जब छाए तेरा जादू कोई बच ना पाए
बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न कलकार हैं जावेद अख्तर।
अरुण कुमार कैहरबा
हिन्दी सिनेमा को शोले व जंजीर जैसी ब्लाकबस्टर फिल्में देने वाले जावेद अख्तर बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न कलाकार हैं। वे एक संवेदनशील शायर हैं, गीतकार हैं, पटकथा लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वे जहां फिल्मों में गीतों और संवादों का जादू बिखेर कर लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं, वहीं देश के प्रगतिशील साहित्य एवं कला आंदोलन की विरासत को सहेजने और उसे आगे बढ़ाने का महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं।जावेद अख़्तर का जन्म 17 जनवरी, 1945 को ग्वालियर में हुआ। पिता जांनिसार अख्तर प्रसिद्ध प्रगतिशील कवि और माता सफिया अख्तर मशहूर उर्दू लेखिका तथा शिक्षिका थीं। उनके घर शेरो-शायरी की महफिलें सजा करती थीं, जिन्हें वे बड़े चाव से सुना करते थे। यही कारण है कि बचपन में ही शायरी से उनका गहरा रिश्ता बन गया। लेकिन ऐसा नहीं है कि उनके जीवन में उतार-चढ़ाव व दिक्कतें नहीं थी। उनके जन्म के कुछ समय के बाद उनका परिवार लखनऊ आ गया। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लखनऊ से पूरी की। कुछ समय तक लखनऊ रहने के बाद जावेद अख्तर अलीगढ़ आ गए, जहां वह अपनी खाला के साथ रहने लगे। वर्ष 1952 में जावेद अख्तर को गहरा सदमा पहुंचा जब उनकी मां का इंतकाल हो गया। जावेद अख्तर ने अपनी मैट्रिक की पढ़ाई अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से पूरी की। इसके बाद उन्होंने अपनी स्नातक की शिक्षा भोपाल के साफिया कॉलेज से पूरी की, लेकिन कुछ दिनों के बाद उनका मन वहां नहीं लगा और वह अपने सपनों को नया रूप देने के लिए वर्ष 1964 में मुंबई आ गए। जावेद अख्तर ने जि़ंदगी के उतार-चढ़ाव को बहुत करीब से देखा, जिससे उनकी शायरी में जि़ंदगी के फसाने को बड़ी शिद्दत से महसूस किया जा सकता है।
मुंबई पहुंचने पर जावेद अख्तर को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। मुंबई में कुछ दिनों तक वह महज 100 रुपये के वेतन पर फिल्मों में डॉयलाग लिखने का काम करने लगे। इस दौरान उन्होंने कई फिल्मों के लिए डॉयलाग लिखे, लेकिन इनमें से कोई फिल्म बॉक्स आफिस पर सफल नहीं हुई। इसके बाद जावेद अख्तर को अपना फिल्मी कॅरियर डूबता नजर आया, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपना संघर्ष जारी रखा। धीरे-धीरे मुंबई में उनकी पहचान बनती गई। मुंबई में उनकी मुलाकात सलीम खान से हुई, जो फिल्म इंडस्ट्री में बतौर संवाद लेखक अपनी पहचान बनाना चाह रहे थे। इसके बाद जावेद अख्तर और सलीम खान संयुक्त रूप से काम करने लगे। वर्ष 1970 में प्रदर्शित फिल्म अंदाज की कामयाबी के बाद जावेद अख्तर कुछ हद तक बतौर डॉयलाग राइटर फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। फिल्म अंदाज की सफलता के बाद जावेद अख्तर और सलीम खान को कई अच्छी फिल्मों के प्रस्ताव मिलने शुरू हो गए।
