मंडेला दिवस विशेष
नस्लभेद व रंगभेद के विरूद्ध संघर्ष के प्रतीक नेल्सन मंडेला
अरुण कुमार कैहरबा
असमानता व भेदभाव ने दुनिया की बड़ी आबादी के आगे बढऩे के अवसरों को अवरूद्ध किया है। वहीं से समानता व न्याय के लिए आंदोलन भी हुए हैं। कितनी ही ऐसी शख्सियतें हुई हैं, जिन्होंने भेदभाव व बुराईयों के विरूद्ध अथक संघर्ष किया। दक्षिण अफ्रीका के पहले राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला भी ऐसे ही प्रेरक व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने नस्लभेद व रंगभेद के विरूद्ध निर्णायक संघर्ष किया। उन्हें क्रूर सत्ता का दमन सहना पड़ा। कईं सालों तक उन्होंने कठोर कारावास के दौरान अनेक प्रकार की यातनाएं सही। जेल की सजा काटते हुए ही वे दुनिया भर में मानवाधिकार व रंगभेद के विरूद्ध संघर्ष के प्रतीक के रूप में प्रसिद्ध हुए। आजादी के बाद वे चुनावों में दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने। देश के पुनर्निमाण में अपना योगदान दिया।नेल्सन रोहिल्हाला मंडेला का जन्म 18 जुलाई, 1918 को इस्टर्न केप के म्वेजो में गेडला हेनरी म्फ़ाकेनिस्वा और उनकी तीसरी पत्नी नेक्यूफी नोसकेनी के घर हुआ था। वे अपने पिता की कुल 13 संतानों में तीसरे नंबर पर थे। मंडेला के पिता हेनरी म्वेजो कस्बे के जनजातीय सरदार थे। स्थानीय भाषा में सरदार के बेटे को मंडेला कहा जाता था, जिससे उन्हें अपना उपनाम मिला। पिता ने मंडेला को रोहिल्हाला नाम दिया। जिसका अर्थ होता है-पेड़ की डालियों को तोडऩे वाला प्यारा और शैतान बच्चा। 12 साल की उम्र में मंडेला के पिता चल बसे।
मंडेला को बचपन में ही रंगभेद का सामना करना पड़ा। स्कूल में भी उन्हें काला रंग होने के कारण भेदभावकारी नियमों की पालना करने के लिए कहा जाता था। सडक़ पर चलते हुए सीना तान कर चलने तक पर पाबंदी थी। यदि कोई काला व्यक्ति ऐसा करता था तो उन्हें जेल में भेजा जा सकता था। ऐसी स्थितियों में मंडेला सोचने को विवश हुए और उनके अन्दर क्रांतिकारी जन्म लेने लगा, जो भेदभाव, शोषण व दमन पर आधारित व्यवस्था को बदल देना चाहता है। स्कूली शिक्षा के बाद हेल्डटाउन में मंडेला की आगामी शिक्षा हुई। यहां एक ऐसा कॉलेज था जोकि काले लोगों के लिए ही बनाया गया था। यहीं पर मंडेला की मुलाकात ऑलिवर टांबो से हुई और दोनों ने मिलकर रंगभेद के विरूद्ध क्रांतिकारी गतिविधियों की शुरूआत कर दी। कॉलेज प्रशासन को इस बात का पता चल गया तो दोनों को कॉलेज से निकाल दिया गया और परिसर में उनके प्रवेश करने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। इस स्थिति में मंडेला अपने घर आ गए। उनके क्रांतिकारी विचारों को देखकर घर वाले भी परेशान हो गए। नजदीकी लोगों ने पारिवारिक जिम्मेदारियों के बोझ तले लाकर उन्हें सुधारने की कोशिश की। एक अच्छी सी लडक़ी देखकर शादी की तैयारियां शुरू हो गई। लेकिन मंडेला ने अपने निजी जीवन पर सार्वजनिक जीवन को तरजीह दी। वे भाग कर जोहांसबर्ग आ गए।
जोहान्सबर्ग में उन्होंने एक खादान में चौकीदार की नौकरी की। वे अलेक्सेंडरा नाम की एक छोटी सी बस्ती में रहने लगे। बाद में उनकी मां भी उनके साथ आ गई। यहां पर वॉल्टर सिसुलू और वॉल्टर एल्बरटाइन के विचारों से मंडेला खासे प्रभावित हुए। हर तरह के भेदभाव के विरूद्ध स्वतंत्रता, समानता व बंधुत्व के विचारों से जुड़ते हुए राजनीतिक सरगर्मियां भी बढऩे लगी। मंडेला ने एक कानूनी फर्म में क्लर्क की नौकरी शुरू कर दी। अपने संघर्षों के दौरान ही वे पढ़ भी रहे थे। उन्होंने वकालत की शिक्षा पूरी की। 1944 में वे अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस में शामिल हो गए और कांग्रेस द्वारा चलाए जा रहे रंगभेद के विरूद्ध सांगठनिक आंदोलन से जुड़ गए। इस पार्टी के अपने साथियों के साथ मिलकर उन्होंने अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस यूथ लीग की स्थापना की। 