विश्व तम्बाकू निषेध दिवस (31मई) पर विशेष
मौत के मुंह में धकेल रही तम्बाकू से होने वाली बीमारियाँ
अरुण कुमार कैहरबा
तम्बाकू व तम्बाकू से बने उत्पाद इसके उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य को बुरी तरह से प्रभावित कर रहे हैं। इनसे होने वाली बीमारियाँ लोगों को मौत के मुँह में धकेल रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी किए गए आँकड़ों पर नज़र दौड़ाएँ तो दुनियाभर में तम्बाकू से संबंधित बीमारियों के कारण हर साल कऱीब 50 लाख लोगों की मौत हो रही है। विकासशील देशों में हर साल 8 हज़ार बच्चों की मौत अभिभावकों द्वारा किए जाने वाले धूम्रपान के कारण होती है। दुनिया के किसी अन्य देश के मुक़ाबले में भारत में तम्बाकू से होने वाली बीमारियों से मरने वाले लोगों की संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ रही है। यदि इस समस्या को नियंत्रित करने की दिशा में कोई प्रभावी क़दम नहीं उठाया गया तो वर्ष 2030 में धूम्रपान के सेवन से मरने वाले व्यक्तियों की संख्या प्रतिवर्ष 80 लाख से अधिक हो जायेगी। धूम्रपान, इसका सेवन करने वालों में से आधे व्यक्तियों की मृत्यु का कारण बन रहा है और औसतन इससे उनकी 15 वर्ष आयु कम हो रही है। हर प्रकार का धूम्रपान 90 प्रतिशत से अधिक फेफड़े के कैंसर, ब्रैन हैम्ब्रेज और पक्षाघात का प्रमुख कारण है। दुनियाभर में 80 प्रतिशत पुरुष तम्बाकू का सेवन करते हैं, लेकिन कुछ देशों की महिलाओं में तम्बाकू सेवन की प्रवृत्ति तेज़ी से बढ़ रही है। दुनियाभर के धूम्रपान करने वालों का कऱीब 10 फ़ीसदी भारत में हैं। भारत में कऱीब 25 करोड़ लोग गुटखा, बीड़ी, सिगरेट, हुक्का आदि के ज़रिये तम्बाकू का सेवन करते हैं।
स्वास्थ्य को भारी नुकसान पहुँचाने वाला तम्बाकू व इससे बने खतरनाक पदार्थों के राजनैतिक व आर्थिक आयाम भी हैं। यही कारण है कि दुनिया के 125 देशों में तम्बाकू का उत्पादन होता है। हर साल 5.5 खरब सिगरेट का उत्पादन होता है और एक अरब से ज़्यादा लोग इसका सेवन करते हैं। भारत में 10 अरब सिगरेट का उत्पादन होता है। भारत में 72 करोड़ 50 लाख किलो तम्बाकू की पैदावार होती है। भारत तम्बाकू निर्यात के मामले में ब्राज़ील, चीन, अमरीका, मलावी और इटली के बाद छठे स्थान पर है। आंकड़ों के मुताबिक़ तम्बाकू से 2022 करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा की आय हुई थी। ऐसे में तम्बाकू मुक्त समाज की कल्पना का साकार होना मुमकिन नहीं लगता है। भारत में तम्बाकू का सेवन करने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। स्टेटस सिंबल के साथ जोड़ दिए जाने के कारण बड़ी संख्या में छोटे बच्चे, किशोर व युवा नशे की गिरफ्त में आ रहे हैं। हरियाणा ग्रामीण विकास संस्थान में रिसोर्स पर्सन एवं सामाजिक कार्यकर्ता गुंजन का कहना है कि फिल्मों एवं टीवी ने नशे को बढ़ाने में योगदान किया है। जब अभिनेता नशे को महिमामंडित करते हुए दिखाए जाएँगे तो युवाओं में इसका प्रयोग करके देखने की प्रवृत्ति होगी ही। यही नहीं अपने उत्पाद को प्रोमोट करने और अधिक मुनाफा कमाने के लिए बच्चों को इसका शिकार बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि मिथ्या धारणाओं के कारण भी नशे की प्रवृत्ति बढ़ रही है। हास्यास्पद बात तो यह है कि कब्ज दूर करने के लिए लोग बीड़ी/सिगरेट पीने की बात कहते हैं। महिलाएँ भी बड़ी संख्या में इसकी गिरफ्त में आ रही हैं।
कानूनों पर ग़ौर करें तो सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करना वर्जित है। यही नहीं खुले में बीड़ी-सिगरेट का टुकड़ा फैंकना और तम्बाकू थूकना भी दंडनीय अपराध है। तंबाकू बेचने वाली कोई भी दुकान/प्रतिष्ठान को ‘अठारह साल से कम आयु वाले व्यक्ति को तंबाकू बेचना एक दंडनीय अपराध है’ का चेतावनी बोर्ड अवश्य लगाना होगा। शैक्षणिक संस्थानों को भी शैक्षणिक संस्थान से सौ गज की परिधि के भीतर क्षेत्र में सिगरेट और अन्य तंबाकू वस्तुओं की बिक्री करना निषेध है तथा एक अपराध है। लिखित चेतावनी बोर्ड अवश्य प्रदर्शित/ लगाना होगा। इन नियमों की धड़ल्ले से अवहेलना होते हम हर रोज देखते हैं। बस अड्डे पर ही नहीं, बल्कि बस व रेलगाड़ी में बीड़ी पीते व तम्बाकू का सेवन करते लोग हमें दिख जाएँगे। हरियाणा की बसों में तो चालक व परिचालक अपनी ड्यूटी के दौरान बीड़ी का कश लेकर यात्रियों के लिए परेशानी खड़ी करते दिखाई दे जाते हैं। धूम्रपान के आदी हो चुके कर्मचारी कार्यालय में धड़ल्ले से बीड़ी/सिगरेट पीते हैं। कानून है तो उसकी पालना भी होनी चाहिए। क्या कोई बता सकता है कि उक्त कानूनों की पालना में कितने लोगों पर केस दर्ज किए गए हैं? निश्चय ही यह संख्या नगण्य होगी। हमारे देश में औपचारिकतावश बहुत से कानून व नियम बनाए गए हैं। यही हाल तम्बाकू व नशा निषेध के लिए बनाए गए नियमों व कानूनों का है।
अध्यापक व सामाजिक कार्यकर्ता महिन्द्र कुमार का कहना है कि यदि हम बच्चों को तम्बाकू की आदत से बचा लें तो हम आने वाली पीढ़ी को बचा सकते हैं। बच्चों को भावनात्मक सहारा दिया जाना जरूरी है। बच्चों पर नजर रखने की ज़रूरत है ताकि वे किसी ऐसे बच्चे के सम्पर्क में ना आएँ, जोकि नशे का आदि हो। खेलों व रचनात्मक गतिविधियों में बच्चों को लगाए जाने की जरूरत है, जिससे उन्हें नशे जैसे सहारे की ज़रूरत ना पड़े। तम्बाकू व नशे से बचाव के लिए व्यापक जागरूकता अभियान चलाए जाने की भी ज़रूरत है।
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