फिल्म सीता और गीता के निर्माण के दौरान उनकी मुलाकात हनी ईरानी से हुई और जल्द ही जावेद अख्तर ने हनी ईरानी से निकाह कर लिया। हनी इरानी से उनके दो बच्चे हुए फरहान अख्तर और जोया अख्तर। लेकिन हनी इरानी से उन्होंने तलाक लेकर साल 1984 में शबाना आजमी से शादी कर ली।
वर्ष 1973 में उनकी मुलाकात निर्माता-निर्देशक प्रकाश मेहरा से हुई जिनके लिए उन्होंने फिल्म जंजीर के लिए संवाद लिखे। फिल्म जंजीर में उनके द्वारा लिखे गए संवाद दर्शकों के बीच इस कदर लोकप्रिय हुए कि पूरे देश में उनकी धूम मच गई। इसके साथ ही फिल्म के जरिए फिल्म इंडस्ट्री को अमिताभ बच्चन के रूप में सुपर स्टार मिला। इसके बाद जावेद अख्तर ने सफलता की नई बुलंदियों को छुआ और एक से बढक़र एक फिल्मों के लिए संवाद लिखे। जाने माने निर्माता-निर्देशक रमेश सिप्पी की फिल्मों के लिए जावेद अख्तर ने जबरदस्त संवाद लिखकर उनकी फिल्मों को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके संवाद के कारण ही रमेश सिप्पी की ज्यादातार फिल्में आज भी याद की जाती हैं. इन फिल्मों में खासकर सीता और गीता( 1972), शोले(1975), शान(1980), शक्ति(1982) और सागर (1985) जैसी सफल फिल्में शामिल हैं। रमेश सिप्पी के अलावा उनके पसंदीदा निर्माता-निर्देशकों में यश चोपड़ा, प्रकाश मेहरा प्रमुख रहे हैं। वर्ष 1980 में सलीम-जावेद की सुपरहिट जोड़ी अलग हो गई। इसके बाद भी जावेद अख्तर ने फिल्मों के लिए संवाद लिखने का काम जारी रखा।
जावेद अख्तर को पटकथा लेखन व गीतों के लिए अनेक बार सम्मानित किया गया। सबसे पहले वर्ष 1994 में प्रदर्शित फिल्म ‘1942 ए लव स्टोरी’ के गीत ‘एक लडक़ी को देखा तो ऐसा लगा.. ’क े लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार के फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके बाद जावेद अख्तर वर्ष 1996 में प्रदर्शित फिल्म ‘पापा कहते हैं’ के गीत ‘घर से निकलते ही..’(1997), बार्डर के गीत ‘संदेशे आते हैं’ 2000), ‘रिफ्यूजी’ के गीत ‘पंछी नदिया पवन के झोंके..’ (2001), लगान के ‘सुन मितवा.. (2003), कल हो ना हो (2004), वीर जारा के ‘तेरे लिए’ के लिए भी जावेद अख्तर सर्वश्रेष्ठ गीतकार के पुरस्कार से सम्मानित किए गए।
वर्ष 1999 में साहित्य जगत में जावेद अख्तर के बहुमूल्य योगदान को देखते हुए उन्हें राष्ट्रपति द्वारा पद्म श्री से नवाजा गया। वर्ष 2007 में उन्हें पद्म भूषण सम्मान से नवाजा गया। जावेद अख्तर को उनके गीत के लिए वर्ष 1996 में फिल्म साज, 1997 में बार्डर, 1998 में गॉड मदर, 2000 में फिल्म रिफ्यूजी और साल 2001 में फिल्म लगान के लिए नेशनल अवार्ड से भी सम्मानित किया गया। उनके अब तक दो $गज़ल व नज्म संग्रह प्रकाशित हुए हैं-तरकश व लावा। उन्हें साहित्य अकादमी सम्मान भी मिला है। अपनी शायरी के बारे में कहते हैं-
जिधर जाते हैं सब, जाना उधर अच्छा नहीं लगता
मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता।
ग़लत बातों को खामोशी से सुनना, हामी भर लेना
बहुत हैं फायदे इसमें, मगर अच्छा नहीं लगता।
मुझे दुश्मन से भी खुद्दारी की उम्मीद रहती है
किसी का भी हो सर, क़दमों में अच्छा नहीं लगता।
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