Monday, January 30, 2017
Thursday, January 26, 2017
Monday, January 23, 2017
Sunday, January 22, 2017
Thursday, January 19, 2017
Monday, January 16, 2017
Saturday, January 14, 2017
प्रकृति, संस्कृति और मकर संक्रांति-रेडियो वार्ता
एफ.एम. कुरुक्षेत्र के लिए वार्ता।
यह वार्ता 14जनवरी, 2017 को ग्राम संसार कार्यक्रम में प्रसारित हुई।
प्रकृति, संस्कृति और मकर संक्रांति
अरुण कुमार कैहरबा
भारत पर्वों, त्योहारों और उत्सवों का देश है। यहाँ कोई भी महीना ऐसा नहीं है, जिसमें कोई न कोई त्योहार न पड़ता हो। यही कारण है कि भारत के बारे में कहा जाता है-‘सदा दीवाली साल भर, सातों बार त्योहार’। यह सभी त्योहार जहां प्रकृति के साथ जुड़े हैं, वहीं धार्मिक परंपराओं के साथ भी इनका संबंध है। इन्हीं त्योहारों में मकर संक्रांति भी एक है, जिसे भारत में बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। मकर संक्रांति विभिन्न प्रकार की विशेषताएं और वैज्ञानिक आधार लिए हुए है। आज हमारे युवा वैश्वीकरण के प्रभाव में दुनिया के विकसित देशों में मनाए जाने वाले त्योहारों के बारे में तो जानते हैं, लेकिन अपने त्योहारों से उनका रिश्ता टूटता जा रहा है। मकर संक्रांति के बारे में भी ऐसा ही है। युवा पीढ़ी कम ही जानती है कि यह त्योहार क्यों मनाया जाता है।
दरअसल आकाशमंडल में ग्रहों एवं नक्षत्रों की स्थिति सदैव एक समान नहीं रहती है। हमारी पृथ्वी भी सदा गतिमान रहती है। पृथ्वी अपने अक्ष एवं कक्ष-पथ पर भ्रमण करती हुई अपनी स्थिति बदलती रहती है। पृथ्वी की गोलाकार आकृति एवं अक्ष पर भ्रमण के कारण दिन-रात होते हंै। पृथ्वी का जो भाग सूर्य के सम्मुख पड़ता है वहाँ दिन होता है और जो भाग सूर्य के सम्मुख नहीं पड़ता है, वहाँ रात होती है। पृथ्वी की यह गति दैनिक गति कहलाती है।
इसके साथ-साथ पृथ्वी की वार्षिक गति भी होती है और यह एक वर्ष में सूर्य की एक बार परिक्रमा करती है। पृथ्वी की इस वार्षिक गति के कारण इसके विभिन्न भागों में अलग-अलग समय पर विभिन्न ऋतुएँ होती हंै जिसे ऋतु परिवर्तन कहते हैं। इस वार्षिक गति के सहारे ही वर्ष और मास आदि की गणना की जाती है। इस काल गणना में एक गणना अयन के संबंध में भी की जाती है। इस क्रम में सूर्य की स्थिति उत्तरायण एवं दक्षिणायन होती रहती है। जब सूर्य की गति दक्षिण से उत्तर होती है तो उसे उत्तरायण एवं जब उत्तर से दक्षिण होती है तो उसे दक्षिणायण कहा जाता है।
संक्रमणकाल एवं मकर संक्रांति-
इस प्रकार पूरा वर्ष उत्तरायण एवं दक्षिणायन दो भागों में बराबर-बराबर बँटा होता है। जब सूर्य की कक्षा का परिवर्तन होता है, उसे संक्रमण काल कहते हैं। यह माना जाता है कि 14 जनवरी को सूर्य प्रतिवर्ष अपनी कक्षा परिवर्तित कर दक्षिणायन से उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करता है, अत: इसी दिन हर साल मकर संक्रांति मनायी जाती है। चूँकि हमारी पृथ्वी का अधिकांश भाग भूमध्य रेखा के उत्तर में यानी उत्तरी गोलाद्र्ध में ही आता है, अत: मकर संक्रांति को विशेष महत्व दिया जाता है।
मकर संक्रांति के दिन सूर्य की कक्षा में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर हुआ परिवर्तन माना जाता है। मकर संक्रांति से दिन में वृद्धि होती है और रात का समय कम हो जाता है। इस प्रकार प्रकाश में वृद्धि होती है और अंधकार में कमी होती है। चूँकि सूर्य ऊर्जा का स्रोत है, अत: इस दिन से दिन में वृद्धि हो जाती है। यही कारण है कि भारतीय मनीषियों द्वारा मकर संक्रांति को पर्व के रूप में मनाने की व्यवस्था की गई।
मकर संक्रांति की महत्ता-
ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। यह भी कहा जाता है कि महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रांति का चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। गीता के आठवें अध्याय में भी श्रीकृष्ण ने सूर्य के उत्तरायण का महत्व बताया है। अत: सूर्य की उत्तरायण स्थिति का बहुत ही अधिक महत्व है। सूर्य के उत्तरायण होने पर दिन बड़ा होने से मनुष्य की कार्य क्षमता में वृद्धि होती है जिससे मानव प्रगति की ओर अग्रसर होता है। प्रकाश में वृद्धि के कारण मनुष्य की शक्ति में भी वृद्धि होती है और सूर्य की यह उत्तरायण स्थिति चूँकि मकर संक्रांति से ही प्रारंभ होती है, यही कारण है कि मकर संक्रांति को पर्व के रूप में मनाने का प्रावधान हमारे भारतीय मनीषियों द्वारा किया गया। इसे प्रगति तथा ओजस्विता का पर्व माना गया जो कि सूर्योत्सव का द्योतक है।
अलग-अलग राज्यों में मकर संक्रांति के अलग-अलग रूप-
