एनएसडी दिल्ली में पढ़ रहे विभिन्न राज्यों के कलाकारों के इन्द्री भ्रमण पर आधारित रिपोर्ट
सांस्कृतिक आदान-प्रदान से मिलता सीखने का आनंद
विद्यार्थियों की शिक्षा में सांस्कृतिक आदान-प्रदान कितना अधिक लाभप्रद हो सकता है। इसका अनुभव तब भी हुआ था, जब करीब दस वर्ष पहले केरल शास्त्र साहित्य परिषद् के बुलावे पर भारत ज्ञान-विज्ञान समिति हरियाणा की टीम के एक सदस्य के रूप में बच्चों के साथ केरल जाने का अवसर मिला था। वहाँ पर लोगों से बातचीत करते हुए हमें केरल के इतिहास, लोकजीवन व साक्षरता आंदोलन सहित विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी प्राप्त की थी। निश्चय ही केरल के साथियों को भी हरियाणा के बारे में भी जानकारी मिली होगी। इसी प्रकार के अनेक अवसरों से आदान-प्रदान के माध्यम से जो कुछ सीखा, वह आज तक दिल-दिमाग पर उसकी अमिट छाप पड़ी है। ऐसा ही अनुभव तब हुआ जब राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली के विद्यार्थी नरेश नारायण के साथ उनके कुछ साथी यहाँ पहुँचे। अलग-अलग राज्यों से सम्बन्ध रखने वाले साथियों के आगमन से मन आनंद से भर गया। इनमें थे-उत्तर-पूर्वी राज्य नागालैंड निवासी तैमजेन ज़ंगबा। तैम तो पहले भी राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय पटहेड़ा में नाट्य कार्यशाला करवा चुके हैं। अन्य साथी-पश्चिमी बंगला के हुगली जिला की रहने वाले सुष्मिता, तामिलनाडू से पांडुरंगा तथा केरल से मार्टिन जिशिल। 16जुलाई को ये साथी हमारे गाँव कैहरबा में पहुँचे। उस समय मैं कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय में एन.एस.एस. कार्यक्रम अधिकारी के रूप में प्रशिक्षण ले रहा था। एक सप्ताह के इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का यह आखिरी दिन भी था। गुरनाम भी उस समय मेरे साथ ही था। उसके मोबाईल पर ही साथियों ने अपने कैहरबा पहुँचने की सूचना दी। गुरनाम उसी समय गाँव के लिए रवाना हो गया। मेरे प्रशिक्षण का आखिरी दिन होने के कारण मुझे भी इन्द्री पहुँचने की उम्मीद थी।
16जुलाई को जब प्रशिक्षण कार्यक्रम पूरा करके मैं शाम को इन्द्री पहुँचा, तो मोबाइल पर तैम की मिस्ड कॉल दर्ज थी। मोटरसाईकिल पर होने के कारण मैं फोन नहीं उठा पाया था। घर पर पहुँचने के बाद गुरनाम से बात हुई तो उसने बताया कि सभी साथी प्राथमिक विद्यालय, इन्द्री में हैं। मैं शीघ्र ही स्कूल के लिए रवाना हो गया, जहाँ पर सभी साथियों से भेंट हुई। सभी साथियों के साथ प्राथमिक विद्यालय के सौंदर्यीकरण के लिए किए गए प्रयासों के बारे में बात करना शुरू किया, तो उसके बारे में पहले ही चर्चा हो चुकी थी। इसके बाद सभी विशेष अध्यापक ज्ञानचंद के घर के लिए जोहड़माजरा रवाना हो गए। हाँ सुष्मिता गुंजन के साथ इन्द्री में घर पर थी। जोहड़ माजरा में रात का भोजन करते हुए स्थानीय स्कूलों में साथियों के स्कूलों के शैक्षिक भ्रमण की योजना बनी। नरेश ने बताया कि वे तो पहले ही छुट्यिों के दौरान शैक्षिक भ्रमण पर हैं। यदि ऐसा कुछ होता है तो बहुत बढिय़ा रहेगा। रात को एनएसडी के विद्यार्थी नरेश और गुरनाम के साथ गाँव कैहरबा चले गए।
तय योजना के अनुसार 17जुलाई की सुबह महिन्द्र और मैं मोटरसाईकिल पर सवार होकर गाँव की तरफ चल पड़े। राजीव सैनी से बात हो गई थी, कि वे कार लेकर गाँव पहुँच जाएँगे। राजीव का भाई गोल्डी, जोकि केन्द्रीय विद्यालय में संगीत शिक्षक हैं, वाद्य यंत्र के साथ उनके साथ थे। कैहरबा से
