड़े संकट के मुहाने पर है। इस संकट की घड़ी में सभी जीवों में सर्वोत्तम होने का दावा करने वाला मनुष्य अपनी जिम्मेदारी कैसे निभाता है? यह एक ज्वलंत प्रश्र है।
    लगातार ऊँचाईयाँ छूने की चाह और कोशिशों ने मनुष्य को औद्योगिकरण और शहरीकरण की तरफ बढ़ाया। उसके सकारात्मक परिणाम भी आए हैं। लेकिन फैक्ट्रियों से निकले कचरे, धूल और धूएं का प्रबंधन करने की दिशा में कोताही बरती गई। आर्थिक लाभ बढ़ाने के लिए तकनीक का जितना इस्तेमाल किया गया, उतना कचरे का प्रबंधन करने की दिशा में नहीं किया गया। कारखानों, बिजलीघरों और मोटरवाहनों में खनिज ईंधनों (डीजल, पेट्रोल, कोयला आदि) का अंधाधुंध प्रयोग होता है। इनको जलाने पर कार्बन डाइऑक्साईड, मीथेन, नाइट्रस आक्साइड आदि गैसें निकलती हैं। इन जहरीली गैसों ने मिट्टी, पानी और हवा के प्राकृतिक स्वरूप को नष्ट कर दिया है। पृथ्वी के तापमान में अप्रत्याशित वृद्धि हो रही है। पिछले सौ वर्षों में वायुमंडल के तापमान में 3 से 6 डिग्री सैल्सियस की बढ़ौत्तरी हुई है। समुद्र के तापमान में भी इज़ाफा हो रहा है। अगर समुद्र का जलस्तर दो मीटर बढ़ गया तो मालद्वीप और बांग्लादेश जैसे निचाई वाले देश डूब ही जाएंगे। मानव निर्मित जहरीली गैस के उत्सर्जन से उच्च वायुमंडल की आजोन परत को नुकसान हो रहा है। यह परत सूर्य की खतरनाक पैराबैंगनी विकिरणों को धरती पर पहुँचने से रोकती है।
    प्रदूषक गैसें मनुष्य और जीवधारियों में अनेक जानलेवा बीमारियों का कारण बन रही हैं। एक अध्ययन के मुताबिक वायु प्रदूषण से केवल 36 शहरों में प्रतिवर्ष 51,779 लोगों की अकाल मृत्यु हो जाती है। कलकत्ता, कानपुर तथा हैदराबाद में वायु प्रदूषण से होने वाली मृत्युदर पिछले 3-4 सालों में दुगुनी हो गई है। एक अनुमान के अनुसार हमारे देश में प्रदूषण के कारण हर दिन करीब 150 लोग मरते हैं और सैकड़ों लोगों को फेफड़े और हृदय की जानलेवा बीमारियां हो रही हैं। कारखानों का रासायनिक कचरा और प्रदूषित पानी तथा शहरी कूड़ा-करकट नदियों में छोड़ दिया जाता है। इससे नदियां अत्यधिक प्रदूषित हो गई हैं। इनमें पवित्र गंगा भी शामिल है। पानी में जहरीली गैसों के उत्सर्जन से जलीय जीवों पर भी खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। प्रदूषित पानी पीने से ब्लड कैंसर, जिगर कैंसर, त्वचा कैंसर, हड्डी-रोग, हृदय एवं गुर्दों की तकलीफें और पेट की अनेक बीमारियां हो सकती हैं, जिनसे हमारे देश में हजारों लोग हर साल मरते हैं।
    जंगल पर्यावरण में मौजूद कार्बन डाईऑक्साईड व जहरीली गैसों का उपभोग करते हैं और शुद्ध हवा देकर प्रकृति का वरदान बनते हैं। मनुष्य ने खेती योग्य भूमि का फैलाव करने और कंकरीट के जंगल उगाने के लिए जंगलों व पेड़ों पर भी कुल्हाड़ा चला रखा है। विश्व में प्रति वर्ष 1.1 करोड़ हेक्टेयर वन काटा जाता है। अकेले भारत में 10 लाख हेक्टेयर वन काट दिया जाता है। वनों के विनाश के कारण वन्यजीव लुप्त हो रहे हैं। वनों के क्षेत्रफल में लगातार होती कमी के कारण बड़े पैमाने पर भूमि का कटाव और रेगिस्तान का फैलाव हो रहा है। फसल का अधिक उत्पादन लेने के लिए बड़े पैमाने पर रासायनिक खादों व कीटनाशकों का उपयोग किया जाना भी पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा पैदा कर रहा है। अधिक मात्रा में कीटनाशकों के इस्तेमाल से जमीन के जैविक चक्र को नुकसान हो रहा है। हानिकारक कीटों के साथ मकड़ी, केंचुए, मधुमक्खी सहित अनेक मित्र कीट भी मर रहे हैं। सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि फल, सब्जी और अनाज में कीटनाशकों का जहर मिल गया है, जोकि मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए घातक है। कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल से जैव विविधता को भी खतरा पैदा हो गया है। बहुत से पक्षी और मित्र कीट परिदृश्य से गायब होते जा रहे हैं। भारत में पॉलिथीन भी पर्यावरण के लिए खतरा बना हुआ है। इसका प्रबंधन नहीं होने के कारण पॉलीथीन व प्लास्टिक की थैलियाँ नालियों व सिवरेज के प्रवाह को रोक देती हैं। जहरीले रसायनों से बने रंगीन पॉलीथीन में खाद्य पदार्थ रखना कैंसर जैसे खतरनाक रोगों का कारण बन सकता है। जगह-जगह लगे कचरे के अम्बार हमारे प्रबंधन तंत्र को ठेंगा दिखा रहे हैं। कूड़े-कचरे के इन ढ़ेरों के पास रहने वाली आबादी नारकीय जीवन बिता रही है। हमारे देश में कचरा प्रबंधन में विफल हो चुकी नगरपालिकाओं व नगरनिगमों को व्यंग्य के साथ नरक पालिका व नरक निगम कहा जाता है। लेकिन इसके बावजूद नीति निर्माताओं के सिर पर जूं नहीं रेंगती है। हालांकि  सारी जिम्मेदारी नीति-निर्माताओं पर डाल देना भी उचित नहीं है।
    पर्यावरण संरक्षण के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर 1972 में स्टॉकहोम सम्मेलन से आज तक अनेक सम्मेलन हो चुके हैं। 1982 में नैरोबी सम्मेलन, 2009 में कोपेनहेगन सम्मेल, 2011 में डरबन सम्मेलन और 2013 में वॉरसा सम्मेलन सहित सम्मेलनों का अनंत सिलसिला है। पर्यावरण संरक्षण के लिए उपयों पर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सहमति बनाते मिलकर काम किए जाने की ज़रूरत है। यह तय हो चुका है कि पर्यावरण असंतुलन की सबसे बड़ी जिम्मेदारी इन्सान की है। हर स्थान पर छोटे-छोटे गाँवों से लेकर बड़े स्तर पर पर्यावरण बचाव के लिए पौधारोपण-पौधापोषण अभियान चलाना, जंगलों, जल स्रोतों का संरक्षण करना और हवा में जहरीली गैसों को छोड़े जाने से रोकने के लिए तकनीक को अमल में लाने की हम सभी को पहल करनी चाहिए।


हिन्दी प्राध्यापक, राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, पटहेड़ा, जि़ला-करनाल (हरियाणा)
घर का पता-वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री, जि़ला-करनाल, हरियाणा
 मो.नं.-09466220145

   


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