भारत के अलग-अलग राज्यों में मकर संक्रांति विभिन्न रूपों में मनाई जाती है। विभिन्न प्रान्तों में इस त्योहार को मनाने के जितने अधिक रूप प्रचलित हैं उतने किसी अन्य पर्व के नहीं। हरियाणा में कृषि अर्थव्यवस्था और सामाजिक व्यवस्था ही नहीं संस्कृति का भी आधार है। यहां पर हर त्योहार खेती से जुड़ा है। मकर संक्रांति किसानों के लिए अहम होता है। इस समय गेहूं व सरसों की फसल की बालियों में दाने बनने लगते हैं। अच्छी फसल को लेकर उनमें उम्मीदें होती हैं और बालियों में दाने आने पर किसान मकर संक्रांति को आभार दिवस के रूप में मनाते हैं। इसे बसंत ऋतु के आगमन की तैयारियों के रूप में भी मनाया जाता है।
हरियाणा में इस दिन विशेष तौर पर खिचड़ी, मीठे चावल, तिल, मूली, गुड़ व रेवड़ी वगैरह खाई जाती है। महिलाएं तिल कूटती हैं और उससे मिष्ठान बनाती हैं। बड़ी संख्या में श्रद्धालु ब्रह्मसरोवर में स्नान के लिए कुरुक्षेत्र आते हैं। कुछ लोग यमुना व नदियों-नहरों में स्नान के लिए जाते हैं। विवाहित जोड़े अभिभावकों से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। बड़े-बुजुर्गों के लिए नए परिधान भेंट किए जाते हैं। परंपरा के अनुसार पहले गांव-देहात में घर के बुजुर्ग इस दिन नाराज होने का नाटक करते थे और कहीं बाहर जाकर बैठ जाते थे। तब महिलाएं बहु को वहां तक ले जातीं और सभी मिलकर बुजुर्ग का सम्मान करके उन्हें मनाते थे। मकर संक्रांति के साथ-साथ हरियाणा और पंजाब में 13जनवरी को लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन अँधेरा होते ही आग जलाकर अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है। इस अवसर पर लोग मूंगफली, तिल की बनी हुई गजक और रेवडिय़ाँ आपस में बाँटकर खुशियाँ मनाते हैं।
उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति मुख्यत: दान और स्नान का पर्व है। इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर हर साल माघ मेला लगता है। 14 जनवरी से ही माघ मेले की शुरुआत होती है। उत्तर प्रदेश और बिहार में मकर संक्रांति को खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महत्व होता है।
महाराष्ट्र में इस दिन लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं- तिल गुड़ लो और मीठा-मीठा बोलो।
तामिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं। पहले दिन भोगी-पोंगल, दूसरे दिन सूर्य-पोंगल, तीसरे दिन केनू-पोंगल और चौथे व अन्तिम दिन कन्या-पोंगल। इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है। पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है। उसके बाद सभी खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। इस दिन बेटी और जमाई राजा का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है।
असम में मकर संक्रांति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं। कईं दिन तक परंपरागत संगीत के साथ बिहू नृत्य किया जाता है। राजस्थान व बंगाल में भी मकर संक्रांति पर विशेष प्रकार के आयोजन किए जाते हैं।
पतंग उड़ाने का दिन-
मकर संक्रांति के दिन लोग रंग-बिरंगे और सुंदर पतंग उड़ाते हैं। तुलसीदास के रामचरितमानस के बाल कांड में भी मकर संक्रांति के दिन बाल राम द्वारा मित्र मंडली के साथ पतंग उड़ाने का प्रसंग है। राम की पतंग उड़ती हुई देवलोक तक पहुंच जाती है। पुराने समय में सुबह सूर्योदय के साथ ही पतंग उड़ाना शुरू हो जाता था। पतंग जीवन में उमंग, तरंग, उत्साह और ऊंचाईयों का संदेश देती है। पतंग के बहाने लोग कुछ घंटे सूर्य के प्रकाश में बिताते हैं। यह समय सर्दी के मौसम का होता है और इस मौसम में सुबह के सूरज की रोशनी शरीर के लिए स्वास्थवर्धक और त्वचा व हड्डियों के लिए अत्यंत लाभदायक होती है। इस दिन लोग बड़े उत्साह से पतंगें उड़ाकर पतंगबाज़ी के दाँव-पेचों का मज़ा लेते हैं। बड़े-बड़े शहरों में ही नहीं, अब गाँवों में भी पतंगबाज़ी की प्रतियोगिताएँ होती हैं। आकाश में पतंगों की दौड़-धूप का दृश्य देखते ही बनता है। बच्चों में तो इस दिन के लिए खास उत्साह होता है। इस मौके पर डॉ. मोहम्मद साजिद खान की कविता की कुछ पंक्तियां पेश हैं-
आसमान का मौसम बदला
बिखर गई चहुँओर पतंग।
इंद्रधनुष जैसी सतरंगी
नील गगन की मोर पतंग।।
बाग तोड़ कर नील गगन में
करती है घुड़दौड़ पतंग।।
दुबली-पतली सी काया पर
लेती सबसे होड़ पतंग।।
कटी डोर, उड़ चली गगन में
बंधन सारे तोड़ पतंग।
लहराती-बलखाती जाती
कहाँ न जाने छोर पतंग।।
-अरुण कुमार कैहरबा,
हिन्दी प्राध्यापक-09466220145
Wednesday, January 11, 2017
Tuesday, January 10, 2017
Tuesday, January 3, 2017
Monday, January 2, 2017
Sunday, January 1, 2017
Subscribe to:
Posts (Atom)