सभी साथी स्कूलों के भ्रमण पर चल दिए। सबसे पहला पड़ाव जैनपुर डेरा का राजकीय प्राथमिक स्कूल था। यहाँ पर अध्यापक मनोज और प्रदीप ने साथियों का स्वागत किया। स्कूल के बच्चे इकट्ठा कर लिए गए। बच्चों के साथ चर्चा करते हुए सुष्मिता, पांडुरंगा, मार्टिन व तैम ने अपनी-अपनी प्रादेशिक भाषाओं में गीत-कविताएँ सुनाई। राज्यों के बारे में बताया। इसके बाद राजीव के टपरियों स्थित राजकीय प्राथमिक स्कूल में रंग जमा। यहाँ पर गोल्डी ने गीतों के साथ वाद्य यंत्र की तान भी छेड़ दी। साथियों ने स्कूल के सभी बच्चों को गीत-कविताओं के अनुकूल एक्शन में शामिल कर लिया।
अपने प्रिय अध्यापकों के कहने पर बच्चे कबड्डी खेलने लगे। लेकिन उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब सुष्मिता भी खेल में बच्चों के साथ शामिल हो गई। टपरियों में खुखनी स्कूल के राकेश शास्त्री अपनी कार के साथ काफिले का हिस्सा बन गए। दो कारों और दो मोटरसाईकिलों पर सवार होकर छपरियाँ स्थित राजकीय माध्यमिक विद्यालय में अगला पड़ाव लगा।
इस स्कूल में अध्यापक सुभाष लाम्बा, बणी सिंह, सतपाल व किरण सिंह सहित सभी अध्यापकों ने भारत के अनेक प्रदेशों के साथियों के स्कूल में पहुँचने पर खुशी व्यक्त की और जोरदार स्वागत किया। यहाँ पर बरामदे में विद्यार्थियों की सभा हुई। यहाँ भी चारों साथियों ने मनोरंजक ढ़ंग से बात करते व सिखाते हुए भावनात्मक एकता का माहौल निर्मित कर दिया।
इसके बाद गाँव पटहेड़ा स्थित राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय (मेरा स्कूल) में मिड-डे-मील में बने कढ़ी चावल चखने के बाद विद्यार्थियों की सभा में कलाकारों ने अपने अनुभव सांझा किए। स्कूल के विद्यार्थियों ने विभिन्न प्रकार की तालियों के माध्यम से आए अतिथियों का स्वागत किया। पटहेड़ा के बाद खुखनी स्थित राजकीय विद्यालय में पहुँचे तो छुट्टी होने को थी, लेकिन स्कूल के ही राकेश शास्त्री थे, जिन्होंने स्कूल में विद्यार्थियों की सभा आयोजित करवा दी। यहाँ भी विद्यार्थियों व अध्यापकों को तमिल, बाँग्ला, नागा और मलयालम भाषाओं को सुनने और देश के विभिन्न राज्यों के बारे में जानने का अवसर मिला। स्कूल में ही सभी ने स्वादिष्ट दोपहर के भोजन का आनंद लिया। यहाँ से विभिन्न विषयों पर चर्चाएँ करते हुए काफिला आगे बढ़ गया। सौंदर्यीकरण व शिक्षा के मामले में अपनी एक विशेष पहचान रखने वाले चौगावां के राजकीय उच्च विद्यालय के गेट पर हम रूके और स्कूल में जा पहुंचे। स्कूल की छुट्टी के बावजूद यहाँ पर एक कक्षा लगी हुई थी। बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में इस स्कूल की उपलब्धियों पर चर्चा हुई।
इसके बाद गढ़ीबीरबल, लबकरी, समसपुर, कलसौरा होते हुए जपती छपरा सैदान होते हुए यमुना नदी के किनारे स्थित नबियाबाद के गुरूद्वारे पर हमारा ठहराव हुआ। यहाँ यमुना नदी के किनारे सभी साथियों ने फोटो खिंचावाए। गुरूद्वारे के सेवकों ने चाय पिलाई व प्रसाद खिलाया। यमुना में आने वाली बाढ़, सेवा कार्यों में गुरूद्वारे के योगदान सहित अनेक विषयों पर बातचीत चलती रही। इसके बाद सैय्यद छपरा गाँव में एक राजनैतिक दल के नेता एवं हमारे मित्र शमीम अब्बास के ट्यूबवैल पर रूके। यहाँ पर आम का बाग भी है। बाग में पेड़ों की छाँव तले बैठे हुए मीठे आम का स्वाद लिया। शमीम के पिता जी नहीं मिल पाए, जिनके साथ अक्सर आते-जाते बातचीत होती रहती थी। यहाँ पर अनेक लोगों ने अतिथि कलाकारों के साथ मुक्त भाव से चर्चाएँ की। सैय्यद छपरा में साक्षरता अभियान में साक्षर होने वाला और बाद में साक्षरता कार्यकर्ता की भूमिका निभाने वाला साथी मुरसलीन भी नहीं मिल पाया। यहाँ से हम अध्यापक साथी सुरेश के गाँव नगली के लिए चल दिए। सुरेश लंबे समय से घर पर हमारा इंतजार कर रहा था। सुरेश जी के परिजनों ने कलाकर्मियों का जोरदार स्वागत किया। यहाँ से विदाई लेकर सभी घर के लिए चल दिए।