1947 में वे यूथ लीग के सचिव चुने गए। वे क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़ गए थे। अल्जीरिया में जाकर उन्होंने सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त किया। वे रंगभेद विरोधी सरकार को अपने देश उखाड़ फेंकना चाहते थे। 1961 में उन्होंने नेशनल कांग्रेस उम्खोतों वे सिजवे नाम से सशस्त्र शाखा की शुरूआत की और वे इसके कमांडर इन चीफ थे। उन्होंने अंग्रेजी गोरों लोगों के नस्लवाद और रंगभेद की नीतियों को समाप्त करने और लोगों को संगठित करने के लिए देशभर में यात्राएं की। अश्वेतों के साथ भेदभाव करने वाले कानूनों को बदलने के लिए उन्होंने आवाज बुलंद की। वे सरकार के विरूद्ध हथियार उठाने के लिए लोगों को तैयार कर रहे थे। 12 जुलाई, 1962 को इन्हीं संघर्षों के कारण उन्हें आजीवन कारावास की सजा दे दी गई। रॉबेन द्वीप की जेल में उन्होंने 27 साल बिताए। यहां पर उन्हें अनेक प्रकार की यातनाएं दी जाती थी। जेल की सजा के दौरान उन्हें काफी कुछ पढऩे का मौका मिला। वे गांधी जी के विचारों से खासे प्रभावित हुए। गांधी जी के सत्य और अहिंसा के विचारों को उन्होंने अपना लिया।
11 फरवरी, 1990 में उनकी रिहाई हुई। जेल में रहते हुए ही वे मानवाधिकार की मुखर आवाज के रूप में पूरी दुनिया में पहचाने जाने लगे थे। जेल से रिहाई के बाद उन्होंने समझौते और संधि की नीति अपनाई और एक लोकतांत्रिक व बहुजातीय अफ्रीका की नींव रखी। 1994 के चुनावों के बाद वे देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने। उन्होंने ऊंचे मूल्यों पर आधारित देश का संविधान बनाया और लागू किया। देश के विकास के लिए अनेक प्रकार की संस्थाओं का गठन किया। देश के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विकास की नींव डाली। हालांकि जल्दी ही वे सक्रिय राजनीति से अलग हो गए। लेकिन उनके विचारों और व्यवहार ने देश व दुनिया के लोगों पर गहरा प्रभाव डाला।
हालांकि मंडेला एक समय में साम्यवादी दर्शन और क्यूबा के परिवर्तन से भी प्रभावित हुए। लेकिन गांधीवाद ने उन्हें सबसे ज्यादा प्रभावित किया। वे महात्मा गांधी को अपना प्रेरणास्रोत मानते थे। गांधी जी से उन्होंने अहिंसा व सत्याग्रह के विचार ग्रहण किए। अफ्रीका के लोग तो उन्हें राष्ट्रपिता, लोकतंत्र के संस्थापक व मुक्तिदाता मानते हैं। 1993 में उन्हें दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति फ्रेडरिक विलेम डी क्लार्क के साथ संयुक्त रूप से नॉबेल शांति पुरस्कार दिया गया। नवंबर 2009 में उनके जन्मदिन को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा रंगभेद विरोधी संघर्ष में मंडेला दिवस घोषित किया गया। भारत में उन्हें भारत रत्न व गांधी शांति पुरस्कार से नवाजा गया। इसके अलावा भी उन्हें पूरी दुनिया से उनके योगदान के लिए सम्मानित किया गया। 5 दिसंबर, 2013 में फेफड़ों में संक्रमण से उनकी मृत्यु हो गई। लेकिन उनके संघर्षों और विचारों को दुनिया भर में सदा याद रखा जाएगा।
आज दक्षिण अफ्रीका में पूर्व राष्ट्रपति जैकब जुमा को जेल की सजा के विरोध में हिंसा और अशांति का माहौल है। इस अशांति का लाभ उठाकर कुछ उपद्रवियों ने भारतीयों को निशाना बनाया है। दक्षिण अफ्रीका में करीब 14 लाख भारतीय रहते हैं। उनका योगदान देश की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत महत्वपूर्ण भी है। ऐसे में नेल्सन मंडेला के देश में हम उनके विचारों के अनुकूल शांति की कामना करते हैं।
अरुण कुमार कैहरबा
हिन्दी प्राध्यापक, लेखक व स्तंभकार
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जिला-करनाल, हरियाणा
मो.नं.-9466220145
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VIR ARJUN 18-7-2021 |
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JAGAT KRANTI 18-7-2021 |
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