Saturday, June 30, 2012

JOHAR MAJRA - VILLAGE


जोहड़ माजरा गांव की कहानी।

जोहड़ों का गढ़ रहे जोहड़ माजरा ने अपनी पहचान खोई। 

जोहड़ गंदगी के नालों में तब्दील। जोहड़ों के किनारे खड़े वट वृक्ष हुए पुराने जमाने की बात।

अरुण कुमार कैहरबा

 अपनी प्राकृतिक धरोहर के लिए जाना जाने वाला उपमण्डल का गांव जोहड़ माजरा अपनी पहचान खोता जा रहा है। जोहड़ों का गढ़ रहे इस गांव के अधिकतर जोहड़ अपना वजूद खो चुके हैं। जो जोहड़ हैं वे अपनी गरिमा और गौरव खोकर गंदगी के नालों में तब्दील हो चुके हैं। गांव के बड़े-बड़े पेड़ और वटवृक्ष भी पुराने जमाने की बात हो गए हैं। जातीय विविधता वाले इस गांव में लोग आज भी आपसी विवादों को मिल-बैठकर सुलझाने में विश्वास करते हैं।
गांव जोहड़ माजरा पंचायत के तहत जोहड़ माजरा कलां और जोहड़ माजरा खुर्द नाम के दो गांव शामिल हैं। वर्षों पहले जोहड़ माजरा गांव जोहड़ों के गढ़ के रूप में विख्यात था। अपनी इसी विशेषता के कारण इस स्थान पर आकर बसने वाले लोगों ने इसे जोहड़ माजरा नाम दिया था। यहां पर बीस से अधिक जोहड़ थे। हर मोहल्ले व कुणबे का अपना जोहड़ था। इन्हीं जोहड़ों के किनारों पर बरगद, पीपल, पिलखन, शीशम, सिरस, आम व नीम के बड़े-बड़े पेड़ हुआ करते थे। इन जोहड़ों में लोग नहाते भी थे और पशुओं को पानी भी पिलाते थे। जोहड़ की चिकनी मिट्टी के तो कहने ही क्या। आस-पास के ग्रामीण ही नहीं इन्द्री के लोग भी इसे लेने आया करते थे। चिकने गारे को लोग अन्य कार्यों के अलावा अपने कच्चे घरों की दिवारों और छतों को लीपने के काम में लाते थे। यह जोहड़ लोगों के लिए पूजनीय स्थान थे। गांव का कोई भी सामूहिक व घरेलू उत्सव ऐसा नहीं था जो जोहड़ की पूजा के बिना पूरा होता हो। आज भी लोग दिवाली पर जोहड़ पर दिया जलाना नहीं भूलते। नवविवाहित जोड़ों को ढ़ोल-ढ़माकों की थाप और लोकगीतों के साथ जोहड़ पर ले जाया जाता है और माथा टिकवाया जाता है। लेकिन अब अधिकतर जोहड़ों पर अवैध कब्जे हो गए हैं और कुछ जोहड़ गंदगी व घास-फूस से अटे हुए हैं। अपने जोहड़ व प्राकृतिक सुषमा गंवाने को लेकर गांव में कोई चिंतन-मनन नहीं हो रहा है। बुजुर्गों को इसकी चिंता जरूर है, युवा वर्ग तो गांव की धरोहर से बिल्कुल उदासीन नजर आता है। गांव से बाहर पंचायत द्वारा नए जोहड़ विकसित करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
गांव के ही कुछ लोगों का कहना है कि जोहड़ों के साथ ही जोड़ या भाईचारा के कारण भी इसे जोहड़ माजरा कहा जाता है। गांव में सिक्ख, पंजाबी, नट, हरिजन, बाल्मिकी, गडरिया, कश्यप, बढ़ई व काम्बोज सहित 36 बिरादरी के लोग रहते हैं। जोहड़ माजरा खुर्द में नट जाति के लोग रहते हैं, इसीलिए इस गांव को नटों का माजरा के नाम से भी पुकारते हैं। विभिन्न जातियों के बावजूद गांव में जातपात का नाम नहीं है। केवल चुनावों के वक्त कुछ लोग गांव में जातिवाद का जहर घोलने की कोशिश करते हैं और हर बार गांव के लोग चुनाव में उन्हें पटखनी दे देते हैं। गांव के आपसी विवादों को लोग मिलजुल कर सुलझाने में विश्वास करते हैं। अनुसूचित जाति में शुमार नट बहुल जोहड़ माजरा खुर्द विकास के मामले में थोड़ा पिछड़ा जरूर है लेकिन पूरी पंचायत की राजनीति में इस गांव के लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका है। पंचायत का मुखिया लगातार दूसरी बार इसी गांव से चुना गया है। इस समय पिछले कार्यकाल में सरपंच रहे रघुबीर फौजी की पत्नी दया देवी सरपंच है। इससे पहले भी इसी गांव के बारूराम गांव की सरपंची कर चुके हैं।
देश की आजादी के बाद हिन्दु-मुस्लिम बदअमनी के वक्त गांव छोड़ कर चले गए मुस्लिम समुदाय के लोगों का भी गांव से जोड़ या जुड़ाव कम नहीं हुआ है। बीच-बीच में वे अपने प्रिय गांव को देखने आते हैं तो गांव के लोग उनका भरपूर स्वागत करते हैं। गांव में मस्जिद के अवशेष आज भी हैं। पूजा स्थलों में गांव में नानकसर गुरूद्वारा साहिब है, जिसे 1970-71 में संत धुरी वाले बाबा ने बनवाया था।
शिक्षा के मामले में गांव का हरिजन समाज सबसे अग्रणी है। इस समुदाय के पढ़े-लिखे लोग सबसे अधिक सरकारी नौकरियों में हैं। नौकरीपेशा अधिकतर लोग बिजली और शिक्षा विभाग में हैं। कुछ नौजवान सेना में देश की सेवा कर रहे हैं। भूमि के मालिक होने के कारण खेती में सिक्खों और पंजाबियों का स्थान अग्रणी है। गांव के ही कुछ लोग शहर में आकर बस गए हैं और इन्द्री के व्यापारिक घरानों में उनका एक नाम है।                                      
गांव के सरपंच रघुबीर फौजी, भाजपा नेता विद्याभूषण भाटिया, नम्बरदार बीरबल पाल, सामाजिक कार्यकर्ता तथा विशेष अध्यापक ज्ञानचंद, मीत रानी, हिन्दी अध्यापक दयाल चंद, लतेश चंद्र, श्यामो देवी, राम कुमार, गुरमेल, सेवा राम व आंगनवाड़ी कार्यकर्ता नीलम ने गांव में सरकारी सुविधाओं की स्थिति पर चिन्ता जताई है। उनका कहना है कि गांव में मिडल तक का ही स्कूल है जिसके कारण गांव के बच्चों को आगे पढऩे के लिए इन्द्री जाना पड़ता है। उन्होंने गांव में सरकारी उच्च विद्यालय और स्वास्थ्य केन्द्र की मांग की है।