अगले दिन 18जुलाई को शहीद सोमनाथ स्मारक समिति के माध्यम से स्कूलों में भ्रमणकारी दल-पांडुरंगा, तैमजंग, सुष्मिता, मार्टिन, नरेश नारायण, गुरनाम कैहरबा, महिन्द्र कुमार और मैं इन्द्री एसडीएम श्री विजय कुमार सिद्धापा से मिले और साथियों ने स्कूलों में भ्रमण के अपने अनुभव सांझा किए। एसडीएम ने शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार की जरूरत रेखांकित की। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह आदान-प्रदान जहाँ एनएसडी के विद्यार्थियों के लिए हरियाणा के समाज और स्कूलों की शिक्षा को समझने में लाभदायी रहा होगा, वहीं स्कूलों के विद्यार्थियों एवं अध्यापकों के लिए भारत की सांस्कृतिक विविधता को समझने का मौका मिला होगा। उन्होंने सदाशयता का परिचय देते कहा कि यदि इस भ्रमण की पूर्व सूचना होती तो प्रशासन इस शैक्षिक भ्रमण में सहयोग कर सकता था। आईएएस अधिकारी विजय कुमार मूलरूप से कर्नाटक राज्य से हैं। पांडुरंगा की पृष्ठभूमि भी कर्नाटक की रही है। दोनों ने कन्नड़ में अच्छी बातचीत की। कन्नड़ तो हम समझ नहीं सकते थे, लेकिन दोनों को सिद्दत से चर्चा में लगे हुए देखकर दोनों के गहरे सरोकारों का बोध जरूर हो रहा था। इसके बाद कलाकर्मियों की टीम खण्ड शिक्षा अधिकारी श्री राजपाल से मिली। साथियों ने अधिकारी को बताया कि इन्द्री में शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए अध्यापकों की एक टीम सक्रिय है, जिसके कारण स्कूलों की स्थिति अन्य कईं राज्यों से काफी बेहतर है। कईं स्कूल तो अपनी उपलब्धियों के लिए जाने जाते हैं।
विद्यार्थियों को नक्शे में विभिन्न राज्यों के बारे में बताया जाता है, लेकिन वह ज्ञान उतना उपयोगी नहीं हो पाता। क्योंकि विद्यार्थियों को उन राज्यों के बारे में कोई जीवंत अनुभव नहीं मिलता। जीवंत विमर्श, भ्रमण, करके सीखने व खेल-खेल में सीखने के अनुभवों के अभाव में बच्चों में भी अन्य जातियों, धर्म-सम्प्रदायों, क्षेत्रों, बोलियों-भाषाओं और रीति-रिवाजों के बारे में पूर्वाग्रह बने रहते हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव एवं राष्ट्रीय एकता के नारों के बावजूद मानसिक दूरियाँ बरकरार रहती हैं। ना तो बच्चे और बच्चे ही क्यों बड़े भी देश व दुनिया की भौगोलिक, प्राकृतिक, सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता को समझ पाते हैं और ना ही विविधताओं के संदर्भ में सकारात्मक दृष्टिकोण ही अपना पाते हैं। हरियाणा की बात करें तो यहाँ पर लैंगिक व जातीय संकीर्णताएँ हमारे सामाजिक विकास का रास्ता रोक कर खड़ी हैं। संकीर्णताओं को तोडऩे के लिए प्रयास भी हो रहे हैं। बेहतर समाज निर्माण में शिक्षा की भूमिका अहम है। स्कूलों में काफी हस्तक्षेप की जरूरत है। कईं स्कूलों में छुट्टी के समय किसी प्रकार की छेड़छाड़ की घटनाओं से बचने के लिए सारे स्कूल की लड़कियों की पाँच-दस मिनट पहले छुट्टी कर दी जाती है और लडक़ों की बाद में। एनएसडी के विद्यार्थी रंगकर्मियों को जब यह बात पता चली तो तैमजंग की टिप्पणी थी- ‘हम तालिबान की कट्टरता के लिए आलोचना करते हैं, लेकिन हमारे स्कूलों में चल रहे तालीबानी आचरण पर कभी सोचते नहीं। क्या लडक़े-लड़कियों के साथ अलग-अलग बर्ताव व उनकी दूरियों को बढ़ाए रखना तालीबान नहीं है?’
-अरुण कुमार कैहरबा,
हिन्दी प्राध्यापक, राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, पटहेड़ा,
खण्ड-इन्द्री, जि़ला-करनाल (हरियाणा)
मो.नं.-09466220145